यूरोप में आर्थिक विकास का एक भौगोलिक विवरण प्रस्तुत कीजिए।
यूरोप में आर्थिक विकास
कृषि प्रदेश भूतल पर स्थित एक विस्तृत भूक्षेत्र होता है जिसमें कृषि दशाओं तथा कृषि कार्य पद्धति संबंधी विशेषताओं में समरूपता पायी जाती है। एक कृषि प्रदेश अन्य कृषि प्रदेश से कृषिगत समरूपता और भूमि उपयोग की संबद्धता की दृष्टि से भिन्न होता है। डी. हीटलसी ने 1936 में विश्व के बृहत् कृषि प्रदेशों का सीमांकन करने का महत्वपूर्ण प्रयास किया था। उनके वर्गीकरण के अनुसार यूरोप में निम्नलिखित 5 बृहत् कृषि प्रदेश हैं।
(1) चलवासी पशुचारण प्रदेश –
वे आदिम लोग जो प्रायः चारागाह, जल, भोजन आदि की खोज में अपने परिवार, पशुओं तथा आवश्यक सामानों के साथ एक स्थान से दूसरे स्थान को स्थानांतरित होते रहते हैं और स्थायी निवास नहीं बनाते हैं उन्हें चलवासी (nomads) कहते हैं। चलवासी पशुचारण प्रदेश में अधिक लोगों के भरण-पोषण के लिए पर्यावरण अनुपयुक्त होने के कारण जनसंख्या का घनत्व अत्यल्प पाया जाता है और अनेक भाग तो निर्जन प्राय हैं। यूरोप के टुण्ड्रा तथा टैगा वन प्रदेश में चलवासी पशुचारण का प्रचलन है। नार्वे, स्वीडन, फिनलैंड तथा रूस का उत्तरी भाग चलवासी पशुचारण प्रदेश के अंतर्गत आता है। ध्रुवीय प्रदेशों में स्थल पर रेण्डियर, कैरीबों, ध्रुवीय, भालू, खरगोस आदि जीव तथा सागरों में सील, बालरस, ह्वेल तथा अन्य मछलियां पायी जाती हैं। इन जीवों के शिकार के लिए टुण्ड्रा निवासी याकृत, लैप्स, चुकची आदि आदिम लोग चलवासी जीवन व्यतीत करते हैं। ये लोग रेण्डियर या कैरीबो को पालते हैं और उनके झुण्ड चराते हैं तथा उनके मांस, खाल, हड्डी आदि प्राप्त करते हैं।
दक्षिणी यूरोप के अल्पाइन पर्वतो (आल्पस आदि) के ढालों पर स्थित घास स्थलों पर भी पशुचारण व्यवसाय प्रचलित है। इन प्रदेशों में मौसमी प्रवास (transhumans) का प्रचलन है। ग्रीष्मकाल में पशुचारक पर्वतीय चारागाहों पर पशु चराते हैं और शीतकाल में नीचे घाटियों में उतर आते हैं। उनके पशुओं में भेड़ों तथा बकरियों की प्रधानता पायी जाती है जो पर्वतीय ढालों पर सुगमता से चढ़-उत्तर लेती हैं।
(2) व्यापारिक अन्न उत्पादक कृषि प्रदेश
मध्य अक्षाशों में स्थित शीतोष्ण कटिबंधीय घास के मैदानों में व्यापारिक अन्न उत्पादक कृषि की जाती है। यूरोप में इस प्रकार की कृषि हंगरी, यूक्रेन तथा रूस के स्टेपी घास के मैदानों में की जाती है। कम वर्षा तथा अर्धशुष्क जलवायु के कारण यहाँ ‘स्टेपी’ नामक छोटी घासें उगती हैं जिनके नीचे ‘चरनोजम’ नामक उपजाऊ काली मिट्टी पायी जाती है जिसमें जीवांश की पर्याप्त मात्रा विद्यमान होती है। यह विस्तृत समतल मैदानी भाग है जिस पर बड़े-बड़े कृषि फार्म बनाने तथा आधुनिक कृषि यंत्रों के प्रयोग करने की पूर्ण सुविधा है। जनसंख्या का घनत्व कम होने के कारण उत्पादित खाद्यान्न की स्थानीय खपत भी अत्यल्प है। अतः उत्पादित खाद्यान्नों का अधिकांश भाग निर्यात कर दिया जाता है। इस कृषि प्रदेश की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं।
- व्यापारिक अन्न उत्पादक कृषि प्रदेश में केवल अन्न की फसल उगाई जाती है जिसमें गेहूँ की प्रमुखता तथा कहीं-कहीं एकाधिकार पाया जाता है। कहीं-कहीं गेहूं के अतिरिक्त जी, जई, राई आदि की भी थोड़ी मात्रा पैदा कर ली जाती है।
- अन्नों की खेती मुख्यतः विस्तृत कृषि पद्धति से की जाती है। घास के मैदानों की मशीनों द्वारा जुताई करके बड़े-बड़े कृषि फार्म बनाये जाते जिन पर वर्ष में एक मुख्य फसल गेहूँ का उत्पादन किया जाता है।
(3) मिश्रित कृषि प्रदेश
वह कृषि पद्धति जिसमें एक से अधिक प्रकार की कृषि साथ-साथ की जाती, मिश्रित कृषि कहलाती है। इसमें फसल उत्पादन और पशुपालन साथ-साथ किये जाते हैं। यूरोप का व्यापारिक अब एवं पशुपालन प्रदेश (Commercial Crop and Stock Farming Region) मिश्रित कृषि प्रदेश का उदाहरण है। इस कृषि प्रदेश का विस्तार पश्चिम में यूनाइटेड किंगडम तथा फ्रांस से लेकर पूर्व में रूस तक पाया जाता है। इसके अंतर्गत ब्रिटिश द्वीप समूह, फ्रांस, जर्मनी, पोलैंड, मध्य यूरोपीय देश, मध्यवर्ती रूस आदि प्रदेश सम्मिलित हैं। इस कृषि प्रदेश में प्रायः कृषि भूमि पर फसल उत्पादन और पशुपालन साथ-साथ किया जाता है। फसल को चारे अथवा अन्न के रूप में पशुओं को खिलाया जाता है किंतु अवशिष्ट अन्न का विक्रय भी किया जाता है। अनेक यूरोपीय देश गेहूँ के महत्वपूर्ण निर्यातक हैं। इन प्रदेशों में पाले जाने वाले पशुओं में गाय, सुअर, भेंड़, मुर्गियां आदि प्रमुख हैं जिन्हें मुख्यतः मांस के लिए पाया जाता है। यहाँ कृषि में पूँजी और श्रम दोनों का विनियोग अपेक्षाकृत् अधिक होता है और फसलों तथा पशुओं की देखभाल वैज्ञानिक ढंग से की जाती है। फसलों के उत्पादन में सामान्यतः फसल चक्र पद्धति के अपनाया जाता है।
( 4 ) व्यापारिक दुग्ध पशुपालन कृषि प्रदेश
इस कृषि पद्धति का उद्देश्य दुग्ध तथा दुग्ध निर्मित वस्तुओं को व्यापार के लिए प्राप्त करना होता है। इसके लिए प्रायः गायों को व्यापारिक स्तर पर पाला जाता है और फसलों को मुख्यतः पशुओं को खिलाने के लिए उगाया जाता है। इस प्रकार की कृषि का विस्तार मध्य अक्षांशीय आर्द्र भागों में है जहाँ चारे की फसलें उगाने के लिए पर्याप्त आर्द्रता उपलब्ध होती है। प्राकृतिक चारागाहों पर निर्भर गायें बहुत कम दूध देती हैं। अतः 75 सेमी से अधिक वर्षा वाले शीतोष्ण कटिबंधीय क्षेत्र डेरी उद्योग के लिए उपयुक्त होता है। दुग्ध और दुग्ध निर्मित वस्तुओं की अधिक मांग विकसित देशों के बड़े-बड़े नगरों में होती है। परिवहन के तीव्र साधनों की उपलब्धता तथा शीतगृह आदि द्वारा दुग्ध पदार्थों को सुरक्षित रखने की सुविधा भी विकसित देशों में ही उपलब्ध है। यही कारण है कि इस कृषि पद्धति का विकास विकसित देशों में ही अधिक हुआ है।
(5) भूमध्य सागरीय कृषि प्रदेश
भूमध्य सागरीय कृषि प्रदेश दक्षिणी यूरोप में भूमध्य सागर के तटवर्ती भूभागों में स्थित है। इसके अंतर्गत स्पेन, दक्षिणी फ्रांस, इटली, यूगोस्लाविया तथा यूनान के समुद्रतटीय भाग सम्मिलित हैं जहाँ भूमध्य सागरीय जलवायु पायी जाती है। शीतऋतु में वर्षा और ग्रीष्मऋतु में सूखा इस जलवायु की प्रमुख विशेषता है।
खनिज एवं शक्ति संसाधन (Mineral and Power Resources)
यूरोप महाद्वीप में अनेक प्रकार के महत्वपूर्ण खनिज पदार्थ पाये जाते हैं जिनके आधार पर ही यहां विविध प्रकार के उद्योग-धंधों को विकास हुआ है। आर्थिक उपयोग के अनुसार खनिज पदार्थों को तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है- (1) बहुमूल्य खनिज (Precious minerals) जैसे सोना, चाँदी, हीरा, पन्ना, प्लैटिनम आदि (2) औद्योगिक खनिज (Industrial minerals) जैसे लौह अयस्क, बाक्साइट, चूना पत्थर, जिप्सन, ताँबा, टिन, जस्ता, सीसा, अभ्रक आदि, और (3) शक्ति या ऊर्जा खनिज (Power or Energy minerals) जैसे कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस, यूरेनियम, थोरियम आदि। यूरोप में पाये जाने वाले महत्त्वपूर्ण खनिजों का विवरण अग्रांकित है।
(1) लौह अयस्क (hog ore)
आधुनिक यंत्रीकरण तथा औद्योगिक विकास का मुख्य आधार लोहा है। प्रायः सभी प्रकार की मशीनों का निर्माण लोहे से ही होता है। कारखानों में प्रयुक्त होने वाली छोटी-बड़ी मशीनों, परिवहन के साधनों, कृषि यंत्रों आदि के निर्माण में लोहा ही प्रयुक्त होता है। लोहे को भूगर्भ से खनिज या अयस्क (Ore) के रूप में निकाला जाता है जिसके साथ मिट्टी, चूना पत्थर, एल्यूमिना, मैग्नेशिया, फास्फोरस आदि अनेक अपद्रव्य मिले होते हैं। लौह अयस्क को लौह भट्ठियों में गलाया जाता है और उनमें से अपद्रव्यों को अलग करके शुद्ध लौह धातु प्राप्त की जाती है। इससे उच्च श्रेणी के इस्पात बनाये जाते हैं जो अधिक उपयोगी, मूल्यवान तथा टिकाऊ होते हैं।
( 2 ) कोयला (Coal)
कोयला ऊर्जा के प्रमुख स्रोतों में से एक है। औद्योगिक क्रांति (1860) के पश्चात् शक्ति के स्रोत के रूप में कोयले का उपयोग बड़ी तेजी से बढ़ा। कायेले की ऊर्जा से संचालित मशीनों के प्रयोग से यूरोप में उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में क्रांतिकारी परिवर्तन हुए और उद्योग, परिवहन, कृषि आदि क्षेत्रों में मशीनों का प्रयोग बढ़ने लगा। उस समय कोयला ही शक्ति का प्रधान साधन था। इसीलिए औद्योगिक क्रांति के पीछे सर्वाधिक संपूर्ण महत्वपूर्ण योगदान कोयले का ही माना जाता है। ऊर्जा प्राप्ति के अतिरिक्त कोयला का प्रयोग विभिन्न प्रकार की उपयोगी सामग्रियों के निर्माण में कच्चेमाल के रूप में भी किया जाता है। कोक, तारकोल, अमोनिया, कोलगैस, नैप्थीन, फिनायल आदि के निर्माण में कोयला का प्रयोग कच्चे माल के रूप में किया जाता है।
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