प्रयोजनवादियों तथा प्रकृतिवादियों द्वारा प्रतिपादित शिक्षण विधियों, शिक्षक तथा अनुशासन की तुलना कीजिए।
प्रयोजनवाद तथा प्रकृतिवाद के अनुसार शिक्षण विधि- प्रयोजनवाद किसी भी शाश्वत मूल्य तथा शाश्वत सत्य में विश्वास नहीं करता है जबकि प्रकृतिवाद में भौतिक संसार ही सत्य है तथा आध्यात्मिक संसार मात्र एक कल्पना हो पदार्थ न कभी बनता है और न कभी नष्ट होता है। प्रयोजनवादियों के अनुसार मनुष्य सामाजिक प्राणी है, इसी कारण सामाजिक कुशलता का गुण मनुष्य में आना स्वाभाविक है। व्यक्ति का जीवन समाज में रहकर ही सफल हो सकता है। समाज सेवा के बगैर मनुष्य की कल्पना तथा उसकी सफलता असम्भव है। जबकि प्रकृतिवादी विचारकों के अनुसार मनुष्य का विकास निम्न प्राणी से उच्च प्राणी के रूप में हुआ है। दूसरे प्राणियों के समान मनुष्य भी कुछ मूल शक्तियाँ लेकर पैदा होता है लेकिन बाह्य वातावरण से उत्तेजना प्राप्त कर ये शक्तियाँ क्रियाशील होती हैं तथा मनुष्य का व्यवहार निश्चित होता है। प्रयोजनवादी जीवन तथा उससे सम्बन्धित विभिन्न क्रियाएँ ही वास्तविक तथा सत्य हैं जबकि प्रकृतिवादी भौतिक संसार तथा पदार्थ को ही वास्तविक तथा सत्य मानते हैं।
प्रयोजनवाद तथा प्रकृतिवाद के अनुसार शिक्षण विधि का तुलनात्मक अध्ययन
प्रयोजनवादियों के अनुसार बालक को उन क्रियाओं की शिक्षा देनी चाहिए जो सत्य की खोज में सहायता करें। छात्र का कार्य किसी न किसी अभिप्राय के आधार पर ही निश्चित होना चाहिए। उद्देश्यों के निश्चित न होने के कारण प्रयोजनवादी केवल प्रायोगिक तथा क्रिया प्रधान शिक्षा विधि को ही सर्वश्रेष्ठ मानते हैं। प्रयोजनवादियों के अनुसार विचार या पदार्थ से क्रिया अधिक महत्त्वपूर्ण है। पुस्तकीय ज्ञान व्यावहारिक क्रिया की अपेक्षा के कम ज्ञान देता है। करके सीखना, स्वानुभव से सीखना तथा ज्ञान को खण्डों में या टुकड़ों में बाँटकर नहीं सिखाया जाना चाहिए। बालकों को जो भी विषय पढ़ाए जायें उनके एकीकरण तथा समन्वय अवश्य हो। शिक्षण बहुत अधिक पाठ्यवस्तु केन्द्रित न होकर व्यावहारिक तथा उपयोगिता पर आधारित होना चाहिए। योजना पद्धति प्रयोजनवाद की ही देन है।
जबकि प्रकृतिवादियों के अनुसार शिक्षण विधि क्रिया के साथ-साथ अनुभव पर मूल रूप से आधारित होनी चाहिए। प्राचीन शिक्षा पद्धति में केवल अध्यापक ही क्रियाशील रहता था, इसके विपरीत बालक की क्रियाशीलता पर अधिक महत्त्व प्रकृतिवादियों ने दिया है। प्रकृतिवादियों के अनुसार बालक को ऐसी स्थिति में रखना चाहिए कि वह स्वयं शिक्षा प्राप्त करे। अध्यापक को वस्तुओं का ऐसा प्रबन्ध करना चाहिए कि बालक समझे कि वह खोज कर रहा है। प्रकृतिवादी की सबसे बड़ी देन खेल द्वारा शिक्षा पद्धति, प्रोजेक्ट विधि स्काऊट आन्दोलन, स्कूल यूनियन, बालक क्लब इत्यादि इसी दर्शन की देन है।
प्रकृतिवाद के अनुसार शिक्षण विधि के प्रमुख सिद्धान्त निम्नलिखित हैं-
- बालक की शिक्षा उसके मानसिक एवं शारीरिक विकास के अनुकूल होनी चाहिए।
- बालक को स्वयं क्रियाशील होना चाहिए।
- शिक्षा सुखमय होनी चाहिए।
- शिक्षा प्राकृतिक विकास का अनुगमन करे। इसके लिए मानसिक या नैतिक विकास अनावश्यक तथा हानिप्रद है।
- शिक्षा में आगमन शैली का ही प्रयोग होना चाहिए।
- शाब्दिक ज्ञान की अपेक्षा कार्यात्मक अनुभव पर विशेष बल दिया जाना चाहिए।
प्रयोजनवादियों तथा प्रकृतिवादियों के अनुसार शिक्षक-
प्रयोजनवादियों के अनुसार शिक्षा देने के लिए उपयुक्त परिस्थितियों का निर्माण करना चाहिए। शिक्षक का कार्य केवल नियन्त्रित वातावरण का ही निर्माण करना नहीं अपितु यह भी देखना है कि बालक में उचित आदतों का विकास करना होता है। प्रयोजनवादी शिक्षा में अध्यापक का महत्त्व कम नहीं है क्योंकि शिक्षक के विवेकपूर्ण एवं सही दृष्टिकोण से सम्भव है कि बालकों में सामाजिक आदतों का निर्माण हो। शिक्षक का कार्य शैक्षिक प्रक्रिया का कुशलता से संचालन करना ही है। अतः उसका व्यवहार कुशल, कुशाग्र बुद्धि तथा निपुण होना चाहिए। आधुनिक जीवन की जटिलताओं के साथ शिक्षक का कार्य और दायित्व बढ़ गया है। अब अनियमित शिक्षा पर आधारित होकर नहीं रहा जा सकता। निश्चित नियमित शिक्षा अब आवश्यक हो चुकी है। शिक्षक को बालकों में बुद्धिमानी से कार्य करने की नींव डालनी चाहिए। शिक्षक को यह देखना चाहिए कि बालक के विकास में बाधक कारणों को उसके मार्ग से दूर करने के लिए बालकों को सजग करने का कार्य करना चाहिए।
प्रकृतिवाद में शिक्षक को गौढ़ स्थान प्राप्त है। उसका स्थान कोई अधिक सम्मान का नहीं है। यह कहना अतिश्योक्ति न होगा कि प्रकृतिवादी शिक्षक केवल बर्दाशात करते हैं। शिक्षक उस दूषित वातावरण का अंग है जिससे प्रकृतिवादी उसे दूर ले जाना चाहते हैं। इसीलिए उसे अपने आदर्शी तथा नियमों को अपने तक ही सीमित रखना चाहिए। प्रकृतिवादी शिक्षक को, बालक के साथ केवल प्रेमपूर्वक व्यवहार करने वाला तथा पर्दे के पीछे से दिशा-निर्देश देने वाला मानते हैं।
प्रयोजनवाद तथा प्रकृतिवाद के अनुसार अनुशासन-
प्रयोजनवादी सामाजिक अनुशासन पर बल देते हैं। वे बच्चों को शारीरिक दण्ड देने के पक्ष में नहीं हैं। जॉन डी०वी० का मत है कि विद्यालय में बालकों को सामाजिक वातावरण में सोद्देश्य क्रियाएँ करने दीजिए इससे उनकी मूल प्रवृत्तियों का उदात्तीकरण होगा और उनमें इससे स्वयं एक प्रकार का अनुशासन उत्पन्न हो जायेगा। इसे प्रयोजनवादियों ने स्वशासन का नाम दिया है। सामूहिक वातावरण में स्वतन्त्रता तथा रचनात्मक क्रियाओं में बालक स्वभाव से ही नियन्त्रित रहता है। उसमें आत्मनिर्भरता, स्वावलम्बन, सामाजिकता, सहयोग तथा सहानुभूति आदि गुणों का विकास स्वाभाविक है। वैयक्तिक अनुशासन की आवश्यकता इस प्रणाली में नहीं है।
प्रकृतिवाद सामाजिक परिणामों के द्वारा अनुशासन की अपेक्षा स्वाभविक अनुशासन पर बल देते हैं। उनके अनुसार अनुशासन तो स्वयं का होना चाहिए। स्वाभाविक परिणाम के द्वारा अनुशासन का सिद्धान्त हरबर्ट स्पेन्सर ने प्रतिपादित किया था, इस सिद्धान्त के अनुसार कार्य का फल प्रकृति सुख या दुःख द्वारा देती है। आग में हाथ डालने से मनुष्य का हाथ जल जाता है। इस प्रकार आग में हाथ न डालने की शिक्षा मिल जाएगी। प्रकृतिवाद मुक्तयात्मक अनुशासन पर बल देती है। किन्तु कुछ शिक्षाशास्त्री अनुशासन के प्रकृतिवादी सिद्धान्त को पूरी तरह से ठीक नहीं मानते क्योंकि सत्य तो यह है कि प्रकृति अन्धी होती है। सम्भव है कि प्रकृति तनिक-सी भूल का दण्ड ऐसा भी दे दे कि जीवन ही संकट में पड़ जाए।
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