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भारत में धर्मनिरपेक्षता | Secular Polity in India in Hindi

भारत में धर्मनिरपेक्षता
भारत में धर्मनिरपेक्षता

भारत में धर्मनिरपेक्षता (Secular Polity in India.)

जॉर्ज के शब्दों में, “धर्म-निरपेक्षता वह तत्त्व है जो पूरी तरह मनुष्य के उत्तर शारीरिक, नैतिक तथा बौद्धिक विकास पर ध्यान देता है तथा इसे मनुष्य के जीवन का तत्काल कर्त्तव्य समझता है।” इस बात पर उन्होंने भी बल दिया कि इनका सम्बन्ध ईश्वर का मानना अथवा न मानना आदि विचारों से नहीं है। जॉर्ज जैकब ने धर्म-निरपेक्षता के चार निम्नलिखित सिद्धांत बताएँ-

(i) इस युग के और इसके सुधार सम्बन्धी चिन्ता का सिद्धांत।

(ii) मानव की भौतिक तथा सांस्कृतिक उन्नति पर विशेष बल देने का सिद्धांत।

(iii) स्वतंत्रता, नैतिकता का सिद्धांत।

(iv) सत्य की खोज।

सुप्रसिद्ध वेबस्टर शब्दकोष के अनुसार, “धर्म-निरपेक्ष वह तत्त्व है जिसके अनुसार राज्य के कार्यों में धर्म तथा धार्मिक कार्यों का हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए ।”

एक अन्य ब्रिटिश व्यक्ति डॉनाल्ड स्मिथ के अनुसार, “धर्म निरपेक्ष राज्य वह राज्य है जो व्यक्तिगत तथा सामूहिक धर्म की स्वतंत्रता देता है, व्यक्ति के धर्म पर ध्यान दिये बिना उससे नागरिक के रूप में व्यापार करता है तथा जो किसी के धर्म के विकास का इच्छुक नहीं तथा किसी धर्म में हस्तक्षेप नहीं करता ।”

संक्षेप में कहा जा सकता है कि, धर्म-निरपेक्षता का सिद्धांत व्यक्ति का व्यक्तिगत सिद्धांत है । यह राज्य में किसी भी प्रकार की बाधा अथवा आश्रय प्रदान नहीं करता है।

भारत में धर्म-निरपेक्षता : भारतीय परम्परा (Secularism in India : Indian Tradition)

भारत में धर्म-निरपेक्षता को हम निम्नलिखित बिन्दुओं के माध्यम से समझ सकते हैं–

(i) एको ब्रह्म विप्रा बहुधा वदन्ति।

(ii) सर्व-धर्म-सद्भाव।

(iii) धर्म निरपेक्षता के विषय में यह है कि संविधान में इसकी कोई परिभाषा नहीं दी गई है।

(iv) यहाँ पर एक अन्य महत्त्वपूर्ण बात यह है कि ‘पंथ-निरपेक्ष’ शब्द भारतीय संविधान में सन् 1976 में जोड़ा गया। जब संविधान 1950 में बना तो उसमें शब्द नहीं था।

भारत में धर्म निरपेक्षता को हम निम्नलिखित विचारकों के सन्दर्भ से भी समझ सकते हैं-

डॉ. राधाकृष्णन – ” हमारी धारणा है कि किसी विशेष धर्म को प्राथमिकता नहीं मिलनी चाहिए।”

डॉ. भीमराव अम्बेडकर “धर्म-निरपेक्षता से केवल इतना तात्पर्य है कि संसद बलपूर्वक किसी एक धर्म को नहीं लांद पाएगी।”

पं. जवाहरलाल नेहरू – ” धर्म निरपेक्षता का तात्पर्य है कि धर्म पूर्ण स्वतंत्र है तथा राज्य अपने व्यापक कार्य में धार्मिक संरक्षण एवं ऐसे अवसर प्रदान करेगा कि सभी नागरिक सहिष्णुता व सहयोग की भावना का विकास कर सकें। “

धर्म-निरपेक्ष राज्य की विशेषताएँ (Characteristics of a Secular State)

एक धर्म-निरपेक्ष राज्य की मुख्य विशेषताओं का विवरण निम्नलिखित है-

(i) यह राज्य किसी भी व्यक्ति से धर्म के आधार पर भेद-भाव नहीं रखता है।

(ii) धर्म निरपेक्ष राज्य सभी नागरिकों को धार्मिक स्तवंत्रता प्रदान करता है।

(iii) धर्म-निरपेक्ष राज्य किसी धर्म का विरोधी नहीं है।

(iv) इस प्रकार का राज्य सभी धर्मों का समान सत्कार करता है।

(v) राज्य का कोई धर्म नहीं होता।

(vi) इस प्रकार का राज्य बिना किसी धर्म के भेद-भाव के सभी नागरिकों के कल्याण के लिये कार्य करता है ।

(vii) यह राज्य के गलत प्रयोग पर हस्तक्षेप करता है

भारत एक धर्म-निरपेक्ष राज्य के रूप में (India as a Secular State)

धर्म-निरपेक्ष एक ऐसा विचार है जिसके अनुसार धर्म को राजनीति से नहीं जोड़ा गया| वस्तुतः धर्म का क्षेत्र व्यक्ति के अन्तःकरण के विस्तार का क्षेत्र है जिसमें उसे पूर्ण स्वतंत्र है । छोड़ दिया गया है। व्यक्ति किसी भी पंथ, सम्प्रदाय, पूजा विधि व विश्वास को मानने व अपनाने के लिये स्वतंत्र है। हमारे भारत के धर्म-निरपेक्ष राज्य में सभी कार्यों को तथा इन्हें मानने वालों को समान रूप से विकास करने के अवसर प्रदान किये जाते हैं। भारतीय संविधान में धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार को नागरिकों का मौलिक अधिकार स्वीकार किया गया है और इस प्रकार उन्हें अपने धार्मिक विश्वास रखने तथा इच्छानुसार पूजा विधि को अपनाने का अधिकार प्राप्त है। धर्म-निरपेक्ष राज्य का कर्त्तव्य किसी धर्म विशेष का प्रचार करना न होकर सभी धर्मों के विश्वास की परिस्थितियाँ जुटाना घोषित किया गया है।

भारतीय संविधान में धर्म-निरपेक्षता सम्बन्धी प्रावधान (Provision in the Indian Constitution for Secularism)

हमारे भारतीय संविधान में धर्म-निरपेक्षता से सम्बन्धित अनेक प्रावधान किये गये हैं। इनमें प्रमुख प्रावधानों का विवरण निम्नलिखित है-

1. प्रस्तावना (Preamble)— संविधान की प्रस्तावना में वर्ष 1976 में धर्म-निरपेक्षता शब्द शामिल किया गया जो इस बात को दर्शाता है कि भारत एक धर्म-निरपेक्ष राज्य है।

2. अनु. 14 (Article 14 ) – कानून (विधि) के समक्ष समानता का अधिकार- इस अनुच्छेद के अन्तर्गत भारत में कानून की नजर में सभी धर्मों के मानने वाले एक जैसे हैं अर्थात् भारत का कानून बिना किसी धर्म भेद के है। इस धारा में कहा गया है, “राज्य, भारत के राज्य क्षेत्र में किसी व्यक्ति को विधि के समक्ष समता से या विधियों के संरक्षण से वंचित नहीं रखा जाएगा।”

3. अनु. 15 (Article 15 ) – धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर कोई विभेद नहीं— राज्य, किसी नागरिक के विरुद्ध केवल धर्म आदि के आधार पर कोई विभेद नहीं करेगा।

4. अनु. 15 (2) तथा (3) – सार्वजनकि स्थानों पर आने-जाने की समानता का अधिकार (Access to Public Place)-

(i) सभी को बिना किसी भेद-भाव के दुकानों, सार्वजनिक भोजनालयों, होटलों और सार्वजनिक मनोरंजन के स्थानों में प्रवेश का अधिकार है।

(ii) पूर्णतया या आंशिक राज्य निधि से पोषित या साधारण जनता के प्रयोग के लिये कुओं, तालाबों, स्नान घरों, सड़कों और सार्वजनिक स्थानों के प्रयोग का सभी को अधिकार।

5. अनु. 16 (Article 16)– लोक सेवाओं में अवसरों की समानता—यहाँ सभी धर्मों के लोग बिना किसी भेद-भाव के योग्यता के आधार पर सरकारी नौकरी प्राप्त कर सकेंगे।

6. अनु. 17 (Article 17 ) अस्पृश्यता का अंत— इस अनु. के अनुसार, “अस्पृश्यता का अंत किया गया है। इसका किसी भी रूप में आचरण निषिद्ध किया गया है। इसका आचरण करने पर दण्ड का प्रावधान किया गया है।”

7. अनु. 25 (Article 25 ) — धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार— यहाँ व्यवस्था है कि प्रत्येक व्यक्ति को धर्म की स्वतंत्रता है। वह किसी भी धर्म में विश्वास रख सकता है, धर्म का कार्य कर सकता है तथा प्रचार कर सकता है। यहाँ यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि कानून द्वारा राज्य सार्वजनिक शांति (व्यवस्था) तथा नैतिकता को ध्यान में रखते हुए व्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबन्ध लगा सकता है परंतु ऐसे प्रतिबन्ध को धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन नहीं माना जाएगा।

8. अनु. 26 (Article 26 ) – धार्मिक संस्थाएँ स्थापित करने का अधिकार — इस अनुच्छेद के अन्तर्गत निम्नलिखित अधिकार हैं-

(i) धार्मिक संस्थाओं की स्थापना करना तथा उनका प्रबंध करना।

(ii) अपने धर्म से सम्बन्धित कार्य करना ।

(iii) धार्मिक कार्यों के लिए चल तथा अचल (Movable and Immovable) सम्पत्ति प्राप्त करने का अधिकार।

(iv) सम्पत्ति का कानून के अनुसार प्रशासन करने का अधिकार।

9. अनु. 27 (Article 27) — धर्म के नाम पर कर लगाने पर प्रतिबन्ध – इस अनुच्छेद में प्रावधान है कि राज्य किसी व्यक्ति को कोई ऐसा कर देने के लिए मजबूर नहीं कर सकता जिससे एकत्र किये गये धन का प्रयोग किसी विशेष सम्प्रदाय या धर्म की उन्नति के लिये किया जाना हो। दूसरे शब्दों में धर्म के नाम पर राज्य कोई कर नहीं लगा सकता।

10. अनु. 28. (i) – धार्मिक शिक्षा की सरकारी शैक्षिक संस्थाओं में मनाही— इस धारा के अनुसार सरकार द्वारा चलाई जा रही शैक्षिक संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा नहीं दी जा सकती है।

11. अनु. 28 (iii) गैर-सरकारी शैक्षिक संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा के विरुद्ध नहीं— इस अनुच्छेद के अनुसार गैर-सरकारी शैक्षिक संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा देने की स्वतंत्रता है परंतु ऐसी शिक्षा व्यक्ति की रजामन्दी के विरुद्ध नहीं दी जा सकती। यदि कोई छात्र अवयस्क (Minor) है तो इसकी धार्मिक शिक्षा के लिये उसके अभिभावक अथवा संरक्षक (Guardian) की स्वीकृति आवश्यक है ।

12. अनु. 29 धर्म के आधार पर शैक्षिक संस्थाओं में प्रवेश के समय भेद-भाव की पाबंदी – इसके अन्तर्गत यह प्रावधान किया गया है कि प्रवेश के समय उन शैक्षिक संस्थाओं में जो सरकार द्वारा चलाई जा रही है या सरकार की सहायता से चलाई जा रही है, किसी प्रकार का भेद-भाव न किया जाये।

13. अनु. 30 (1) धार्मिक अल्पसंख्यकों को शैक्षिक संस्थाएँ स्थापित करने तथा प्रशासन करने का अधिकार— इसके अन्तर्गत धार्मिक अल्पसंख्यक वर्ग शैक्षिक संस्थाएँ स्थापित कर सकते हैं तथा उनका प्रबंध कर सकते हैं।

14. अनु. 30 (2) — शैक्षिक संस्थाओं को अनुदान देते समय कोई भेद-भाव नहीं – इस अनुच्छेद के अनुसार राज्य शैक्षिक संस्थाओं को अनुदान देते समय किसी प्रकार का धर्म सम्बन्धित भेद-भाव नहीं करेगा ।

15. अनु. 14 नागरिकों के लिए समान सिविल संहिता (Uniform Civil Code for the Citizens)— राज्य भारत के समस्त नागरिकों के लिये समान सिविल संहिता प्रदान करने का प्रयास करेगा ।

16. अनु. 235 – चुनाव में समान अधिकार (Equal Rights in Elections)— इस अनुच्छेद के अनुसार चुनाव प्रणाली के अन्तर्गत धर्म आदि के आधार पर कोई भी व्यक्ति मतदाता सूची में नामांकन से वंचित नहीं किया जा सकता है ।

उपरोक्त संवैधानिक प्रावधानों का सार हम निम्नलिखित बिन्दुओं से समझ सकते हैं-

(क) सरकार का किसी भी विशेष धर्म के मानने वालों से भेद-भाव न रखना।

(ख) भारत में सभी नागरिकों को अपने-अपने धर्म को मानने की स्वतंत्रता देना।

(ग) धार्मिक शिक्षा का सरकारी स्कूलों में न होना।

(घ) सभी धर्म के मानने वालों को सरकारी नौकरियों में समानता।

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