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अधिगम के प्रकार | Types of Learning in Hindi | adhigam ke prakar

अधिगम के प्रकार
अधिगम के प्रकार

अधिगम के प्रकार (Types of Learning)

अधिगम का वर्गीकरण कई दृष्टियों से किया जा सकता है, यथा-अधिगम के सिद्धान्तों, विधियों, अधिगम के ढंग और विषयवस्तु आदि बातों को ध्यान में रखते हुए अधिगम के प्रकारों का विभाजन निम्नवत् हो सकता है-

(1) संवेदन गति अधिगम (Sensary Motor Learning)- इसके अन्तर्गत गतिशील रचनाओं सम्बन्धी ज्ञान आता है। इस तरह के अधिगम के अन्तर्गत विभिन्न प्रकार की कुशलता अर्जित की जाती है। इसमें विभिन्न कौशल आते हैं, जैसे- साईकिल चलाना, तैरना, चित्र बनाना आदि। इसमें संवेदन क्रियाओं का अधिगम होता है। बालक दैनिक व्यवहार आने वाली बातों का अनुकरण करके सीखता है। में

(2) गामक अधिगम (Motor Learning)- विकास की प्रारम्भिक अवस्था के अन्तर्गत बालक शरीर के अंगों के संचालन और गति पर नियन्त्रण करना सीखता है।

(3) बौद्धिक अधिगम (Intellectual Learning)- इसके अन्तर्गत ज्ञानार्जन सम्बन्धी सभी क्रियाएँ आती हैं, जो निम्नवत् हैं

(i) प्रत्यक्षीकरण अधिगम (Perceptual Learning)- इसके अन्तर्गत बालक प्रत्यक्ष ज्ञानात्मक स्तर पर ज्ञानेन्द्रियों की सहायता से सम्पूर्ण परिस्थिति को प्रत्यक्ष देखकर तथा सुनकर प्रतिक्रिया करता है एवं सीखता है।

(ii) प्रत्ययात्मक अधिगम (Conceptual Learning)- इस तरह के अधिगम में उसे तर्क, कल्पना और चिन्तन का आश्रय लेना पड़ता है।

(iii) साहचर्यात्मक अधिगम (Associative Learning)- प्रत्ययात्मक अधिगम इस अधिगम की सहायता से उत्पन्न होता है। इस तरह का अधिगम स्मृति के अन्तर्गत आता है।

(iv) रसानुभूतिपूरक अधिगम (Appreciation Learning) – इस तरह के सीखने में बालक में संवेगात्मक अथवा भावुकतापूर्ण वर्णन अथवा घटना से प्रभावित होकर मूल्यांकन करने अथवा गुण-दोष की विवेचना करने और सौन्दर्यबोध की क्षमता आ जाती है।

(v) कार्यक्रमित अधिगम (Programmed Learning) – कार्यक्रमित अधिगम का उल्लेख हमने विस्तार से एक अलग अध्याय में किया है।

यदि हम अधिगम घटित होने की दशाओं का विश्लेषण करते हैं तो अधिगम के निम्नलिखित रूप दिखलाई देते हैं-

(1) सरल अधिगम- बालक स्वतन्त्र रूप से कार्य करते-करते जब कुछ सीखता है तो उसे सरल अधिगम कहा जाता है, यथा-बालक खेलते-खेलते आग से छू जाता है तो वह सीख जाता है कि आग से दूर रहना चाहिए। इसी तरह की क्रिया के परिणामों से नये अनुभवों के रूप में वह आसानी से सीखता जाता है, उसकी किसी प्रकार की संगठित क्रिया नहीं होती।

(2) कठिन अधिगम- कठिन अधिगम के अन्तर्गत संगठित और जटिल क्रियाएँ आती हैं और कठिनता का स्तर बढ़ता जाता है। उदाहरण के लिए जब बालक संगीत सीखता है तो उसे सुर, ताल, भाव आदि का ज्ञान आवश्यक हो जाता है तथा कालान्तर में राग अलाप आदि की और भी कठिन क्रिया सीखनी होती है। कठिन अधिगम के अन्तर्गत बालक को विभिन्न ज्ञान और क्रिया में सामंजस्य स्थापित करना होता है।

(3) आकस्मिक अधिगम- आकस्मिक अधिगम अपने आप हो जाता है, जैसे बालक आपस में बातचीत करके कोई नई बात सीख जाता है। आकस्मिक अधिगम के अन्तर्गत बालक सीखने के हेतु सचेत नहीं होता और न ही कुछ सीखने के हेतु वह संगठित रूप से प्रयास करता है। वह अपने आप ही सीख जाता है।

(4) उद्देश्यपूर्ण अधिगम- उद्देश्यपूर्ण अधिगम सायास रूप से घटित होता है। बालक को सीखने हेतु जान-बूझकर और सचेत रूप से प्रयास करना होता है। अधिगम का उद्देश्य पहले से निर्धारित करके संगठित रूप से बालक क्रियाशील होता है। उदाहरण के लिए यदि बालक अंग्रेजी सीखना चाहता है तो वह उस व्यक्ति के पास जायेगा जो उसे अंग्रेजी बोलना और लिखना सिखा सके। इसके साथ ही वह स्वयं अभ्यास आदि करता है।

गेने के अनुसार अधिगम के प्रकार 

गेने ने अपनी पुस्तक ‘द कण्डीशन्स ऑफ लर्निंग’ (The Conditions of Learning) में अधिगम के 8 भेदों का उल्लेख किया है जिसे वह ‘निष्पादन परिवर्तन’ कहता है, गेने ने अधिगम के जो भेद बताये हैं वे कठिन स्तर क्रम में रखे जा सकते हैं। इनका उल्लेख यहाँ किया जा रहा है-

(1) संकेतक अधिगम (Signal Learning) – संकेतक अधिगम को रूढ़िगत अनुकूलन के रूप में भी समझा जा सकता है। पावलव के प्रयोग में जिस तरह से घण्टी के उद्दीपन के द्वारा लार स्राव की अनुक्रिया अनुबन्धित कर दी जाती है उससे एक संकेत के द्वारा अधिगम घटित हो जाता है।

(2) उद्दीपन-अनुक्रिया अधिगम (Stimulus-Response Learning) – उद्दीपन अनुक्रिया अधिगम के अन्तर्गत बालक किसी विभेदकारी उद्दीपन के प्रति एक ठीक अनुक्रिया सीख लेता है। थार्नडाइक के प्रयोगों में इसे समझा जा सकता है जिसमें एक बिल्ली सही और गलत उद्दीपनों की पहचान करके अपने अनुक्रिया में संशोधन कर सही अनुक्रिया सीख लेती है। स्किनर द्वारा प्रतिपादित सक्रिय अधिगम (Operant Learning) इस उद्दीपन अधिगम के अन्तर्गत आता है जिसके अन्तर्गत बालक के अधिगम का पुनर्बलन किया जाता है।

(3) शाब्दिक साहचर्य अधिगम (Verbal Association Learning) – शाब्दिक संयोजन शाब्दिक शृंखलाओं का अधिगम है।

(4) शृंखला अधिगम (Chain Learning)- शृंखला अधिगम अनुक्रिया के अन्तर्गत अलग-अलग उद्दीपन अनुक्रिया के मध्य संयोजन होता है। इस तरह के अधिगम के अन्तर्गत उद्दीपन अनुक्रिया के बीच सम्बन्ध स्थापित होकर सम्बन्धों की एक शृंखला सी बन जाती है।

(5) विभेदन अधिगम (Discrimination Learning)- विभेदन अधिगम में बालक भिन्न-भिन्न उद्दीपनों के प्रति अनुकूलन से अलग-अलग स्पष्ट अनुक्रिया करता है। एक जै दिखने वाले उद्दीपनों में विभेद करने की क्षमता आ जाती है तथा विभेदी उद्दीपन के अनुरूप अनुक्रिया करने में बालक समर्थ हो जाता है।

(6) सम्प्रत्यय अधिगम (Concept Learning)- सम्प्रत्यय एक श्रेणी के उद्दीपकों के प्रति अनुक्रिया करना सीख जाता है। यह अधिगम विभेदन अधिगम पर आश्रित होता है।

(7) नियम अधिगम (Rule Learning)- नियम अधिगम को महा सम्प्रत्यय भी कहते क्योंकि नियम की शाब्दिक रूप में भी अभिव्यक्ति की जा सकती हैं। नियम अधिगम के अन्तर्गत बालकों द्वारा विचारों का संयोजन किया जाता है। इस तरह के अधिगम के अन्तर्गत दो अथवा अधिक सम्प्रत्ययों को शृंखलाबद्ध किया जाता है जिसके फलस्वरूप एक नियम की संकल्पना बनती है, जैसे पृथ्वी में गुरुत्वाकर्षण शक्ति है।

(8) समस्या समाधान अधिगम (Problem Solving Learning)- समस्या समाधान अधिगम के अन्तर्गत बालक पूर्व में सिखाये नियमों का संयोग ढूँढता है तथा उसका उपयो अन्य समस्यात्मक परिस्थितियों में प्राप्त करने हेतु करता है। इस तरह समस्या समाधान अधिगम नियम अधिगम का एक प्राकृतिक विस्तार (Natural Extension) है। इस अधिगम में चिन्तन की सामग्री निहित होती है।

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