इतिहास / History

नवजागरण से क्या तात्पर्य है ? भारत में नवजागरण के कारण-

नवजागरण : भारत में नवजागरण के कारण 

नवजागरण से क्या तात्पर्य है ?

नवजागरण से क्या तात्पर्य है ?

“भारतीय नवजागरण ने सर्वप्रथम बुद्धिजीवियों में जागृति पैदा की, जिसका हमारे साहित्य, शिक्षा और कला पर विशेष प्रभाव पड़ा। फिर इसने एक नैतिक शक्ति बनकर भारतीय समाज और धर्म में सुधार लाने का काम किया। बाद में नवजागरण ने आर्थिक क्षेत्र में आमूल-चूल परिवर्तन करके देश को राजनीतिक स्वतन्त्रता उपलब्ध करायी।”

-विद्याधर महाजन

नवजागरण से क्या तात्पर्य है ?

नवजागरण भारत में उन्नीसवीं शताब्दी में एक ऐसी नवीन चेतना का उदय हुआ जिसने देश के सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक एवं राजनीतिक जीवन को अत्यधिक प्रभावित किया। इसी नवचेतना को हम ‘नवजागरण’ अथवा ‘रेनेसाँ’ (Renaissance) के नाम से पुकारते हैं। “पुनर्जागरण का अर्थ विद्या, कला, विज्ञान, साहित्य और भाषाओं के विकास से लगाया जाता है।” परन्तु भारत का नवजागरण यूरोपीय जागरण से कई बातों में भिन्न था। यूरोप में नवजागरण का कार्य कला, साहित्य और ज्ञान को पुन: जाग्रत करना था, जबकि भारत के नवजागरण ने प्राचीन भारत को फिर से जाग्रत करने का कार्य नहीं किया, अपितु यहाँ नवजागरण ने भारतीय आत्मा को उसकी गहराई तक पहुँचकर प्रभावित किया। इसी के प्रभाव से देश में धर्म व समाज-सुधार आन्दोलनों की लहरें उठने लगीं। धार्मिक, सामाजिक तथा राजनीतिक जीवन में क्रान्तिकारी परिवर्तन होने लगे तथा शिक्षा, साहित्य, कला और विज्ञान के क्षेत्र में उन्नति का स्रोत खुल गया।

भारत में नवजागरण के आरम्भ का मूल कारण ब्रिटिश उपनिवेशवाद के फलस्वरूप देश में पाश्चात्य सभ्यता एवं संस्कृति का प्रचार और प्रसार था। ब्रिटिश शासन के प्रभाव ने भारतीयों में एक नयी जागृति उत्पन्न की, जिसके फलस्वरूप भारत में नवजागरण का अध्याय आरम्भ हुआ। नवजागरण में धर्म व सुधार आन्दोलनों ने भारतीयों में राष्ट्रीयता तथा स्वतन्त्रता की भावना का संचार किया, जिसके फलस्वरूप लगभग 200 वर्षों (1757-1947 ई०) के बाद देशवासी अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त हुए और स्वतन्त्र भारत का निर्माण हुआ।

भारत में नवजागरण के कारण

भारत में नवजागरण के अनेक कारण थे। देश में सदियों से चली आ रही सामाजिक तथा आर्थिक व्यवस्था का अन्त, औद्योगीकरण का आरम्भ, नवीन सामाजिक वर्गों का उदय, समाज-सुधार आन्दोलन, अंग्रेजी शिक्षा के प्रचार आदि अनेक कारणों ने भारत में नवजागरण के युग का श्रीगणेश किया। इनका संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित है-

(1) अंग्रेजी शासन का प्रभाव –

भारत में अंग्रेजी शासन सभी वर्गों के लिए घातक बन गया था। सरकार की आर्थिक नीतियों से भारतीय जनता की आर्थिक स्थिति जर्जर हो गयी थी। नयी भूमि-व्यवस्था ने किसानों की दशा को भी शोचनीय बना दिया था। अंग्रेज सरकार की व्यापार-नीति ने देशी उद्योग-धन्धों का विनाश कर दिया था और हजारों लोग बेकार हो गये थे। इसके फलस्वरूप सभी वर्गों के लोगों में असन्तोष की भावना बलवती हो उठी थी।

(2) अंग्रेजों की भेदभावपूर्ण नीति-

ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध असन्तोष का एक कारण यह भी था कि अंग्रेजों की नीति भेदभावपूर्ण तथा पक्षपातपूर्ण थी। प्रशासन, सेना तथा पुलिस आदि सभी विभागों में केवल अंग्रेजों को ही उच्च पद और अधिक वेतन दिया जाता था तथा भारतीयों को इनसे वंचित रखा जाता था। इससे योग्य तथा प्रतिभाशाली भारतीयों में असन्तोष की भावना उत्पन्न हो गयी।

(3) पाश्चात्य शिक्षा का प्रसार–

भारत के राष्ट्रीय नवजागरण में पाश्चात्य शिक्षा के प्रसार ने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। ब्रिटिश सरकार ने अंग्रेजी शिक्षा का प्रचार तो भारत में इसलिए किया था कि सरकार को क्लर्क तथा सेवक मिल सके, पर अंग्रेजी भाषा के माध्यम से भारतीयों का परिचय यूरोप के ऐसे विचारकों से हुआ जो राष्ट्रीय, लोकतन्त्र तथा स्वतन्त्रता को भावना से परिपूर्ण थे। अत: भारतीयों पर जब इन विचारों का प्रभाव पड़ा तो उनकी मनोवृत्ति में परिवर्तन आने लगा और वे गुलामी की जंजीरों को तोड़ने के लिए व्याकुल हो उठे।

(4) सामाजिक व धार्मिक सुधार आन्दोलन-

उन्नीसवीं शताब्दी में भारत में अनेक सामाजिक व धार्मिक आन्दोलन हुए, जिन्होंने राष्ट्रीयता की भावना के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। राजा राममोहन राय, स्वामी दयानन्द सरस्वती, स्वामी विवेकानन्द, ईश्वरचन्द्र विद्यासागर, श्रीमती एनी बेसेण्ट आदि ने भारतीयों में देशभक्ति की भावना का संचार किया।

(5) साहित्य व समाचार-पत्रों का प्रभाव-

देश में राष्ट्रीय जागरण के विकास में साहित्य और समाचार-पत्रों से बड़ी सहायता मिली। उन्नीसवीं शताब्दी में प्रान्तीय भाषाओं और अंग्रेजी में अनेक समाचार-पत्र और पत्रिकाएँ प्रकाशित को गयी, जिन्होंने भारतीय जनता में राष्ट्रीयता की भावना जाग्रत की। लोकमान्य तिलक, बंकिमचन्द्र चटर्जी, माइकल मधुसूदन दत्त, भारतेन्दु हरिश्चन्द्र आदि ने जनता को राष्ट्रीय भावना से परिपूर्ण साहित्य प्रदान किया। मैजिनी और गैरीबाल्डी के जीवन-चरित्र से भी भारतीयों को अत्यधिक प्रेरणा प्राप्त हुई।

(6) यातायात के साधनों का विकास-

ब्रिटिश सरकार ने भारत में अपने लाभ के लिए यातायात और संचार के साधनों का विकास किया। देश भर में रेल, डाक व तार-व्यवस्था के फैल जाने से देश के एक भाग से दूसरे भाग में जाना या सम्पर्क करना आसान हो गया। इससे देश के विभिन्न भागों के लोग एक-दूसरे के सम्पर्क में आने लगे और परस्पर विचार-विमर्श करने लगे। वे जनता के निकट सम्पर्क में आकर उसमें राष्ट्रीय चेतना का संचार करने लगे।

(7) विदेशी घटनाओं का प्रभाव-

इसी समय विदेशों में कुछ ऐसी घटनाएँ घटी, जिन्होंने भारतीयों पर गहरा प्रभाव डाला। इटली और जर्मनी का राजनीतिक एकीकरण (1870-1871 ई०), इंग्लैण्ड के सुधार आन्दोलन (1832-1867 ई०), अमेरिका में दासों की मुक्ति (1865 ई०) आदि घटनाओं ने भारतीयों के मन में भी राष्ट्रीयता की भावना का संचार किया।

(8) ब्रिटिश सरकार की दमनकारी नीति-

ब्रिटिश सरकार की दमनकारी नीति ने भी भारतीय जनता में राष्ट्रीय भावना उत्पन की। लॉर्ड लिटन के काल में वर्नाक्यूलर प्रेस ऐक्ट के द्वारा भारतीय भाषाओं के समाचार-पत्रों की स्वतन्त्रता पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया और शस्त्र अधिनियम द्वारा भारतीयों को हथियार रखने से वंचित कर दिया। इल्बर्ट बिल तो अंग्रेजो की भेदभावपूर्ण नीति का एक ज्वलन्त उदाहरण था। इन सभी बातों से भारतीय अंग्रेजों से घृणा करने लगे और उन्होंने देश को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त कराने का निश्चय कर लिया।

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