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दृष्टि बाधितों की विशेषताएँ | Characteristics of the visually Impaired

दृष्टि बाधितों की विशेषताएँ | Characteristics of the visually Impaired
दृष्टि बाधितों की विशेषताएँ | Characteristics of the visually Impaired

दृष्टि बाधितों की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।

मानव के जीवन में दृष्टि का सबसे महत्वपूर्ण स्थान है, क्योंकि जीवन में प्रत्येक अनुभव मानवों की दृष्टि से ही सम्बन्धित होते है तथा दृष्टि बाधित व्यक्ति का जीवन भी बाधित हो जाता. है पर जिस प्रकार से हम देखते हैं, कि एक विकलांग बालक जो कि अपने हाथ पैरों के लाचार है, वह भी अपना कार्य करता ही है। ठीक उसी प्रकार से दृष्टि बाधित बालक भी किसी-न-किसी प्रकार से अपना स्वयं का कार्य कर ही लेते हैं, परन्तु विकलांगों की तरह ही दृष्टि बाधित बालाकों में भी कई विशेषताएँ पायी जाती है। यह निम्नलिखित है-

  1. दृष्टि बाधितों की मानसिक योग्यता
  2. दृष्टि बाधितों की भाषा का विकास
  3. दृष्टि बाधितों के सामाजिक व समायोजन व समायोजन अब हम उक्त सभी विशेषताओं की व्याख्या करेंगे सम्बन्धी कार्य-

(1) दृष्टि बाधितों की मानसिक योग्यता- दृष्टि बाधित बालक वह होते हैं, जो कि अपनी आँखों से ठीक प्रकार से देख नहीं पाते है। यह बाधित बालक मानसिक योग्यता के दृष्टि से सामान्य बालकों से कम नहीं होतें है। शोध तथा अनुसन्धान कार्यों से यह पता चला है कि यदि इन्हें समुचित शिक्षा दी जाये या शिक्षा का अवसर मिल सके, तब इनकी बुद्धि मान अचानक बढ़ जाती है।

यह बालक किसी वस्तु की दूरी को नहीं समझ सकतें हैं, क्योंकि वे दूरी को जान नही सकते है। अत: इनकी दूरी का प्रत्येय विकसित नहीं हो पाता है।

दृष्टि बाधित बालकों में प्रत्ययों का विकास स्पर्श अनुभव से होता है। इनमें अलग-अलग प्रकार से स्पर्श अनुभव होता है। प्रथम विश्लेषण स्पर्श अनुभव तथा द्विवांग संश्लेषण स्पर्श अनुभव से होता है।

(2) दृष्टि बाधितों की भाषा का विकास- दृष्टि बाधित बालक भाषा दोषी नही होते हैं। यह ठीक प्रकार से सुन सकते तथा बोल सकते है। यह सुनना तथा बोलना भी भाषा के प्रमुख कौशल होते हैं। मुख्य रूप से भाषा को ही सम्प्रेण का माध्यम माना जाता है, परन्तु अन्य बालाकों का सीखने का तरीका अन्य बालकों से पूर्णत: भिन्न होता हैं, क्योंकि सामान्य बालक देखकर सीखते हैं तथा दृष्टि बाधित बालक इस प्रकार के अनुभवों से वंचित रहते हैं। यह सिर्फ शब्दों से ही अपने विचारों को व्यक्त कर पाते हैं न कि इन्द्रियों के माध्यम से दृष्टि बाधित बालक सुनकर ही शब्दों का चयन करते हैं, क्योंकि इनकी दृष्टि इन्द्रिय क्रियाशील नहीं होती है। सम्पूर्ण जानकारी व ज्ञान श्रवण इन्द्रियों पर भी आधारित होता है। किसी वस्तु का सही प्रत्यक्षीकरण इन्हें नहीं हो पाता है। तथ्यों को भाषा द्वारा ही प्रकट किया जाता है। उसे रंगों का कोई भी बोध नहीं होता है। इनको शाब्दिक अभिव्यक्ति आन्तरिक नहीं होती है तथा इनके अनुभव भी पूर्ण नहीं होते है। उनका प्रत्यक्षीकरण तथा स्पर्श तक ही सीमित रहता हैं।

(3) दृष्टि बाधितों के सामाजिक व समायोजन सम्बन्धी कार्य- दृष्टि बाधित बालकों के व्यक्तित्व की समस्याएँ आन्तिरिक नहीं होती है। यदि इन बालकों में समायोजन क्षमता की समस्या सामाजिक कारणों से होती है। तो यह बालक अपने समायोजन को सुनिश्चित कर लेते है।

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