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परिसीमन तथा मौन स्वीकृति में अन्तर | Limitation & Silent Acceptance in Hindi

परिसीमन तथा मौन स्वीकृति में अन्तर
परिसीमन तथा मौन स्वीकृति में अन्तर

परिसीमन तथा मौन स्वीकृति में अन्तर (Difference Between Limitation and Silent Acceptance)

परिसीमन तथा मौन स्वीकृति में अन्तर- यदि एक ऐसा व्यक्ति जिसे कोई अधिकार है वह दूसरे को उस अधिकार के प्रतिकूल कार्य करते हुए देखता है परन्तु जब दूसरे व्यक्ति का अधिकार के प्रतिकूल कार्य प्रगति पर होता है उस समय आपत्ति नहीं करता है, वह बाद में शिकायत नहीं कर सकता है। यही मौन स्वीकृति (Acquiesce) का वास्तविक अर्थ है मौन स्वीकृति प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष (विवक्षित) हो सकती है। अप्रत्यक्ष (विवक्षित) मौन स्वीकृति पक्षकारों के आचरण से उपधारित की जा सकती है। प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष दोनों मौन स्वीकृतियों (Acquiesce) में अभिव्यक्त या विवक्षित सहमति एक आवश्यक शर्त है।

मौन-स्वीकृति आचरण द्वारा विबन्धन का एक उदाहरण है।

परिसीमन

मौन स्वीकृति
परिसीमन में एक निश्चित समयावधि निर्धारित होती है जिसके बीतने के पश्चात् न्यायालय के माध्यम से उपचार प्राप्त करने की कार्यवाही पर प्रतिबंध लग जाता है। मौन स्वीकृति में ऐसी कोई अवधि का प्रश्न नहीं होता परन्तु चूंकि पक्षकार की सहमति से दूसरे पक्षकार के कार्य करने पर यदि सह पक्षकार जिसे आपत्ति करने का अधिकार है, आपत्ति नहीं करता है तो बाद में उसे आपत्ति उठाने से वर्जित किया जाता है।
परिसीमन विधि के नियमों पर आधारित है मौन स्वीकृति का सिद्धान्त साम्या, न्याय तथा उचित आचरण पर आधारित है।
परिसीमन का तर्क वादी के विरुद्ध सामान्यतया उपलब्ध होता है। मौन स्वीकृति का तर्क वादी तथा प्रतिवादी दोनों के विरुद्ध बाद लाया जा सकता है।
परिसीमन में वादी की निर्धारित समयावधि तक अपने अधिकारों तथा दावों को प्राप्त न कर सकने पर न्यायालय द्वारा उपचार प्राप्त करने पर प्रतिबन्ध लगाती है। इस प्रकार यह वादी की निष्क्रियता के कारण वाद लाने की योग्यता को समाप्त करती है। मौन स्वीकृति में एक ऐसा पक्षकार जिसे यह अधिकार प्राप्त है कि वह अपने अधिकारों के अतिक्रमण पर आपत्ति करे, अपने अधिकारों पर अतिक्रमण को जानबूझकर स्वीकृति या सहमति प्रदान करता है अर्थात् चुप रहता है। उसका यह अपने अधिकारों पर अतिक्रमण के विरुद्ध मूक सहमति एक सक्रिय कार्य है।

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