राजनीति विज्ञान / Political Science

गांधी जी के अहिंसक राज्य के सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।

गांधी जी के अहिंसक राज्य के सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
गांधी जी के अहिंसक राज्य के सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।

गांधी जी के अहिंसक राज्य के सिद्धान्त

अहिंसा- अहिंसा के बिना सर्वोच्च सत्य की सिद्धि सम्भव नहीं है। अहिंसा और सत्य सम्बन्ध अटूट है। गाँधी जी के लिए सत्य ईश्वर है और जो व्यक्ति दूसरों को आघात पहुँचाता है, सत्य का उल्लंघन करता है, अर्थात् हिंसा करता है। हिंसा असत्य है क्योंकि वह जीवन की एकता व परिस्थिति के विरुद्ध है। सत्य और अहिंसा गाँधी जी के अनुसार एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। किसी भी व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक अथवा हार्दिक कष्ट पहुँचाना हिंसा है। साधारणतः शारीरिक कष्ट पहुँचाने को हिंसा समझा जाता है। किन्तु अहिंसक व्यक्ति शरीर और विचार दोनों से ही अहिंसा का पालन करें जैसे देखने में अहिंसा शब्द नकारात्मक प्रतीत होता है, जैसे किसी को नहीं मारना अहिंसा है। किन्तु किसी का जीवन बचाना, किसी को जीवन प्रदान करना, उसके लिए सुखी जीवन के साधन प्रस्तुत करना भी अहिंसा है। शुभ कार्य करना भी अहिंसा है।

गाँधीजी के अनुसार ‘अहिंसा वीरस्य भूषणम्’ अर्थात् अहिंसा का आभूषण है। केवल वीर तथा शक्तिशाली ही इसका प्रयोग कर सकते हैं। उन्हें ही अहिंसा द्वारा पूर्ण सफलता प्राप्त हो सकती है। गाँधी जी का मत है कि कुछ व्यक्ति जो दुर्बल होते हैं, जो किसी का मुकाबला हिंसा द्वारा नहीं कर सकते, वे अहिंसा की शरण में आ जाते हैं। यद्यपि यह उचित नहीं है फिर भी इस प्रकार अहिंसा की शरण में आया व्यक्ति धीरे-धीरे आत्मिक बल प्राप्त करने लगता है और साधना के द्वारा उसकी अहिंसा वीर की अहिंसा में बदल जाती है। सतत्

साध्य और साधन— गाँधीजी के नीति विषयक सिद्धान्तों में अन्य महत्त्वपूर्ण बात साध्य-साधन के विषय में उनके विचार उनके अनुसार किसी साध्य को प्राप्त करने के साधन भी उतने ही शुभ होने चाहिए, जितना कि साध्य । हेय साधनों से उच्च साधनों की प्राप्ति को वे अनुचित मानते थे। साधनों की पवित्रता के प्रति उनके विचार इतने दृढ़ थे कि उन्होंने यहाँ तक कहा था— “यदि हिंसा, धोखे, अथवा असत्य के द्वारा मुझे देश की आजादी मिले तो मैं उसे अस्वीकार कर दूंगा।”

राज्य सम्बन्धी विचार- गाँधी जी राज्य विरोधी थे। मार्क्सवादियों तथा अराजकतावादियों के समान वे भी एक राज्य विहीन समाज की स्थापना करना चाहते थे, किन्तु गाँधी जी द्वारा राज्य का विरोध साम्यवाद और अराजकता के विपरीत भौतिक कारणों पर आधारित न था। उनके द्वारा राज्य के विरोध का एक कारण तो यह था कि वे राज्य को हिंसा पर आधारित मानते थे। राज्य सामूहिक रूप से हिंसा का प्रयोग करता है। यदि व्यक्ति कानून का उल्लंघन करते हैं, तो उन्हें दण्ड दिया जाता है। यह दण्ड चाहे सामाजिक रूप से उचित हो, पर है तो हिंसा ।

गाँधी जी के राज्य विहीन समाज में मशीनें नहीं होगी। वास्तव उनकी आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी। सम्पूर्ण समाज छोटी-छोटी इकाइयों में विभाजित होंगे। यह इकाई होंगे, ग्राम प्रत्येक ग्राम पूर्णतया स्वायत्तशासी होगा। समस्त आवश्यक वस्तुओं का उत्पादन ग्राम में ही हो जायेगा। आवश्यकताएँ सीमित होने के कारण न तो कारों की आवश्यकता होगी और न रेलों की। वायुसेना का तो प्रश्न ही नहीं उठता। समाज के सभी व्यक्ति पूर्णतया अहिंसात्मक होंगे। उनकी सभी आवश्यकताएँ पूरी हो जाया करेंगी अतः अपराध नहीं होंगे। फिर पुलिस की आवश्यकता ही नहीं होगी। यदि कहीं छुट-पुट अपराध हुए तो उनका निर्णय ग्राम पंचायतें किया करेंगी। ऐसे समाज में सभी अपने शासक होंगे। वे अपने ऊपर इस प्रकार शासन करेंगे कि वे दूसरों के मार्ग में बाधक न बनें। जीवन स्वच्छ निर्मल और सादा होगा। न बड़े-बड़े नगर होंगे, न गन्दी बस्तियाँ, न आधुनिक सभ्यता की तड़क-भड़क और न उससे उत्पन्न रोग। न बड़ी-बड़ी मशीनें होंगी और न ही मनुष्य का शोषण ।

अहिंसात्मक राज्य – जिस प्रकार प्लेटो ने अनुभव किया कि उसकी कल्पना का आदर्श राज्य इस धरातल पर स्थापित नहीं किया जा सकता, इसलिए उसने उपादर्श की रचना की। उसी प्रकार गाँधीजी ने भी यह अनुभव किया कि राज्य विहीन अहिंसात्मक समाज की स्थापना नहीं की जा सकती। इसलिए उन्होंने भी एक ऐसे राज्य को आदर्श माना जो अहिंसा । प्रधान हो। जिस प्रकार रूसो वर्तमान सभ्यता का विरोधी होते हुए भी Back to the Nature’ का नारा वापस ले लेता है, उसी प्रकार गाँधी जी भी राज्य विहीन समाज के आदर्शवादी नारे को दोहराते नहीं। अब तो राज्य विहीन समाज के स्थान पर गाँधीजी ने एक ऐसे समाज की स्थापना चाहते हैं, जिसमें राज्य तो होगा, परन्तु वह अहिंसा प्रधान होगा। उन्हीं के शब्दों में कोई शासन पूर्णतया अहिंसात्मक नहीं हो सकता, क्योंकि वह सभी व्यक्तियों का प्रतिनिधित्व करता है। मैं ऐसे स्वर्णिम युग को नहीं मानता, परन्तु मैं एक ऐसे अहिंसा प्रधान राज्य की स्थापना की सम्भावना पर विश्वास करता हूँ और मैं इसके लिए कार्य कर रहा हूँ।

अहिंसा प्रधान राज्य ही गाँधीजी का आदर्शराज्य है। इसे ही उन्होंने राम राज्य भी कहा है। इस आदर्श राज्य की मुख्य विशेषताएँ शक्तियों का विकेन्द्रीकरण रोटी के योग्य वर्ण श्रम, व्यवस्था, अपरिग्रह आदि हैं।

शक्तियों का विकेन्द्रीकरण— गाँधी जी के अनुसार शोषण का सबसे बड़ा कारण शक्ति का कुछ विशेष हाथों में निहित हो जाना है। गाँधीजी राज्य समाजवाद का भी इसलिए विरोध करते हैं कि उसकी प्रवृत्ति भी केन्द्रीयकरण की ओर है। शोषण को समाप्त करने के लिए और सच्चे प्रजातन्त्र की स्थापना के लिए उनका सुझाव थी कि आर्थिक और राजनीतिक दोनों शक्तियों का विकेन्द्रीकरण होना चाहिए।

इसे भी पढ़े…

Disclaimer

Disclaimer: Sarkariguider does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: guidersarkari@gmail.com

About the author

Sarkari Guider Team

Leave a Comment