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अधिगमकर्त्ता द्वारा आत्म-सम्मान के विकास | Development of Self-Steem by Learners in Hindi

अधिगमकर्त्ता द्वारा आत्म-सम्मान के विकास
अधिगमकर्त्ता द्वारा आत्म-सम्मान के विकास

अधिगमकर्त्ता द्वारा आत्म-सम्मान के विकास (Development of Self-Steem by Learners)

अधिगमकर्त्ता द्वारा आत्म-सम्मान के विकास- जैसे-जैसे बच्चों में विकास की प्रक्रिया आगे बढ़ती है, वैसे-वैसे उनमें मूल्यांकन (Evaluation) की योग्यता में भी वृद्धि होती है। वे केवल अपना ही चित्रण (Portrayal) नहीं करते हैं, अपितु अपने गुणों, विशेषताओं एवं योग्यताओं आदि का मूल्यांकन भी करना प्रारम्भ कर देते हैं । अतः आत्म-सम्मान आत्म का ही एक पक्ष (Aspect) है। यह आत्म का मूल्यांकनात्मक (Evaluative) पक्ष है यह एक महत्वपूर्ण पक्ष है क्योंकि व्यक्ति के व्यक्तित्व, व्यवहार एवं सामाजिक परिस्थितियों में इसका प्रभाव स्पष्टतः परिलक्षित होता है। मनोवैज्ञानिकों ने इसे इसी रूप में परिभाषित किया है।

शैफर एवं किप (Shaffer and Kipp) के अनुसार, “आत्म-सम्मान का आशय किसी व्यक्ति में उसके आत्म से सम्बन्धित गुणों के मापन पर आधारित उसकी योग्यता के आत्म-मूल्यांकन से है।”

कून एवं मिट्टरर (Coon and Mitterer) के अनुसार, “आत्म-सम्मान का आशय स्वयं को एक उपयोगी व्यक्ति मानने; स्वयं का अनुकूल मूल्यांकन करने से है।”

“Self-esteem means regarding oneself as a worth while person; a positive evaluation of oneself.”

उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट होता है कि आत्म-सम्मान किसी व्यक्ति द्वारा स्वयं की योग्यताओं एवं विशेषताओं के बारे में मूल्यांकनात्मक व्यवहार से । संक्षेप में कह सकते हैं कि-

(i) आत्म-सम्मान, आत्म का ही एक पक्ष है।

(ii) यह आत्म का मूल्यांकनात्मक पक्ष है।

(iii) इसका तात्पर्य स्वयं की योग्यताओं के बारे में निर्मित धारणा से है।

(iv) आत्म-सम्मान व्यक्ति के स्वयं की विशेषताओं के मूल्यांकन पर आधारित है।

(v) लोग प्रायः धनात्मक (Positive) आत्म-मूल्यांकन करते हैं।

आत्म-सम्मान के स्तर (Levels of Self-Esteem)

सामान्यतः आत्म-सम्मान की भावना को वस्तुपरक (Objective) बनाये रखना चाहिए। आत्म-सम्मान की भावना की दृष्टि से बच्चों या वयस्कों को दो वर्गों में विभक्त किया जा सकता है। इन्हें उच्च (High) एवं निम्न (Low) आत्म-सम्मान स्तर कहा जाता है । इनकी विशेषताएँ निम्न तालिका में प्रस्तुत हैं।

तालिका : उच्च तथा निम्न आत्म-सम्मान वाले व्यक्तियों की विशेषताएँ (Characteristics of High and Low Self-Esteem People) (Brown, 1998)

उच्च आत्म-सम्मान (High Self-esteem) निम्न आत्म-सम्मान (Low Self-esteem)
1. उच्च आत्म-सम्मान वाले बच्चों में संतुष्टि स्तर उच्च होता है। 1. निम्न आत्म-सम्मान के बच्चों में संतुष्टि स्तर निम्न होता है।
2. उन्हें अपनी अच्छाइयों का ज्ञान रहता है। 2. वे अपनी कमियाँ कम ही मानते हैं।
3. वे कमियों को स्वीकार करते हैं। 3. उनमें अपनी कमियों को दूर करने की इच्छा कम होती है।
4. वे कमियों को दूर करने के प्रति आश्वस्त होते हैं। 4. उनमें जो क्षमता या कौशल होता भी हैं, उसका प्रदर्शन द्वारा ही कर पाते हैं।
5. वे अपनी विशेषताओं तथा क्षमताओं के प्रतिं धनात्मक दृष्टिकोण रखते हैं। 5. वे स्वयं के बारे में नकारात्मक भाव हैं।

आत्म-सम्मान का विकास (Development of Self-Esteem)

सहज, सार्थक एवं सामंजस्यपूर्ण जीवन व्यतीत करने के लिए व्यक्ति को अपनी विशेषताओं, योग्यताओं, गुण एवं दोषों का सही मूल्यांकन करना चाहिए। अपने बारे में अनावश्यक अच्छी धारणाएँ बना लेना या नकारात्मक धारणाएँ ही बना लेना, दोनों ही स्वस्थ जीवन एवं स्वस्ति-बोध (Subjective well-being) की दृष्टि से अवांछित है। यही बात बच्चों के भी विषय में लागू होती है। अतः बच्चों को समुचित आत्म-सम्मान के विकास के लिए ही प्रेरित, प्रशिक्षित तथा निर्देशित करना चाहिए।

बच्चे आत्म-सार्थकता (Self-worth) की भावना कैसे विकसित करते हैं, यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है बोल्बी (Bowlby) ने इस पर अपना मत व्यक्त करते हुए लिखा है, “जो बच्चे स्वयं को सुरक्षित (Secure) अनुभव करते हैं, वे स्वयं के बारे में अनुकूल धारणा विकसित करते हैं। वे अपना मूल्यांकन अधिकाधिक धनात्मक रूप में करते हैं। इसके विपरीत असुरक्षा (Insecurity) की भावना से ग्रस्त बच्चे स्वयं के बारे में धनात्मक नहीं बना पाते हैं या कम बना पाते हैं अर्थात् वे अपने बारे में कैसा क्रियात्मक मॉडल (Working model) निर्मित करते हैं, उसी पर आधारित वे अपने बारे में धनात्मक या नकारात्मक धारणा बनाते हैं?”

एक उदाहरण (An Example)- एक अध्ययन में 4 से 5 वर्ष के बच्चों से पूछा गया कि-

(अ) क्या तुम इस खिलौने (Child toy) को पसंद करते हो?

(ब) क्या यह एक अच्छा बालक/बालिका है?

बच्चों के उत्तरों का विश्लेषण करने पर पता चला कि जिन बच्चों को अपनी माता से अधिक स्नेह प्राप्त था, उन्होंने अनुकूल (धनात्मक) प्रतिक्रिया व्यक्त की परंतु जिन्हें कम स्नेह प्राप्त था, उनमें अनुकूल धारणा कम पायी गयी। इतना ही नहीं, जिन्हें माता-पिता दोनों का लगाव प्राप्त था, उनमें आत्म-सम्मान की भावना और भी अधिक पायी गयी। यह पाया गया कि 4-5 वर्ष की आयु में जो धारणा बच्चों में बन जाती है उसमें आगामी वर्षों में स्थिरता (Stability) भी प्रदर्शित होती हैं।

उपर्युक्त समीक्षा से स्पष्ट होता है कि बच्चों में 4-5 वर्ष की अवधि में आत्म-सम्मान की भावना विकसित होना प्रारम्भ हो जाती है। इसमें परिवार से अनुभूत स्नेह तथा प्राथमिक प्राध्यापकों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है अर्थात् वे बच्चों को कैसे मूल्यांकित करते हैं तथा कितना प्रोत्साहित करते हैं।

आत्म-सम्मान के घटक (Components of Self-Esteem)

जहाँ तक बच्चों के आत्म-सम्मान के घटकों का प्रश्न है, वह वयस्कों से काफी भिन्न होता है वयस्क लोग जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में स्वयं द्वारा प्रदर्शित अच्छाइयों एवं कमियों को संयुक्त करके देखते हैं। इसके विपरीत बच्चे यह देखना चाहते हैं कि उन्हें विभिन्न क्षेत्रों में कितनी स्वीकार्यता (Acceptance) प्राप्त है। लोग उन्हें कितना पसंद या नापसंद (Lick- dislike) करते हैं।

हार्टर (Harter) ने बच्चे के आत्म-सम्मान में निहित घटकों की व्याख्या हेतु एक अनुक्रमिक मॉडल (Hierarchical model) प्रस्तुत किया है। इन्होंने बच्चों पर आत्म- प्रत्यक्षीकरण मापनी (Self-perception scale) प्रशासित किया। इसमें पाँच क्षेत्रो से सम्बन्धित प्रश्न थे। इन्हें चित्र में दिखाया गया है।

चित्र: आत्म-सम्मान का एक बहुआयामी व अनुक्रमिक मॉडल (A multidimensional and hierarchical model of self-esteem : Base on Harter, 1996)

हार्टर के 1996 अध्ययन से यह निष्कर्ष प्राप्त हुआ कि 4 से 7 वर्ष के बच्चों ने प्रायः अतिरंजित (Exaggerated) आत्म-सम्मान का प्रदर्शन किया। कुछ विद्वानों का मत है कि बच्चे ऐसा इसलिए करते हैं ताकि लोग उन्हें पसंद करें। उनकी प्रतिक्रिया वास्तविक ही हो, यह आवश्यक नहीं है परंतु इसका अर्थ यह कदापि नहीं लगाना चाहिए कि उनका आत्म-मूल्यांकन (Self-evaluation) पूर्णत: मिथ्या होता है। क्योंकि बच्चों द्वारा आत्म-मूल्यांकन तथा शिक्षकों द्वारा उनके मूल्यांकन में औसत (Moderate) सहसम्बन्ध पाया जाता है। वे अपनी अच्छाइयाँ बढ़ा-चढ़ाकर गिना सकते हैं परंतु वह पूर्णतः निराधार नहीं होता है।

यदि किशोरावस्था (Adolescence) की दृष्टि से देखा जाये तो किशोरों का आत्म-सम्मान अन्तर्वैयक्तिक सम्बन्धों (Interpersonal relationship) द्वारा निर्देशित होता है। वे स्वयं में आत्म-सम्मान का निर्धारण परिस्थितियों को ध्यान में रखकर करते हैं। जैसे माता-पिता, परिवार के सदस्य, पड़ोसी, मित्र इत्यादि । हार्टर (Harter, 1998) ने इसे सम्बन्धपरक आत्म-सार्थकता (Relational self-worth) का नाम दिया है। इस प्रकार उनका आत्म-सम्मान विभिन्न आयामों का सम्मिश्रण (Combination) होता है परंतु यह भी सही है कि वे किसी एक पक्ष को अन्य पक्ष या पक्षों की अपेक्षा अधिक महत्त्व दे सकते हैं, जैसे- सामाजिक स्वीकार्यता या कोई और पक्ष।

किशोरावस्था में पारस्परिक सम्बन्ध अधिक महत्वपूर्ण बन जाते हैं। नवीन सम्बन्धों या घनिष्ठ मित्रता की स्थापना किशोरावस्था द्वारा की जाती है (देखिए चित्र)। मित्रता की गुणवत्ता (Quality) उनके विशेष महत्त्व रखती है। इसका उनके समग्र आत्म-सम्मान (Global self-esteem) पर प्रबल प्रभाव पड़ता है। इस गुणवत्ता आयाम का किशोर तथा किशोरियों पर अलग-अलग प्रभाव पड़ता है।

किशोरावस्था में मित्रता की गुणवत्ता (Quality) बहुत ही महत्वपूर्ण हो जाती है। (Quality of friendship in adolescence is much important)|

इस प्रसंग में कुछ प्रमुख निष्कर्ष इस प्रकार हैं-

(i) उन किशोरियों में उच्च आत्म-सम्मान अधिक पाया जाता है जिन्हें अपने मित्रों का अच्छा समर्थन प्राप्त रहता है।

(ii) किशोरों में उच्च आत्म-सम्मान का प्रदर्शन अपने मित्रों को प्रभावित करने में सफल होने पर होता है।

(iii) यदि किशोरियाँ अपने मित्रों को प्रभावित करने में असफल रहती हैं तो उनमें आत्म-सम्मान की भावना कम हो जाती है।

(iv) यदि किशोर अपने घनिष्ठ मित्रों (Intimate friends) या महिला मित्रों का अपनापन प्राप्त करने में असफल होता है तो उनमें आत्म-सम्मान की भावना कम हो जाती है।

आत्म-सम्मान में परिवर्तन (Changes in Self-Esteem)

क्या आत्म-सम्मान की भावना में परिवर्तन होता है अथवा उसमें स्थिरता बनी रहती है? क्या किसी पाँच वर्ष के बच्चे में आत्म-सम्मान की जो भावना है, वही उसमें आगे चलकर भी बनी रहेगी? जो प्रश्न आत्म-सम्मान में परिवर्तन से सम्बन्धित हैं। इस प्रसंग में कुछ प्रमुख निष्कर्षों का उल्लेख किया जा सकता है-

(i) अधिकांश शोधकर्त्ताओं का निष्कर्ष है कि बचपन में निर्मित आत्म-सम्मान की भावना आगे चलकर परिवर्तित होती है।

(ii) बच्चे जैसे-जैसे शिक्षा के विभिन्न स्तरों को पार करते हैं, उनके आत्म-सम्मान में भी वैसे-वैसे परिवर्तन होता रहता है।

(iii) नवीन परिस्थितियों का सामना होने पर बच्चे प्रायः भ्रमिक (Confuse) हो जाते हैं। वे समझ नहीं पाते कि उनकी वर्तमान सक्षमता या योग्यता से समाधान क्यों नहीं हो रहा है।

(iv) एक अध्ययन में 9 से 90 वर्ष के तीन लाख व्यक्तियों में आत्म-सम्मान का अध्ययन किया गया। परिणाम यह पाया गया कि 9 से 20 वर्ष के बीच आत्म-सम्मान के ह्रास (Decline) प्रदर्शित हुआ।

(v) परंतु आत्म-सम्मान में पुनः युवा प्रौढ़ावस्था (Young adulthood) में वृद्धि प्रदर्शित हुई और 65 वर्ष तक वह स्थिति बनी रही। इसके बाद उसमें पुनः कमी पायी गयी।

(vi) 50 शोधों का सूक्ष्म विश्लेषण करके शोधकर्त्ताओं ने निष्कर्ष दिया है कि आत्म-सम्मान में बाल्यावस्था (Childhood) से प्रारम्भिक किशोरावस्था (Early adolescence) के बीच स्थिरता (Stability) कम पायी जाती है परंतु उसके पश्चात् उसमें स्थिरता प्रदर्शित होती है ।

(vii) स्वयं में शारीरिक परिवर्तनों को लेकर प्रारम्भ में लड़कियाँ असहज अनुभव कर सकती हैं परंतु शीघ्र ही वे समायोजन भी स्थापित कर लेती हैं।

संक्षेप में कह सकते हैं कि जैसे-जैसे किशोरों या प्रौढ़ों में कार्यात्मक परिपक्वता (Functional maturity) आती जाती है, वैसे-वैसे उनमें आत्म-सम्मान की भावना भी बढ़ती है।

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