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भूकम्प किसे कहते हैं? | भूकम्प के कारण | भूकम्प की तीव्रता का मापन | भूकम्प की तबाही से बचने के उपाय

भूकम्प किसे कहते हैं
भूकम्प किसे कहते हैं

भूकम्प किसे कहते हैं? भूकम्प के कारण बताइए।

“भूकम्प एक ऐसी प्राकृतिक आपदा है जिससे बड़े पैमाने पर नुकसान होता है। यह प्राकृतिक कारणों की वजह से उत्पन्न होता है जिसमें पृथ्वी हिलती है। पृथ्वी का हिलना अथवा इसमें हलचल होना भूकम्प कहलाता है।”

“भूकम्प का वैज्ञानिक रूप से अध्ययन भूकम्प विज्ञान के अन्तर्गत किया जाता है। भूकम्प के. वैज्ञानिक रूप से अध्ययन का श्रेय जॉन मिल ने एवं उनके सहयोगियों को जाता है क्योंकि इन्हीं वैज्ञानिक के प्रयास के फलस्वरूप जापान में भूकम्प अध्ययन के लिए 1880 ई. में भूकम्प विज्ञान सोसायटी की स्थापना की गयी थी। “

भूकम्प के कारण

भूकम्प आने के कई कारण हैं जिसमें मुख्य हैं-

(1) पृथ्वी की ऊपरी परत के दरक जाने के कारण।

(2) पर्वत की गुफाओं के टूटकर गिर जाने के कारण।

(3) खानों एवं चट्टानों के टूटने के कारण।

(4) ज्वालामुखी विस्फोट के कारण।

अगर धरती की संरचना पर गौर किया जाय तो पता चलता है कि पूरी धरती 12 टैक्टोनिक प्लेटों पर स्थित है जिसके नीचे तरल पदार्थ लावा यानि मैग्मा (पिघलती चट्टानें) हैं। मैग्मा में बहने वाली धाराओं के कारण सभी प्लेटें घूमती रहती हैं। गति के अनुसार ये प्लेटें कभी-कभी एक-दूसरे के समीप आती हैं और कभी दूर चली जाती हैं या समांतर चलती हैं। स्थिति के आधार पर इन प्लेटों को क्रमशः डिस्ट्रीक्टिव प्लेट, कंस्ट्रक्टिव प्लेट या ट्रांसफॉर्म प्लेट के नाम से जाना जाता है। दुनिया के 75 प्रतिशत भूकम्प का सम्बन्ध डिस्ट्रीक्टिव प्लेटों से होता है। जब ये प्लेटें आपस में टकराती हैं तो एक प्लेट दूसरे में धंस जाती है फलतः उस भाग में बड़े पैमाने पर चट्टानों के टूटने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है जिसके कारण सतह पर भ्रंश बनते हैं जिससे भूकम्प आने लगते हैं। भूकम्प का केन्द्र वह स्थान होता है जिसके ठीक नीचे प्लेटों में हलचल से भूगर्भीय ऊर्जा निकलती है। इस जगह पर भूकम्प का कम्पन ज्यादा होता है। कम्पन का दायरा जैसे-जैसे दूर होता जाता है, इसका प्रभाव कम होता जाता

भूकम्प की तीव्रता का मापन

भूकम्प की तीव्रता का मापन भूकम्परोधी (सीस्मोग्राफ) नामक यंत्र की सहायता से किया जाता है। प्लेटों के आपस में टकराने से जो ऊर्जा मुक्त होती है उसकी तीव्रता का मापन रिक्टर पैमाने पर किया जाता है। चार्ल्स फ्रांसिस रिक्टर ने 1935 में इस पैमाने का आविष्कार किया था अतः उनके नाम पर इसका नाम रिक्टर रखा गया। भूकम्प की तीव्रता रिक्टर पैमाने पर सामान्यतः 0 से 9 तक होती है। भूकम्प की गति को सामान्यतः तीन वर्गों में विभाजित किया जाता है-

हल्के भूकम्प – रिक्टर स्केल पर 5 से कम तीव्रता वाले भूकम्प इस श्रेणी में आते हैं। इस प्रकार के भूकम्प साल में लगभग 6000 बार आते हैं। 2 रिक्टर या इससे कम तीव्रता वाले भूकम्पों को महसूस नहीं किया जा सकता है। इस प्रकार के भूकम्प साल में 8000 या इससे ज्यादा आ सकता है।

मध्यम भूकम्प– रिक्टर स्केल पर इनका विस्तार 5-5.9 तक होता है। इसके झटके साल में तकरीबन 800 के करीब आते हैं। बड़े भूकम्प – इसके भी क्रमशः तीन विस्तार हैं-

(i) 6-6.9 तीव्रता वाले भूकम्प जो साल में करीब 120 बार आते हैं।

(ii) 7-7.9 तीव्रता वाले भूकम्प जो साल भर में 18 बार तक आते हैं।

(ii) 8-8.9 तीव्रता वाले भूकम्प जो साल में एक बार आ सकता है। इससे बड़े भूकम्प 20 साल में एक बार आने की सम्भावना होती है।

भूगर्भीय आँकड़ों के अनुसार हमारे देश का 54 प्रतिशत क्षेत्र भूकम्प की दृष्टि से के बहुत ही संवेदनशील है। हम जानते हैं कि महाप्रलय में भूकम्प का अग्रणी स्थान है जिससे बचने के लिए वैज्ञानिक काफी कोशिश कर रहे हैं किन्तु न तो इसकी भविष्यवाणी की जा सकती है न ही इसका आना रोका जा सकता है। फिर भी भूकम्प के पूर्वानुमान लगाने की कोशिश के तहत यह बात सामने आई कि भूकम्प के समय अथवा भूकम्प आने के कुछ दिन एवं कुछ घंटे पूर्व पशु-पक्षी एवं रेंगने वाले जीवों के व्यवहार में असाधारण रूप से परिवर्तन आता है जैसे भूकम्प के समय अथवा कुछ घंटे पूर्व घोड़े उत्तेजित हो जाते हैं। जोर की हिनहिनाहट के साथ वे तेजी से भागते हैं और अंत में गिर जाते हैं। गायें, बिल्ली और कुत्ते इत्यादि भी इधर-उदर बेचैन होकर भागने लगते हैं, कुछ कुत्ते रोने लगते हैं तो कुछ दुम दबाकर कोने में बैठ जाते हैं। कभी-कभी कुत्ते भयभीत होकर आक्रामक व्यवहार करने लगते हैं। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि पशु जगत् अपनी विशेष गतिविधियों एवं असाधारण कृत्यों द्वारा भूकम्प के आने की पूर्वसूचना दे देता है। इसके पीछे कारण यह होता है कि पशु-पक्षियों में प्रत्यक्षीकरण की बड़ी तीव्र शक्ति होती है। चीनी विधि के अन्तर्गत भी भूकम्प के पूर्वानुमान के लिए पशु-पक्षी एवं रेंगने वाले जीवों के असाधारण व्यवहार का सहारा लिया जाता है। अगर हम भी इन सहारों को समझने की कोशिश करें तो खुद की और खुद के परिवार तथा पड़ोसियों की रक्षा करते हुए। सभी को सचेत कर सकते हैं।

भूकम्प की तबाही से बचने के उपाय

भूकम्प जो कि एक, प्राकृतिक घटना है, को हम रोक तो नहीं सकते पर कुछ उपायों को अपनाकर भूकम्प द्वारा होने वाली क्षति को कुछ हद तक कम जरूर कर सकते हैं-

(1) भूकम्प की जानकारी के साथ-ही-साथ विद्युत एवं गैस आपूर्ति की लाइनों को तुरन्त डिस्कनेक्ट कर देना चाहिए अन्यथा आग लगने से स्थिति और विकट हो सकती है।

(2) इमारतों की छतें हल्की होने के साथ-साथ मजबूत होनी चाहिए।

(3) भूकम्प के तत्काल बाद ही राहत कार्य शुरू कर देना चाहिए जिससे सैकड़ों लोगों को मरने से बचाया जा सकता है।

(4) जिन क्षेत्रों की भूकम्पी तीव्रता रिक्टर पैमाने पर 8 से अधिक हो, वहाँ परमाणु ऊर्जा स्टेशन, बाँध, सरकारी या प्राइवेट बहुमंजिलें भवन, कार्यालय इत्यादि नहीं बनाना चाहिए पर अगर निर्माण कार्य उस क्षेत्र की अनिवार्य आवश्यकता हो तो वहाँ पर भूकम्प निरोधी सिद्धान्तों को अपनाकर ही निर्माण कार्य किया जाना चाहिए।

(5) भूकम्प से प्रभावित क्षेत्रों में बहुमंजिल इमारतें नहीं बनानी चाहिए।

(6) बड़े-बड़े भवनों की नींव गहरी एवं मजबूत होनी चाहिए।

(7) इमारतों की रूपरेखा सरल होनी चाहिए।

(8) भवन निर्माण में उत्तम गुणों वाले सामग्री का उपयोग किया जाना चाहिए।

(9) बड़े-बड़े हाल को बनाकर अंदर से लकड़ी के तख्तों का प्रयोग विभाजन के लिए किया जाना चाहिए।

(10) दीवारों की मोटाई ज्यादा होनी चाहिए तथा उसमें खिड़की और दरवाजों की संख्या कम होनी चाहिए जिससे दीवारों की मजबूती ज्यादा होगी।

(11) जमीन पर कंक्रीट का प्लेटफॉर्म बनाकर उस पर इमारतों का निर्माण किया जाय ताकि यह भूकम्प के झटकों को सहन करने में सक्षम हो सके।

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