समावेशी शिक्षा का अर्थ स्पष्ट करते हुए इसे परिभाषित कीजिए।
समावेशी शिक्षा (Inclusive Education) वह शिक्षा होती है, जिसके द्वारा विशिष्ट क्षमता वाले बालक जैसे- मन्दबुद्धि, अन्धे बालक, बहरे बालक तथा प्रतिभाशाली बालकों को ज्ञान प्रदान किया जाता है। समावेशी शिक्षा के द्वारा सर्वप्रथम छात्रों के बौद्धिक शैक्षिक स्तर की जाँच की जाती है, तत्पश्चात् उन्हें दी जाने वाली शिक्षा का स्तर निर्धारित किया जाता है। अतः यह एक ऐसी शिक्षा प्रणाली है, जो कि विशिष्ट क्षमता वाले बालकों हेतु ही निर्धारित की जाती है। अतः इसे समेकित अथवा समावेशी शिक्षा का नाम दिया गया है।
मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने समावेशी शिक्षा के सम्बन्ध में कहा कि-
“समावेशी शिक्षा का अर्थ है कि सभी सीखने वाले बालक हों अथवा युवा चाहे अशक्त हों अथवा नहीं, सामान्य विद्यालय पूर्वव्यवस्था विद्यालयों एवं सामुदायिक शिक्षा केन्द्रों में उपयुक्त सहयोगी सेवाओं के साथ आपस में मिलजुल कर सीखने से समर्थ है। उन्होंने आगे स्पष्ट किया कि समावेशन का अर्थ है- मुख्य धारा के विद्यालयों में विशिष्ट आवश्यकताओं के बच्चों का अपने अन्य सहपाठियों के साथ शिक्षा ग्रहण करना। “
यह एक ऐसी शिक्षा प्रक्रिया है जो दुरूह है पर असम्भव नहीं है।
उमातुली के अनुसार : “समावेशन एक प्रक्रिया है जिसमें विद्यालय बालकों की दैनिक, संवेगात्मक तथा सीखने की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये अपने संसाधनों का विस्तार करता है। “
यूनेस्को के अन्तर्राष्ट्रीय शैक्षिक सम्मेलन जेनेवा 2008 में ” समावेशी शिक्षा पर दस प्रश्न : अतिसंवेदनशील एवं सीमान्त समूह” सम्बन्धी वार्ता में अपने विचार इस प्रकार दिये।
“समावेशी शिक्षा अधिगमकर्त्ताओं के गुणात्मक शिक्षा के मौलिक अधिकार पर आधारित है जो आधारभूत शैक्षिक आवश्यकताओं की पूर्ति करके जीवन को समृद्ध बनाती है। अतिसंवेदनशील एवं सीमान्त समूहों को दृष्टिगत रखते हुए, यह प्रत्येक व्यक्ति की क्षमता का पूर्ण विकास करती है।…… समावेशी गुणात्मक शिक्षा का परम ध्येय सभी प्रकार के विभेदीकरण को समाप्त करके सामाजिक संगठन का पोषण करना है। “
माइकेल एवं जिआन ग्रैको के अनुसार- “समावेशित शिक्षा से अभिप्राय उन मूल्यों सिद्धान्तों और प्रयासों के समूह से है जो सभी विद्यार्थियों को, चाहे वे विशिष्ट हैं अथवा नहीं, प्रभावकारी और सार्थक शिक्षा देने पर बल देते हैं। “
एप्पल एवं डे के अनुसार- “सामान्य बच्चों और विशिष्ट बालकों की शैक्षिक आवश्यकताओं के संक्रमण और मेल को समावेशी शिक्षा के नाम से अभिहित किया गया है। ताकि सभी बच्चों के लिये सामान्य विद्यालयों में शिक्षा देने हेतु एक ही पाठ्यक्रम हो। यह एक लचीली तथा व्यक्तिगत रूप से विशिष्ट बच्चों और नवयुवकों की शैक्षिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये सहायक प्रणाली है। यह समग्र शिक्षा प्रणाली का एक अभिन्न घटक है जो सामान्य स्कूलों में सबके लिये उपयुक्त शिक्षा के रूप में प्रदान किया जाता है। “
एम. मैनीबन्नान के अनुसार- “समावेशी शिक्षा उस नीति तथा प्रक्रिया का परिपालन है जो सब बच्चों को सभी कार्यक्रमों में भाग लेने के लिये अनुमति देता है, नीति से तात्पर्य है कि आएंगे चालकों को बिना किसी अवरा के सामान्य बालकों के सभी कार्यक्रम में लेने के लिये स्वीकृति प्रदान करें। समावेशी प्रक्रिया से अभिप्राय पद्धति के उन साधनों में है से इस प्रक्रिया को सब के लिये सुखद बनाये समावेशी शिक्षा क्षतियुक्त बालकों के लिये सामान्य शिक्षा के अभिन्न अंग के अतिरिक्त कुछ नहीं है। यह सामान्य शिक्षा के भीतर अलग से कोई प्रणाली नहीं है।”
समावेशी शिक्षा अलगाव से बिल्कुल भिन्न है। पृथक्करण का अर्थ है- अलग करना कुछ समय पहले विशिष्ट बालकों हेतु पृथक् विद्यालय खोले गये थे। अलगाव मानव मूल्यों का विरोधी है। इससे बच्चों में नकारात्मक एवं हीन भावना का विकास होता है। ये अपने आप को समाज से अलग महसूस करते हैं। अशक्त बालकों के शिक्षा हेतु किये गये विशेष प्रयास व प्रावधान से उतना फायदा नहीं हो पाया जितना होना चाहिये था। संवेगात्मक सृजनात्मक एवं सामाजिक विकास और स्वीकृति के दृष्टिकोण से ये बालक पीछे ही रह गये। इसी हेतु समावेशी शिक्षा सबको साथ लेकर चलने का एक पृथक् प्रयास है।
जनसंख्या विस्फोट होने से विद्यालयों में छात्रों की विभिन्नताओं में भी वृद्धि हुई है। ये विभिन्नतायें शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक संवेगात्मक, सामाजिक आदि दिखाई देती हैं। इन विभिन्नताओं को स्वीकार करना, प्रत्येक छात्र को उसकी आवश्यकताओं के अनुसार शिक्षा के अवसर प्रदान करना ही समावेशी शिक्षा का नाम है।
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