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दीवानी वाद के विभिन्न चरण | Various Stages of Civil Suits in Hindi

दीवानी वाद के विभिन्न चरण
दीवानी वाद के विभिन्न चरण

प्रत्येक वाद न्यायालय को या न्यायालय द्वारा नियुक्त अधिकारी को वाद पत्र उपस्थिति करके संस्थित किया जायेगा। वाद पत्र न्यायालय द्वारा छुट्टी के दिन भी स्वीकार किया जा सकता है। यहाँ तक कि वाद पत्र न्यायालय के कार्यदिवस की समाप्ति पर या न्यायाधीशों के निजी आवास पर भी ग्रहण किया जा सकता है। परन्तु न्यायालय वाद पत्र को न्यायालय के परिसर के बाहर ग्रहण करने के लिये बाध्य नहीं है। बाद तभी सम्यक रूप से संस्थित माना जायेगा जब वह आदेश 4 के उपनियम (1) और (2) के अनुरूप हो ।

दीवानी वाद के विभिन्न चरण (various stages of civil suits)

1. वादों का दायर करना

प्रत्येक वाद न्यायालय को या ऐसे अफसर को, जिसे वह उस निमित्त नियुक्त करती है, एक वाद-पत्र पेश करके संस्थित किया जाएगा। जब वह वाद-पत्र समुचित न्यायालय में प्रस्तुत कर दिया गया है और वाद कारण प्रदर्शित करता है तथा अनुतोष का उचित मूल्यांकन कर दिया गया है और वाद कारण प्रदर्शित करता है तथा अनुतोष का उचित मूल्यांकन कर दिया गया है और वह वाद पत्र पर्याप्त रूप से मुद्रांकित कागज पर लिखा जाता है और यदि यह किसी कानून द्वारा वर्जित नहीं है तो न्यायालय उसे ग्रहण कर लेगा। तत्पश्चात् वह एक मुकदमे के रूप में अंकित और रजिस्ट्रीकृत किया जाता है।

2. सम्मन निकालना और उसकी तामील

 जब वाद-पत्र न्यायालय द्वारा ग्रहण कर लिया जाय तो दूसरा प्रक्रम यह है कि प्रतिवादी को हाजिर होने के लिए और बाद के दावे का उत्तर देने के लिए प्रतिवादी के नाम विहित ढंग से सम्मन निकलवाएँ।

3. लिखित कथन

प्रतिवादी पर सम्मन तामील हो जाने के पश्चात प्रतिवादी पहली सुनवाई के समय या उसके पहले या ऐसे समय के भीतर जैसा कि न्यायालय मंजूर करे अपने प्रतिवाद का एक लिखित बयान प्रस्तुत करेगा। ऐसा लिखित कथन वाद-पत्र में किए गए प्रत्येक अभिकथन से सम्बद्ध हो और उस प्रत्येक अभिकथन के बारे में यह कहा गया होगा कि वह स्वीकृत किया जाता है या अस्वीकृत किया जाता है।

4. प्रकटीकरण

 प्रत्येक वाद के पक्षकार को यह हक है कि वह विरोधी पक्ष के स्वरूप को जान सके। वाद का स्वरूप जानने पर ही वह मुकदमे में अपनी प्रतिरक्षा कर सकता है। वह अपने मामले के सबूत में सुविधा के लिए अपने विरोधी से स्वीकृति प्राप्त करने का भी हकदार है। इसी को हम प्रकटीकरण कहते हैं जो कि विरोधी पक्षकार से पूछताछ करके या शपथ पत्र द्वारा दस्तावेजों को प्रकट करने की उससे अपेक्षा करके किया जा सकता है।

5. प्रथम सुनवाई और विवाद्यकों को निकालना

पक्षकार उस दिन हाजिर होंगे जोकि प्रतिवादी के हाजिर होने और अपना उत्तर देने के लिए सम्मन में नियत है। उस दिन पक्षकार स्वयं या क्रमशः अपने-अपने अधिवक्ताओं द्वारा न्यायालय सम्मन में हाजिर रहेंगे, और सिवाय उस सूरत में जिसमें कि सुनवाई न्यायालय द्वारा नियत किसी भविष्यकर्ता दिन के लिए . स्थगित कर दी जाये, वाद तब सुना जाएगा।

जबकि मुकदमा सुनने के लिए पुकारा जाता है और यदि कोई भी पक्षकार उपस्थित नहीं होता है, तो न्यायालय उस मुकदमे को खारिज कर सकेगा। यदि वादी उपस्थित होता है लेकिन प्रतिवादी उपस्थित नहीं होता है, तो वादी से प्रतिवादी पर सम्मन की तामील को साबित करने की अपेक्षा की जायेगी और तामील के इस प्रकार साबित हो जाने पर और वादी को अपना मामला साबित किये जाने पर उसे एकपक्षीय डिक्री दे दी जाएगी।

जहाँ प्रतिवादी (हाजिर ) होता है किन्तु वादी नहीं होता और प्रतिवादी दावे को स्वीकार नहीं करता तो न्यायालय उस वाद को खारिज कर सकेगी। जहाँ मामले की पहली सुनवाई पर दोनों पक्षकार न्यायालय में उपस्थित होते हैं।

वहाँ न्यायालय वाद पत्र लिखित कथन तथा परिप्रश्नों के उत्तरों पर विचार करेगा और तब पक्षकारों की परीक्षा करेगा और उनकी संस्वीकृतियों और इनकार को दर्ज करेगा। ऐसी परीक्षा का उद्देश्य, पक्षकार या उसके वकील से यह अभिनिश्चित करना होता है कि किसी एक पक्षकार के अभिवचन में कौन सारवान तथ्यों को दूसरे पक्षकार द्वारा स्वीकार किया जाता है या अस्वीकार किया जाता है।

इस प्रकार यदि न्यायालय यह समझता है कि दोनों पक्षकारों के मध्य विधिक अथवा तथ्यात्मक कोई विवाद नहीं है तो वह अपना निर्णय सुना सकता है।

6. साक्ष्य की प्रस्तुति तथा बहस

परन्तु पक्षकारों में यदि विवाद हो, जैसा कि साधारणतया होता है, तो उस समय सुनवाई के लिए तारीख निश्चित की जायेगी और उस तारीख को वाद के आरम्भ करने के अधिकार को रखने वाला पक्षकार अपने वाद का बयान करता है और उसके विवादग्रस्त तथ्यों के विषय में अपना साक्ष्य पेश करता है और पूरे मामले को सम्बोधित करता है।

7. निर्णय 

वाद की सुनवाई हो जाने के पश्चात न्यायालय तुरन्त फैसला सुना सकेगा या उसे आरक्षित कर सकेगा या किसी भावी तिथि को सुनाएगा।

8. डिक्री

फैसला सुनने के बाद सफल पक्षकार डिक्री पाने हेतु न्यायालय में आवेदन देता है और वह डिक्री न्यायालय के किसी पदाधिकारी द्वारा बनाई जाती है।

9. डिक्री निष्पादन 

किसी वाद का अन्तिम चरण डिक्री का निष्पादन है। निष्पादन विधि की वह सम्यक् प्रक्रिया है जिससे किसी न्यायालय की डिक्री अथवा आदेश को प्रभावी बनाने हेतु कार्य में लाया जाता है। इसके लिये आवेदन मुकदमे का सफल पक्षकार न्यायालय से करता है।

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