अर्थशास्त्र / Economics

शैक्षिक वित्त का अर्थ एंव इसका महत्त्व | Meaning and Importance of Educational finance

शैक्षिक वित्त का अर्थ एंव इसका महत्त्व
शैक्षिक वित्त का अर्थ एंव इसका महत्त्व

शैक्षिक वित्त का अर्थ एंव इसका महत्त्व

शैक्षिक-वित्त का अर्थ – यह सत्य है कि शैक्षिक-वित्त शैक्षिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए साधन है, साध्य नहीं। यह भी सत्य है कि शैक्षिक-वित्त की अपनी समस्याएँ हैं। शैक्षिक आवश्यकताओं में वृद्धि होने से वित्त सम्बन्धी जटिलताएँ बढ़ती जा रही हैं। शिक्षा के लिए धन किन स्रोतों से प्राप्त हो तथा किन मदों में प्राथमिकता के आधार पर खर्च किया जाये, यह भी एक समस्या के रूप में उभरा है।

शिक्षा-प्रशासन की प्रमुख समस्या है शैक्षिक-वित्त की समस्या है। शिक्षा प्रशासन तथा शैक्षिक वित्त का घनिष्ठ सम्बन्ध है। शिक्षा प्रशासन की समस्याओं, विधियों तथा सिद्धान्तों का परस्पर प्रभाव अध्ययन का विषय है।

शैक्षिक-वित्त का अर्थ शिक्षा में प्रयुक्त होने वाले धन से है, जिसमें शिक्षा के क्षेत्र में आय-व्यय का भाव निहित है। आय-व्यय एक ऐसा औपचारिक विवरण है, जिसके द्वारा यह अनुमान लगाया जाता है कि निर्धारित अवधि में किसी व्यक्ति अथवा संस्था की क्या आय होगी और उसका क्या व्यय होगा? प्रत्येक विद्यालय में आय-व्यय विवरण प्रशासनिक दृष्टि से एक वर्ष के लिए बनाया जाता है, जिसे ‘वित्तीय वर्ष‘ (फाइनेन्शियल ईयर) कहते हैं। अपने देश में वित्तीय वर्ष की अवधि 1 अप्रैल से अगले वर्ष की 31 मार्च तक रहती है।

शैक्षिक वित्त का महत्त्व

प्रशासनिक दृष्टि से विद्यालय में शैक्षिक-वित्त का महत्त्व निम्न बातों के आधार पर स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है-

  1. आय व्यय से सम्बन्धित एक निर्धारित अवधि के लिए वित्तीय योजना तैयार कर सकना और उसे क्रियान्वित कर सकना।
  2. विद्यालय की नीति प्राप्त आय के साधनों के आधार पर निर्धारित कर सकना।
  3. विद्यालय के सभी कार्यक्रमों को महत्ता की दृष्टि से शक्ति एवं साधन के अनुसार गति प्रदान कर सकना।
  4. विद्यालय की कार्यक्षमता निर्धारित करना तथा शिक्षकों एवं कर्मचारियों की संख्या निर्धारित कर सकना।
  5. शिक्षकों एवं कर्मचारियों की योग्यता, अनुभव तथा क्षमता के आधार पर नियुक्ति कर सकना ।
  6. विद्यालय में फर्नीचर, उपकरणों तथा अन्य आवश्यक सामग्री की व्यवस्था कर सकना।
  7. ऐसे कार्यक्रमों, योजनाओं एवं गतिविधियों को धन की दृष्टि से रोक देना, जिनसे विद्यालय अथवा शिक्षा जगत् को कम लाभ होने की आशंका बनी रहे।
  8. विद्यालय की वित्तीय स्थिति के आधार पर आय-व्यय को सन्तुलित बना सकना ।
  9. इस बात का मूल्यांकन कर सकना कि विद्यालय के कार्यक्रम में समाज की आवश्यकताओं की पूर्ति हो रही है अथवा नहीं।
  10. प्रशासनिक दृष्टि से संचालन की आवश्यक शर्तों एवं सेवाओं को सुगम बनाना ।

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