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अधिगम अक्षमता से क्या तात्पर्य है? | अधिगम अक्षमता वाले बच्चों की विशेषताएँ | Learning Disability in Hindi

अधिगम अक्षमता से क्या तात्पर्य है
अधिगम अक्षमता से क्या तात्पर्य है

अधिगम अक्षमता से क्या तात्पर्य है? (Learning Disability in Hindi)

‘अधिगम अक्षमता’ एक व्यापक शब्द है जिसका उपयोग कई तरह की समस्याओं के लिए किया जाता है। इस शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम 1963 में सैमुअल किर्क ने किया था। इसके पहले अधिगम अक्षमता की जगह अल्परूप से दिमाग की असामान्य प्रक्रिया या अल्परूप में असामान्य दिमागी प्रक्रिया या अल्परूप में असामान्य तंत्रकीय प्रक्रिया सरीखे नैदानिक शब्दों का उपयोग किया जाता था। लेकिन शिक्षा, पुनर्वास और चिकित्सकीय मस्तिष्क विज्ञान में फिलवक्त 109 शब्द प्रचलित हैं जिसे अधिगम अक्षमता शब्द के पर्याय के रूप में उपयोग किया जाता है। इनमें से कुछ प्रमुख शब्द हैं: अकादमिक उपलब्धि अधिगम अक्षमता अकादमिक विकलांगता अवधान न्यूनता विकार, अवधान विकार, व्यवहार विकार, मस्तिष्क क्षति, विकासात्मक असंतुलन, विकासात्मक डिस्लेक्सिया, डिस्लेक्सिया, डिस्कैलकुलिया, शिक्षणीय मानसिक मंदता, शैक्षिक विकलांगता, शैक्षिक मंदता, शैक्षिक विकार, हाइपरकाइनेसिस, हाइपोकाइनेसिस, भाषाई अक्षमता, पठन विकलांगता, पठन मंदता, पठन-लेखन विकलांगता, स्लो लर्नर, शब्द- अंधता आदि।

वर्ष 1963 के पश्चात् विद्वानों ने अधिगम अक्षमता को परिभाषित करने का प्रयास किया लेकिन वे कोई भी ऐसी व्यापक परिभाषा विकसित करने में समक्ष नहीं हो सके जिसे निर्विरोध स्वीकारा जा सके।

सर्वप्रथम किर्क (1963) ने अधिगम अक्षमता को परिभाषित करने का प्रयास किया।

किर्क के मुताबिक- ”अधिगम अक्षमता का तात्पर्य वाक, भाषा, पठन, लेखन या अंकगणितीय प्रक्रियाओं में एक या अधिक प्रक्रियाओं में मंदता, विकृति अथवा अवरुद्ध विकास है जो है न कि मानसिक मंदता, संवेदी अक्षमता अथवा सांस्कृतिक या अनुदेशन कारक के संभवतः मस्तिष्क कार्यविरूपता और/या संवेगात्मक अथवा व्यावहारिक विलोभ का परिणाम कारण”।

अमेरिका में फेडरल परिभाषा का विकास हुआ। इसके अनुसार- “विशिष्ट अधिगम अक्षमता से तात्पर्य मौखिक अथवा लिखित भाषा सरीखे एक या अधिक मूल मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया को समझने के क्रम में आने वाली विकृति से है, जो व्यक्ति के श्रवण, सोच, वाक्, पठन, लेखन एवं अंकगणित संबंधी गणना को पूर्ण या आंशिक रूप से प्रभावित करता इसके अंतर्गत इंद्रियपरक विकलांगता, मस्तिष्क क्षति, अल्परूप में असामान्य दिमागी प्रक्रिया, डिस्लेक्सिया और विकांसात्मक वाचाघात सरीखे स्थितियाँ शामिल हैं। इस शब्द में ऐसे बालक सम्मिलित नहीं हैं जो दृष्टि, श्रवण या गामक विकलांगता, मानसिक मंदता, संवेगात्मक विलोभ या वातावरण, सांस्कृतिक या आर्थिक दोष के परिणामस्वरूप होने वाली अधिगम संबंधी समस्या से पीड़ित हैं।

अमेरिका की अधिगम अक्षमता की राष्ट्रीय संयुक्त समिति ने वर्ष 1994 में अधिगम अक्षमता को निम्नलिखित तरीके से परिभाषित की है : “अधिगम अक्षमता एक सामान्य शब्द है जो सुनने, बोलने, पढ़ने, लिखने, तर्क करने, या गणितीय क्षमता और Acquisition में कठिनाई सरीखे विषम समूह विकृति को दर्शाते हैं। मानव में होने वाली ये विकृतियाँ आंतरिक हैं जो अनुमानतः केन्द्रीय तंत्रिका के सुचारू रूप से कार्य नहीं करने के कारण होता है। यह जीवन के किसी क्षण में हो सकता है। यद्यपि अधिगम असमर्थता अन्य विकलांग अवस्थाओं (जैसे—संवेदी अक्षमता, मानसिक मंदता, गंभीर संवेगात्मक विलोक्ष) या सांस्कृतिक भिन्नता, अनुपयुक्त या अपर्याप्त अनुदेशन सरीखे प्रभावों के कारण होता है। इन दशाओं का प्रभाव सीधा नहीं पड़ता है।”

अधिगम अक्षमता की राष्ट्रीय संयुक्त समिति (1994) के परिभाषा की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं :

(i) अधिगम अक्षमता विकृतियों का एक विषम समूह है। पीड़ित व्यक्ति में कई प्रकार के व्यवहार और विशेषताएँ पाई जाती है।

(ii) पीड़ित व्यक्ति के लिए ये समस्याएँ आंतरिक होती है यह व्यक्ति के आंतरिक कारकों के कारण होता है न कि बाह्य कारणों से।

(iii) यह समस्या व्यक्ति के केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र के कार्यात्मक विरूपता से संबंधित है। यानी यह एक जैविक समस्या है।

(iv) अधिगम अक्षमता अन्य प्रकार की विकृतियों के साथ हो सकता है प्रभावित व्यक्ति एक ही समय में कई तरह की समस्याओं से पीड़ित हो सकता है। उदाहरणार्थ-अधिगम अक्षमता और संवेगात्मक विलोभ।

एमस (1998) ने अधिगम अक्षमताओं का जिक्र करते हुए कहा है कि ” आंतरिक अधिगम न्यूनता वास्तविक अधिगम अक्षमता की विशेषता है जो औसत बुद्धि की बजाय अकादमिक उपलब्धि को ऋणात्मक रूप से प्रभावित करता है।” वहीं लर्नर एवं लियोन ने श्रवण, बोली, पठन, लेखन और गणितीय गणना सरीखे स्कूली विषयों की न्यूनता अधिगम अक्षमता में शामिल करने के लिए अकादमिक उपलब्धि अधिगम अक्षमता को परिभाषित करने का प्रयास किया है।

उपरोक्त परिभाषाओं के विश्लेषण के पश्चात् हम पाते हैं कि अधिगम अक्षमता के निम्नलिखित तत्त्व हैं :

(i) केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र की कार्यात्मक विरूपता। (ii) मनोवैज्ञानिक प्रक्रियात्मक विकृतियाँ। (iii) अकादमिक एवं अधिगम कठिनाइयाँ। (iv) उपलब्धि एवं क्षमताओं के बीच भिन्नता (v) अन्य कारणों का बहिराव या अपवर्जन।

(i) केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र की कार्यात्मक विरूपता (Central Nervous System Dysfunction)- शैक्षिक एवं वातावरण संबंधी गतिविधियाँ जहाँ एक ओर अधिगम प्रक्रिया को रूपांतरित करती है वहीं दूसरी ओर मस्तिष्क की कार्यप्रणाली को धनात्मक अथवा ऋणात्मक रूप से प्रभावित भी करती है। चूँकि अधिगम की उत्पति मस्तिष्क में होती है इसलिए केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र की कार्यात्मक विरूपता के कारण बालक अधिगम अक्षमताग्रस्त हो जाता है। कई मामलों में तंत्रिका संबंधी विरूपता को पहचान पाना उस वक्त मुश्किल होता है जब इसकी पहचान न तो चिकित्सकीय परीक्षण में हो पाता है और न ही किसी अन्य बाह्य चिकित्सकीय जाँच से। ऐसी स्थिति में पीड़ित व्यक्ति के व्यवहार के निरंतर अवलोकन के बाद ही उसकी केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र की कार्यात्मक विरूपता का पता चल पाता है। कई अनुसंधान परिणामों के अध्ययन से भी इस बात का प्रमाण मिलता है कि अधिगम अक्षमता का कोई न कोई तंत्रिका तंत्रीय आधार अवश्य है। लेकिन शिक्षण-अधिगम के दृष्टिकोण से एक शिक्षक के लिए केवल इसका व्यावहारिक एवं शैक्षिक पक्ष का अध्ययन महत्त्वपूर्ण होता है।

(ii) मनोवैज्ञानिक प्रक्रियात्मक विकृतियाँ (Psychological Processing Disorders)- जैसा कि हम जानते हैं कि मानसिक सामर्थ्य, एकल क्षमता भर नहीं, बल्कि यह कई मानसिक क्षमताओं का समन्वित रूप है। अधिगम अक्षमताग्रस्त बालकों में इन सभी क्षमताओं का विकास सामान्य तरीके से नहीं हो पाता है। यानी इन मानसिक क्षमताओं का समरूप विकास नहीं हो पाता है। लिहाजा पीड़ित बालकों में अंतः वैयक्तिक दृष्टिगोचर होने लगती है (किर्क एवं चैलफैन्ट, 1984 ) । हल्लहन (1975) ने अधिगम अक्षमताग्रस्त कई बच्चों के सूचना-प्रोसेसिंग समस्या से पीड़ित होने की पुष्टि की है। असमरूप वृद्धि पैटर्न, अंतः वैयक्तिक भिन्नता और मनोवैज्ञानिक प्रक्रियात्मक विकृतियों की अवधारणा ही अधिगम अक्षमता संबंधी अनुदेशन जाँच के आधार हैं।

(iii) अकादमिक एवं अधिगम कठिनाइयाँ (Difficulties in Academic & Learning Tasks)- अधिगम अक्षमताग्रस्त बालकों को अधिगम संबंधी कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। कुछ बच्चों को वाक् एवं भाषा संबंधी परेशानी हो सकती है तो कईयों को पठन, अंकगणितीय, हस्तलेखन, गयात्मक कौशल, लेखन अभिव्यक्ति,सोच अथवा अन्य मनोसामाजिक कौशल संबंधी परेशानी हो सकती है। अधिगम अक्षमता की फेडरल परिभाषा में ऐसे सात विशिष्ट अकादमिक क्षेत्र को चिह्नित किया गया है जिनमें अधिगम अक्षमता का पता लगाया जा सकता है। मोट्स एवं लियोन के मुताबिक प्रामाणिक शिक्षण अथवा कौशल प्रशिक्षण के पश्चात् किसी एक विशिष्ट कौशल अथवा कई कौशलों के अधिगम की असफलता के परिणामस्वरूप बालक अधिगम अक्षमताग्रस्त हो जाता है। अधिकांश परिभाषाओं का विश्लेषण इस बात की पुष्टि करती है कि अधिगम अक्षमताग्रस्त बालकों को आंतरिक अधिगम समस्या होती है। प्राथमिक तौर पर उन बच्चों में अधिगम संबंधी समस्याएँ अधिगम अक्षमता के कारण भी होता हैं।

(iv) क्षमताओं एवं उपलब्धि के बीच भिन्नता (Discrepaney between Potential and Achievement) – बालकों की अधिगम क्षमता और उनकी वास्तविक उपलब्धि के बीच का अंतर अधिगम अक्षमता का एक महत्त्वपूर्ण तत्व है। कई परिभाषाओं में यह अंतर एक कॉमन फैक्टर के रूप में विद्यमान है। फेडरल परिभाषा में इस बात की चर्चा की गई है कि अधिगम अक्षमताग्रस्त बच्चे एक या सातों क्षेत्र में गंभीर क्षमता-उपलब्धि असंगति से पीड़ित होते हैं। कई अन्य परिभाषाओं में भी इस असंगति को प्रामाणिक तौर पर स्वीकार किया गया है लेकिन बालकों की बौद्धिक क्षमता और उपलब्धि के बीच की असंगति की गणना करने के पहले इन सवालों का हल ढूँढ लेना अनिवार्य प्रतीत होता है। कि आखिर व्यक्ति का अधिगम सामर्थ्य क्या है ? उस सामर्थ्य के अनुरूप क्या वह वांछित उपलब्धि हासिल कर पाता है? यदि नहीं तो उसके सामर्थ्य और उपलब्धि के बीच की असंगति कितना गंभीर है ? साधारणतः बच्चों के अधिगम सामर्थ्य अथवा क्षमता स्तर का आकलन, बुद्धि-परीक्षण, बोधात्मक क्षमता अथवा अन्य चिकित्सकीय निर्णय के जरिए किया जाता है। बुद्धि मापन के लिए बुद्धि परीक्षण किया जाता है लेकिन बुद्धि परीक्षणों की भी आलोचना की जाती रही है कि ऐसे परीक्षण बालकों की बुद्धि का आकलन सही तरीके से नहीं कर पाता है। ऐसे में किसी बालक या व्यक्ति का सामर्थ्य क्या है ? इसका आकलन कर पाना कठिन काम है जहाँ तक सामर्थ्य के अनुसार उपलब्धि हासिल अथवा नहीं हासिल करने का सवाल है इसे भी सुनिश्चित किया जाना थोड़ा मुश्किल कार्य है। क्योंकि, वैयक्तिक प्रदर्शन का आकलन के लिए उपयोग किया जाने वाला कोई जाँच दोष रहित नहीं हैं। Farr & Carey (1986), Salvia & Ysseldyke (1995) ने भी इस बात की पुष्टि की है कि कई अकादमिक जाँचों की विश्वसनीयता, वैधता एवं मानकता काफी कमजोर है और इन परीक्षणों से प्राप्त आँकड़े बच्चे की उपलब्धि को प्रतिबिम्बित नहीं कर पाता है।

बच्चों के सामर्थ्य और उपलब्धि स्तर के बीच की असंगति की गंभीरता का आकलन भी आसान नहीं है। उदाहरणार्थ, दूसरी कक्षा स्तर पर एक वर्ष की असंगति ग्यारहवीं कक्षा स्तर पर होने वाले एक वर्ष की असंगति से ज्यादा गंभीर माना जाता है। लेकिन यह सवाल आज भी अनुत्तरित है कि गंभीर अंसगति का आकलन कैसे किया जाए।

(v) अन्य कारणों का बहिराव (Exclusion of Other Causes) – अधिगम अक्षमता की परिभाषाओं में ‘अन्य कारणों का बहिराव’ सरीखे तत्व की उपस्थिति प्रतिविम्वित करता है कि मानसिक मंदता, सांवेगिक अस्थिरता, दृष्टि अथवा श्रवण अक्षमता, या सांस्कृतिक, सामाजिक या आर्थिक वातावरण सरीखे अन्य परिस्थितियों के परिणामस्वरूप ही बालक अधिगम अक्षमताग्रस्त होता है। लेकिन अधिगम अक्षमता की परिभाषा में मौजूद ‘बहिराव’ को व्यावहारिक तौर पर लागू करना आसान नहीं है, क्योंकि बच्चे सहअस्तित्व वाले समस्याओं से भी जूझते रहते हैं। असमर्थ बालकों के साथ कार्य करने वाले शिक्षकों को अक्सरहाँ बालकों में प्राथमिक असमर्थता के साथ अधिगम क्षमता के सहअस्तित्व भी देखने को मिलता है। लेकिन यह आकलन करना कठिन है कि कौन समस्या प्राथमिक है और कौन द्वितीयक।

व्यापकता (Prevalence) – देश में अधिगम अक्षमताग्रस्त बालकों की संख्या अन्य प्रकारके विकलांग बालकों से कहीं ज्यादा है। यह स्कूली जनसंख्या के 1 प्रतिशत से 41 प्रतिशत के बीच हो सकता है। चूँकि अधिगम अक्षमताग्रस्त बालकों की जनगणना के आँकड़े उपलब्ध नहीं हैं। इसलिए इस अक्षमता की व्यापकता के बारे में कुछ भी कहना मुश्किल है। हालाँकि शिक्षाविद् और मनोवैज्ञानिकों के अनुसार देश में ऐसे बालकों की संख्या 1 प्रतिशत से 10 प्रतिशत के बीच।

अधिगम अक्षमता वाले बच्चों की विशेषताएँ (Characteristics of Learning Disabled Children)

अधिगम अक्षमता वाले बच्चों की निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं :

1. आवेग (Impulsivity) – आवेग के कारण :

(i) बगैर सोचे-समझे कार्य करना।

(ii) कार्यों के परिणामों पर विचार किए बगैर कार्य करना

(iii) अनुपयुक्त आचरण करना।

(iv) स्वयं की सुरक्षा के प्रति असावधान रहना

(v) निर्णय लेने की क्षमता का अभाव।

(vi) हड़बड़ाहट में काम करना।

2. व्याकुलता (Distractibility) :

(i) काम करने की व्याकुलता।

(ii) लक्ष्य से भटकाव।

(iii) साधारण दृश्यों एवं ध्वनियों के प्रति आकर्षण।

(iv) कोलाहल पर ध्यान देना

(v) आसानी से विचलित हो जाना।

3. ध्यान अवधि में कमी ( Short Attention Span) :-

(i) किसी लक्ष्य अथवा गतिविधि पर कम ध्यान केन्द्रित करना।

(ii) लक्ष्य के प्रति लापरवाह होना।

(iii) दिवास्वप्न देखना।

(iv) ध्यान का भटकाव

4. अति सक्रियता (Hyperactivity) :

(i) भावात्मक स्थिरता का अभाव।

(ii) एक ही दशा में शांत रहने की असमर्थता।

(iii) वाचाल होना।

(iv) विशिष्ट जानकारी पर ध्यान केन्द्रित करने की असमर्थता।

(v) चलते-फिरते रडार सेट की तरह व्यवहार करना।

(vi) दृश्यों, ध्वनियों एवं कम महत्त्वपूर्ण घटनाओं पर भी ध्यान देना।

(vii) अपनी प्रगति का मूल्यांकन नहीं करना।

(viii) विचलन का शिकार होना ।

(ix) संवेदनात्मक रूप से बेचैन रहना।

5. अपर्याप्त सक्रियता (Hypoactivity) :

(i) सामान्य से कम सक्रिय होना।

(ii) सुस्त रहना।

(iii) उदासीन एवं उकताया हुआ प्रतीत होना।

(iv) मंद गति से कार्य करना।

(v) साधारण कार्य के लिए भी कई बार प्रयास करना।

(vi) पाठ्येत्तर गतिविधियों में भाग न लेना

6. निर्देशों को पालन करने की असमर्थता (Inability to Follow Instruction):

(i) निर्देशानुसार कार्य करने की असमर्थता।

(ii) स्मरण शक्ति का कमजोर होना

(iii) भूलने का आदत लग जाना।

7. पुनरावृत्ति (Perseverance) :

(i) पुनरावृत्ति अथवा अध्यवसाय में तल्लीन रहना

(ii) बगैर हस्तक्षेप के अन्य गतिविधियों में भाग लेने में असमर्थ रहना।

(iii) संवेदनात्मक रूप से बेचैन रहना।

8. सामान्य अकुशलता (General Awkwardness) :

(i) अटपटापन एवं फूहड़ताग्रस्त होना।

(ii) सकल एवं सूक्ष्म गति प्रेरक समायोजन में कठिनाई महसूस करना।

(iii) वस्तुओं और व्यक्तियों से टकराना

9. हस्तकौशल स्थापित न होना (Handedness not established) :

(i) हाथ का उपयोग करते वक्त क्रमबद्धता का अभाव

(ii) दोनों हाथों का उपयोग करने में अकुशल।

(iii) कभी दायें हाथ से काम करता है तो कभी बायें हाथ से या फिर केवल एक ही हाथ से।

10. अन्य बच्चों के साथ झगड़ना (Conflict with Other Children)

(i) अन्य बच्चों से लड़ाई-झगड़े करना।

(ii) उन्हें नाराज रखना ।

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