संवेगात्मक विकास की शिक्षा में उपयोगिता (Utility of Emotional Development in Education)
संवेग मानव जीवन को लक्ष्योन्मुखी बनाते हैं। संवेगों का शिक्षा में महत्त्वपूर्ण स्थान है। एक शिक्षक संवेगात्मक विकास के अध्ययन के आधार पर ही बालक के संवेगों के अनुसार शिक्षा की व्यवस्था कर सकता है। जेरशील्ड ने लिखा है, “विद्यालय शिक्षा की प्रत्येक क्रियाएँ बालकों के संवेगात्मक विकास से सम्बन्धित हैं। यदि विद्यालय में शैक्षिक कार्यक्रम संवेगात्मक विकास के अनुकूल होगा तो बालक को अपनी सफलताओं में आनन्द का अनुभव होगा। इसके फलस्वरूप वे आगामी कार्यक्रम में आनन्दपूर्वक भाग ले सकेंगे।”
शिक्षा में बालक के संवेगात्मक विकास की निम्नलिखित उपयोगिता है-
(1) मूल-प्रवृत्तियों के नियन्त्रण में उपयोगी- संवेगों का सम्बन्ध मानव की मूल प्रवृत्तियों से है। ये संवेग बालक में संवेगात्मक विकास के साथ सहज रूप में प्रकट होने लगते हैं। मूल प्रवृत्तियों पर आधारित प्रमुख संवेग हैं- भय, क्रोध, आश्चर्य, दुःख आदि। बालक के हानिकारक संवेगों का शोधन करने में संवेगात्मक विकास का अध्ययन शिक्षक के लिए उपयोगी है। शिक्षक संवेगात्मक विकास के अध्ययन द्वारा इन संवेगों के नियन्त्रण में सफल होता है। मूल प्रवृत्तियों के नियन्त्रण को सीखकर बालक समाज के लिए उपयोगी सिद्ध हो सकता है।
(2) अनुशासन में उपयोगी- संवेगात्मक विकास का अध्ययन करके शिक्षक अनुशासन स्थापित करने में सफल होता है। बालक छोटी-छोटी बातों पर लड़ने-झगड़ने लगते हैं और आपस में मार-पीट करते हैं। शिक्षक बालकों में इन संवेगों का संशोधन करके विद्यालय में अनुशासन की स्थापना कर सकता है।
(3) व्यवहार-शोधन में उपयोगी- संवेग शोधन की क्रिया में शिक्षक ऐसे अवसर जुटा सकता है जिससे हानिकारक संवेगों को स्थानान्तरित किया जा सके। इस तरह उसके अनुचित प्रभाव को कम किया जा सकता है।
(4) सामाजिक मूल्यों के संरक्षण में उपयोगी- संवेगात्मक विकास का अध्ययन सामाजिक मूल्यों के संरक्षण में भी उपयोगी होता है। शिक्षक अपने ज्ञान का प्रयोग करके बालकों में सामाजिक मूल्यों का निर्माण एवं संरक्षण कर सकता है। ये सामाजिक मूल्य बालक के उत्तम चरित्र-निर्माण में सहायक होते हैं।
(5) संवेगात्मक प्रशिक्षण में उपयोगी- संवेगात्मक विकास का अध्ययन बालकों के संवेगात्मक प्रशिक्षण में अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होता है। संवेगात्मक प्रशिक्षण के हेतु बालक को कार्य करने हेतु स्वतन्त्र अवसर प्रदान किए जाने चाहिए। इस तरह के अवसर हैं- पिकनिक, पर्यटन और खेल के मैदान। इसके साथ ही कक्षा में शिक्षक को अपना व्यवहार सन्तुलित रखना चाहिए। बालकों के साथ कठोर एवं क्रोध के स्थान पर प्रेम एवं स्नेह का व्यवहार किया जाना चाहिए।
(6) संवेगों के प्रदर्शन में उपयोगी- संवेगात्मक विकास का अध्ययन संवेगों के प्रदर्शन में अत्यन्त उपयोगी है। शिक्षक संवेगों के दुष्परिणाम को समाप्त करने के लिए उनका सम्बन्ध इस तरह के उत्तेजकों से जोड़ देता है जो सामाजिक नियमों के अनुकूल होते हैं। उदाहरण के लिए भय के संवेग का विद्यालय के दण्ड और कानून से जोड़कर बालकों के संवेगों का परिमार्जन सम्भव है।
(7) बाल-अपराध के रोकथाम में उपयोगी- संवेगात्मक अध्ययन बाल अपराध के रोकथाम में भी उपयोगी है। शिक्षक बालक के भय और घृणा के संवेगों को देश के नियमों और कानूनों से सम्बन्धित करके उन्हें अपराध करने से रोक सकता है। इस तरह किशोर के संवेगात्मक द्वन्द्वों को नियन्त्रित किया जा सकता है।
(8) पुरस्कार तथा दण्ड प्रदान करने में उपयोगी- बालकों के संवेगात्मक अध्ययन के द्वारा अध्यापक उनके लिए पुरस्कार एवं दण्ड के निर्णय लेने में सक्षम होता है। बालक के अच्छे संवेग प्रदर्शन की प्रशंसा की जानी चाहिए और उसे पुरस्कार दिया जाना चाहिए, परन्तु नकारात्मक संवेग प्रदर्शन को उचित दण्ड देकर भयग्रस्त बनाना आवश्यक है।
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