भूगोल / Geography

भारत के प्रमुख भू आकृतिक विभाग कौन-कौन से हैं ?

भारत के प्रमुख भू आकृतिक विभाग कौन-कौन से हैं ?

भारत के प्रमुख भू आकृतिक विभाग

भारत के प्रमुख भू आकृतिक विभाग

भारत के प्रमुख भू-आकृतिक विभाग

भारत एक विशाल देश है । भारत के भू-आकृति की संरचना में अनेक विषमताएँ एवं विभिन्नताएँ दिखाई देती हैं। भारत का 29.3% भाग पर्वतीय, पहाड़ी एवं ऊबड़-खाबड़ है । 27.7% भाग पठारी है तथा 43% भाग मैदानी है । भारत में अन्य देशों की अपेक्षा मैदानी क्षेत्रों का विस्तार अधिक है।

भारत को भू-आकृति संरचना के आधार पर पाँच भागों में विभाजित किया गया है –

  1. उत्तर में विशाल पर्वतों की प्राचीर अथवा हिमालय का पर्वतीय प्रदेश
  2. उत्तर का मैदान अथवा उत्तर का विशाल मैदान
  3. दक्षिण का पठार
  4. समुद्रतटीय मैदान
  5. द्वीप समूह ।

भू-आकृतिक विभाग के प्रकार

इनका संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित प्रकार से है-

1. उत्तर में विशाल पर्वतों की प्राचीर अथवा हिमालय का पर्वतीय प्रदेश –

भारत के उत्तर में लगभग 2,500 किमी. की लम्बाई तथा 150 से 400 किमी. की चौड़ाई में हिमालय का पर्वतीय प्रदेश है । यहाँ पर्वतों की दीवारें पूर्व से पश्चिम दिशा में चाप के आकार में फैली हैं । हिमालय पर्वत उत्तरी भारत की अधिकांश नदियों का उद्गम स्थल है तथा यहाँ हरे-भरे वनों का भण्डार है । हिमालय के पर्वतीय प्रदेश का विस्तार 5 लाख वर्ग किमी. क्षेत्रफल में है । यहाँ पर्वतमाला की तीन समानान्तर श्रेणियाँ हैं-

(i) महान हिमालय, (ii) लघु हिमालय, (iii) बाह्य हिमालय 

हिमालय की औसत ऊँचाई 6,000 मीटर से अधिक है, इसीलिए यहाँ ये श्रेणियाँ सदैव बर्फ से ढकी रहती है।

2. उत्तर का मैदान अथवा उत्तर का विशाल मैदान –

विश्व का सबसे अधिक उपजाऊ और घनी जनसंख्या वाला मैदान है । यहाँ दक्षिण तथा दक्कन पठार के उत्तर में गंगा, सतलज, ब्रह्मपुत्र और उसकी सहायक नदियों की कॉप मिट्टी द्वारा बना हुआ उपजाऊ एवं समतल मैदान है । इसका क्षेत्रफल लगभग 7 लाख वर्ग किमी. है । इस मैदान को जलोढ़ मैदान के नाम से भी पुकारा जाता है । इस मैदान का ढाल बड़ा ही समतल है । इसका सम्पूर्ण मैदान बाँगर तथा खादर की भूमि द्वारा निर्मित है । इस मैदान को गणना विश्व के सबसे उपजाऊ कृषि प्रदेशों में की जाती है । यहाँ देश की 45% जनसंख्या निवास करती है । प्रतिवर्ष नदियाँ इस मैदान में उपजाऊ कॉप मिट्टी लाकर बिछाती रहती हैं।

3. दक्षिण का पठार –

भारत के दक्षिण में प्राचीन ग्रेनाइट तथा बेसाल्ट की कठोर शैलों से बना दकन का पठार है, जिसको दक्षिण का पठार भी कहा जाता है । इसका विस्तार राजस्थान से लेकर कुमारी अन्तरीप तक और पश्चिम में गुजरात से लेकर पूरब की ओर पश्चिम बंगाल तक है । इसका आकार त्रिभुजाकार है एवं आधार उत्तर की ओर तथा शीर्ष दक्षिण की ओर है । इस पठार के उत्तर में अरावली, विन्ध्याचल और सतपुड़ा की पहाड़ियाँ हैं । इसके पश्चिम में ऊँचे पश्चिमी घाट, पूरब में निम्न पूर्वी घाट और दक्षिण में नीलगिरि पर्वत हैं । इसके पश्चिमी भाग पर ज्वालामुखी द्वारा निर्मित लावा के निक्षेप हैं, जो काली मिट्टी के उपजाऊ क्षेत्र हैं । इस पठारी क्षेत्र पर अधिकांश नदियों ने गहरी घाटियाँ बना ली हैं। इस क्षेत्र का धरातल बहुत ही विषम है । इस पठार पर बहुमूल्य मानसूनी वन सम्पदा पायी जाती है । सागौन एवं चन्दन की बहुमूल्य लकड़ी भी इसी पठारी भाग में मिलती हैं । यह क्षेत्र कृषि-उपजों का भण्डार तथा उद्योग-धन्धों का महत्वपूर्ण केन्द्र है । इस पठार पर बहने वाली नदियाँ दक्षिण-पूर्व की ओर बहकर बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं । महानदी, गोदावरी, कृष्णा तथा कावेरी ऐसी ही नदियाँ हैं । नर्मदा और ताप्ती नदियाँ भ्रंश घाटी में होकर बहती हैं तथा अरब सागर में गिरती हैं । अरब सागर में गिरने वाली अन्य नदियाँ बहुत छोटी तथा तीव्रगामी हैं ।

4. समुद्रतटीय मैदान –

प्रायद्वीपीय पठार के दोनों ओर पूर्वी तथा पश्चिमी तटीय क्षेत्रों पर पतली पट्टी के रूप में जो मैदान फैले हैं, उन्हें समुद्रतटीय मैदान कहते हैं । इन मैदानों का निर्माण सागर की लहरों तथा नदियों ने अपनी निक्षेप क्रियाओं द्वारा लाये गये अवसाद से किया है । इस मैदानी क्षेत्र को दो भागों में बाँटा गया है

  1. पश्चिमी तटीय मैदान – यह मैदान अरब सागर के सहारे-सहारे कच्छ की खाड़ी से लेकर कुमारी अन्तरीप तक विस्तृत है । इस मैदान का आकार सँकरा है, जिसकी औसत चौड़ाई 64 किमी. है । इस तटीय मैदान में बहने वाली नदियाँ छोटी एवं तीव्रगामी हैं । इसीलिए इनके जल का उपयोग सिंचाई, जलविद्यत या जल-परितन तिने में बहने वाली नदियाँ छोटी एवं तीव्रगामी है । इसीलिए इनके जल का उपयोग सिंचाई, जलविद्युत या जल-परिवहन आदि किसी भी कार्य में नहीं हो पाता है । फलस्वरूप इस मैदान का विस्तार नहीं हो पाया है । इसके उत्तरी भाग को कोंकण तथा दक्षिणी भाग को मालाबार तट के नाम से पुकारा जाता है ।
  2.  पूर्वी तटीय मैदान – बंगाल की खाड़ी के सहारे-सहारे पूर्वी तटीय मैदान उड़ीसा राज्य से कुमारी अन्तरीप तक फैला हुआ है । यह पश्चिमी तट की अपेक्षा अधिक चौड़ा है । 160 से 480 किमी. तथा कई प्रमुख डेल्टाओं में विभाजित है । ये डेल्टा महानदी, गोदावरी, कृष्णा तथा कावेरी नदियों द्वारा बनाये गये हैं । इस सम्पूर्ण तट को उत्कल तट भी कहते हैं । कोलकाता, मद्रास व विशाखापत्तनम यहाँ के प्रमुख बन्दरगाह हैं ।
5. द्वीप समूह –

भारत के मुख्य स्थल भाग के पश्चात् सागरों के बीच में जो आकृतियाँ स्थित हैं, वे द्वीपसमूह के रूप में जानी जाती हैं । भारत में कुल 247 द्वीप हैं, जिसमें से 204 द्वीप बंगाल की खाड़ी में तथा शेष अरब सागर में हैं । ये द्वीप भारत के अभिन्न अंग हैं । इन्हें स्थिति के अनुसार दो भागों में बाँटा जा सकता है

  1. अरब सागर के द्वीप – ये द्वीप अरब सागर के मुख्य स्थल के पश्चिम में स्थित हैं । इन द्वीपों की आकृति घोड़े की नाल के समान है । इनका निर्माण जीवों के अवशेषों के जमने से हुआ है । इन द्वीपों पर नारियल के वृक्ष अधिक उगते हैं । इन द्वीपों की संख्या 43 है तथा लक्षद्वीप का क्षेत्रफल मात्र 32 वर्ग किमी. है।
  2. बंगाल की खाड़ी के द्वीप – भारत के अनेक द्वीप बंगाल की खाड़ी में भी पाये जाते हैं । इन द्वीप समूहों को अण्डमान तथा निकोबार द्वीप के नाम से जाना जाता है । ये द्वीप 590 किमी. की लम्बाई तथा 50 किमी. की चौड़ाई में अर्द्ध-चन्द्राकार रूप में विस्तृत हैं । ये द्वीप बड़े भी हैं और संख्या में अधिक भी हैं । ये जल में डूबी हुई पहाड़ियों की श्रृंखला पर स्थित हैं । इन द्वीपों में, से कुछ की उत्पत्ति ज्वालामुखी के उद्गार से हुई है । इन द्वीपों की 204 है तथा पोर्ट ब्लेयर यहाँ की राजधानी है । 

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