पियाजे द्वारा प्रस्तावित संज्ञानात्मक विकास की अवस्थाएँ बताइए।
पियाजे द्वारा प्रस्तावित संज्ञानात्मक विकास की अवस्थाएँ- जीन पियाजे स्विट्जरलैण्ड के निवासी थे। इन्होंने बीसवीं शताब्दी में अपने शोध प्रयोगों द्वारा बाल मनोविज्ञान सम्बन्धी क्रान्तिकारी सिद्धान्त प्रतिपादित किये हैं। पियाजे के क्रान्तिकारी विचारों ने शिक्षाविदों की शिक्षाक्रम, पाठ्यपुस्तकों और शिक्षण सामग्री सम्बन्धी प्रचलित अवधारणाओं में मूलभूत परिवर्तन करने को उत्प्रेरित किया है। पियाजे ने लगभग 40 पुस्तकें लिखी हैं जिनमें अधिकांश बालक के सीखने सम्बन्धी हैं।
बच्चे जन्म से लेकर किशोरावस्था तक किस तरीके से सोचते हैं, इस पक्ष पर पर्याप्त खोज करने के पश्चात् पियाजे ने बच्चों के विभिन्न आयु वर्ग के बीच उनके अधिगम विकास की क्रमिकता को देखा, परखा और उसे चार चरणों में विभाजित किया।
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पहला चरण संवेदात्मक गमक काल (Sensory Motor Period)
जन्म से लेकर दो वर्ष की आयु तक चरण में इन्द्रियों के जरिए बच्चा प्राथमिक अनुभव प्राप्त करता है। बाहरी वातावरण और उसकी इन्द्रियों के बीच पारस्परिक आदान-प्रदान होने से इस चरण में मानसिक क्रियाएँ घटित होती है।
दूसरा चरण (दो से सात वर्ष) प्रत्यात्मक चिन्तन की तैयारी काल (The Period of Preparation for Conceptual Thought )
इस चरण में बच्चे की सोचने की क्षमता में परिवर्तन आता है। अपने चारों ओर देखने वाली चीजों के बारे में वह सोचना शुरू करता है। वह प्रतीकों (Symbols) का सहारा लेने लगता है। अनेक प्रकार के प्रतीक उसकी याददाश्त में जुड़ते रहते हैं। अन्तः बोध के इस दूसरे चरण में बच्चे की पहचान क्षमता में परिवर्तन आने लगता है।
भाषा शिक्षण को लेकर इस चरण में बच्चे में जबर्दस्त परिवर्तन देखा जाता है, बड़ों से बातचीत करना, छोटे-छोटे गीत गाना आदि जैसे कार्यों द्वारा बच्चा स्वयं को सम्पेषित करता सीखता है।
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तीसरा चरण (सात से ग्यारह वर्ष तक) (The Period of Cognitive Thought) –
इस चरण में बालक पियाजे के अनुसार अधिक व्यवहारशील एवं यथार्थ होते हैं। वे सच्चाई को समझ जाते हैं। पारिवारिक रिश्ते उनकी समझ में आने लगते हैं तथा छोटे-बड़े गिलास व पानी के अनुपात का गर्म उन्हें समझ आने लगता है। अब वे किसी चीज को नाप-तौल सकते हैं ताकि कोई उन्हें मूर्ख न बना सके।
चौथा चरण (ग्यारह से सोलह वर्ष) (The Period of Connectional Development ) –
इस चरण में जो किशोरावस्था के आसपास का समय होता है, बच्चे किसी भी विषय के सम्बन्ध में सामान्य रीति से सोचना शुरू कर देते हैं। उनके सोचने में तर्क स्वतः आ जाता है। प्रतीकात्मक शब्दों, उपमाओं व रूपकों का आशय भी जान जाते हैं। पियाजे के विचारों का सारांश यह निम्न प्रकार हैं-
(1) बच्चे का अपना स्वतंत्र व्यक्तित्व है।
(2) बच्चा खाली बर्तन नहीं जिसे धीरे-धीरे ज्ञान से भरा जाय।
(3) बच्चे को बौद्धिक विकास एक निश्चित निर्धारित क्रम और चरणों में होता है।
(4) बच्चा जन्म से ही अंग एवं अवयव संचालन आदि दैहिक क्रियाओं से लैस होकर आता है।
(5) शिक्षक बच्चे के सीखने, खोजने एवं अपने स्वतंत्र निष्कर्ष निकालने के लिये उपयुक्त वातावरण निर्मित करें।
(6) सीखने में क्रिया की आधारिक भूमिका है
(7) बच्चों को स्नेह एवं सम्मान मिलना चाहिए।
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