केदारनाथ अग्रवाल का जीवन परिचय, रचनाएँ, तथा भाषा-शैली in Hindi
केदारनाथ अग्रवाल हिंदी काव्य की प्रगतिवादी काव्यधारा के अनन्य कवि हैं। इन्होंने अपनी साहित्यिक कृतियों से हिंदी- साहित्य में अप्रतिम योगदान दिया। काव्य रचनाओं में ही नहीं, बल्कि गद्य साहित्य में भी इन्होंने साहित्य सृजन किया। अत: साहित्य के प्रति उनकी अनुपम उपलब्धियों को ध्यान में रखते हुए उन्हें समय-समय पर विभिन्न हिंदी संस्थानों द्वारा पुरस्कृत किया गया।
जीवन परिचय-
केदारनाथ अग्रवाल जी का जन्म 1 अप्रैल 1911 ई. को उत्तर प्रदेश के बाँदा जनपद के कमासिन गाँव में हुआ था। केदार जी की माता का नाम घसिट्टो तथा पिता का नाम हनुमान प्रसाद था। इनकी आरंभिक शिक्षा कमासिन गाँव में हुई। कक्षा तीन तक पढ़ने के बाद रायबरेली से कक्षा छ: उत्तीर्ण की। कक्षा सात व आठ कटनी के जबलपुर से उत्तीर्ण की। इसी समय पार्वती नामक कन्या से इनका विवाह हो गया। इसके पश्चात् केदार जी इलाहाबाद गए। इविंग क्रिश्चियन कॉलेज से इंटर पास करने के बाद इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक तथा डी.ए.वी. कॉलेज कानपुर से एल. एल.बी. की परीक्षा उत्तीर्ण की। 22 जून सन् 2000 को साहित्य के इस महान उपासक का देहांत हो गया।
केदारनाथ अग्रवाल का इलाहाबाद से गहरा रिश्ता था। इलाहाबाद वि* विद्यालय में अध्ययन के दौरान ही उन्होंने लिखने की शुरूआत की। उनकी लेखनी में प्रयाग की प्रेरणा का बड़ा योगदान रहा है। प्रयाग के साहित्यिक परिवेश से उनके गहरे रिश्ते का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उनकी सभी मुख्य कृतियाँ इलाहाबाद के परिमल प्रकाशन से ही प्रकाशित हुईं। प्रकाशक शिवकुमार सहाय उन्हें पितातुल्य मानते थे और ‘बाबूजी’ कहते थे। लेखक और प्रकाशक में ऐसा गहरा संबंध जल्दी देखने को नहीं मिलता। यही कारण रहा कि केदारनाथ ने दिल्ली के प्रकाशकों का प्रलोभन ठुकराकर परिमल से ही अपनी कृतियाँ प्रकाशित करवाई। उनका पहला कविता संग्रह ‘फूल नहीं रंग बोलते हैं’ परिमल से ही प्रकाशित हुआ था।
रचनाएँ-
केदार जी की प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार हैं-
(अ) काव्य-कृतियाँ- अपूर्वा, फूल नहीं रंग बोलते हैं, लोक और आलोक, नींद के बादल, पंख और पतवार, कहे केदार खरी-खरी, युग की गंगा, खुली आँखें खुले डैने आदि
(ब) गद्य साहित्य- बस्ती खिले गुलाबों की, यात्रा संस्मरण, विवेक-विमोचन, समय समय पर, दतिया (उपन्यास), विचारबोध आदि
भाषा-शैली –
केदारनाथ जी ने अपने काव्य में आम बोलचाल की सरल और साधारण भाषा का प्रयोग किया है, तथापि उनकी भावाभिव्यक्ति अत्यंत प्रभावपूर्ण है। ग्रामीण बोलचाल के शब्दों से युक्त व्यावहारिक भाषा को अपनाते हुए उन्होंने तत्कालीन यथार्थ परिस्थितियों का चित्रण किया है। अन्य प्रगतिवादी कवियों की भाँति उन्होंने मुहावरों, लोकोक्तियों को प्रमुखता न देते हुए जनता के विविधतापूर्ण जीवन, सौंदर्य-चेतना एवं श्रम को वाणी दी। उन्होंने गहन संवेदना के स्वर से युक्त संगीतात्मक भाषा को अपनाया। जनता के श्रम, सौंदर्य एवं जीवन की विविधता का वर्णन करने वाले केदार हिंदी प्रगतिवादी कविता का अलग ही चेहरा थे। शैली के रूप में इन्होंने मुक्तक शैली को ही प्राथमिकता दी है।
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