क्या भारत एक विकासशील अर्थव्यवस्था है ? उसकी आर्थिक विशेषतायें एक विकसित अर्थव्यवस्था की विशेषताओं से किस प्रकार भिन्न हैं ?
भारत एक विकासशील अर्थव्यवस्था के रूप में: (India: As a Developing Economy) –
यह कहना सर्वथा सही है कि भारतीय अर्थव्यवस्था में वे सभी विशेषतायें पायी जाती हैं जो एक अल्पविकसित अर्थव्यवस्था की होती हैं। इसी आधार पर यह कहा जाता है कि भारत एक अल्पविकसित देश है। परन्तु स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद से हमारे देश में तीव्र गति से आर्थिक विकास करने के लिए नियोजन (Planning) को अपनाया गया और विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं के अन्तर्गत देश के त्वरित विकास के लिए विभिन्न कार्यक्रम सघन रूप से प्रारम्भ किये गये। इन सब कार्यक्रमों और प्रयासों के परिणाम के रूप में देश की अर्थव्यवस्था में अनेक क्षेत्रों में तीव्र गति से विकास हुआ और कुछ क्षेत्रों में आमूल परिवर्तन हो गये। इन परिवर्तनों और नियोजन की सफलताओं के कारण देश की राष्ट्रीय आय और प्रति व्यक्ति आय में निरन्तर बढ़ने की प्रवृत्ति उत्पन्न हो गयी है। इसके साथ-साथ देश में औद्योगिक विकास, कृषि विकास, संचार सुविधाओं में विस्तार, निर्यात में वृद्धि आदि जैसे उल्लेखनीय परिवर्तन निरन्तर हो रहे हैं। इन सब परिवर्तनों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि भारत धीरे-धीरे एक विकासशील देश (Developing country) का स्वरूप प्राप्त करता जा रहा है। संक्षेप में, निम्नलिखित प्रवृत्तियां भारत के विकासशील स्वरूप को स्पष्ट करती हैं-
- नियोजित विकास
- राष्ट्रीय व प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि
- औद्योगिक विकास
- कृषि का विकास
- निर्यात में वृद्धि
- निर्धनता में कमी
- रोजगार वृद्धि की विशिष्ट योजनायें
- बैंकिंग एवं साख सुविधाओं का विकास
- आर्थिक अवस्थापना का विकास
1. नियोजित विकास (Planned Development )- भारत में आर्थिक विकास की गति तीव्र करने के लिए आर्थिक नियोजन की प्रक्रिया अपनायी गयी जिसके अन्तर्गत पंचवर्षीय योजनाओं का निर्माण किया गया। 1 अप्रैल, 1951 को भारत की प्रथम पंचवर्षीय योजना का आरम्भ हुआ। अब तक देश में सात पंचवर्षीय योजनाओं और तीन वार्षिक योजनाओं का कार्यकाल पूरा हो चुका है और इस समय देश में आठवीं पंचवर्षीय योजना चल रही है। इन पंचवर्षीय योजनाओं के अन्तर्गत देश की अर्थव्यवस्था गतिशील हो गयी है।
2. राष्ट्रीय व प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि (Increase in National and per Capita Income) – स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद अपनाएं, गयी नियोजन प्रक्रिया के फलस्वरूप प्रत्येक पंचवर्षीय योजना में देश में राष्ट्रीय आय (national income) और प्रति व्यक्ति आय (per) capita income) में धीरे-धीरे वृद्धि हो रही है। नीचे की सारणी में विभिन्न योजनाओं की अवधि में राष्ट्रीय आय और प्रति व्यक्ति आय में होने वाली वृद्धि को दिखाया गया है।
सारणी
योजनाकाल में देश में राष्ट्रीय आय और प्रति व्यक्ति आय की वृद्धि दर-
1993-94 की कीमतों पर
योजना | राष्ट्रीय आय की वृद्धि दर | प्रति व्यक्ति आय की वृद्धि दर |
पहली योजना | 3.7 | 1.8 |
दूसरी योजना | 4.2 | 2.0 |
तीसरी योजना | 2.8 | 0.2 |
चौथी योजना | 3.4 | 1.0 |
पांचवीं योजना | 5.0 | 2.7 |
छठी योजना | 5.4 | 3.1 |
सातवीं योजना | 5.9 | 5.9 |
आठवीं योजना | 6.8 | 4.6 |
3. औद्योगिक विकास (Industrial Development ) – भारत में नियोजन काल में औद्योगिक विकास में तीव्र गति से वृद्धि हुई है। संक्षेप में इस अवधि में औद्योगिक विकास में निम्नलिखित मुख्य प्रवृत्तियां रही हैं।
- देश में औद्योगिक उत्पादन में निरन्तर वृद्धि हो रही है।
- अर्थव्यवस्था में उपभोग वस्तुओं के साथ-साथ विनियोग वस्तुओं के उत्पादन में भी तेजी से वृद्धि हो रही है।
- देश में विशाल आकार वाली औद्योगिक इकाइयों की बड़ी संख्या में स्थापना की गयी है।
- विद्यमान औद्योगिक इकाइयों का तीव्र गति से आधुनिकीकरण किया जा रहा है।
- परम्परागत वस्तुओं के स्थान पर आधुनिक पूंजीगत वस्तुओं का उत्पादन तीव्र गति से बढ़ रहा है।
- देश के निर्यात में परम्परागत कच्चे माल के स्थान पर आधुनिक औद्योगिक वस्तुओं की मात्रा में वृद्धि रही है।
4. कृषि का विकास (Development of Agriculture ) – भारत में कृषि का विकास भी निरन्तर हो रहा है। इस सन्दर्भ में हरित क्रान्ति (Green Revolution) का उदाहरण हमारे सामने है। यह इस हरित क्रान्ति का ही परिणाम है कि जो भारत स्वतंत्रता के बाद बड़ी मात्रा में खाद्यान्न का विदेशों से आयात करता था, आज खाद्यान्न निर्यात करने की स्थिति में पहुंच गया है।
5. निर्यात में वृद्धि (Increase in Export)- नियोजन अपनाये जाने के कारण देश के विदेशी व्यापार (Foreign Trade) में अत्यन्त तीव्र गति से वृद्धि हुई है और विशेष रूप से देश से किये जाने वाले निर्यात में अत्यन्त उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। भारत द्वारा किये जाने वाले निर्यात में बत्रों का सर्वप्रमुख स्थान हैं और दूसरा स्थान हस्तशिल्प की वस्तुओं का है। इनके बाद मशीनरी, परिवहन उपकरण, इंजीनियरिंग वस्तुओं, विभिन्न प्रकार की धातुओं, रसायन, चमड़े की वस्तुओं, चाय, जूट के सामान, काफी, काजू आदि का स्थान है।
6. निर्धनता में कमी (Reduction in Poverty) – भारतीय अर्थव्यवस्था में नियोजन काल में एक उल्लेखनीय परिवर्तन यह हुआ है कि देश में निर्धनता के स्तर में निरन्तर कमी आ रही है। वर्ष 1970-71 में देश की सम्पूर्ण जनसंख्या का लगभग 48 प्रतिशत भाग निर्धनता रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहा था। इस भाग में धीरे-धीरे कमी हो रही है। वर्ष 1984-85 में निर्धनता रेखा (Povertyline) के नीचे जीवन यापन करने वालों का देश की कुल जनसंख्या में 36.9 प्रतिशत अंश रह गया और यह अंश वर्ष 1992-93 में घट कर 30 प्रतिशत रह गया था। एक अनुमान के अनुसार वर्ष 1994-95 में कुल जनसंख्या का 26.8 प्रतिशत भाग निर्धनता रेखा के नीचे जीवन व्यतीत कर रहा था। निर्धनता के स्तर में होने वाली यह कमी न केवल अर्थव्यवस्था के समग्र विकास का परिणाम है बल्कि इस पर देश में निर्धनता को दूर करने के लिए प्रारम्भ किये गये विशेष कार्यक्रमों और योजनाओं का भी प्रभाव पड़ा है।
7. रोजगार वृद्धि की विशिष्ट योजनायें (Schemes for increasing Employment Level) – भारत जैसे अधिक जनसंख्या वाले देश में बेरोजगारी एक अत्यन्त गम्भीर समस्या के रूप में विद्यमान है। हमारे देश में इस समस्या के समाधान के लिए अनेक प्रकार के प्रयास किये गये हैं। इन प्रयासों में सर्वप्रमुख स्थान उन विशिष्ट योजनाओं का है जिनको समय-समय पर देश में रोजगार अवसरों का विस्तार करने के लिए सरकार द्वारा प्रारम्भ किया गया है। रोजगार सृजन करने की सभी योजनायें भारतीय नियोजन का एक अत्यन्त महत्वपूर्ण अंग बन गयी हैं। इन योजनाओं में समन्वित ग्रामीण विकास योजना (आई. आर. डी. पी.), राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना (एन. आर. ई. पी.) ग्रामीण युवाओं को स्वरोजगार हेतु प्रशिक्षण कार्यक्रम (टी. आर. वाई. एस. ई. एम.) जवाहर रोजगार योजना (जे. आर. वाई. ) प्रधानमंत्री की रोजगार योजना (पी. एम. आर. वाई.) आदि प्रमुख है।
8. बैंकिंग एवं साख सुविधाओं का विस्तार (Extension of Credit and Banking Facilities) – स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से देश के आर्थिक विकास को तीव्र करने के लिए किये गये प्रयासों में से एक प्रयास देश में बैंकिंग और साख सुविधाओं का तीव्र विस्तार करना है। इस प्रयास के परिणाम के रूप में भारत में बैंकिंग और साख सुविधाओं का निरन्तर विकास व विस्तार हुआ है। आज पूरे देश में बैंकों का एक जाल बिछा हुआ है। इसके अतिरिक्त कृषि और उद्योग दोनों ही क्षेत्रों में वित्त सम्बन्धी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए बड़ी संख्या में विशिष्ट संस्थाओं की स्थापना की गयी है।
9. आर्थिक अवस्थापना का विकास (Development of infrastructure )- देश में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से आर्थिक विकास की गति को बढ़ाने के लिए आर्थिक अवस्थापना का विकास किया गया है। आर्थिक अवस्थापनागत सुविधाओं के अन्तर्गत देश में संचार, संवाद वाहन, परिवहन, यातायात आदि से सम्बन्धित सुविधाओं का अत्यन्त तेजी से प्रसार हुआ है। इसके अतिरिक्त शिक्षा, स्वास्थ्य, मनोरंजन, तकनीकी प्रशिक्षण आदि से जुड़ी संस्थाओं की स्थापना भी व्यापक रूप से की गयी है।
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