दृष्टि-दोष के मुख्य प्रकारों, पहचान तथा विशिष्ट आवश्यकताओं पर प्रकाश डालिए ।
दृष्टि-दोष के प्रकार
दृष्टि दोष वाले बच्चे आसानी से देख नहीं पाते हैं। ये बच्चे दूर की वस्तुओं और निकट की वस्तुओं को देखने में कठिनाई महसूस करते हैं। इस दृष्टि से दृष्टि दोष निम्न प्रकार के होते हैं-
(a) निकट दृष्टि दोष:- इस दोष वाले बच्चे दूर की वस्तुओं को देखने में कठिनाई अनुभव करते हैं। इस दोष का मुख्य कारण वंशानुक्रम हो सकता है। इसके अतिरिक्त इस दोष के कारणों में असंतुलित भोजन, परिवार तथा स्कूल में अनुचित वातावरण, अधिक कार्य करने, कम रोशनी में पढ़ने या टेलीविजन को बहुत समीप से देखना आदि शामिल हैं।
(b) दूर दृष्टि दोष:- इस दोष के कारण बच्चे नजदीक की वस्तुए कठीनाई से देख पाते है। लेकिन इन्हें निकट की वस्तुएँ स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। यह दोष जन्म चात होता है।
(c) विषम दृष्टि दोष:- इस दृष्टि दोष में निकट और दूर के दोष शामिल होते हैं। इसके मुख्य लक्षणों में सिर दर्द होने लगता है। तथा बच्चे आँखों को खूब मलते हैं। इसके परिणामस्वरूप आँखों में पानी आ जाता है।
(d) बहंगापन:- इस दोष के अंतर्गत बच्चे एक आँख से नाक की ओर देखते है। आंखो को नियंत्रित करने वाली मांस पेशियों में असंतुलन आ जाने से इस रोग की उत्पत्ति होती है। किसी मांसपेशी पर लकवा आने से यह दोष आ जाता है।
(e) अन्धापन:- अन्धेपन के अन्तर्गत बच्चों की आंखों की रोशनी कम या समाप्त हो जाती है। ऐसे बालकों में कई प्रकार की हीन भावनाएँ आ जाती हैं। ऐसे बालकों में या तो पूर्ण अन्धापन होता है या आंशिक रूप से बालक अन्धे होते हैं। ऐसे बच्चों के लिए शिक्षा की विशेष व्यवस्था होनी चाहिए।
(f) रोहे:- इस दोष अन्तर्गत पलकों में दाने निकल आते हैं। इससे रोशनी के कारण चकाचौंध का आभास होता है।
(g) आँखो का दुखना:- यह रोग फैलने वाला होता है। आँखे लाल हो जाती हैं तथा दुखने लगती हैं। तथा आँखों से गन्दा पानी निकलने लगता है।
(h) रतौंधी:- यह रोग विटामिन ए की कमी के कारण होता है। रोशनी की कमी के कारण बच्चे अन्धापन महसूस करने लगते हैं।
(i) बिलनी:- आँखों की पलकों के किनारों पर जो सूजन आ जाती है उसे बिलनी कहते हैं। ये रोग प्रायः आँखों में गन्दगी पड़ने या आँखों पर दबाव या जोर पड़ने से होता है।
पहचान:-
दृष्टि दोष वाले बच्चों की पहचान निम्नलिखित तरीको से की जा सकती है।
1. डाक्टरी जाँच: समय समय पर विद्यालयों में बच्चों की जो डाक्टरी जाँच की जाती है. उससे यह पता लगाया जा सकता है कि कौन-कौन से बालक नेत्र दोषयुक्त हैं। यदि उनमे दृष्टि कम है तो कितनी। क्या उसे सुधारना व नियंत्रित करना संभव है। विद्यालय में जांच द्वारा इस विषय में पता लगने पर बच्चों के अभिभावकों को उन्हें नेत्र विशेषज्ञों को दिखाने की सलाह दी जा सकती है। जिससे उनके दृष्टि दोषों का पता लगाया जा सके।
2. अध्यापक द्वारा निरीक्षण:- कई बार अध्यापक श्यामपट्ट पर जो लिखता है। बच्चे उसे अपनी उत्तर पुस्तिका में ठीक से उतार नहीं पाते, उसमें अशुद्धियाँ करते हैं। पुस्तक पढ़ते समय बहुत अधिक झुकते हैं। श्यामपट्ट पर लिखे को पढ़ते समय ऐसा लगता है कि उन्हें बहुत प्रयास करना पड़ रहा है। कई बार उनके नेत्रों से पानी बहता रहता है। एक कुशल अध्यापक ध्यान देकर यह अनुमान लगा सकता है कि इन बच्चों में दृष्टि दोष सम्भव है और वह बच्चों के अभिभावकों को उनकी जाँच कराने की सलाह दे सकता है।
3. स्वयं बच्चे से पूछताछ करना:- यदि अध्यापक को लगे कि बच्चा देखने में कठिनाई अनुभव कर रहा है तो वह इस संबंध में स्वयं बच्चे से पूछताछ कर सकता है।
4. विशेषताओं के आधार पर:- दृष्टि दोष वाले बच्चों की पहचान उनकी विशेषताओं के आधार पर भी की जा सकती है। उनकी कुछ विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
- दृष्टि दोष वाले बच्चों को वस्तुओं को देखने में कठिनाई महसूस होती है।
- बच्चों के सिर में अक्सर दर्द रहता है।
- बच्चे आँखों को बार-बार मलते हैं।
- आँखों में सूजन चिपचिपाहट तथा लाल रहती है।
- दृष्टि दोष युक्त बच्चे अधिक झुक कर पढ़ते तथा लिखते हैं।
अभिभावकों द्वारा निरीक्षण:- कई बार समूह के बड़ा होने के कारण अध्यापक द्वारा बच्चों पर व्यक्तिगत रूप से ध्यान देना संभव नहीं हो पाता पर थोड़ा सा ध्यान देकर माता-पिता यह आसानी से पता लगा सकते हैं कि उनके बच्चे में दृष्टि दोष है या नहीं और संदेह होने पर उसकी पुष्टि के लिए किसी नेत्र विशेषज्ञ से बच्चे की जाँच करा सकते हैं।
नेत्र दोषयुक्त बालकों की विशिष्ट आवश्यकताएँ:
(i) पूर्णत: अंधे बालक सामान्य बालको की तरह पढ़ व लिख नहीं सकते हैं। अतः उनके लिए विशिष्ट विद्यालय खोले जाने की आवश्यकता होती है। जहाँ अंधों के लिए विशेष रूप से विकसित ब्रेल लिपि में उन्हें शिक्षा दी जाए। यह कार्य ऐसे अध्यापक द्वारा किया जाना चाहिए। जिन्हें अंधों को शिक्षा देने के लिए विशेष रूप से प्रशिक्षित किया गया हो।
(ii) जिनकी नजर कमजोर है उन पर व्यक्तिगत ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है। ताकि दृष्टि-दोष बढ़ने की दशा में सही समय पर उनका उपचार किया जा सके और उनकी शैक्षणिक उपलब्धि इस दोष के कारण प्रभावित न होने पाए।
(iii) इन बच्चों की एक अन्य महत्वपूर्ण आवश्यकता है। उन्हें हीनता के बोध से बचाना। कई बार चश्मा लगाने या दृष्टि दोष के कारण बालक हीन भावना से ग्रस्त हो जाता है जिससे उनकी शैक्षणिक उपलब्धि प्रभावित होती है। अत: यह आवश्यक है कि अध्यापक इन्हें उचित प्रोत्साहन दे तथा हीन भावना से ग्रस्त न होने दे।
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