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समानान्तर अर्थव्यवस्था का अर्थ | समानान्तर अर्थव्यवस्था के कारण | समानान्तर अर्थव्यवस्था के प्रभाव

समानान्तर अर्थव्यवस्था का अर्थ
समानान्तर अर्थव्यवस्था का अर्थ

समानान्तर अर्थव्यवस्था का अर्थ

समानान्तर अर्थव्यवस्था (Parallel Economy in Hindi)- हमारे देश में भ्रष्टाचार, कर चोरी राजनैतिक एवं प्रशासनिक आर्थिक घोटालों, मुनाफाखोरी, मिलावट आदि के कारण धन क समानान्तर अर्थव्यवस्था काम कर रही है, जिस पर नियन्त्रण न हो पाने के कारण गरीब एवं सामान्य वर्ग का लगातार शोषण हो रहा है। इस अर्थव्यवस्था ने सम्पूर्ण बाजार व्यवस्था की अपने नियन्त्रण में ले लिया है।

काले धन से आशय उस धन से है जो कानून के प्रावधानों का उल्लंघन करके अर्जित किया गया हो। सार्वजनिक राजस्व एवं नीति के राष्ट्रीय संस्थान के अनुसार, “आय के उस भाग को जो कर योग्य है लेकिन जिसे कर अधिकारियों की जानकारी में नहीं लिया जाता है, काली मुद्रा कहते हैं।

समानान्तर – अर्थव्यवस्था को काली अर्थव्यस्था, लेखा-जोखा रहित अर्थव्यवस्था, गैर कानूनी अर्थव्यवस्था, भूमिगत अर्थव्यवस्था या अस्वीकृत अर्थव्यस्था भी कहा जाता है।

समानान्तर अर्थव्यवस्था के कारण (Causes)

(1) समाज के नैतिक मूल्यों का पतन- हमारे समाज में नैतिक मूल्यों तथा आदर्शों का लगातार ह्रास होता जा रहा है। यह कर की चोरी का भी एक प्रमुख स्रोत है। जो लोग कर की चोरी करते हैं या भ्रष्टाचार करते हैं या धन कमाने के लिए अनैतिक तरीके अपनाते हैं उन्हें समाज बुरी दृष्टि से नहीं देखता। इन सब स्थितियों के कारण भी समाज में काला धन पनप रहा है।

(2) नियन्त्रण – समानान्तर अर्थव्यवस्था के सृजन हेतु सबसे महत्त्वपूर्ण कारक नियन्त्रण ही है इसके अन्तर्गत वैधानिक नियन्त्रण के साथ-साथ नौकरशाही तथा प्रशासनिक नियन्त्रण और विलम्ब, प्रक्रिया सम्बन्धी वाद-विवाद आदि भी आते हैं।

(3) भ्रष्टाचार – कानून का उल्लंघन करके किये जाने वाले कार्य अवैधानिक होते है। ऐसी क्रियाओं के लाभभोगी अपनी आय को आयकर रिटर्न में नहीं दिखाते हैं। इस प्रकार की अवैधानिक गैर-कानूनी क्रिया को भ्रष्टाचार कहा जाता है।

(4) सामाजिक दृष्टिकोण में परिवर्तन- आज सामाजिक दृष्टिकोण में परिवर्तन देखने को मिलता है। पहले की अपेक्षा आज समाज भ्रष्ट लोगों की आलेचना कम करता है।

(5) करों की ऊँची दरें- हमारे देश में करों की चोरी ही काले धन के सृजन का एक प्रमुख माध्यम है। करों की ऊँची दरें कर चोरी को प्रोत्साहन देती हैं और इससे काले धन की एक समानान्तर अर्थव्यवस्था का जन्म होता है।

(6) सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार- हमारे देश में सरकारी प्रशासन का भ्रष्टाचार भी काले धन की उत्पत्ति का एक प्रमुख माध्यम है। सरकारी नियम कानूनों से बचने, अनैतिक गतिविधियां करने और कर चोरी करने के लिए मुख्य रूप से रिश्वत दी जाती है। पूरी सरकारी मशीनरी भ्रष्टाचार में डूब चुकी है।

(7) व्यवसाय एवं उद्योग पर सरकार के अनुचित प्रतिबन्ध- शासन ने व्यवसाय एवं उद्योग पर, वस्तुओं के आयात-निर्यात पर अनेक प्रकार के प्रतिबन्ध लगा रखें हैं जिसका लोग उल्लंघन कर वस्तुओं की तस्करी करते हैं जिससे काले धन की उत्पत्ति होती है।

समानान्तर अर्थव्यवस्था के प्रभाव (Effect)

(1) आय के वितरण पर प्रभाव – आय के वितरण पर प्रभाव एवं नीति के राष्ट्रीय संस्थान ने कहा है कि जिन लोगों के पास काले धन का अधिक भाग मौजूद है वे उतनी ही अधिक मात्रा में अपनी सही आय को छुपाने का प्रयास करते हैं। प्रगतिशील प्रणाली में अधिक आय पर अधिक कर लगाया जाता है।

(2) मुद्रास्फीति पर दबाव- सामान्य रूप में काला धन नकद रूप में डाला जाता है। इससे अर्थव्यवस्था में तरलता बढ़ जाती है और इससे मुद्रा प्रसार पर दबाव पड़ता है।

(3) साख नियन्त्रण एवं मुद्रास्फीति विरोधी नीतियों को क्रियान्वित करने में कठिनाई – अत्यधिक मात्रा में काला धन होने के कारण सरकार को साख नियन्त्रण के उपायों को लागू करना तथा मुद्रास्फीति को भी नियन्त्रित करने में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

(4) राजस्व की हानि- कर की चोरी, जो काली मुद्रा के सृजन का प्रमुख स्रोत है, सरकार के कर राजस्व हानि का एक प्रमुख कारण है। इससे समाज में आर्थिक असमानता पनपती है और लोगों की कर चुकाने की क्षमता कम हो जाती है।

(5) अनैतिक सामाजिक मूल्यों को बढ़ाया- काले धन के कारण जुआ, तस्करी, सट्टेबाजी तथा समाज में इसी प्रकार की अन्य दूषित प्रवृत्तियों को जन्म मिलते हैं। कुल मिलाकर समाज में नैतिक मूल्यों का ह्रास होता है।

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