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वालीबॉल खेल (Volley Ball) का इतिहास, नियम, मैदान का माप, प्रमुख प्रतियोगिताएँ, प्रमुख खिलाड़ी

वालीबॉल खेल (Volley Ball) का इतिहास
वालीबॉल खेल (Volley Ball) का इतिहास

वालीबॉल

वालीबॉल का इतिहास :

वालीबॉल खेल विभिन्न रूपों में प्राचीन समय से खेला जाता रहा है। यह खेल शुरू में अमेरिकन व्यापारियों का मनोरंजन का साधन हुआ करता था। यह खेल दो टीमों के मध्य खेला गया। उस समय खेल के मैदान का माप 25 x 50 फीट रखा गया। नैट की ऊँचाई 6 फीट 6 इंच, लम्बाई 27 फीट व चौड़ाई 2 फीट रखी गई। दोनों तरफ खिलाड़ियों की संख्या 9-9 रखी गई व खेल 21 अंको का खेला गया। इस खेल के प्रदर्शन को देखकर डॉ. अलयर्ड टी. हेलस्टिड ने इस खेल को वालीबॉल नाम दिया। वालीबॉल में वॉली का तात्पर्य किसी वस्तु को निरन्तर हवा में उछालते रहना है। धीरे-धीरे यह खेल अमेरिका में बहुत ज्यादा लोकप्रिय हो गया । 1947 में 20 अप्रेल को अन्तर्राष्ट्रीय वालीबॉल संघ की स्थापना हुई, जिसमें फ्रांस के श्री पाल लिबॉड पहले अध्यक्ष चुने गये। इसका मुख्यालय फ्रांस के पेरिस शहर में रखा गया। 1949 में प्राग (चैकोस्लोवाकिया) में प्रथम पुरूष विश्व चैम्पियनशिप हुई। 1958 में टोकियों एशियाई खेलों में पुरूष वालीबॉल को भी शामिल किया गया। 1964 में टोकियों ओलम्पिक में महिला वालीबॉल को शामिल किया गया। इस तरह यह खेल धीरे- धीरे पूरे विश्व में ख्याति प्राप्त करने लगा। तब से लेकर अब तक वालीबॉल संघ हर वर्ष मिनी, सब जूनियर, जूनियर व सीनियर प्रतियोगिताएँ आयोजित करवाता है।

वालीबॉल मैदान का माप

लीबॉल मैदान की लम्बाई  – 18 मीटर

वालीबॉल मैदान की चौडाई – 09 मीटर

वालीबॉल मैदान की गध्य रेखा – 09 गीटर

मैदान के बाहर (बराबर में) स्वतंत्र क्षेत्र – 3,5,6 मीटर पीछे की रेखा से स्वतंत्र क्षेत्र 3,8,9 मीटर

आक्रमण रेखा – 03 मीटर

बराबर की रेखा से पोल की दूरी – 50 सेमी से

नैट की लम्बाई – 10 मीटर

नैट की चौड़ाई – 1 मीटर

पोल (खम्बों) की ऊंचाई – 2.55 मीटर

नैट की ऊँचाई (पुरूषों के लिए) – 2.43 मीटर
(मैिदान के मध्य से)

नैट की ऊँचाई (महिलाओं के लिए) – 224 मीटर
(मैदान के मध्य से)

एंटेना की लम्बाई – 1.50 मीटर

नैट का रंग – काला या भूरा

नेट के खाने का माम – 10×10 सेमी

बॉल का वजन – 250 से 280 ग्राम

बॉल की परिधि – 6567 सेगी

टीम के खिलाड़ियों की संख्या, ड्रैस व निर्णायक :

एक टीम में आंधेकत्तम 12 खिलाड़ी हो सकते हैं, जिनमें से 6 खिलाड़ी मैदान के अन्दर खेलते हैं और 6 बाहर बैठते हैं। टीम की ड्रेस में जर्सी, नेकर, जुराब व जूते हैं, जो सभी खिलाड़ियों के लिए एक जैसे होते हैं। लिबरों खिलाड़ी की ड्रैस बाकी खिलाड़ियों से अलग होती है। जर्सी पर आगे व पीछे दोनों तरफ चैरट नम्बर लिखे होते हैं। निर्णायकों में एक प्रथम रेफरी, एक द्वितीय रेफरी, एक या दो स्कोरर व 2 से 4 तक लाइनमैन होते हैं।

टॉस:

मैच शुरू होने से पूर्व प्रथम रैफरी पहले बॉल सर्व करने के लिए दोनों टीमों के कप्तानों की उपस्थिति में टॉस कराता है। टॉस में ही मैदान के बारे में निर्णय किया जाता है, कि किस मैदान में कौनसी टीम खेलेगी। दो-दो सैट बराबर रहने पर, पाँचवें सेट के लिए नये सिरे से टॉस करवाया जाता है। टॉस विजेता पहले सर्विस या नैदान दोनों में से एक का चयन करता है तथा हारा हुआ अन्य विकल्प का ही वरण करता है।

प्रतिस्थापन खिलाड़ी :

प्रत्येक सेट में एक टीम के छः खिलाड़ियों को एक ही समय या अलग-अलग समय में बदला जा सकता है। स्थानापन्न खिलाड़ी का नम्बर स्कोरर को लिखवा दिया जाता है। जिस खिलाड़ी का प्रतिस्थापन हुआ है, वह अपने ही स्थान पर वापस उसी खिलाड़ी से प्रतिस्थापित होगा, लेकिन वह किसी दूसरे खिलाड़ी से प्रतिस्थापन नहीं कर सकता। एक घायल खिलाड़ी अपना खेल जारी नहीं रख सकता, वह कानूनी रूप से प्रतिस्थापित हो सकता है। यदि कोई खिलाड़ी निलम्बित होता है तो उसकी जगह कानूनी प्रतिस्थागन हो सकता है। यदि सम्भव ना हो तो टीम अपूर्ण घोषित होगी।

लिबरो खिलाड़ी की विशेषताएँ

लिबरो खिलाड़ी रकोरशीट में पहले से ही अंकित होता है। वह अलग रंग की पोशाक पहने होगा। यह बारह खिलाड़ियों में एक रक्षात्मक खिलाड़ी होता है, जिसे उसके साथी खिलाड़ी उसको लिबरो कहते हैं। यदि कोई लिबरो खिलाड़ी फिंगर पास आगे वाले क्षेत्र में बनाता है तो उसके साथी खिलाड़ उसको अटैक नहीं कर सकते हैं। उसका मुख्य कार्य डिफेन्स करना है। अण्डर हैण्ड पास आगे वाले क्षेत्र में बना सकता है यदि लिबरों खिलाड़ी घायल हो जाता है, तो उसकी जगह किसी भी खिलाड़ी को, जो मैदान में नहीं खेल रह हो, लिबरों बना सकते हैं। लेकिन पहले वाला लिबरो खिलाड़ी टीक होने के बाद वापस लिबरो के स्थान पर नहीं खेल सकता है। लिबरो खिलाड़ी टीम का कप्तान नहीं बन सकता है। लिवरो खिलाड़ी पीछे वाले क्षेत्र के खिलाड़ियों की जगह ही स्थानान्तरित होगा। यह खिलाड़ी पीछे वाले क्षेत्र में खेलता है। इस खिलाड़ी को आक्रमण करना वर्जित होता है। यह सर्विस और ब्लॉक भी नहीं कर सकता है। इसके स्थानापन्न को कोई सीमा नहीं होती है। लेकिन सर्विस की सीटी बजने से पहले ही साथी खिलाड़ी से बदली कर सकता है।

वालीबॉल के कौशल :

वालीबॉल खेल के मूलभूत कौशल चार प्रकार के होते हैं – सर्विस, पासिंग, स्मैश व ब्लॉक ।

सर्विस :

सर्वेस वह क्रिया है जिससे गेंद खेल में आती है। जब तक सर्विस करने वाली टीम से किसी प्रकार की गलती नहीं होती तब तक वहीं खिलाड़ी सर्दिस करता है। तथा टीम को अंक प्राप्त होते रहते हैं। जब सर्विस करने वाली टीम के द्वारा किसी प्रकार की गलती होती है, तो अंक व सर्विस दोनों ही विरोधी टीम को चले जाते हैं। रैफरी को सीटी बजने के 8 सैकण्ड के अन्दर खिलाड़ी द्वारा सर्विस करनी होती है। अगर खिलाड़ी नहीं कर कर पाता है, तो सर्विस व अंक विरोधी टीम को दे दिया जाता है। सर्विस करने से पहले सर्वेस करने वाला खिलाड़ी मैदान के अन्दर नहीं आ सकता। सर्विस हम कई प्रकार से कर सकते हैं, जैसे अण्डर हैंड, ओवर हैंड, फ्लोटिंग, राइड आर्ग, हाई रिपन, टेनिस आदि। मुख्यतः दो सनिस प्रयोग में लेते हैं।

(1) अण्डर हैंड :

इस सर्विस में जिस हाथ से गेंद को मारते हैं, उसके विपरीत हाथ के ऊपर गेंद रखकर थोड़ी सी उछालकर हाथ की आधी मुट्ठी बन्द करके पीछे से आगे की ओर लाते हुए गेंद को मारते हैं, जिरारो गेंद नैट के ऊपर से दूसरी टीम के मैदान में पहुँचे।

(2) टेनिस सर्विस

इस सर्विस को ओवर हैंड सर्विस भी कहते हैं। इस सर्विस में गेंद को अपने सिर के ऊपर तथा गेंद को मारने वाले हाथ के सामने करीब 1 से 1.5 मीटर ऊँचाई तक उछालते हैं। मारने वाले हाथ की हथेली वाले हिस्से से, हाथ को पीछे से आगे की ओर लाते हुए ऊपर से नीचे आती हुई गेंद को अधिकतम ऊंचाई पर अधिक ताकत के साथ मारते हैं, जिससे गेंद हवा में नेट के ऊपर से विपक्षी मैदान में पहुंच जाये। प्रहार (पास) विपक्षी मैदान से आई गेंद को वापस विपक्षी मैदान में लौटाने के लिए निम्न तकनीक अपनाई जाती है, जिसके लिए साधारणतया आण्डर हैण्ड पास, अपर हैण्ड फिंगर पास या स्मैश आदि कौशलों का प्रयोग करते हैं। पास दो प्रकार के होते हैं। अण्डर हैण्ड पास अण्डर हैण्ड पास खेलते समय खिलाड़ी के दोनों हाथ एक साथ जुड़े होते हैं. दोनों पैर कंधे की चौड़ाई के बराबर आगे पीछे खुले हुए रहते हैं तथा कमर से ऊपर वाला हिस्सा सीधा रहता है। घुटनों के जोड़ को थोड़ा मौड़ते हुए दोनों हाथों को जोड़कर, कोहनी से नीचे वाले हिस्से से गेंद को उठाते हैं तथा जिस दिशा में भेजनी हो, थोडी सी दिशा देते हुए गेंद के पीछे हार्थों को ले जाते हैं। गेंद को नेट के ऊपर से मारने के लिए भी इस पास से बॉल बनाते हैं।

फिगर पास (अपर हैण्ड पास):

इस पास का लगभग 60 प्रतिशत प्रयोग अपने मैदान में गेंद को खड़ी करने के लिए किया जाता है, जिससे दूसरा खिलाड़ी हवा में उछालकर नेट के ऊपर से गेंद को मारता है। यह पास अंगुलियों व अंगूठे से खेला जाता है। इस पास में भी पैर आगे-पोछे थोड़े से खुले होते हैं। हाथ सिर के ऊपर, माथे के सामने गेंद के आकार में गोलाई लिए हुए तथा सभी अंगुलियों के बीच में थोड़ी व स्मान दूरी होती है। आती हुई गेंद को थोड़ा सा घुटने से झुककर अंगुलियों की सहायता से उठाया जाता है तथा गेंद को जिस दिशा में भेजनी हो उसी दिशा में हाथ, गेंद के पीछे सीधे हो जाते हैं।

स्मैश:

मैदान में उपस्थित सभी खिलाड़ी उछलकर नेट के ऊपर से गेंद को मार सकते हैं। अग्रिम पंक्ति के तीनों खिलाड़ी मैदान में कहीं से भी गेंद को मार सकते हैं, लेकिन पीछे को पंक्ति के खिलाड़ी आक्रमण रेखा के पीछे से कूदकर ही गेंद को मार सकते हैं। गेंद को मारने के बाद आगे की पंक्ति में गिर सकते हैं। आक्रमण रेखा को काटकर गेंद को मारते हैं तो वह गलती समझी जाती है और अंक विरोधी टीम को चला जाता है। लिबरों खिलाड़ी स्मैश नहीं कर सकता।

ब्लॉक :

अग्रिम पंक्ति के खिलाड़ियों द्वारा विरोधी टीम के खिलाड़ी द्वारा मारी गई गेंद को नेट के ऊपर व पास उछालकर हाथों द्वरा रोकने को ब्लॉक कहते हैं, जो केवल अग्रिम पंक्ति के तीनों खिलाड़ी ही कर सकते हैं। ब्लॉक एक ही समय में एक खिलाड़ी या फिर दोनों व तीनों मिलकर भी कर सकते हैं। एक से अधिक खिलाड़ी एक साथ ब्लॉक करते हैं तो उसे संयुक्त ब्लॉक कहते हैं। ब्लॉकर के हाथ लगने के बाद गेंद को वही खिलाड़ी दुबारा भी उठा सकता है तथा उसी टीम के खिलाड़ी ब्लॉक के बाद गेंद को तीन बार छू सकते हैं। ब्लॉकर नेट के ऊपर से विरोधी टीन की गेंद को नहीं छू सकता। ब्लॉक करते समय नेट भी नहीं छू सकता और सर्विस को ब्लॉक नहीं कर सकता। अगर ब्लॉक करते सकय गेंद ब्लॉकर के हाथों में लगकर बाहर चली जाती है, तो गेंद मैदान से बाहर मानी जाती है विरोधी टीम को अंक मिल जाता है।

अंक मिलना :

जब कोई टीम नियमों के विरुद्ध खेलती है या उसका उल्लंघन करती है। तब दोनों रेफरियों में से कोई एक सीटी बजाता है, जिसका परिणाम रेली खोना होता है। यदि एक टीम बॉल को दूसरे कोर्ट में डालती है और विपक्षी कोई गलती करता है तब बॉल डालने वाली टीम को एक अंक मिलता है और वह सर्विस करना व बॉल डालना जारी रखता है। यदि एक टोग बॉल डालती है और वही कोई गलती करती है, तो विपक्षी टीम को एक अंक मिल जाता है व सर्विस करने का हक भी मिलता है।

टाईम आऊट :

प्रत्येक टीन को एक सैट में 2 टाईम आउट मिलते हैं तथा प्रत्येक टाईम आउट का समय 30 सैकण्ड होता है। किसी बाहरी व्यवधान के कारण प्रथम रैफरी द्वारा तकनीकी टाईम आउट दिया जाता पाँच सेटों का मैच प्रत्येक मैच पाँच सेटों के खेल के नियम के आधार पर खेला जाता है। 1 से 4 सेट तक प्रत्येक सेट में 25 प्वाइन्ट होते हैं तथा पाँचवा सेट 15 प्वॉइन्ट का होता है। प्रत्येक सेट जीतने के लिए कम से कम 2 प्वॉइन्ट का अन्तर होना चाहिए। प्रत्येक सेट में 3 मिनट का अन्तराल होता है तथा दूसरे व तीसरे सेट के मध्य में अन्तराल 10 मिनट को हो सकता है। दुव्यवहार यदि कोई खिलाड़ी दुर्व्यवहार या अपशब्द का प्रयोग करता है तो प्रथम रेफरी उसे मौखिक रूप से चेतावनी देत है व टीम के कप्तान को भी इससे अवगत कराता है। यदि कोई खिलाड़ो इसके बाद भी उसी गलती को दोहराता है तो गम्भीरता के अनुसार रेफरी द्वारा तीन प्रकार के अपराध निर्धारित किये गये है

चेतावनी :

मौखिक रूप से कहना या हाथ के इशारे से चेतावनी देना।

पैनल्टी:

पीला कार्ड दिखाना।

निष्कासन :

लाल कार्ड दिखाना। यदि कोई खिलाड़ी जिसको लाल कार्ड दिखाया जाता है, उसको टीम बैंच के पीछे पैनल्टी एरिया बना होता है, वहाँ बैठा दिया जाता है।

अयोग्य करना :

लाल व पीला कार्ड संयुक्त रूप से दिखाना। इसमें खिलाड़ी को प्रतियोगिता–क्षेत्र से बाहर कर दिया जाता है

प्रमुख प्रतियोगिताएँ

  1. फैडरेशन कप
  2. शिवाजी गोल्ड कप
  3. एशिया कप
  4. इन्दिरा एस० प्रधान ट्रॉफी
  5. विश्व कप
  6. ग्राण्ड चैम्पियन्स कप
  7. इण्डिया स्वर्ण कप
  8. पूर्णिमा ट्रॉफी।

प्रमुख खिलाड़ी

भारत– बलवंत सिंह सागवाल, नृपजीत सिंह बेदी, ए रमाना राव, येजु सुब्बा राव, दलेल सिंह रोर, रामअवतार सिंह जाखड़, मोहन उक्रापांडियन, सुरेश कुमार मिश्रा सिरिल सी वलोर आदि ।

रूस– अलैक्जेण्डर, पिननोव आदि।

वॉलीबॉल के अर्जुन पुरस्कार विजेता

भारतीय वॉलीबॉल में कुछ अर्जुन पुरस्कार विजेता पलानीसामी (1961), नृजीत सिंह (1962), बलवंत सिंह (1972), जी मालिनी रेड्डी (1973), श्यामसुंदर राव (1974), रणवीर सिंह और के सी एलम्मा (1975), जिमी जॉर्ज (1976) 

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