The Convalescent by Charles Lamb critical summary in Hindi and English
The Convalescent by Charles Lamb critical summary in Hindi and English- Elia was in bed for some weeks. He had an attack of nervous fever. As he was recovering from it, he begins to compare that state of the sick man with that of the same man when he is recovering (convalescing). During one’s convalscence, man becomes reflective. He thinks of himself.
The sick bed offers the solitude that kings have. The patient lords over the bed. His coprices have no control. He sways his pillow like a king, as he pleases. He changes sides oftener than a politician. He can lie in any position and no one accuses him of being a defector. He is supreme there.
Sickness enlarges the dimensions of a man’s self to himself. He is his own exclusive object. He is supremely seflish, and this selfishness is cherished as a matter of duty. He can only think of the way he should get well. What goes on outside does not affect him at all.
Before he fell ill, he may have been in a law-suit of his own or that of his friends. Now in the sick bed he has lost interest in it. He is not worried by the misfortune of his friend. Sickness is an armour, and suffering gives a callous hide. He pities himself and he is not ashamed to weep over himself. He is busy plotting to do some good to himself. He is his own sympathiser. He is pleased by the face of his nurse. He is dead to the world’s business. He is not worried by household rumours. He is flattered by a general notion that people are enquiring after his health, but he does not care to know the name of the inquirer. To be sick is, therefore, to enjoy royal prerogatives. People walk silently into the sick room.
When the sickman begins to recover, he falls from dignity. He is deposed. Convalescence shrinks a man back to his original stature. The sick room is reduced to a common bedroom, the bed is trium, and so it looks petty and meaningless, it is even made every day. There is no mysterious sighs and groans. Even Philoctetes becomes an ordinary person when he recovers; all his tragic grandeur is gone. The only trace of his former glory is in the lingering visitations of the medical attendant. But he too is a changed man. There is a fall into the ordinary life.
निबन्ध का सारांश
एक बार लैम्ब बीमार पड़ा। उसे तन्त्रिकाओं का बुखार आ गया था। जब वह अपनी बीमारी से छुटकारा पा रहा था तो वह इसकी एक बीमार व्यक्ति से तुलना करने लगा। बीमारी से ठीक होने की अवस्था में व्यक्ति स्वार्थी हो जाता है तथा केवल अपने बारे में ही सोचता है।
बीमार व्यक्ति की स्थिति एक राजा के समान शाही होती है। बीमार अपने बिस्तर का राजा होता है। उसकी सनक की कोई सीमा नहीं होती। वह अपने तकिये को एक राजा की भाँति (जब वह चाहे तब) पलटता है। वह एक राजनीतिज्ञ से ज्यादा बार अपना पक्ष (करवटें) बदलता है। वह किसी भी स्थिति में सो सकता है और कोई भी उसे इसके लिए दोषारोपित नहीं करता है। वह सर्वोच्च शक्ति का अनुभव करता है। बीमारी व्यक्ति के पहलुओं को बढ़ा देती है। वह स्वयं का एक नायाब नमूना होता है। वह सबसे ज्यादा स्वार्थी हो जाता है। वह केवल उन्हीं तरीकों पर विचार करता है जिनसे उसे स्वास्थ्य लाभ हो। उसके बिस्तर की परिधि से बाहर क्यों हो रहा है। इसके बारे में वह कभी विचार नहीं करता है।
बीमार पड़ने से पहले वह किसी मुकदमे स्वयं का या किसी मित्र का में उलझा हो सकता है लेकिन बीमार होने के बाद वह इन सभी बातों में रुचि खो देता है। वह अब अपने मित्र के दुर्भाग्य पर चिन्तित नहीं होता है। बीमारी उसके लिए एक प्रकार का कवच है जो उसे सभी परेशानियों से बचाती है। वह स्वयं को दया का पात्र समझता है तथा स्वयं के ऊपर रोने में शर्म का अनुभव नहीं करता है। वह स्वयं की भलाई की योजनाएँ बनाता रहता है तथा स्वयं से सहानुभूति रखता है। वह अपनी परिचारिका का चेहरा देखकर प्रसन्न हो जाता है। वह दुनिया के लिए मर चुका होता है। वह घरेलू अफवाहों पर ध्यान नहीं देता है। वह इस बात से प्रसन्न होता है कि लोग उसके स्वास्थ्य के बारे में पूछताछ करते रहते हैं लेकिन साथ ही वह पूछताछ करने वालों के नाम जानने में रुचि नहीं लेता है। इसलिए बीमार होना शाही अधिकारों को पाना होता है। लोग उसके कमरे में चुपचाप (धीरे-धीरे वह जाग न जाये) प्रवेश करते हैं।
जब वह व्यक्ति ठीक होने लगता है तो उसके गौरव में कुछ कमी आ जाती है। अब उसका उतना ध्यान नहीं रखा जाता तथा व्यक्ति अपनी शाही स्थिति से गिर जाता है। बीमार का कमरा एक साधारण कमरे में बदल जाता है तथा उसका बिस्तर भी व्यर्थ लगने लगता है। अब उसके बिस्तर से रहस्यमयी कराहटों की आवाजें आना बन्द हो जाती हैं तथा फिलोक्टेट्स भी एक सामान्य व्यक्ति बन जाता है। जब वह स्वास्थ्य लाभ करता है तो उसका दर्द का गौरव समाप्त हो जाता है। उसका पूर्व गौरव धीरे-धीरे समाप्त होने लगता है। वह स्वयं भी बदल जाता है तथा सामान्य जिन्दगी में उसका पतन हो जाता है।
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