राजनीति विज्ञान / Political Science

जवाहरलाल नेहरू के राजनीतिक एवं आर्थिक विचार

जवाहरलाल नेहरू के राजनीतिक एवं आर्थिक विचार
जवाहरलाल नेहरू के राजनीतिक एवं आर्थिक विचार

जवाहरलाल नेहरू के राजनीतिक एवं आर्थिक विचार

नवम्बर 1927 में नेहरू ने सोवियत संघ की संक्षिप्त यात्रा की। उस यात्रा के दौरान उन्होंने स्वयं आंखों से उस देश की उन महान उपलब्धियों को देखा जो उसने शिक्षा, स्त्री उद्धार तथा किसानों की दशा के सुधार के क्षेत्र में प्राप्त की थीं। रूस से लौटने के बाद उन्होंने समाजवाद के विचारों को लोकप्रिय बनाने का कार्य आरम्भ कर दिया। 1936 में कांग्रेस के लखनऊ में हुये अधिवेशन में उन्होंने कहा- मैं इस नतीजे पर पहुंच गया हूं कि दुनिया की समस्याओं और भारत की समस्याओं का समाधान समाजवाद में ही निहित है और जब मैं इस शब्द ‘समाजवाद’ है : “यह जीवन को इस्तेमाल करता हूं, तो किसी अस्पष्ट, मानवीयतावादी अर्थ में नहीं बल्कि एक वैज्ञानिक, आर्थिक क्षेत्र में।” किन्तु समाजवाद एक आर्थिक सिद्धान्त से भी बढ़कर कुछ का एक दर्शन है और इस रूप में यह मुझे भी भाता है। भारत की जनता की कंगाली, जबर्दस्त बेरोजगारी, दयनीयता और गुलामी को दूर करने का मैं समाजवाद के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं देख पाता हूं। इसका मतलब है कि हमें अपने राजनीतिक और सामाजिक ढांचे में बहुत बड़े क्रान्तिकारी परिवर्तन करने होंगे, जमीनों और उद्योग-धन्धों का शिकंजा जमाये बैठे निहित स्वार्थो को और साथ ही, सामन्ती तथा निरंकुशतावादी भारतीय रजवाड़ों की व्यवस्था को भी खत्म करना होगा। इसका मतलब है कि- सिवाय एक सीमित अर्थ में निजी सम्पत्ति को समाप्त करना होगा और मुनाफे खड़े करने की मौजूदा व्यवस्था की जगह, सहकारी सेवा के उच्चतर आदर्श को स्थापित करना होगा, इसका मतलब है कि अन्ततः हमें अपनी आदतों और इच्छाओं में परिवर्तन करना होगा। इसका मतलब है, एक नयी सभ्यता को कायम करना, जो मौजूदा पूंजीवादी व्यवस्था से मूलतः भिन्न होगी।

इस प्रकार जवाहरलाल नेहरू के लिए समाजवाद केवल आर्थिक प्रणाली नहीं थी वह एक जीवन दर्शन था। समाजवाद न केवल भारत में कंगाली, बेरोजगारी, निरक्षरता, बीमारी और गन्दगी मिटाने के लिए ही जरूरी था, वरन् मानव व्यक्तित्व को विकसित करने के लिए भी जरूरी था। सुभाषचन्द्र बोस को 1939 में लिखे एक पत्र में नेहरू ने कहा था- “मैं समझता हूं कि स्वभाव और प्रशिक्षण से मैं एक व्यक्तिवादी और बौद्धिक रूप से एक समाजवादी हूं- फिर इस सबका कुछ भी मतलब क्यों न हो। मैं आशा करता हूँ कि समाजवाद मानव व्यक्तित्व को कुचलता या नष्ट नहीं करता मैं तो दरअसल उसकी ओर इसलिए आकर्षित हूं कि वह अगणित मनुष्यों को आर्थिक और सांस्कृतिक दासता के बन्धनों से मुक्त करेगा। “

स्वाधीनता के पश्चात् नेहरू ने अपनी पूरी शक्ति से समाजवादी आधार पर भारत के निर्माण का कार्य आरम्भ किया। अपने समाजवादी विचारों को क्रियान्वित करने के लिए उन्होंने नियोजन का सहारा लिया। उनके अनुसार नियोजन का उद्देश्य समाजवादी समाज की स्थापना करना था। अवाड़ी और नागपुर में कांग्रेस महासमिति के अधिवेशनों में जो प्रस्ताव पेश हुए वे नेहरू द्वारा प्रेरित थे। वहीं कांग्रेस महासमिति ने यह निर्णय लिया कि “नियोजन समाजवादी समाज की स्थापना के उद्देश्य से होना चाहिए, जहां उत्पादन के प्रमुख साधन सामाजिक स्वामित्व एवं नियन्त्रण के अन्तर्गत होंगे और जहां राष्ट्रीय सम्पदा का समान वितरण होगा।” भूमि सुधार सम्बन्धी नागपुर प्रस्ताव में भूमि की अधिकतम सीमा के निर्धारण और संयुक्त सहकारिताओं पर में बल दिया गया। इस प्रकार कांग्रेस श्री नेहरू के गतिशील नेतृत्व में भारत को लोकतन्त्रीय समाजवादी समाज बनाने की दिशा में बढ़ चली।

यहां श्री नेहरू के आर्थिक विचारों के सम्बन्ध में, जो समाजवादी विचारधारा से ओत-प्रोत थे, कुछ बातें स्पष्ट कर देना आवश्यक है। वे अर्थशास्त्र की उदारवादी श्रेणी में विश्वास नहीं करते थे, यद्यपि स्वतन्त्रता सम्बन्धी उनके विचार पर्याप्त मात्रा में उदारवादी थे। न तो वे रिकार्डो की भांति आर्थिक क्षेत्र में अहस्तक्षेप की नीति के समर्थक थे और न ही वे अर्थशास्त्र की फिजिओक्रेटिक पद्धति में विश्वास करते थे। उनके विचार बहुत कुछ जर्मन समाजवादी बैगनर,
श्लोमर तथा कीन्स से मिलते-जुलते थे। उद्योगों को राजकीय सहायता के समर्थन के साथ-साथ वे आर्थिक विकास में व्यक्तिगत अथवा दलित क्षेत्र के महत्त्व को भी श्रद्धा की दृष्टि से देखते थे।

श्री नेहरू का सम्पूर्ण आर्थिक दर्शन समाजवादी विचारधारा पर आधारित था और उनका समाजवाद केवल आर्थिक संगठन का साधन मात्र न होकर एक जीवन का दर्शन था। वे मैक्स एडलर की भांति समाजवादी थे।

श्री नेहरू की दृष्टि में समाजवाद का अर्थ राष्ट्रीकरण नहीं था। अपनी आर्थिक योजना में वे ग्रामीण उद्योग-धन्धों तथा खादी को भी स्थान देते थे। यहां उनके ऊपर गांधीजी का प्रभाव स्पष्ट दिखायी देता है। वास्तव में, श्री नेहरू ने आर्थिक क्षेत्र में पश्चिमी ढंग की समाजवादी अर्थव्यवस्था तथा गांधीवादी अर्थव्यवस्था का समन्वय करने का प्रयास किया। 1945 में राष्ट्रीय नियोजन समिति के समक्ष अपने विचार व्यक्त करते हुए उन्होंने कुटीर उद्योगों तथा रोजगार की समस्या पर बल दिया गया था।

अपनी समाजवादी अवधारणा पर चलते हुए नेहरू ने मिश्रित आर्थिक व्यवस्था (Mixed Economy) को प्रश्रय दिया जिसमें निजी क्षेत्र और सार्वजनिक क्षेत्र समानान्तर रूप में कार्य करेंगे। उनका उद्देश्य एक ऐसे आर्थिक ढांचे का निर्माण करना था जो बिना व्यक्तिगत एकाधिकार तथा पूंजी के केन्द्रीकरण के अधिकतम उत्पादन प्रदान कर सके और शहरी एवं ग्रामीण अर्थ व्यवस्था में उपयुक्त सन्तुलन पैदा कर सके। नेहरू ने जीवन, समाज और सरकार के सम्बन्ध में समाजवाद तथा लोकतान्त्रिक साधनों के माध्यम से समाजवादी समाज की स्थापना में निष्ठा प्रकट की। 1958 में ‘समाजवाद’ पर विचार प्रकट करते हुए उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा— “मैं उस उग्र प्रकार का समाजवाद नहीं चाहता जिसमें राज्य सर्वशक्तिसम्पन्न होता है।” अपने समाजवाद की स्थापना के लिए नेहरू बल प्रयोग या हिंसात्मक साधनों के विरुद्ध थे। हमारे सामने प्रश्न यह है कि शान्तिपूर्ण तथा न्यायोचित उपायों से गणतन्त्र और समाजवाद को एक साथ कैसे संयुक्त किया जाय। भारत के सामने यही समस्या उपस्थित है। हम इस उद्देश्य को बलपूर्वक अथवा दबाव से पूरा नहीं कर सकते। हमें लोगों की सद्भावना तथा सहयोग प्राप्त करना है।”

यह बात स्पष्ट है कि नेहरू समाजवाद में विश्वास करते हुए भी जनतन्त्रीय पद्धति का ही समर्थन करते थे। भावनात्मक स्तर पर तो नेहरू का झुकाव लोकतन्त्र की ओर था। समाजवाद के प्रति उनका आकर्षण बौद्धिक था— मार्क्स द्वारा की गयी इतिहास की आर्थिक विवेचना में विश्वास के कारण। अतः समाजवाद को ग्रहण कर लेने पर भी उन्होंने लोकतन्त्र को कभी नहीं छोड़ा।

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