समावेशी शिक्षा के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
सम्पूर्ण बालकों के एक समान शिक्षा प्रदान करना जरूरी है। समावेशी शिक्षा द्वारा समाज के उन वर्गों की शिक्षा व विकास पर विचार किया गया है जो पहले इससे वंचित रहे हैं या जिनकी आवश्यकताओं को अनदेखा किया गया है। इसके द्वारा विकलांग बच्चों के व्यक्तिगत, सामाजिक तथा भावी रोजगार में बच्चों की पूरी क्षमता का विकास करने तथा अवसर देने की आवश्यकता को पूरा किया जाता है।
इसके माध्यम से निःशक्त बच्चे जो मुख्य धारा में नहीं थे अथवा मुख्य धारा से हट गये हैं उन्हें शिक्षा द्वारा मुख्य धारा में लाया जा सकता है। जिनकी सीखने की गति कम है उन्हें आसानी से सिखाया जा सकता है। इस शिक्षा प्रणाली से विशेष बच्चों की विशेष आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर उनके विकास पर ध्यान दिया जाता है। समावेशी शिक्षा के उद्देश्य इस प्रकार हैं-
1. शिक्षा का अधिकार- शिक्षा का अधिकार प्रत्येक बच्चे का संवैधानिक अधिकार है। समावेशी शिक्षा, शिक्षा के अधिकार को प्राप्त करने के लिए एक सकारात्मक प्रयास है। इसका मुख्य उद्देश्य सभी बच्चों को चाहे वह मानसिक, सामाजिक, शारीरिक, संवेगात्मक रूप से कमजोर हो, उन्हें एक समान व सामान्य बच्चों के साथ शिक्षा प्रदान करना व बच्चे के अधिकार का सम्मान करना समावेशी शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य है।
2. विभिन्न कौशलों की पहचान- प्रत्येक बच्चे में कुछ विशिष्ट योग्यता होती है। कोई बालक यदि शिक्षा के क्षेत्र में कमजोर है तो हो सकता है कि वह किसी दूसरे क्षेत्र में प्रतिभावान हो, कई शोध व अध्ययन स्पष्ट करते हैं कि मानसिक मन्दता वाले बच्चों में किसी न किसी प्रकार की कला व सृजनात्मकता होती है। ऐसे बच्चों को “Savage Ginius” कहा जाता है। इस प्रकार इन बच्चों की प्रतिभा की पहचान करने की आवश्यकता होती है तथा उसे निखारने की जरूरत होती है। ऐसे बच्चे संगीत, कला, वादन, चित्रकला, पेन्टिंग आदि क्षेत्रों में अधिक सृजनशील होते हैं। समावेशी शिक्षा का उद्देश्य इन बच्चों के विशिष्ट कौशलों की पहचान कर उनका विकास करना है।
3. सभी को शिक्षा का समान अवसर- समावेशी शिक्षा किसी वर्ग या समूह विशेष को लिए नहीं है। इसका मुख्य उद्देश्य बालकों को समान शिक्षा प्रदान करना है। समावेशी शिक्षा की शिक्षण रणनीति, पाठ्यक्रम, शिक्षण विधि, प्रविधि को इस प्रकार लचीला बनाया गया है कि शिक्षा से कोई भी बच्चा वंचित न रह जाय। इस शिक्षा का केन्द्र बालक को माना गया है। शिक्षा प्रदान करने में बालक की असमर्थता को ध्यान में रखा गया है जिससे सभी बच्चों को शिक्षा के समान अवसर प्राप्त हो सके। इससे पहले विशिष्ट बालकों के लिए पृथक् विद्यालयों की स्थापना का विचार था। जिस कारण माता-पिता को उन बच्चों को जो शारीरिक, मानसिक व सामाजिक रूप से अक्षम हैं। इन विशिष्ट विद्यालयों में प्रवेश व अन्य सुविधाओं के अभाव के कारण ये बच्चे शिक्षा का लाभ नहीं उठा पा रहे थे। लेकिन वर्तमान में समावेशी शिक्षा को प्रत्यय के कारण सभी बच्चों को शिक्षा प्रदान करने का अवसर प्रदान करती है।
4. सामाजिकता की भावना का विकास- पहले बाधित व निःशक्तता वाले बच्चों को पृथक् शिक्षण कराया जाता था तथा इनके लिये पृथक् विद्यालय खोले गये। इस पृथकता के कारण ये बच्चे सामाजिक रूप से भी पृथक् होने लगे तथा इनमें हीनता की भावना आने लगी। समावेशी शिक्षा में सभी बच्चे एक साथ मिलकर सामूहिक रूप से अध्ययन करते हैं तथा एक-दूसरे का सहयोग मैत्रीपूर्वक करते हैं। इस प्रकार के वातावरण से ये बच्चे भी स्वयं को समाज का ही अंग मानते हैं तथा इनमें सामाजिकता की भावना का विकास होता है। समावेशी शिक्षा सामाजिक असमानता का खण्डन करती है।
5. अशक्त व बाधित बालकों की क्षमताओं का विकास- इस प्रकार के बालक भी समाज के अंग हैं। उनमें भी अपनी योग्यता व कौशल पाये जाते हैं। समावेशी शिक्षा के माध्यम से इन बच्चों की क्षमता व योग्यता का विकास किया जा सकता है। अशक्त बालक दया के पात्र नहीं हैं बल्कि उनको प्रतिभा के विकास के अवसर प्रदान किये जाने चाहिए तथा उन्हें उनकी असमर्थता को चुनौती के रूप में स्वीकार करने का समर्थन किया जाना चाहिए। उन्हें भीख अथवा दान की आवश्यकता नहीं है बल्कि काम एवं सम्मान की आवश्यकता होती है। समावेशी शिक्षा इन बच्चों की क्षमता के विकास के अवसर प्रदान करती है। इसका उद्देश्य निःशक्त व बाधित बालकों की प्रतिभा व क्षमता का विकास करना व प्रदर्शन करना है जिससे वे भावी जीवन में दूसरों पर निर्भर न रहकर आत्मनिर्भर बन सकें।
6. आत्मविश्वास व आत्मसम्मान का विकास करना- कोई भी व्यक्ति यदि शिक्षित है तो उसमें आत्मविश्वास दिखायी देता है। कोई भी शैक्षिक उपलब्धि या शिक्षा बालक में आत्म विश्वास पैदा करती है। जब व्यक्ति आत्मविश्वासी होता है तो उसके बाद वह आत्म सम्मान के लिए कार्य करता है। वह सामाजिक प्रतिष्ठा को बनाने का प्रयास करता है। शिक्षा बालक में आत्मनिर्भर, आत्मविश्वास व आत्मसम्मान की भावना का विकास करती है। समावेशी शिक्षा का उद्देश्य बच्चे को आत्मविश्वासी व आत्मनिर्भर बनाना है।
7. चुनौतियों के लिए तैयार करना- समावेशी शिक्षा स्वयं में एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। सभी बच्चों को एक कक्षा में एक छत के नीचे एक समान शिक्षा प्रदान करना वास्तव में एक कठिन व चुनौतीपूर्ण कार्य है। समावेशी शिक्षा का प्रत्येक उद्देश्य बालक को शिक्षा के अधिकार से पूरा लाभ उठाने, अपना विकास करने, स्वाभिमानपूर्ण जीवन व्यतीत करने को लेकर यह शिक्षा इस उद्देश्य को लेकर चलती है कि प्रत्येक बालक को उसकी क्षमताओं को ध्यान में रखकर शिक्षित किया जाय तथा उसे भावी जीवन की चुनौतियों का सामना करने योग्य बनाया जाय।
8. असमर्थता से समर्थता की ओर ले जाना- समावेशी शिक्षा में असमर्थ बालकों को सामान्य बच्चों के साथ शिक्षा प्रदान की जाती है ऐसे बच्चे यदि सामान्य बच्चों के साथ मिलकर कार्य करते हैं तो इनकी क्षमता का विकास होता है, वे अन्य बच्चों को देखकर कार्य करने के लिए प्रेरित होते हैं। इस शिक्षा का उद्देश्य ऐसे बच्चों को क्षमताओं का विकास करना तथा उसमें सक्षमता की भावना का संचार करना है।
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