समाजशास्‍त्र / Sociology

सामाजिक संगठन तथा सामाजिक विघटन में अंतर

सामाजिक संगठन तथा सामाजिक विघटन में अंतर
सामाजिक संगठन तथा सामाजिक विघटन में अंतर

सामाजिक संगठन तथा सामाजिक विघटन में अंतर – सामाजिक विघटन की उपर्युक्त विवेचना से स्पष्ट होता है कि विघटन की स्थिति संगठन से पूर्णतया भिन्न है। निम्नांकित विवेचना से इन दोनों प्रक्रियाओं में अन्तर स्पष्ट करने से इनकी प्रकृति की ओर अधिक सरलतापूर्वक समझा जा सकता है।

1. सामाजिक संगठन की धारणा एक ऐसे सामजिक सन्तुलन का बोध कराती है जिसके अंतर्गत सभी समूह तथा संस्थाएँ अपने पूर्व निर्धारित लक्ष्यों के अनुसार व्यवहार करके सामाजिक समस्या का बनाए रखने में योगदान करती हैं। सामाजिक विघटन का तात्पर्य किसी भी ऐसी स्थिति से है जिसमें एक समूह के सदस्यों से सम्बन्ध टूट जाते हैं और इस प्रकार सामाजिक जीवन अव्यवस्थित हो जाता है। इस दृष्टिकोण से संगठन तथा विघटन की दशाएँ एक प्रक्रिया के रूप में क्रियाशील होने के बाद भी एक दूसरे से पूर्णतया भिन्न हैं।

2. सामाजिक संगठन की अनिवार्य विशेषता किसी समूह के सदस्यों में एकमत होना अर्थात अधिकतर विषयों के प्रति समान दृष्टिकोण प्रदर्शित करना है। विघटन की दशा में वह एकमत समूह अनेक छोटे-छोटे तथा स्वार्थपूर्ण समूहों में विभाजित हो जाता है।

3. सामाजिक संगठन में नियोजन का गुण निहित है। समाज मनुष्यों के सक्रिय प्रयासों के बिना संगठित नहीं रह सकता। इसके विपरीत, विघटन के लिए व्यक्ति पृथक अथवा नियोजित रूप से प्रयत्न नहीं करते, बल्कि अज्ञात रूप से अनेक घटनाएँ समाज को विघटित करती रहती है।

4. सामाजिक संगठन की स्थापना विकास की एक लम्बी प्रक्रिया के बाद ही सम्भव हो पाती है। तुलनात्मक रूप से विघटन की दशा में बहुत कम समय लगता है।,

5.सामाजिक संगठन की दशा में सभी सदस्यों की स्थिति तथा भूमिका सुनिश्चित रहती है और अधिकांश व्यक्ति व्यक्ति समूह की आशाओं के अनुसार अपनी भूमिका का निर्वाहन करते रहते है। दूसरी ओर विघटन की दशा में व्यक्ति की भूमिका तथा स्थिति के बीच एक सामान्य असंतुलन स्पष्ट होने लगता है।

6. सामाजिक संगठन का अभिप्राय सामाजिक नियंत्रण की व्यवस्था का प्रभावपूर्ण बने रहना है। इसके विपरीत, नियंत्रण की साधनों में जब दिखावा अथवा प्रभावहीनता उत्पन्न हो जाती है, तब इसी दशा को हम विघटन कहते है।

7. सामाजिक संगठन तार्किक है, जबकि सामाजिक विघटन अतार्किक और भावनात्मक है। इसका तात्पर्य है कि संगठन के अन्तर्गत व्यक्ति के व्यवहार सामाजिक मूल्यों के अनुरूप होते हैं तथा व्यक्ति के व्यवहारो को सरलता से समझा जा सकतसा है। विघटन की दशा में अनिश्चिता, भ्रम तथा विवेकशून्यता इतनी बढ़ जाती है कि किसी भी व्यक्ति के व्यवहारों का पूर्वानुमान कर सकना बहुत कठिन हो जाता है।

8. संगठन वांछित है और विघटन अवांछित है। इसके पश्चात भी ये दोनो दशाएँ कम या अधिक मात्रा में प्रत्येक समाज में साथ-साथ क्रियाशील रहती है। इसका कारण यह है कि एक ओर जहाँ बहुत से व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं को व्यवस्थित ढ़ग से पूरा करने के लिए सामाजिक संगठन को महत्व देते हैं,वहीं दूसरी ओर समाज में होने वाले परिवर्तन विघटनकारी दशाओं को भी उत्पन्न करते रहते है। यह दशाएँ वे होती हैं जो इच्छित नहीं होती बल्कि, आकस्मिक रूप से स्वयं उत्पन्न हो जाते हैं।

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