वातावरण का स्कूल प्रदर्शन पर प्रभाव
वातावरण का स्कूल प्रदर्शन पर प्रभाव निम्न है-
छात्र-मैत्रीपूर्ण अथवा दोस्ताना वातावरण (Student-Friendly Environment) –
स्कूल के विद्यार्थियों से अच्छे सम्बन्ध रखना प्रधानाध्यापक की सफलता का महत्वपूर्ण सूचक है। सम्पर्क रखने से उसे यह स्पष्ट ज्ञात होता रहता है कि विद्यार्थी स्कूल से क्या-क्या आशा रखते हैं तथा उनकी शिक्षा किस प्रकार से चल रही है। छात्रों में अपने प्रति विश्वास उत्पन्न करने के लिए प्रधानाध्यापक के लिए जरूरी है कि वह जहाँ तक हो सके प्रत्येक छात्र को व्यक्तिगत रूप से जानने का प्रयास करे और अधिक सम्पर्क स्थापित करे।
प्रधानाध्यापक को चाहिए कि दुष्ट, नटखट तथा व्यर्थ की आपत्ति उत्पन्न करने वाले छात्रों पर कड़ी दृष्टि रखे।
स्कूल के योग्य विद्यार्थियों, अच्छे खिलाड़ियों, स्काउटों और मॉनीटरों आदि से प्रधानाध्यापक का सम्पर्क अवश्य ही होना चाहिए।
प्रधानाध्यापक विद्यार्थियों के बीच एक पिता के समान है जिसके हृदय में सबके लिए समान रूप से प्रेम होना चाहिए और सबकी उन्नति के लिए कामना करनी चाहिए।
प्रधानाध्यापक छात्रों से अधिकाधिक सम्पर्क अग्रलिखित उपायों से स्थापित कर सकता है –
- कक्षा-अध्यापन के समय।
- छात्र संसद की सभाओं में सम्मिलित होकर।
- भ्रमण यात्राओं का आयोजन करके।’
- पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं के समय उपस्थित होकर।
- छात्र-प्रतिनिधियों के माध्यमद्वारा।
- अध्यापकों के माध्यम द्वारा।
- कक्षा मॉनीटर द्वारा।
नागरिक-मैत्रीपूर्ण वातावरण (Citizen-Friendly Climate)-
स्कूल समुदाय के सभी नागरिकों के लिए स्थापित किया जाता है। यह आवश्यक नहीं कि सभी नागरिक अभिभावक हों। स्कूल समुदाय की सेवा का केन्द्र बनना चाहिए। स्कूल को चाहिए कि समुदाय का सहयोग प्राप्त करें। यह कार्य तभी हो सकता है जबकि स्कूल में कार्यरत अध्यापकों तथा अन्य कर्मचारियों का बर्ताव नागरिकों के मित्रवत् हों । नागरिक अनेक प्रकार से स्कूल की सहायता कर सकते हैं। स्कूल को उनकी सहायता का लाभ उठाना चाहिए तथा नागरिकों से अच्छे सम्बन्ध किये जाने चाहिए।
प्रधानाचार्य तथा अभिभावक : मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध (Headmaster and the Parents: Friendly Relation) –
बच्चों के विकास हेतु उनके अभिभावक बहुत कुछ कर सकते हैं और प्रधानाचार्य के लिए यह आवश्यक है कि वह बच्चों के अभिभावकों से बहुत अच्छे सम्बन्ध रखे और उनको समय-समय पर पाठशाला में आमंत्रित करे। बहुत से ऐसे अवसर होते हैं जबकि अभिभावकों को शिक्षालय में बुलाया जा सकता है। ऐसा करने से वे शिक्षालय के काम में रुचि बढ़ायेंगे तथा उसकी उन्नति के लिए यत्न करेंगे। जब कभी अभिभावक शिक्षालय में आयें तो उनसे मीठे वचन बोलने चाहिए तथा शिष्टतापूर्वक व्यवहार करना चाहिए। बहुत-से अभिभावक ऐसे भी होते हैं जो स्वयं शिष्टाचार से अपरिचित होते हैं। ऐसे परिस्थिति में तो शिक्षक वर्ग तथा प्रधानाचार्य के लिए और भी आवश्यक हो जाता है कि वे सहानुभूति तथा प्रेम के साथ संरक्षकों के साथ बातचीत करें।
अभिभावकों से निम्न प्रकार सम्पर्क स्थापित किया जा सकता है-
- छात्र प्रवेश के समय अभिभावक को बुलाकर।
- अभिभावक-शिक्षक संघ द्वारा।
- अभिभावक दिवस मानकर।
- पूर्व छात्रों के संघ स्थापित करके।
- प्रगति-पुस्तिका भेजकर।
- विद्यालय-पत्रिका द्वारा।
- चिकित्सक प्रतिवेदन द्वारा।
- विद्यालयों के उत्सवों में अभिभावकों को बुलाकर।
- समाज-सेवा कार्य द्वारा।
- प्रबन्ध समिति में अभिभावकों को स्थान देकर।
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