वनों की कमी से क्या आशय है? वनों की कमी अथवा वनोन्मूलन के कारण बताइये। वनोन्मूलन रोकने के लिए उपाय स्पष्ट कीजिए।
वनों की कमी अथवा वनोन्मूलन
सामान्य अर्थ में वन क्षेत्र में कमी आने को ही ‘वनों की कमी’ अथवा वनोन्मूलन कहते हैं। वन क्षेत्र में कमी अनेक कारणों से आती है। वनों की अनियोजित तथा अनियंत्रित कटाई भी इसका एक मुख्य कारण है। जितनी मात्रा में वन नष्ट किये जाते हैं यदि उसी अनुपात में इनका पुनः स्थापन नहीं किया जाये तो वन क्षेत्र निरन्तर कम होता जाता है। इसे ही वनोन्मूलन, वन विनाश अथवा वनों की कमी कहा जाता है। वन विनाश से अनेक पर्यावरणीय समस्याएँ पैदा हो जाती हैं। वर्तमान में विश्व के लगभग सभी देशों में वन क्षेत्र में कमी आ रही है। पूरा विश्व इस समस्या से ग्रस्त है। कभी पृथ्वी के स्थलीय भाग के 70% पर वन पाये जाते थे जो आज कम होकर लगभग 15% रह गया है।
वनोन्मूलन के कारण
एक समय पृथ्वी पर धरातल के लगभग 70 प्रतिशत भाग पर वनों का विस्तार पाया जाता था लेकिन दुर्भाग्यवश इनका धीरे-धीरे विनाश होता रहा। वर्तमान समय में धरातल के 15 प्रतिशत भाग पर ही वनों का विस्तार पाया जाता है। अनियंत्रित कटाई व संरक्षण के अभाव में इनका उत्तरोत्तर ह्रास होता गया है। वन संसाधनों के विनाश के प्रमुख कारणों का विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया गया है—
1. वन भूमि पर कृषि विस्तार विश्व में तेज गति से बढ़ती जनसंख्या की खाद्य पदार्थों से सम्बन्धित बढ़ती माँग की पूर्ति के लिए नये कृषि क्षेत्रों की आवश्यकता अनुभव की जाती रही है। नये कृषि क्षेत्र का विस्तार वन भूमि पर ही सम्भव था। परिणामस्वरूप लोगों ने वनों को काटकर नवीन कृषि भूमि में परिवर्तित करना आरम्भ कर दिया।
2. पशुचारण- पशुचारण के कारण भी वनों का विनाश हो रहा है। वनों में निरंतर अत्यधिक चराई के कारण वनस्पति समाप्त होने लगती है। धीरे-धीरे जल व वायु के कटाव से नग्न चट्टानें ऊपर निकल आती हैं जिससे भविष्य में वहाँ वनस्पति विकास की सम्भावनाएँ समाप्त हो जाती हैं।
3. व्यापारिक बागानी कृषि– वन विनाश का एक कारण व्यापारिक बागानी कृषि का प्रसार भी है। रबड़, चाय, कोको, कहवा, नारियल आदि फसलों को उगाने के लिए वन क्षेत्रों को साफ करके भूमि प्राप्त की गई है। मलाया, इण्डोनेशिया, श्रीलंका तथा भारत में पर्वतीय ढालों के वनों को काटकर बागानों का विकास किया गया है।
4. बाँधों का निर्माण- पहाड़ी व वन प्रदेशों में नदियों पर बाँधों का निर्माण भी वन क्षेत्र में कमी लाता है। बाँधों के निर्माण से बहुत बड़ा वन क्षेत्र पानी में डूब जाता है। एक अनुमान अनुसार भारत के आर्थिक विकास के लिए नदी घाटी योजनाओं के द्वारा लगभग 5 लाख हेक्टेयर क्षेत्र के वन नष्ट किये जा चुके हैं।
5. पशु-पक्षियों द्वारा पेड़-पौधों को नष्ट किया जाना—वन क्षेत्रों में निवास करने वाले जीव-जन्तु वृक्षों की पत्तियों, छालों, जड़ों, वनस्पति आदि का भक्षण करके हमेशा के लिये खत्म कर देते हैं। गिलहरी, चूहे, खरगोश, बीवर, लोमड़ी आदि जीव-जन्तु भूमि तथा जड़ों को क्रमशः खोदकर व काटकर समाप्त कर देते हैं जिसके परिणामस्वरूप प्राकृतिक वनस्पति का ह्रास होता चला जाता है।
6. कीड़े-मकोड़ों द्वारा वृक्षों को नष्ट किया जाना— उष्ण-कटिबंधीय प्रदेशों में दीमक के द्वारा बड़े-बड़े वृक्षों को नष्ट कर दिया जाता है। सामान्य रूप से जंगलों में पैदा होने वाले वृक्षों को नष्ट करने में कीड़े-मकोड़ों का बहुत बड़ा योगदान रहता है। कुछ विशेष प्रकार के कीड़ों द्वारा लकड़ियों में छेद किये जाने के कारण वह व्यापार व उपयोग करने के अयोग्य हो जाती है। टसोक, सा-फ्लाई, जिप्सी तथा ब्राउनटेल आदि प्रकार के कीड़े वृक्षों की पत्तियों को खा जाते हैं जबकि मैंगोट, पाइन, बीटल, कोनबीटल आदि कीड़े पाइन के वृक्षों की वृद्धि पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं।
7. औद्योगिक कार्यों के लिये वनों का विनाश- फर्नीचर, लुग्दी, कागज, जलयान निर्माण, दियासलाई, रेल-गाड़ियों के स्लीपर तथा डिब्बे बनाने के लिये अधिकांश कोणधारी वनों का निर्दयतापूर्वक शोषण किया गया है। यंत्रीकरण के विकास के कारण भी वनों के विनाश में बहुत सहायता मिली है।
8. झूमिंग कृषि करना- आदिवासी लोगों द्वारा जिन क्षेत्रों में झूमिंग कृषि प्रणाली को अपनाया जाता है वहाँ वनों को साफ करके कृषि योग्य भूमि प्राप्त की जाती है। बार-बार इस प्रकार की क्रिया दुहराने के कारण वन क्षेत्र में कमी आती जाती है जो कि भविष्य के लिए बहुत ही हानिकारक है।
9. वन क्षेत्रों में आकस्मिक आग का लगना- ग्रीष्म ऋतु में तापमान अधिक होने के कारण जंगलों में स्वयं आकस्मात् ही आग लग जाती है। उस समय तीव्र गति से चलने वाली हवा आग को समस्त जंगल में फैलाकर वृक्षों को जलाकर राख कर देती है। कभी-कभी मानव द्वारा लापरवाही तथा रेल के इंजनों से निकलने वाली चिंगारी भी जंगलों में आग लगने का कारण बनती है।
10. वृक्षों में रोग लग जाना— उष्ण एवं शीतोष्ण कटिबंधीय प्रदेशों में विशेष रूप से जलवायु सम्बन्धी कारणों से वृक्षों में अनेक प्रकार के रोग लग जाने से वृक्षों का विकास रुक जाता है तथा वे नष्ट हो जाते हैं। यथा-
(i) एल्म नामक वृक्ष पर डच इल्म रोग लग जाता है। (ii) श्वेत पाइन नामक वृक्ष पर विलस्टर रोग लग जाता है। (iii) चेस्टनट नामक वृक्ष पर चेस्टनट ब्लाइट रोग लग जाता है।
उपर्युक्त प्रकार के रोग वृक्षों पर लग जाने से धीरे-धीरे समस्त वन क्षेत्र रोगग्रस्त हो जाता है। जिसके परिणामस्वरूप समस्त वनस्पति समाप्त हो जाती है।
वनोन्मूलन रोकने के उपाय
वनोन्मलन रोकने के लिए निम्न उपाय किये जाने चाहिए-
1. कीटनाशक औषधियों का छिड़काव करना- वन क्षेत्रों में कीटाणुओं तथा अवांछनीय जीवों को नष्ट करने के लिए अनेक प्रकार के कीटाणुनाशक पदार्थों का छिड़काव किया जाना चाहिए, जिसके फलस्वरूप कीटाणु नष्ट हो जाते हैं तथा पेड़-पौधे स्वस्थ बने रहते हैं। अतः गन्धक चूर्ण, गैमक्सीन, एलडिरिन आदि कीटाणुनाशक दवाओं का उपयोग करना चाहिए।
2. झूमिंग कृषि प्रणाली पर रोक लगाना- विरल जनसंख्या वाले क्षेत्रों में इस प्रकार की कृषि का प्रचलन पाया जाता है। आज भी संसार के कुछ अति पिछड़े क्षेत्रों में रहने वाली आदिम जातियाँ द्वारा यह कृषि पद्धति अपनायी जाती है। अतः इस कृषि प्रणाली पर प्रभावी रोक लगाकर लोगों को स्थायी कृषि के लिए सरकार द्वारा प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। इससे वनोन्मूलन को रोका जा सकता है।
3. वनों की आग से सुरक्षा करना- अधिकांशतः ग्रीष्म ऋतु में उष्ण तथा शीतोष्ण कटिबंधीय वनों में आपसी रगड़ से आग लग जाती है जो कि सम्पूर्ण वन क्षेत्र को भस्मसात् कर देती है। वनों में आग लगने से एक बड़े क्षेत्र के वनों का पूर्णतया समाप्त हो जाना एक साधारण घटना है। इसके बचाव के लिये संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा तथा अनेक पश्चिमी यूरोपियन देशों में वनों के मध्य स्थान पर ऊँचे-ऊँचे निरीक्षण गृह बनाये जाते हैं तथा समय-समय पर वायुयानों द्वारा आग पर निगरानी रखी जाती है। जिससे समय रहते वायुयानों द्वारा रासायनिक पदार्थों का छिड़काव करके आग पर शीघ्र ही नियंत्रण कर लिया जाता है। अतः वन क्षेत्रों की आग से सुरक्षा करनी चाहिए।
4. वनों का स्वामित्व निजी क्षेत्र के वनों में संरक्षण सम्बन्धी नियमों की खुलकर अवहेलना होती है। क्योंकि इस प्रकार के वनों के मालिकों की दृष्टि में संरक्षण की अपेक्षा आर्थिक उन लाभ महत्त्वपूर्ण होता है। अतः निजी क्षेत्र के वनों का राष्ट्रीयकरण किया जाये अथवा उन पर संरक्षण नियमों को कड़ाई से लागू किया जाये।
5. वृक्षों का अधिकतम उपयोग करना- औद्योगिक इकाइयों में प्रयुक्त की जाने वाली लकड़ी के उपभोग में कम से कम बर्बादी होनी चाहिए। इसके साथ-साथ कागज उद्योग में काम आने वाली लकड़ी के स्थान पर व्यर्थ कागज तथा चिथड़ों का उपयोग किया जाना चाहिए।
वनों की विवेकपूर्ण कटाई द्वारा प्राप्त लकड़ी के अधिकतम उपयोग में इस प्रकार की वैज्ञानिक विधियों को प्रयुक्त किया जाना चाहिए जिसमें वनों से प्राप्त लकड़ी की न्यूनतम बर्बादी हो। अतः वृक्षों के बहुमुखी उपयोग पर बल दिया जाना चाहिए। जैसे-हेमलॉक नामक वृक्ष की कटाई प्रायः लकड़ी के लिए की जाती है जबकि इसकी छाल का उपयोग टेनिन के उत्पादन के लिए भी किया जा सकता है।
6. वैज्ञानिक वन-व्यवस्था अपनाना- वनों के संरक्षण हेतु यह एक आवश्यक तथ्य है। कि वनों को वैज्ञानिक व्यवस्था के अन्तर्गत ही विकसित किया जाये। इसके अन्तर्गत वनों की विभिन्न आधुनिकतम तकनीकों का वहाँ की परिस्थितियों के अनुरूप समन्वय तथा उपयोग किया जाता है। यही नहीं, इसके अन्तर्गत वैज्ञानिक विधियों से विशेष जाति के वृक्षों का रोपण, कटाई तथा सुरक्षा भी शामिल की जाती है। इसके साथ-साथ वनों से परिपक्व, कमजोर तथा रोगग्रस्त वृक्षों की कटाई को प्राथमिकता देनी चाहिए। इस प्रकार की चयनात्मक कटाई में अपरिपक्व वृक्षों को किसी प्रकार की हानि नहीं पहुँचनी चाहिए।
7. वन संरक्षण हेतु अधिनियम बनाना- वनों की सुरक्षा हेतु विश्व के सभी देशों में अधिनियम बनाकर वृक्षों को काटे जाने पर पूर्ण पाबन्दी लगा देना चाहिए। यदि कोई व्यक्ति इसकी अवहेलना करता है तो उसे उचित एवं कठोर दण्ड दिया जाना चाहिए।
8. वन अनुसंधानशालाओं की स्थापना करना- प्रत्येक देश की सरकारों द्वारा वन क्षेत्र के अन्तर्गत जगह-जगह अनुसंधानशालाओं की स्थापना की जानी चाहिए जिससे वन सम्बन्धी नये नये शोध किये जा सकें। इस प्रकार से वनों का तीव्र गति से विकास हो सकेगा। विश्व के अधिकांश देशों में किसी न किसी दिन वृक्षारोपण उत्सव बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है। इसे जापान में ‘ग्रीन वीक’, भारत में ‘वन महोत्सव’, इजराइल में ‘न्यू ईयर्स डे ऑफ ट्री’ तथा संयुक्त राज्य अमेरिका में ‘अरबोर डे’ के नाम से जाना जाता है। इस प्रकार विश्व के अधिकांश देशों में वृक्षों के संरक्षण को अधिक महत्त्व दिया जाने लगा है।
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