B.Ed. / BTC/ D.EL.ED / M.Ed.

समानता का अर्थ तथा समानता के प्रकार

समानता का अर्थ तथा समानता के प्रकार
समानता का अर्थ तथा समानता के प्रकार

समानता का अर्थ (Equality meaning in Hindi)

समानता का अर्थ है कि “मानवीय गौरव और अधिकारों की दृष्टि से सब समान है’ (All men are equal in dinity and rights )प्रो. लॉस्की के अनुसार, “समानता का यह मतलब नहीं कि प्रत्येक व्यक्ति साथ एक जैसा व्यवहार किया जाय अथवा प्रत्येक व्यक्ति को समान वेतन दिया जाय। यदि ईंट ढोने वाले का वेतन एक प्रसिद्ध गणितज्ञ अथवा वैज्ञानिक के बराबर कर दिया गया। तो इससे समाज का उद्देश्य ही नष्ट हो जायेगा। इसलिए समानता का यह अर्थ है कि कोई व्यक्ति अधिकार वाला वर्ग न रहे और सबको उन्नति के समान अवसर प्राप्त हों।”

इससे स्पष्ट है कि प्रो० लॉस्की समानता के दो अर्थ लगाता है। समामता का पहला अर्थ यह है कि किसी को विशिष्ट अधिकार न दिये जायें। नागरिक होने के नाते प्रत्येक जिन अधिकारों के योग्य है वे अधिकार उसे भी उस सीमा तक और उसी दृढ़ता के साथ प्राप्त होने चाहिए। इससे स्पष्ट है कि समानता से युक्त समाज में राज्य और समाज की ओर से सभी को

‘समान अधिकार दिये जाते हैं। समानता का दूसरा अर्थ यह है कि सभी नागरिकों को अपनी उन्नति के लिए समान अवसर प्राप्त होते हैं। सभी को अपने व्यक्तित्व के विकास का पूर्ण अवसर मिलता है।

 

समानता के निम्नलिखित भेद बताये गये हैं-

नागरिक समानता-

इस प्रकार की समानता का अर्थ यह है कि सभी नागरिकों को अपने उत्तरदायित्व के निर्वाह के लिए समान अधिकार प्राप्त होना चाहिए। सभी को नागरिक अधिकारों का उपयोग करने का अवसर मिलना चाहिए। कानून की दृष्टि से सभी बराबर होने चाहिए। जाति, रंग, वर्ण, धर्म, जन्म स्थान आदि के आधार पर किसी प्रकार का भेदभाव नहीं होना चाहिए।

राजनीतिक समानता-

राजनीतिक समानता का अर्थ यह है कि सभी नागरिकों को शासन में समान रूप से भाग लेने का अवसर प्राप्त होना चाहिए। सभी को मत देने, पद के लिए उम्मीदवार होने और सरकारी पद आदि को प्राप्त करने का अधिकार होना चाहिए। योग्यता अथवा अपराध के अधिकार पर किसी को किसी कार्य से वंचित किया जा सकता है। परन्तु लिंग, जाति या धर्म के आधार पर किसी को किसी राजनीतिक अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता।

सामाजिक समानता –

सामाजिक समानता का अर्थ यह है कि समाज में जाति, धर्म, वर्गगत भेदों का अभाव अर्थात जब किसी समाज में धनी-निर्धन, छूआ-अछूत, ऊँच-नीचे के भेदभाव नहीं होते तो हम यह कहते हैं कि वहाँ सामाजिक समानता विद्यमान हैं समाज को रंग, ‘जाति, वर्ग या वंश के आधार पर किसी प्रकार का भेदभाव नहीं करना चाहिए।

प्राकृतिक समानता-

प्राकृतिक समानता के समर्थक इस तथ्य पर बल देते हैं कि प्रकृति ने मनुष्य को समान बनाया है। अतएव किसी प्रकार का भेदभाव नहीं होना चाहिए परन्तु यह धारणा भ्रामक है। सामाजिक समानता के सिद्धान्तों की प्रवृत्ति भले ही प्राकृतिक समानता की बात करें, परन्तु व्यवहार में देखने में यह आता है कि प्रत्येक बुद्धि, बल और प्रतिभा की दृष्टि से समान नहीं होते। कोल ने ठीक ही लिखा है— “मनुष्य शारीरिक बल-पराक्रम, मानसिक योग्यता, सृजनात्मक प्रवृत्ति, सामाजिक सेवा की भावना और सम्भवतः सबसे अधिक कल्पना शक्ति में एक-दूसरे से मूलतः भिन्न है।” इस स्थिति में प्राकृतिक समानता के विचार को अधिक से अधिक इस रूप में रख सकते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति के व्यक्तित्व को समझा जाना चाहिए और एक व्यक्ति के व्यक्तित्व का प्रयोग दूसरे व्यक्ति के व्यक्तित्व के साधन के रूप में नहीं किया जाना चाहिए।

आर्थिक समानता —

आर्थिक समानता का विचार आधुनिक है। समाजवादियों और साम्यवादियों ने उसे आधारभूत सिद्धान्त के रूप में अपनाया है। आर्थिक समानता का अर्थ यह है कि सब मनुष्यों को आवश्यकतानुसार धन की प्राप्ति हो। किसी के पास इतना धन न हो कि वह दूसरे का शोषण कर सके। आर्थिक समानता का अर्थ यह नहीं है कि सभी के पास बरबार धन हो। बल्कि इसका अर्थ यह है कि सम्पत्ति और धन का उचित वितरण होना चाहिए। कोई भी व्यक्ति भूखा न मरे और कोई भी इतना अधिक धन न जमा कर से कि वह दूसरों का शोषण करने लगे।

Important Links

Disclaimer

Disclaimer: Sarkariguider does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: guidersarkari@gmail.com

About the author

Sarkari Guider Team

Leave a Comment