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सूचना प्रौद्योगिकी | सूचना एवं संचार तकनीकी की प्रकृति

सूचना प्रौद्योगिकी
सूचना प्रौद्योगिकी

सूचना प्रौद्योगिकी (Information Technology)

सूचना प्रौद्योगिकी, आँकड़ों की प्राप्ति, सूचना (Information) संग्रह, सुरक्षा, परिवर्तन, आदान-प्रदान, अध्ययन, डिजाइन आदि कार्यों के निष्पादन के लिये आवश्यक कम्प्यूटर हार्डवेयर एवं सॉफ्टवेयर अनुप्रयोगों से सम्बन्धित है। सूचना प्रौद्योगिकी कम्प्यूटर पर आधारित सूचना-प्रणाली का आधार है। सूचना प्रौद्योगिकी, वर्तमान समय में वाणिज्य और व्यापार का अभिन्न अंग है। संचार क्रान्ति के फलस्वरूप अब इलेक्ट्रॉनिक संचार भी सूचना प्रौद्योगिकी का एक प्रमुख घटक माना जाने लगा है, इसे सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (Information and Communication Technology, ICT) भी कहा जाता है ।

सूचना एवं संचार तकनीकी की प्रकृति (Nature of Information and Communication Technology)

सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी की प्रकृति निम्न है-

(1) यह एक प्रक्रिया है- सम्प्रेषण प्रेषक एवं ग्राही के बीच चलने वाली वह प्रक्रिया है जिसमें प्रेषक सन्देश को कूट भाषा में परिवर्तित करता है । (Encoding) और वही कूट भाषा (Coded Message) ग्राही के द्वारा कूटानुवाद (decoding) कर लिया जाता है।

(2) यह अनिवार्य/अपरिहार्य तत्त्व है- सम्प्रेषण भौतिक, सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक तौर पर अनिवार्य है। यदि हम किसी व्यक्ति को सारी भौतिक सुविधाएँ उपलब्ध करा दें परन्तु उसे लिखने, बोलने, सुनने, पढ़ने से वंचित कर दें तो उसका मानसिक सन्तुलन बिगड़ने की पूरी सम्भावना है।

(3) इसमें न्यूनतम दो पक्ष अनिवार्य हैं- सम्प्रेषण प्रक्रिया में न्यूनतम दो पक्ष प्रेषक एवं ग्राही होना अनिवार्य है। एक पक्ष होने पर उसे सम्प्रेषण नहीं कहा जा सकता। जब तक ग्राही सन्देश को ग्रहण न कर ले, सम्प्रेषण की प्रक्रिया पूरी नहीं मानी जा सकती।

(4) यह चक्रीय स्वरूप का है- प्रेषक एवं ग्राही के मध्य का सम्बन्ध चक्रीय होता है। अच्छे सम्प्रेषण की अवस्था में इसका स्वरूप चक्रीय अवश्य होता है। ग्राही ग्रहण की हुई बातों पर प्रतिपुष्टि (Feedback) पुनः प्रेषक तक पहुँचाता है। इस अवस्था में ग्राही प्रेषक बन जाता है एवं प्रेषक ग्राही बन जाता है। कक्षा-कक्ष परिस्थितियों में यदि चक्र का निर्माण होता है तो शिक्षण अधिगम अत्यन्त प्रभावी होता है।

(5) इसमें चार विशिष्ट कौशल होते हैं- सम्प्रेषण के चार प्रमुख विशिष्ट कौशल पढ़ना, लिखना, बोलना और सुनना होते हैं।

(6) यह सामाजिक व्यवस्था की रीढ़ की हड्डी है- सम्प्रेषण किसी भी समाज की मुख्य नींव है। इसके बगैर कोई भी संस्था कार्य नहीं कर सकती।

सम्प्रेषण के अधिगम उद्देश्य (Learning Objectives of Communication)

सूचना एवं सम्प्रेषण के मुख्य उद्देश्य इस प्रकार हैं-

1. सम्प्रेषण के विविध स्वरूपों को सीखना ।

2. प्रभावशाली सम्प्रेषण की प्रक्रिया को बोधगम्य करना तथा प्रभावशाली उत्पादन को जानना।

3. अपने क्षेत्र में प्रभावशाली सम्प्रेषण कौशलों को विकसित करना ।

4. सम्प्रेषण के अवरोधों को पहिचानना और उनका समाधान करना।

5. अपने साथियों में प्रभावी सम्प्रेषण करना।

6. श्रोताओं को अभिप्रेरित करने की प्रविधियों को प्रयुक्त करना ।

7. प्रबन्धन की प्रक्रिया में सुनने के कौशलों को विकसित करना ।

8. वार्तालाप के वातावरण को नियन्त्रित करना ।

9. प्रश्नोत्तर कौशलों को विकसित करना तथा उपयोग करना ।

10. असामान्य व्यक्तियों में सम्प्रेषण की क्षमता विकसित करना।

11. प्रतिबद्धता के लिए भावना को विकसित करना ।

12. समूह को सम्बोधित करने के कौशल का विकास करना ।

13. समुचित पृष्ठपोषण देने की क्षमताओं का विकास करना ।

14. उपयोगी लेखन के कौशल का विकास करना।

15. सफलतापूर्वक सभाओं को नेतृत्व तथा सम्बोधन के कौशलों का विकास करना।

16. सम्प्रेषण की समस्याओं को समझने का बोध करना।

17. इलेक्ट्रॉनिक सम्प्रेषण की प्रक्रिया का बोध करना ।

18. इण्टरनेट तथा वेबसाइट के उपयोग करने का प्रशिक्षण देना।

19. सम्प्रेषण के सुधार तथा विकास हेतु नियोजन की योग्यता को विकसित करना ।

20. सम्प्रेषण सम्बन्धी मौलिक समस्याओं के अध्ययन हेतु शोध अध्ययन की क्षमताओं का विकास करना ।

सम्प्रेषण के विश्लेषण की प्रविधियों का बोध कराना तथा शाब्दिक और अशाब्दिक विश्लेषण एवं निरीक्षण का प्रशिक्षण देना।

सम्प्रेषण की विशेषताएँ (Characteristics of Communication)

सम्प्रेषण की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

1. परस्पर विचारों एवं भावनाओं का आदान-प्रदान करना

2. सम्प्रेषण से विचारों तथा भावनाओं की साझेदारी होती है।

3. सम्प्रेषण में अन्तः निहित होती हैं दोनों पक्षों का विकास होता है। दोनों ही पक्ष क्रियाशील रहते हैं।

4. विवारों एवं भावनाओं के आदान-प्रदान को प्रोत्साहन दिया जाता है।

5. इसमें आदान-प्रदान की प्रक्रिया को पृष्ठपोषण दिया जाता है

6. सम्प्रेषण में अनुभवों की साझेदारी होती है।

7. सम्प्रेषण की प्रक्रिया द्वि-मार्गी होती है। इसमें पृष्ठपोषण एवं अन्तः प्रक्रिया भी निहित होती है।

8. सम्प्रेषण की प्रक्रिया से शुद्ध अनुभव प्रदान करने का प्रयास किया जाता है।

9. सम्प्रेषण में ज्ञानेन्द्रियों तथा कर्मेन्द्रियों को क्रियाशील रखने का प्रयास किया जाता

10. शिक्षण की प्रक्रिया का सम्प्रेषण महत्त्वपूर्ण घटक है।

11. कक्षागत अन्तः प्रक्रिया सम्प्रेषण से ही की जाती है।

12. सम्प्रेषण में भाषा कौशलों की भूमिका अहम् होती है।

ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में विकास (Development in Historical Perspective)

मानव सभ्यता की शुरूआत के साथ ही सम्प्रेषण कला विकसित हुई। मानव का दूसरे मानव से वार्तालाप इस कला के कारण ही सम्भव हो सका है। इसे यदि हम शिक्षा के क्षेत्र में समझना चाहें तो हमें कक्षा के परिदृश्य में देखना होगा। कक्षा की प्राचीनतम अवधारणा में शिक्षक तथा विषयवस्तु केन्द्र में होती थी। सम्पूर्ण शिक्षा प्रणाली एक तरह से शिक्षक केन्द्रित होती थी। शिक्षक ही शैक्षिक उद्देश्यों के आधार पर पठन-पाठन क्रिया को आगे बढ़ाता था। उस समय प्रायः सम्प्रेषण का स्वरूप एकमार्गीय (Uni-directional) होता था ।

एकमार्गीय सम्प्रेषण

एकमार्गीय सम्प्रेषण

इस प्रकार के सम्प्रेषण में प्रेषक सन्देश देता है और ग्राही उसे ग्रहण करता है। समाज की बदलती परिस्थितियों ने जैसे-जैसे शैक्षिक उद्देश्यों को बदला वैसे-वैसे कक्षा की प्रणाली में बदलाव आता गया। मनोविज्ञान विषय के द्वारा छात्र की भूमिका शिक्षण प्रणाली में बढ़ने लगी। छात्र शिक्षण अधिगम प्रणाली का केन्द्र होता गया जिसके कारण उसकी रुचियों तथा आवश्यकताओं को अधिक-से-अधिक ध्यान में रखा जाने लगा। ऐसे में सम्प्रेषण एक चक्र के रूप में कार्य करने लगा जिसे हम द्विमार्गीय सम्प्रेषण कह सकते हैं।

द्विमार्गीय सम्प्रेषण

द्विमार्गीय सम्प्रेषण

द्विमार्गीय सम्प्रेषण में ग्राही भी अपनी अभिव्यक्ति प्रतिपुष्टि (Feedback) के माध्यम से प्रेषक तक पहुँचा सकता था। इस प्रकार सम्प्रेषण की मूल अवधारणा में परिवर्तन कर दिया गया और प्रेषक तथा ग्राही के स्थान परिवर्तित होने लगे। प्रतिपुष्टि की दशा में ग्राही, प्रेषक हो गया एवं प्रेषक, ग्राही हो गया।

सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी का क्षेत्र एवं प्रकार्य (Scope and Functions of Information and Communication Technology)

संचार की प्रौद्योगिकी जिसे आम तौर पर आईसीटी (ICT) कहा जाता है, का प्रयोग अक्सर सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) के पर्यायवाची के रूप में किया जाता है। आमतौर पर यह अधिक सामान्य शब्दावली है, जो आधुनिक सूचना प्रौद्योगिकी में दूरसंचार (टेलीफोन लाईन एवं वायरलेस संकेतों) की भूमिका पर जोर देती है। आईसीटी में वे सभी साधन सम्मिलित हैं जिनका प्रयोग कम्प्यूटर एवं नेटवर्क हार्डवेयर दोनों में तथा साथ-ही-साथ आवश्यक सॉफ्टवेयर सहित सूचना के संचार का संचालन करने के लिए किया जाता है। दूसरे शब्दों में, आईसीटी (ICT) में सूचना प्रौद्योगिकी (IT) के साथ-साथ दूरभाष संचार, प्रसारण मीडिया और सभी प्रकार के ऑडियो और वीडियो प्रक्रमण एवं प्रेषण शामिल हैं, इस अभिव्यक्ति का सबसे पहला प्रयोग 1997 में डेनिस स्टीवेंसन द्वारा ब्रिटेन की सरकार को भेजी गई एक रिपोर्ट में किया गया था एवं सन् 2000 में ब्रिटेन के नये राष्ट्रीय पाठ्यक्रम सम्बन्धी दस्तावेजों द्वारा प्रचारित इसका प्रचार किया गया।

अक्सर आईसीटी (ICT) का प्रयोग आईसीटी (ICT) रोडमैप में उस मार्ग का सूचित करने के लिए किया जाता है जिसे कोई संगठन अपनी आईसीटी (ICT) जरूरतों के साथ अपनायेगा।

अब आईसीटी (ICT) शब्द का प्रयोग टेलीफोन नेटवर्कों का कम्प्यूटर नेटवर्कों के साथ एक एकल केबल या लिंक प्रणाली के माध्यम से संयुग्मन (अभिसरण) करने के लिए भी किया जाता है। टेलीफोन नेटवर्कों का कम्प्यूटर नेटवर्क प्रणाली के साथ संयुग्मन करने के व्यापक आर्थिक लाभ (टेलीफोन नेटवर्क की समाप्ति के कारण भारी लागत बचत) हैं।

भारत प्रभावित हुआ में सूचना तथा संचार प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हुई तरक्की से जीवन का हर क्षेत्र है। देश में इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों का दायरा तथा प्रभाव तेजी से बढ़ रहा है तथा इण्टरनेट सेवाओं का तेजी से विस्तार हो रहा है। जाहिर है शिक्षा का क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं है।

सूचना प्रौद्योगिकी के बुनियादी अनुप्रयोग (Basic Applications of Information Technology)

आर्थिक विकास की प्रक्रिया- हाल के वर्षों में, सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) आर्थिक विकास की प्रक्रिया के लिए निर्णायक बन गया है। सूचना प्रौद्योगिकी से सूचना के आदान-प्रदान और व्यापार लेन-देन को सबसे कुशल और लागत प्रभावी बनाया है। यह वित्तीय और अन्य सेवा क्षेत्रों के रूप में देश के सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण साधन का प्रतीक बना है।

भूमण्डलीकृत- भूमण्डलीकृत दुनिया में, सूचना प्रौद्योगिकी सामाजिक और आर्थिक विकास की सबसे महत्त्वपूर्ण निर्धारकों में से एक है। तुलनात्मक लाभ केवल ज्ञान के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। मानव निर्मित श्रम बाजार, तकनीकी शिक्षा और पूँजी निर्माण के सम्बन्ध में प्रभाव जबरदस्त और दूरगामी हैं जिससे देश में सूचना प्रौद्योगिकी से सामाजिक और आर्थिक विकास होगा।

आर्थिक संरचना के निर्माण में (In the formations of Economic Structure)- सूचना प्रौद्योगिकी द्वारा आर्थिक संरचना के निर्माण में कुशल दूरसंचार बुनियादी ढाँचे और प्रभावी दूरसंचार सेवाएँ अस्तित्व में हैं।

वित्तीय जानकारी प्रदान करने (To Provide Financial Informations) – सूचना प्रौद्योगिकी वर्तमान में मौलिक ढंग से, रोजगार, सरकारी व निजी क्षेत्र में वित्तीय जानकारी प्रदान करने के लिए बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाता

बुनियादी सुविधाओं की अनुपलब्धता को कम करना (To Provide basic Facilities)- स्थानीय व्यापारों, सरकारी व गैर सरकारी संगठनों के लिए बुनियादी सुविधाओं की अनुपलब्धता को दूर करता है।

शिक्षा अनुसन्धान और विकास में (In Educations Research & Development)- शिक्षा अनुसन्धान और विकास में सूचना प्रौद्योगिकी पाठ्यक्रम तैयार किये जा रहे हैं। सूचना प्रौद्योगिकी शिक्षकों को बहुत सहायता प्रदान करता है जो प्रशासनिक कार्यों के साथ पाठ्यक्रम विकास के लिए नई-नई प्रणाली उपलब्ध कराता है।

पायलट प्रणाली की परियोजनाओं को चलाना (To Execute Pilot Systems of Projects) – सूचना प्रौद्योगिकी द्वारा सरकार की पायलट प्रणाली की परियोजनाएँ बनाई जाती हैं तथा उनका क्रियान्वयन सुचारू रूप से किया जाता है।

व्यावहारिक प्रशिक्षण की अपर्याप्तता को कम करना (To Reduce the Need of Practical Training)- सूचना प्रौद्योगिकी व्यावहारिक प्रशिक्षण की अपर्याप्तता को कम करता है।

सूचना सम्प्रेषण तकनीकी में शिक्षक की भूमिका (Role of a Teacher in Information Communication Technology)

इसके लिए निम्नलिखित बातें सहायक सिद्ध हो सकती हैं-

1. जो सूचनाएँ प्राप्त हों, उन्हें मस्तिष्क में सँजोकर उपयुक्त समय पर प्रयोग करने की क्षमता विकसित की जाये।

2. सूचनाओं के भण्डारण व उनकी व्यवस्था एवं पुनः प्रस्तुतीकरण हेतु किसी व्यवस्थित सूचना नियन्त्रण प्रणाली का प्रयोग करना सिखाया जाये।

3. प्रशिक्षणार्थी की निम्नलिखित योग्याताओं का विकास किया जाये; जैसे

(i) पढ़ने की योग्यता विकास। (ii) लिखने की योग्यत का विकास।

(iii) कम्प्यूटर के प्रयोग की योग्यता का विकास।

(iv) सूचनाओं का विश्लेषण एवं संश्लेषण कर उचित निष्कर्ष निकालने की क्षमता का विकास।

(v) सूचना सामग्री की सहायता से समस्या समाधान करने तथा निर्णय लेने की योग्यता का विकास।

4. विद्यार्थियों को प्रारम्भ से ही निम्नलिखित बातों का प्रशिक्षण दिया जाय

(i) ज्ञानेन्द्रियों का उपयुक्त प्रयोग ।

(ii) अपने वातावरण, शिक्षण, अधिगम की परिस्थितियों में उपलब्ध समस्त जानकारियाँ एवं सूचननाओं को उनके मूल रूप में ठीक प्रकार से ग्रहण करना। उनकी व्यवस्था, नियन्त्रण एवं सम्प्रेषण के तरीकों से अवगत कराना।

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