भूगोल / Geography

यूरोप में जनसंख्या वितरण के स्थानिक प्रतिरूप | Spatial Patterns of Population Distribution in Europe in Hindi

यूरोप में जनसंख्या वितरण के स्थानिक प्रतिरूप | Spatial Patterns of Population Distribution in Europe in Hindi
यूरोप में जनसंख्या वितरण के स्थानिक प्रतिरूप | Spatial Patterns of Population Distribution in Europe in Hindi

यूरोप में जनसंख्या वितरण के स्थानिक प्रतिरूपों का विश्लेषण प्रस्तुत कीजिए। 

जनसंख्या वितरण

जनसंख्या के अनुसार यूरोप एशिया और अफ्रीका के पश्चात् विश्व का तृतीय बृहत्तम जनसंख्या वाला महाद्वीप है। यहाँ लगभग 73 करोड़ जनसंख्या का निवास है। यूरोप की अधिकांश जनसंख्या उत्तरी-पश्चिमी तथा मध्यवर्ती भाग में पायी जाती है। सबसे कम जनसंख्या उत्तरी भाग में मिलती है। जनसंख्या वितरण के अनुसार यूरोप को निम्नलिखित तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है- (1) अधिक जनसंख्या वाले क्षेत्र, (2) अल्प जनसंख्या वाले क्षेत्र, और (3) अत्यल्प जनसंख्या वाले क्षेत्र।

(1) अधिक जनसंख्या वाले क्षेत्र

यूरोप की लगभग आधी जनसंख्या इसको प्रमुख औद्योगिक पेटी में पायी जाती है। जिसका विस्तार पश्चिम में ग्रेट ब्रिटेन से आरंभ होकर फ्रांस, नीदरलैंड, बेल्जियम, जर्मनी, पोलैंड होते हुए रूस की वोल्गा नदी तक है। यह यूरोप की कोयला पेटी भी है जिसका प्रधान अक्ष 50 उत्तरी अक्षांश है जिसके दोनों ओर उत्तम किस्म के कोयले के प्रचुर भंडार है। कोयले की ऊर्जा के आधार पर ही इस औद्योगिक पेटी में विविध प्रकार के उद्योगों का विकास हुआ है। यूरोप में जनसंख्या की सघनता 40 उत्तरी अक्षांश और 60 उत्तरी अक्षांश के मध्य अधिक है और सर्वाधिक सघनता 50 उत्तरी अक्षांश के निकटवर्ती क्षेत्रों में पायी जाती है। अतः इसे ‘यूरोपीय जनसंख्या की घुरी’ (Piovot of European Population) भी कहा जाता है। सघन जनसंख्या की इस पेटी का विस्तार पश्चिम में अधिक है और यह पूर्व की ओर संकरी होती गयी है। ग्रेट ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस, पुर्तगाल, बेल्यिम, नीदरलँड, डेनमार्क, पोलँड, चेक गणराज्य आदि देशों में जनसंख्या का घनत्व 100 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी से अधिक है।

यूरोप में नगरीकरण मुख्यतः औद्योगीकरण का सहचर रहा है। औद्योगिक देशों में प्रति व्यक्ति आय और जनसंख्या का जीवन स्तर अधिक ऊँचा है। इंग्लैंड की औद्योगिक क्रांति के बाद संपूर्ण पश्चिमी यूरोप में नये-नये उद्योगों को स्थापित करने की लहर सी आ गयी और उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य तक इंग्लैंड आदि देश प्रमुख औद्योगिक देश बन गये। उद्योगों की स्थापना से नये-नये नगरों का विकास हुआ और रोजगार के लिए जनसंख्या का पलायन ग्रामीण क्षेत्रों से नगरों के लिए होने लगा। इस प्रकार कुछ ही दशकों में यूरोप की अधिकांश जनसंख्या नगरीय हो गयी। अनेक लघु एवं मध्यम आकार के नगर विकसित होकर महानगर बन गये। इस प्रकार पश्चिमी यूरोप में आधुनिक नगरीय संस्कृति का विकास हुआ।

प्रौद्योगिकीय विकास की दृष्टि से पश्चिमी यूरोपीय देश उन्नत अवस्था में हैं। यहाँ उपलब्ध संसाधनों का लगभग पूर्ण विकास हो चुका है। औद्योगिक उत्पादनों की मात्रा तथा गुणवत्ता में वृद्धि तथा गहन कृषि द्वारा कृषि उत्पादन में वृद्धि के लिए उन्नत प्रौद्योगिकी के शोध के प्रयास निरंतर जारी हैं। उच्च जीवन स्तर को बनाये रखने के लिए नवीन शोधों के साथ ही अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को अधिक महत्व दिया जा रहा है।

2. अल्प जनसंख्या वाले क्षेत्र-

केवल इटली को छोड़कर संपूर्ण दक्षिणी यूरोप में अल्प जनसंख्या वाले प्रदेश । भूमध्य सागर से संलग्न देशों की अधिकांश जनसंख्या नदी घाटियों तथा डेल्टाई भागों में पायी जाती है जहाँ कृषि और पशुपालन जीविका का मुख्य आधार है। स्पेन तथा पूर्तगाल के तटीय भागों में आंतरिक भागों में की तुलना जनसंख्या अधिक है।

3. अत्यल्प जनसंख्या वाले क्षेत्र-

यूरोप के अति शीतल टुण्ड्रा प्रदेश, उच्च पर्वतीय भागों तथा दलदली क्षेत्रों में बहुत थोड़ी जनसंख्या पायी जाती है। ऊँचे-नीचे पहाड़ी धरातल तथा अति शीतल जलवायु के कारण नार्वे, स्वीडेन, फिनलँड तथा उत्तरी रूस में अत्यल्प जनसंख्या पायी जाती है। नार्वे और यूरोपीय रूस में जनसंख्या का घनत्व 20 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी से कम है जबकि स्वीडेन में यह 20 से ऊपर है। इसके अतिरिक्त आल्पस पर्वत, स्पेन के मसीटा मरूस्थल, प्रिपेट दलदल और काकेशस पर्वतीय क्षेत्र में बहुत कम जनसंख्या पायी जाती है। सबसे उत्तर में स्थित शीत प्रधान टुण्ड्रा प्रदेश लगभग जनविहीन है यद्यपि समुद्र तटीय भागों में यत्र-तत्र आदिम जातियों के कुछ घुमक्कड़ समूह पाये जाते हैं।

जनसंख्या प्रवास

यूरोप महाद्वीप विशेष रूप से उत्तरी-पश्चिमी यूरोप से 17वीं से लेकर 20वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध तक जनसंख्या का वृहत् स्थानांतरण समुद्र पार देशों के लिए होता रहा। सत्रहवीं शताब्दी में जनसंख्या का दबाव बढ़ने से उपलब्ध संसाधन कम पड़ने लगे और जीवन स्तर को नीचा होने से बचाने के लिए यूरोपवासी संसाधनयुक्त नवीन क्षेत्रों की खोज में जुट गये। नवीन समुद्री मार्गों तथा नयी दुनिया (उत्तरी तथा दक्षिण अमेरिका) की खोज से नवीन प्रदेशों में आर्थिक संसाधनों के शोषण की संभावनाएं बढ़ गयीं। पश्चिमी यूरोपीय देशों- इंग्लैंड, पुर्तगाल, स्पेन, फ्रांस, जर्मनी, नीदरलैंड आदि के लोग तकनीकी रूप से अधिक विकसित थे। इन देशों से नवीन क्षेत्रों के लिए जनसंख्या का बड़े पैमाने पर प्रवास आरंभ हो गया। यूरोपीय जनसंख्या के साथ यूरोप में विकसित प्रोद्योगिकी, पौधों के बीज, पशु आदि भी वहाँ पहुँच गये। विकसित यूरोपीय देशों ने अन्य महाद्वीपों में अपने उपनिवेश स्थापित किये। उत्तरीय अमेरिका के अधिकांश उत्तरी भाग (सं०रा०अ०और कनाडा) पर ब्रिटेन का अधिकार हुआ और मैक्सिको से लेकर संपूर्ण दक्षिणी अमेरिका में मुख्यतः स्पेन तथा पुर्तगाल के उपनिवेश स्थापित हुए। आस्ट्रेलिया पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया।

उन्नीसवीं शताब्दी के आरंभ तक यूरोप में जनसंख्या का दबाव बहुत अधिक नहीं था जिसके कारण अधिकांश लोग समुद्रपार प्रवास के लिए तैयार नहीं थे किंतु बढ़ती जनसंख्या और आर्थिक संसाधनों से प्रेरित होकर उन्नीसवीं शताब्दी में यूरोपीय प्रवास की लहर तेज हो गयी जिसके परिणामस्वरूप 1820 से 1940 तक के 120 वर्षों में लगभग 6 करोड़ लोगों ने यूरोप से विदेशों के लिए स्थायी प्रवास किया।

जनसंख्या वृद्धि

आज से 300 वर्ष पूर्व दक्षिणी तथा पूर्वी एशिया की भाँति यूरोप महाद्वीप भी सघन आबाद था। 1650 में यहाँ लगभग 10 करोड़ जनसंख्या का निवास था जो विश्व की कुल जनसंख्या का 18 प्रतिशत था। 1800 तक यूरोप की जनसंख्या 18 करोड़ हो चुकी थी। औद्योगिक क्रांति के बाद तीव्र आर्थिक विकास तथा चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सुविधाओं में विस्तार से मृत्यु दर में काफी कमी आ गयी किंतु जन्मदर अभी भी ऊँची थी जिसके कारण जनसंख्या में अधिक तीव्र वृद्धि हुई। और अगले 100 वर्षों में (1900 तक) यूरोप की जनसंख्या दो गुना से अधिक अर्थात् 42 करोड़ तक पहुँच गयी। यूरोप में बढ़ती जनसंख्या तथा संसाधनों की सीमितता से जीवन स्तर के नीचे गिरने की संभावनाएं प्रबल होने लगीं। अपने उच्च जीवन स्तर को कायम रखने के लिए 18वीं तथा 19वीं शताब्दयों में यूरोपीय देशों से नवीन क्षेत्रों (अन्य महाद्वीपों) के लिए तेजी से प्रवास होने लगे। यूरोप से बड़ी संख्या में बाह्य प्रवाह होने पर भी इस महाद्वीप की जनसंख्या पिछले 350 वर्षों (1650-2000) में लगभग 7 गुना हो गयी है। यूरोप की जनसंख्या 1650 में 10.3 करोड़ थी जो बढ़कर 2000 में 70 करोड़ से ऊपर हो गयी।

यूरोप महाद्वीप में जनसंख्या की वार्षिक वृद्धि दर 0.3 प्रतिशत है जो सभी महाद्वीपों से निम्नतम है। जर्मनी, यूनाइटेड किंगडम, डेनमार्क, इटली, रूस, डेनमार्क, बेल्जियम आदि अनेक देशों की वार्षिक वृद्धि दर मात्र 0.2 प्रतिशत है। जन्म दर अत्यंत निम्न होने से हंगरी, यूक्रेन, इस्तोनिया और बलगोरिया में जनसंख्या द्वारा की प्रवृत्ति है।

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