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सांख्यिकी का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं, महत्त्व, प्रकार, कार्य, सीमाएँ

सांख्यिकी का अर्थ
सांख्यिकी का अर्थ

सांख्यिकी का अर्थ

अंग्रेजी भाषा का Statistics शब्द लैटिन भाषा के ‘Status’ तथा इटैलियन भाषा के ‘Statista’ और जर्मन भाषा के ‘Statistik’ शब्दों से बना है। इन सभी शब्दों का अर्थ राज्य है। इस प्रकार प्राचीनकाल में सांख्यिकी को ‘राजाओं के विज्ञान’ अथवा ‘राज्य शिल्प-विज्ञान’ के रूप में माना जाता था। ‘Sttistics’ शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग 1749 ई. में जर्मनी के विद्वान गॉटफ्रायड एकेनवाल (Gottfried Achenwall) ने किया था। इन्हें ‘सांख्यिकी का जन्मदाता’ कहा जाता है। महाकवि शेक्सपियर, जॉन मिल्टन एवं वर्ड्सवर्थ ने ‘Statist’ शब्द का प्रयोग एक ऐसे व्यक्ति के लिए किया था जो शासन कार्य में निपुण हो । सोलहवीं शताब्दी के व्यापारिक क्षेत्र में विभिन्न देशों में आंकड़े एकत्रित कराये गये तथा नक्षत्रों की गति, स्थिति तथा ग्रहण आदि के सम्बन्ध में भी आंकड़े एकत्रित किये गये। सत्रहवीं शताब्दी में जन्म-मरण सम्बन्धी आंकड़े एकत्रित करने में इसका प्रयोग किया गया। अठारहवीं शताब्दी में सांख्यिकी एवं गणित में निकटता पैदा होने से सांख्यिकी रीतियां उत्पन्न एवं परिष्कृत हुईं। उन्नीसवीं शताब्दी में सांख्यिकीय पद्धतियों एवं प्रयोगों का सूत्रपात हुआ तो बीसवीं सदी में मानव ज्ञान की सभी शाखाओं में इसका प्रयोग किया जाने लगा है। सांख्यिकी शब्द का प्रयोग दो अर्थों में किया जाता है-

(i) सांख्यिकी का एक अर्थ समंकों या आंकड़ों (statistical data) से होता है जो किसी क्षेत्र से सम्बन्धित संख्यात्मक विवरण होते हैं, जैसे जनसंख्या, राष्ट्रीय आय एवं उत्पादन, मूल्य-स्तर एवं अपराध सम्बन्धी आंकड़े, आदि।

(ii) सांख्यिकी का एक अर्थ सांख्यिकी विद्वान (science of statistics) है जिसमें समंकों (आंकड़ों) का संग्रह, विश्लेषण और निर्वचन सांख्यिकीय विधियों द्वारा किया जाता है।

सांख्यिकी की परिभाषा

सांख्यिकी की दोनों की तरह की परिभाषाओं का हम यहां उल्लेख करेंगे।

वेब्स्टर शब्दकोश के अनुसार, “समंक (Statistics) किसी राज्य के निवासियों की स्थिति से सम्बन्धित वर्गीकृत तथ्य हैं……. विशेष रूप से वे तथ्य जिन्हें संख्याओं में या संख्याओं की सारणियों में प्रस्तुत किया जा सके।”

डॉ. बाउले के अनुसार, “सांख्यिकी अनुसन्धान के किसी विभाग से सम्बन्धित तथ्यों का ऐसा संख्यात्मक विवरण है जिन्हें एक-दूसरे के सम्बन्ध में रखा जा सके।”

बालिस एवं रॉबर्ट्स के अनुसार, “सांख्यिकी तथ्यों के परिमाणात्मक पहलुओं के संख्यात्मक विवरण हैं जो गणना अथवा माप के रूप में व्यक्त होते हैं।”

क्रॉक्सटन तथा काउडेन के अनुसार, “सांख्यिकी को संख्यात्मक तथ्यों के संकलन, प्रस्तुतीकरण, विश्लेषण तथा विवेचन के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।”

सैलिगमैन के अनुसार, “सांख्यिकी वह विज्ञान है जो अनुसन्धान के किसी क्षेत्र पर प्रकाश डालने वाले आंकड़ों के संकलन, प्रस्तुतीकरण, तुलना तथा विवेचन की रीतियों से सम्बन्धित होते हैं।”

सांख्यिकी की व्यापक परिभाषा होरेस सिक्राइस्ट द्वारा दी गयी है। वे लिखते हैं, “सांख्यिकी तथ्यों के उन समूहों को कहते हैं जो अनेक कारणों से पर्याप्त सीमा तथा प्रभावित होते हैं, जो अंकों में प्रकट किये जाते हैं, यथोचित शुद्धता के अनुसार जिनका आगणन अथवा अनुमान लगाया जाता है जिन्हें किसी पूर्व निश्चित उद्देश्य के लिए एक सुव्यवस्थित रीतिद्वारा एकत्र किया जाता है जिन्हें तुलना के लिए एक-दूसरे के सम्बन्ध में रखा जा सकता है।”

उक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि सांख्यिकी अनिश्चितता की परिस्थिति में उचित निर्णय लेने वाला विज्ञान है। इसमें अनेक रीतियों का संग्रह है जिनके द्वारा किसी घटना से सम्बन्धित उचित एवं विवेकपूर्ण निष्कर्ष निकाले जाते हैं। वस्तुतः यह अनिश्चितता की परिस्थिति में उचित निर्णय लेने के साधन एवं उपकरण प्रदान करता है।

सांख्यिकी की विशेषताएं

विभिन्न परिभाषाओं से सांख्यिकी की निम्नांकित विशेषताएं प्रकट होती हैं-

(1) तथ्यों के समूह सांख्यिकी का सम्बन्ध- किसी एक तथ्य से सम्बन्धित आंकड़ों से नहीं होता वरन् अनेक तथ्यों से सम्बन्धित होता है, जिससे कि उनकी परस्पर कतुलना की जा सके और निष्कर्ष निकाले जा सकें। उदाहरण के लिए, अपराध की किसी एक घटना या दहेज से सम्बन्धित किसी एक दुर्घटना को सांख्यिकी नहीं कह सकते। अपराध एवं दहेज की अनेक दुर्घटनाओं के आंकड़ों को ही सांख्यिकी कहा जायेगा। अतः एक तथ्य नहीं वरन् अनेक तथ्यों के समूह ही सांख्यिकी की विषय-सामग्री है।

(2) संख्याओं के रूप में प्रस्तुत- तथ्यों को हम गुणात्मक एवं संख्यात्मक (Qualitative and Quantitative) दोनों रूप में प्रस्तुत कर सकते हैं। तथ्यों को गुणात्मक रूप में; जैसे सुन्दर, असुन्दर, अच्छा, बुरा, गरीब, अमीर, बालक, युवा, प्रौढ़ और वृद्ध में व्यक्त किया जा सकता है। किन्तु सांख्यिकी का सम्बन्ध संख्यात्मक तथ्यों से होता है।

(3) अनेक कारणों से सम्बन्धित- सांख्यिकी विविध कारणों से प्रभावित होती है। । उदाहरण के लिए, कृषि उत्पादन सम्बन्धी आंकड़े जलवायु, वर्षा, सिंचाई, भूमि की उत्पादकता, बीज, खाद, खेती के तरीकों, आदि से प्रभावित होते हैं। अनेक कारणों से प्रभावित होने के कारण ही आंकड़ों का सांख्यिकी विश्लेषण आवश्यक होता है।

(4) गणना अथवा अनुपात – आंकड़ों का संकलन गणना अथवा अनुमान द्वारा किया जा सकता है। जब अनुसन्धान का क्षेत्र सीमित हो तो गणना के द्वारा और जब क्षेत्र विस्तृत हो तो अधिकांशतः सर्वोत्तम अनुमान के द्वारा ही तथ्यों का संकलन किया जाता है।

(5) समुचित शुद्धता- आंकड़ों के संकलन में शुद्धता की समुचित मात्रा होनी आवश्यक है। समुचित शुद्धता अनुसन्धान के उद्देश्य, उसकी प्रकृति, आकार और उपलब्ध साधनों पर निर्भर करती है। उदाहरणार्थ, यदि विद्यार्थियों की लम्बाई का माप किया जा रहा हो तो सेमी. तक यथार्थता होनी चाहिए किन्तु यदि दिल्ली से जयपुर की दूरी का माप किया जाता है। तो किमी. तक शुद्धता की अपेक्षित है, मीटर और सेण्टीमीटर तक नहीं। इसके विपरीत, पृथ्वी से सूर्य या अन्य ग्रहों की दूरी का अनुमान लगाने में हजारों कि.मी. तक को भी छोड़ा जा सकता है। स्पष्ट है कि शुद्धता के समुचित स्तर विभिन्न परिस्थितियों में भिन्न-भिन्न होते हैं।

(6) सुव्यवस्थित संकलन- आंकड़ों को एक निश्चित योजना के अनुसार सुव्यवस्थित नीति द्वारा संकलित किया जाना चाहिए। अव्यवस्थित रूप से संकलित तथ्यों से समुचित निष्कर्ष नहीं निकाले जा सकते। उदाहरणार्थ, यदि बिना, किसी योजना के कुछ परिवारों की मासिक आय-व्यय के आंकड़े अव्यवस्थित रूप एकत्र किये जायें तो वे सांख्यिकी नहीं कहलायेंगे। इसके विपरीत, यदि श्रमिक परिवारों के पारिवारिक बजट के आंकड़े एक निश्चित योजना के अनुसार सुव्यवस्थित नीति द्वारा विधिवत रूप से एकत्रित किये जाते हैं तो उसे सांख्यिकी कहेंगे क्योंकि उचित निष्कर्ष निकालना सम्भव है।

(7) पूर्व-निश्चित उद्देश्य- आंकड़ों के संकलित करने का उद्देश्य पहले से ही स्पष्ट रूप से निर्धारित कर लेना चाहिए। उद्देश्यहीन आंकड़े सांख्यिकी नहीं कहलायेंगे। उदाहरण के लिए, किसी गन्दी बस्ती में निवास करने वाले श्रमिकों की आय के बारे में आंकड़े एकत्रित किये जा रहे हैं तो यह पहले से ही निश्चित कर लेना चाहिए कि इनको संकलित करने का क्या उद्देश्य है— उनके जीवन स्तर का पता लगाना, जन्म-दर, मृत्यु-दर, औसत आयु एवं स्वास्थ्य आदि पर विचार करना या तुलनात्मक विश्लेषण करना, आदि।

(8) परस्पर तुलना- आंकड़े इस प्रकार प्रस्तुत किये जाने चाहिए जिससे उनकी आपस में तुलना की जा सके। तुलना के लिए आंकड़ों में सजातीयता एवं एकरूपता होना आवश्यक है। उदाहरण के लिए, व्यक्तियों की आय, उनकी आयु, पेड़ों की ऊंचाई एवं जनसंख्या की परस्पर तुलना नहीं की जा सकती, इसलिए इन्हें सांख्यिकी नहीं कहेंगे। सांख्यिकी कहलाने के लिए संख्याओं का समय, स्थान या परिस्थितियों के आधार पर तुलना योग्य होना आवश्यक है।

इस प्रकार सभी सांख्यिकीय आंकड़े संख्यात्मक तथ्य होते हैं किन्तु सभी संख्यात्मक तथ्य आंकड़े (data) नहीं होते। केवल उन्हीं संख्यात्मक तथ्यों को आंकड़े कहा जा सकता है, जिनमें उपर्युक्त सभी विशेषताएं हों।

(9) एक विज्ञान के रूप में सांख्यिकी ऐसे सामूहिक तथ्यों से सम्बन्धित है जिनको संख्याओं के रूप में व्यक्त किया जा सकता है तथा जिन पर अनेक कारणों का प्रभाव पड़ता है। इसमें सामूहिक संख्यात्मक तथ्यों के संकलन, प्रस्तुतीकरण, विश्लेषण तथा निर्वचन की रीतियों का विधिवत अध्ययन किया जाता है।

सांख्यिकी का महत्त्व

सांख्यिकी के महत्त्व को निम्नतः स्पष्ट किया जा सकता है-

(1) तथ्यों को संख्यात्मक रूप में प्रस्तुत करना— सांख्यिकी में सामाजिक तथ्यों को संख्यात्मक रूप में प्रस्तुत किया जाता है जिससे समस्या के बारे में जानकारी करना सरल हो जाता है। उदाहरण के लिए, बाल-विवाह, विधवा पुनर्विवाह, आदि के पक्ष-विपक्ष की राय को संख्या में प्रस्तुत करने से जनमत की इन समस्याओं के बारे में रुचि और मत का आसानी से पता लगाया जा सकता है।

(2) जटिल तथ्यों को सरल बनाना- आंकड़े जटिल और बिखरे हुए होते हैं जो सामान्य व्यक्ति की समझ से बाहर होते हैं तथा वह उनसे कोई निष्कर्ष भी नहीं निकाल सकता किन्तु सांख्यिकी की विभिन्न रीतियों, जैसे वर्गीकरण, सारणीयन, चित्रमय एवं बिन्दुरेखीय प्रदर्शन और केन्द्रीय प्रवृत्ति के माप, आदि के द्वारा जटिल सांख्यिकी सामग्री को सरल बनाया जा सकता है। उदाहरण के लिए, विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं में भारत की राष्ट्रीय और प्रति व्यक्ति आय की संख्याओं को हम चित्रों, ग्राफ और वक्रों द्वारा सरलता से प्रकट कर सकते हैं।

(3) तथ्यों की तुलना एवं उनमें सम्बन्ध स्थापित करना- सांख्यिकी का एक महत्त्वपूर्ण कार्य तुलनात्मक अध्ययन की सुविधा प्रदान करना है। विभिन्न तथ्यों की तुलना करने के लिए माध्य, सूचकांक और गुणांक, आदि का प्रयोग किया जाता है। उदाहरणार्थ, सांख्यिकी और गुणांकों की सहायता से दो देशों की प्रति व्यक्ति आय की तुलना की जा सकती है, साथ ही आय के वितरण में व्याप्त असमानताओं का पता लगाया जा सकता है। सह-सम्बन्ध तथा गुण- साहचर्य की रीतियों द्वारा विभिन्न घटनाओं; जैसे गरीबी और अपराध, नगरीकरण की दर और अपराध, आदि में पाये जाने वाले सम्बन्धों को स्पष्ट किया जा सकता है।

(4) नीति निर्धारण में सहायक- सांख्यिकी हमारा सामाजिक, आर्थिक, व्यापारिक और अन्य क्षेत्रों में नीति निर्धारण में मार्ग प्रशस्त कर सकती है। देश की आयात-निर्यात नीति, मूल्य नीति- मद्य-निषेध नीति और जनसंख्या नीति के निर्धारण में संकलित आंकड़ों का विश्लेषण आवश्यक है। सरकार की वर्तमान नीतियों का सांख्यिकीय मूल्यांकन करके भी सांख्यिकी अपना योगदान दे सकती है, जैसे संख्यात्मक विश्लेषण से ही इस बात का पता चल सकता है कि परिवार नियोजन सम्बन्धी सरकार की नीति कहां तक सफल हुई है? इस प्रकार नीति-निर्धारण और नीति के प्रभावों का मूल्यांकन सांख्यिकी के मुख्य उपयोग हैं।

(5) व्यक्तिगत ज्ञान एवं अनुभव में वृद्धि – डॉ. बाउले का मत है कि “सांख्यिकी का उचित कार्य, वास्तव में, व्यक्तिगत अनुभव में वृद्धि करना है।” सांख्यिकी के अध्ययन से व्यक्ति के विचारों में स्पष्टता और निश्चितता आती हैं। आंकड़ों के विश्लेषण और निर्वचन करने से व्यक्ति में तर्कशक्ति का विकास होता है, वह समस्या को विभिन्न दृष्टिकोणों से देखने व समझने में सक्षम होता है। सांख्यिकी के क्षेत्र में शोध करने के लिए व्यक्ति समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र, व्यावसायिक प्रशासन आदि की भी समुचित जानकारी आवश्यक है क्योंकि इन विज्ञानों द्वारा किये जाने वाले सर्वेक्षणों से सांख्यिकी को कई प्रकार के अनुभव प्राप्त होते हैं, उसकी ज्ञानपरिधि का विकास होता है। सांख्यिकीय विधियों का प्रयोग मानव ज्ञान को पूर्ण और परिपक्व बनाता है।

(6) अनुमान लगाने में सहायक- सांख्यिकी में केव ल उपलब्ध आंकड़ों का विश्लेषण नहीं किया जाता वरन् उसके आधार पर भावी स्थितियों का भी अनुमान लगाया जाता है। आन्तरगणन (Interpolation), बाह्यगणन और पूर्वानुमान द्वारा यह कार्य किया जाता है। आर्थिक और सामाजिक विकास की योजनाएं तो भावी अनुमानों के आधार पर ही निर्मित की जाती हैं। आकस्मिक अनुमानों के बजाय सांख्यिकी अनुमान अधिक यथार्थ होते हैं। इस सन्दर्भ में डॉ. बाउले ने उचित ही लिखा है, “एक सांख्यिकीय अनुमान अच्छा हो या बुरा, सही हो या गलत, किन्तु प्रायः प्रत्येक स्थिति में वह एक आकस्मिक प्रेक्षक के अनुमान से अधिक उचित होगा।”

(7) वैज्ञानिक नियमों की परख सम्भव- न केवल समाजशास्त्र में वरन् अन्य विज्ञानों में भी (deduction) विधि द्वारा प्राप्त पुराने नियमों के परीक्षण और नवीन सिद्धान्तों के निर्माण में सांख्यिकी रीतियां उपयोगी सिद्ध हुई हैं। इस कार्य के लिए सभी विज्ञान सांख्यिकी के आभारी हैं। सांख्यिकी के आधार पर ही माल्थस के जनसंख्या सिद्धान्त और अर्थशास्त्र में द्रव्य के परिमाण सिद्धान्त में कई आवश्यक संशोधन हुए हैं। सांख्यिकीय विधियों के प्रयोग से सभी विज्ञानों का विकास हुआ है, यदि यह कहा जाय तो अनुपयुक्त नहीं होगा।

(8) समस्या की सही जानकारी प्रदान करना- सांख्यिकी की सहायता से हम किसी सामाजिक-आर्थिक समस्या के विस्तार एवं गहनता से भली-भांति परिचित हो जाते हैं क्योंकि उस समय से सम्बन्धित आंकड़ों से अनेक तथ्य ज्ञात होते हैं। उदाहरण के लिए, यह कहना कि 1971 की तुलना में 1981 की तुलना में 1981 में देश की जनसंख्या बढ़ी है तो इससे समस्या का पता नहीं चलेगा। इसके स्थान पर यदि कहा जाय कि 1971 में भारत की जनसंख्या 54 करोड़ थी जो बढ़कर 1981 में 68.5 करोड़ हो गई तो समस्या के आधार पर कुछ ज्ञान अवश्य होगा।

(9) आर्थिक क्षेत्रों में उपयोगी– आर्थिक क्षेत्रों में सांख्यिकी के महत्त्व को बताते हुए या-लुन चाउ (Ya-Lun Chou) लिखते हैं, “अर्थशास्त्री, आर्थिक समूहों, जैसे सकल राष्ट्रीय उत्पाद उपयोग, बचत, विनियोग-व्यय और मुद्रा के मुल्य होने वाले परिवर्तनों के मापन के लिए आंकड़ों पर निर्भर रहते हैं। वे आर्थिक सिद्धान्तों का सत्यापन करने तथा प्राक्कल्पनाओं की जांच के लिए भी सांख्यिकी विधि का ही प्रयोग करते हैं।” आर्थिक क्षेत्र की किसकी भी ऐसी समस्या की कल्पना ही नहीं की जा सकती जिसमें समंकों (data) का प्रयोग न किया जाता हो, उत्पादन को व्यवस्थित करने के लिए उपभोक्ताओं की रुचियों, मांग, जीवन-स्तर, क्रय-शक्ति, आदि के बारे में समंकों का संकलन किया जाता है। उत्पादन सम्बन्धी आंकड़े देश की सम्पत्ति की मात्रा, उसमें होने वाले परिवर्तन एवं उसके कारणों, आयात-निर्यात, भुगतान सन्तुलन, राष्ट्रीय लाभांश, आदि के बारे में समुचित जानकारी प्रदान करते हैं जो देश के भावी आर्थिक विकास की दृष्टि से आवश्यक है।

(10) सामाजिक अनुसन्धानों में उपयोग- सांख्यिकीय सामाजिक क्षेत्र में अनुसन्धानों की दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण है। डब्ल्यू. आई. किंग (W.I. King) का मत है कि सांख्यिकी विज्ञान की वह विधि है जिसके द्वारा सामूहिक, प्राकृतिक या सामाजिक घटना का निर्णय विश्लेषण, गणना या अनुमानों के संकलन के परिणामों के आधार पर किया जाता है। समाज में अपराध, बेकारी, गरीबी, वेश्यावृत्ति, पारिवारिक एवं सामाजिक विघटन, बाल-विवाह, निरक्षरता, भिक्षावृत्ति, अस्पृश्यता, साम्प्रदायिकता आदि अनेक समस्याएं व्याप्त हैं, जिनके वैज्ञानिक अध्ययन एवं सर्वेक्षण हेतु इसे समुचित तथ्य संकलित करने पड़ते हैं, उनका वर्गीकरण सारणीयन, विश्लेषण एवं निर्वचन करना होता है। इन सब के लिए सांख्यिकी का ज्ञान अति आवश्यक है। बहुत बड़े क्षेत्र में सामाजिक सर्वेक्षण करने के लिए निदर्शन (sampling) विधि का प्रयोग करना पड़ता है। निदर्शन प्राप्त करने में भी सांख्यिकी विधियों का सहारा लेना होता है। समाजशास्त्र के क्षेत्र में सांख्यिकी का उपयोग जनांकिकी तथ्यों, जैसे जन्म-दर, विवाह, जनसंख्या वृद्धि, आदि के अध्ययन के लिए आवश्यक है। नवीन समंकों (data) की सहायता से समाजशास्त्री सामाजिक नियमों या उपकल्पनाओं की जांच करके उनमें आवश्यक संशोधन करते रहते हैं। सामाजिक अनुसन्धानों के लिए सांख्यिकी विधियां उपयोगी यन्त्रों का कार्य करती हैं। इस सन्दर्भ में क्राक्सटन एवं काउडेन ने उचित ही लिखा हैं, “सांख्यिकी की पर्याप्त जानकारी के बिना समाज विज्ञानों का अनुसन्धानकर्ता अक्सर एक ऐसे अन्धे व्यक्ति के समान है जो एक अंधेरे कमरे में उस काली बिल्ली को ढूंढ़ने का प्रयत्न कर रहा है वहां है ही नहीं। “

मानसिक योग्यता एवं अन्य मनोवैज्ञानिक तथ्यों की माप के लिए तथा माप की प्रामाणिकता एवं विश्वसनीयता की जांच करने हेतु, बुद्धि-लब्धि (1.Q.) या बौद्धिक परीक्षण में विश्लेषण हेतु सांख्यिकी का उपयोग किया जाता है। मनोविज्ञान के क्षेत्र में विशाल सांख्यिकीय तथ्यों एवं सिद्धान्तों के प्रयोग के लिए ‘साइकोमिट्री’ (Psychometry) नामक विज्ञान की एक नवीन शाखा का जन्म हुआ।

उपर्युक्त सम्पूर्ण विवरण से स्पष्ट है कि सांख्यिकी का उपयोग समाज के विभिन्न क्षेत्रों में किया जाता है जो कि समाजशास्त्र के अध्ययन के दारे में आते हैं। एडवर्ड जे. केने (Edward J. Kane) ने लिखा है, “आजकल सांख्यिकीय विधियों का प्रयोग ज्ञान एवं अनुसन्धान की लगभग प्रत्येक शाखा आरेखीय कलाओं से लेकर नक्षत्र-भौतिकी तक और लगभग प्रत्येक प्रकार के व्यावहारिक उपयोग संगीत रचना से लेकर प्रक्षेपास्त्र निर्देशन तक में किया जाता है।”

सांख्यिकी के प्रकार (Kinds of Statistics)

विषय सामग्री की दृष्टि से सांख्यिकी को पाँच भागों में विभाजित किया जा सकता है-

1. सैद्धान्तिक सांख्यिकी (Theoritical Statistics)

इसका सम्बन्ध उन सूत्रों (Formulae) के निर्माण एवं विकास से है, जिनका उपयोग व्यावहारिक सांख्यिकी में किया जाता है। जैसे- कोटि अन्तर विधि (Rank difference method) द्वारा सह-सम्बन्ध के सूत्र का निर्माण, मानक त्रुटि (Standard Error) के लिए सूत्र का निर्माण आदि।

2. वर्णनात्मक सांख्यिकी (Descriptive Statistics)

इस सांख्यिकी का उद्देश्य किसी एक विषय से सम्बन्धित प्रायः सामान्य तथ्यों के संकलन, संगठन, प्रस्तुतीकरण व परिकलन से होता है। मूल आँकड़ों को सार्थक व विवेचना योग्य बनाने के लिए व्यवस्थित करना तथा आरेखाओं एवं आलेख चित्रों द्वारा स्पष्ट करना, इसी सांख्यिकी का क्षेत्र है।

3. आनुमानिक सांख्यिकी (Inferential Statistics)

इस सांख्यिकी का उद्देश्य किसी एक समूह से सम्बन्धित प्राप्त आँकड़ों के आधार पर अथवा प्रतिदर्श द्वारा प्राप्त आँकड़ों के आधार पर सम्पूर्ण जनसंख्या अथवा समूह के सम्बन्ध में अनुमान लगना होता है इसके अन्तर्गत प्रसम्भाव्यता नियमों (Laws of probability), मध्यमान की मानक त्रुटि (Standard Error of Mean) आदि मापदण्डों के आधार पर वैज्ञानिक दृष्टिकोण के सम्पूर्ण जनसंख्या के विषय में सरलता और शुद्धता से अनुमान (Inferences) लगाए जा सकते हैं।

4. व्यावहारिक सांख्यिकी (Applied Statistics)

इस सांख्यिकी का क्षेत्र ऐसे आँकड़ों का संकलन है जिनका उपयोग प्रायः राजनैतिक, आर्थिक, वाणिज्यिक और औद्योगिक क्षेत्र में होता है। मतदाताओं की संख्या में परिवर्तन, उत्पादन के स्तर में परिवर्तन, जन्म-मरण का लेखा-जोखा आदि का अध्ययन इस क्षेत्र के अन्तर्गत किया जाता हैं जिसमें प्राय: सूचकांकों (Index Numbers) का व्यापक रूप से प्रयोग किया जाता है।

5. भविष्य कथनात्मक सांख्यिकी (Predictive Statistics)

इस प्रकार की सांख्यिकी का उद्देश्य भविष्य की घटनाओं के विषय में पूर्व-कथन (Prediction) होता है। इसमें दो या दो से अधिक चरों में व्याप्त सह-सम्बन्ध गुणांक का पता लगाकर उसके आधार पर दो या अधिक चरों के विषय में भविष्यवाणी की जाती है।

सांख्यिकी के कार्य 

1. सांख्यिकी तथ्यपूर्ण तथा सम्बन्धित आँकड़ों का संकलन करती है। यह एक प्रतिनिध्यात्मक प्रतिदर्श के चयन में तथा सम्बन्धित प्रदत्त सामग्री के संकलन में सहायता करती हैं।

2. सांख्यिकी मूल आँकड़ों और प्राप्त अंकों को आवृत्ति वितरण से परिवर्तित करती है, आरेखाओं व आलेख चित्रों के द्वारा उनको सरल व स्पष्ट करती है। इससे उनके विवेचन व विश्लेषण में सुविधा मिलती है।

3. सांख्यिकी प्रदत्त सामग्री का विश्लेषण करती है। विभिन्न सांख्यिकीय मापों जैसे- केन्द्रीय प्रवृत्ति, विचलनशीलता, सह सम्बन्ध व स्थितिमान आदि के परिकलन द्वारा आँकड़ों के परिकलन, विवेचन व तुलनात्मक अध्ययन में सहायता मिलती है।

4. सांख्यिकी सह-सम्बन्ध गुणांक के आधार पर सामान्यीकरण और भविष्य कथन में सहायता करती है।

5. सांख्यिकी गुणात्मक तथ्यों को मात्रात्मक रूप प्रदान करती हैं। इसमें अमूर्त तथ्यों को संख्यात्मक आँकड़ों में परिणत किया जाता है जिसमें उनका वस्तुनिष्ठ विवेचन व तुलनात्मक अध्ययन किया जा सके।

6. सांख्यिकी अनुसंधान के क्षेत्र में परिकल्पना का निर्धारण व परीक्षण करती है। परिकल्पना के परीक्षण हेतु यथोचित वैज्ञानिक पद्धति व विश्वास के स्तर का निर्धारण भी सांख्यिकीय ज्ञान द्वारा किया जाता है।

7. प्रायः केन्द्रीय प्रशासन के विभिन्न विभाग जानकार सूत्रों से जनहित के लिए उपभोगी आँकड़ों का संकलन करते हैं और उनका सम्पादित रूप जनता के हित में जन-सम्पर्क के माध्यम से प्रस्तुत करते हैं।

8. सांख्यिकी नीति-निर्माण में भी योगदान करती है। व्यावहारिक सांख्यिकी प्रशासन व जनता के सम्मुख ऐसे आँकड़े प्रस्तुत करती है जिसमें शासन की नीति निर्धारण में पर्याप्त सहायता मिलती है।

सांख्यिकी की सीमाएँ (Limitations of Statistics)

एक महत्वपूर्ण व उपयोगी विज्ञान होते हुए भी सांख्यिकी की कुछ सीमाएँ है।

1. सांख्यिकी समूहों का अध्ययन करती है, व्यक्तिगत इकाइयों का नहीं। उदाहरण के यदि किसी स्थान पर 4 व्यक्ति रहते हैं और उनकी मासिक आय क्रमश: 3000, 5000, 6000 और 800 रूपये है तो उनकी औसत आय 3750 रुपये होगी। निकलता है कि लोग सम्पन्न हैं। परन्तु चौथे व्यक्ति की कम आय को ध्यान में नहीं रखा जाएगा।

2. सांख्यिकी के परिणाम असत्य सिद्ध हो सकते हैं यदि उनका अध्ययन बिना किसी सन्दर्भ के किया जाय।

3. सांख्यिकी किसी समस्या के केवल संख्यात्मक स्वरूप का अध्ययन कर सकती है। इसमें गुणात्मक स्वरूप जैसे सत्यता, बुद्धिमानी, ईमानदारी आदि का अध्ययन सम्भव नहीं है।

4. सांख्यिकीय समकों में एकरूपता और संजातीयता होना आवश्यक है।

5. सांख्यकी के नियम दीर्घकाल में तथा औसत रूप में सत्य होते हैं। उदाहरण के लिये यदि यह कहा जाय कि भारतीय काले होते हैं तो यह कथन औसत रूप से ही सत्य है, सामान्य रूप से नहीं।

6. सांख्यिकीय रीतियों के प्रयोग से ज्ञान परिणाम सदैव सर्वोत्तम नहीं होते हैं। उनकी रीतियों का प्रयोग सावधानी के साथ किए जाने की आवश्यकता होती है ।

7. सांख्यिकी का उचित प्रयोग इसकी प्रणालियों को ठीक तरह से जानने वाला व्यक्ति ही कर सकता है।

8. सांख्यिकी केवल साधन प्रस्तुत करते हैं, समाधान नहीं।

सामान्य व्यक्तियों में समंकों के प्रति दो प्रकार की परस्पर विरोधी धारणाएँ हैं। कुछ व्यक्तियों का तो इन पर अटूट विश्वास है और उनका मत है कि ‘समंक झूठ नहीं बोलते’ तथा संख्यात्मक आधार पर निकाला गया निष्कर्ष प्रामाणिक रूप से सत्य होता है। इसके विपरीत कुछ ऐसे लोग भी हैं जो इस विज्ञान को व्यर्थ, अनुपयोगी तथा अविश्वसनीय मानते हैं।

सांख्यिकी पर अविश्वास के अनेक कारण हैं-

1. आँकड़ों को ऊपरी तौर पर देखने पर कुछ पता नहीं लगता कि ये आँकड़े बनावटी है या सचमुच इकट्ठे किए गए हैं।

2. कभी-कभी एक ही विषय के परस्पर विरोधी आँकड़े मिलते हैं और सत्य का पता लगाना कठिन हो जाता है।

3. कभी-कभी व्यावहारिक रूप से जो बात स्पष्ट दिखाई पड़ती है, आँकड़े उसके विपरीत बात की ओर इशारा करते हैं। जैसे यदि सरकार किसी समय मूल्यों में कमी के आँकड़ें प्रदर्शित करे जबकि बाजार से मूल्य बढ़ रहे हों, तो लोग उन्हें सन्देह की दृष्टि से देखेंगे।

4. कभी-कभी समंकों की शुद्धता की जाँच न करने पर और तनिक भी असावधानी होने पर भ्रमपूर्ण या अशुद्ध परिणाम निकल आते हैं।

5. सांख्यिकी विज्ञान की कई सीमाएँ है। यदि उनको ध्यान में रखे बिना सांख्यिकी का प्रयोग निर्वचन में किया जाय तो परिणाम भ्रम उत्पन्न करने वाले होते हैं।

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