विद्यालय विकास में अभिभावक और शिक्षक संघ की भूमिका का वर्णन कीजिए।
Role of teachers and parents (अभिभावक और शिक्षक संघ की भूमिका)- भारत की विशाल जनसंख्या और उसकी शिक्षा व्यवस्था मात्र सरकारी प्रयत्नों से होना सम्भव नहीं है। इन समस्याओं का प्रभावी हल ढूँढ पाना तब तक कठिन है, जब तक समाज के सभी अभिकरण इसमें सहयोग न करें।
शिक्षा की गुणवत्ता में अभिभावकों और शिक्षकों की महत्वपूर्ण भूमिका है। यदि 72 करोड़ अभिभावक और 20 लाख शिक्षक एक साथ मिलकर इस ओर ध्यान दें तो इसमें दो राय नहीं कि यह मिलन अच्छी शिक्षा के विकास में एक महत्त्वपूं कदम सिद्ध हो सकता है। कहा भी जाता है कि बालक एक चौथाई शिक्षा शिक्षकों से, एक चौथाई स्वयं तथा आधी शिक्षा अपने माँ-बाप या अभिभावक से सीखता है। इस दृष्टि से अभिभावकों का शिक्षा और उसकी गुणवत्ता के विकास में सहयोग लेना अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। यह स्थिति, शिक्षक-अभिभावक संघ के विद्यालयों में स्थापना के महत्त्व को भी प्रतिपादित करती है।
बालक के शैक्षिक विकास में शिक्षक और अभिभावकों का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है, परन्तु दोनों की शिक्षा सम्बन्धी भूमिकाएँ तथा परस्पर अपेक्षाएँ भिन्न होती हैं। शिक्षक बालकों की जिन समस्याओं को अपने दृष्टिकोण से देखता है, अभिभावक का उसी समस्या के प्रति सर्वथा भिन्न दृष्टिकोण होता है। उसका एक सबल कारण यह है कि जहाँ शिक्षक के लिए विद्यार्थी सैकड़ों में से एक है, वहीं माँ-बाप के लिए वह स्वयं का अंश है। शिक्षक जहाँ हर बालक के समान विकास की बात सोचता है, वहीं माँ-बाप अथवा अभिभावक अपने बालक के अधिकाधिक शैक्षिक विकास में रुचि लेने की शिक्षकों से अपेक्षा करते हैं। इन भिन्नताओं के कारण ही बालक की क्षमताओं, रुचिओं, व्यवहारगत दोषों के बारे में अभिभावकों के कारण ही बालक की क्षमताओं, रुचियों, व्यवहारगत दोषों के बारे में अभिभावकों का सोच, शिक्षकों से सर्वथा भिन्न होता है। बालक क्योंकि अभिभावकों के समक्ष शिक्षक की तुलना में कहीं अधिक रहता है।
शिक्षा के क्षेत्र में, विशेषकर-समस्यात्मक बालकों पर किए गए शोध इस ओर स्पष्ट इंगित करते हैं कि उनकी समस्याओं पर सामाजिक पर्यावरण का महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। यही बात छात्र उपलब्धियों को लेकर भी सिद्ध होती है। छात्र की शैक्षिक प्रगति पर परिवार और पर्यावरण का महत्त्वपूर्ण प्रभाव देखा जा सकता है। सच तो यह है कि अभिभावक या माता-पिता बालक के प्रथम शिक्षक हैं। अतः इन प्रारम्भिक शिक्षकों और विद्यालयी शिक्षकों का परस्पर सहयोग भावी नागरिकों के शैक्षिक विकास में द्विगुणित योगदान हो सकता है, इसलिए शिक्षक-अभिभावक संघ की स्थापना तथा संचालन किसी भी विद्यालाय के लिए अनिवार्य ही नहीं, अपितु अपरिहार्य प्रवृत्ति होनी चाहिए।
अभिभावक-शिक्षक संघटन, अभिभावकों और शिक्षकों को परस्पर सन्निकटता लाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है। उसकी सूचनाएँ विद्यालय व सामुदायिक सहयोग में भी अत्यन्त महत्वपूर्ण होती हैं।
वे देश जहाँ सामुदायिक विद्यालय हैं, वहाँ अभिभावक-शिक्षक संघ की प्रभावीपन का सहज ही आकलन हो सकता है। पश्चिम जगत में मातृ क्लब के विकास में अभिभावक शिक्षक संघ की महत्त्वपूर्ण उपलब्धि का उदाहरण दिया जाता है।
शिक्षक-अभिभावक संघ जहाँ मिलकर कार्य कर सकते हैं, वे क्षेत्र निम्नानुसार हैं-
1. गृहकार्य
2. मध्याह्न भोजन
3. छात्र अनुशासन समस्याएँ
4. भिन्न लिंग किशोरों की समस्याएँ
5. नैतिक तथा धार्मिक शिक्षा
6. पाठ्य एवं पाठ्य सहगामी क्रियाएँ
7. विद्यालय विकास प्रायोजनाएँ
8. विद्यालय सुधार प्रायोजनाएँ
9. आर्थिक दृष्टि से विषम छात्रों की शुल्क, वस्व तथा भोजन व्यवस्था आदि।
शिक्षक-अभिभावक संघ के मुख्य रूप से निम्नलिखित उद्देश्य हो सकते हैं-
1. शिक्षकों और छात्र अभिभावकों के मध्य परस्पर समझ का विकास करना।,
2. शिक्षक और अभिभावकों का परसए सहयोग से छात्र समस्याओं को सुलझाना।
3. शिक्षक-अभिभावक संघ के प्रभावी संचालन के लिए विद्यालयों में निम्नलिखित कार्यक्रम आयोजित किए जा सकते हैं-
1. शिक्षकों का छात्रों के घरों पर सम्पर्क- यदि शिक्षक वास्तव में अभिभावकों के मित्र और संरक्षकों के सहयोगी हैं तो निश्चित रूप से इस प्रकार का कदम शिक्षकों द्वारा या विद्यालयों द्वारा उठाया जाना आवश्यक है। यह स्थिति शिक्षकों के विद्यार्थियों के आर्थिक, सामाजिक एवं भौगोलिक परिवेश को समझने में सहयोग देगी और यह समझ पाठ्य वस्तु के स्थानीय उदाहरणों से अध्यापन में भी सहयोग देगी। प्रायः हमारे विद्यालयों में शिक्षक तभी किसी विद्यार्थी के घर जाता है, जब वह किसी समस्या से ग्रस्त है। यह कदम विद्यार्थी की समस्या के जन्म से पूर्ण ही समस्या समाधान में योग देगा। इससे विशेषकर प्राथमिक स्तर पर अपव्यय व अवरोधन जैसी समस्याओं को रोकने में भी मदद मिलेगी। शिक्षक अभिभावक संघ पारिवारिक वित्तीय संकट, सामाजिक समस्याओं यथा शादी आदि के कारण विद्यालय छोड़ने वाले विद्यार्थियों के लिए अभिभावक-शिक्षक संघ इस दिशा में समाधान दे सकता है।
2. अभिभावकों का विद्यालय सम्पर्क- जिस तरह शिक्षकों का विद्यार्थियों के घर और परिवार से सम्पर्क रखना आवश्यक है, उसी प्रकार से शिक्षक-अभिभाव संघ की प्रगाढ़ता लाने का दूसरा कदम अभिभावकों का विद्यालय में आगमन होना चाहिए। इससे अभिभावकों और विद्यार्थियों में विद्यालय के प्रति विश्वास बढ़ता है, परन्तु प्रायः विद्यालयों में छात्र प्रवेश के समय और परिणाम घोषित होने के समय ही अभिभावकों को आमंत्रित किया जाता है। कुछ विद्यालय वार्षिकोत्सव या अन्य विशेष उत्सवों में भी इन्हें आमंत्रित करते हैं, परन्तु इसके अलावा न विद्यालय और न ही अभिभावक एक-दूसरे से सम्पर्क आवश्यक समझते हैं। अभिभावकों के सम्पर्क का एक अवसर उनके बालकों की किसी समस्या को लेकर भी होता है, परन्तु विद्यालय के उद्देश्यों और उसमें अभिभावक के सहयोग को लेकर कदाचित कोई कार्यक्रम नहीं होता, जो एक अत्यनत विचाणीय पक्ष है।
3. शिक्षण कार्यक्रम और अभिभावक सहभागिता– यदि विद्यालय वास्तव में अभिभावकों की आकांक्षाओं के अनुरूप कार्यक्रम आयोजित करना चाहता है, तब यह आवयक ही नहीं, अपरिहार्य भी होगा कि विद्यालय कार्यक्रमों की योजना निर्माण के समय अभिभावक प्रतिनिधियों से विद्यालय प्रधान अथवा प्रभारी परामर्श करे और उनकी भावना और उपयुक्त समय पर ये कार्यक्रम आयोजित किए जाएँ।
अध्यापन के क्षेत्र में विशेषकर ऐसे विषयों के प्रशिक्षण में जो कौशलों पर आधारित हैं, अभिभावकों का परामर्श तथा आंशिक सहयोग सेवा का कार्य लिया जा सकता है।
4. अभिभावक समूहों में शिक्षक सहभागिता– विभिन्न रुचि और क्षमता वाले अभिभावकों को विभिन्न समूहों, विद्यालय सम्पर्क, विकास, मनोरंजन आदि के लिए आमंत्रित किया जा सकता है। उदाहरणार्थ सामुदायिक खेलकूद कार्यक्रम, खेल में रुचि लेने वाले अभिभावकों के साथ, सामुदायिक मेले, सांस्कृतिक कार्यक्रम उन अभिभावकों के साथ जो इस प्रकार के कार्यक्रमों में रुचि रखते हैं। इस सम्बन्ध में अभिभावक व शिक्षक कार्यक्रमों पर विचार-विमर्श कर विद्यालय व समुदाय के हितार्थ कार्यक्रम आयोजित कर सकते हैं।
5. विभिन्न कौशलों के विकास में अभिभावक सहयोग- आज समग्र देश में 10-2 योजना विद्यालयों में लागू हो गई है, परन्तु विभिन्न व्यावसायिक कौशलों के लिए शिक्षक उपलब्ध नहीं हैं। समुदाय में प्रायः सभी प्रकार के निष्णात व्यक्ति मिलते हैं। उनमें विद्यार्थियों के अभिभावक भी होते हैं। विद्यालय, अभिभावक शिक्षा संगठन के मध्यम से इनकी अंशकालीन सेवाएँ ले सकते हैं।
6. विद्यालय उद्देश्य व प्रगति के सन्दर्भ में सूचना- शिक्षक-अभिभावक सम्पर्क ही नहीं विद्यालय से जुड़े रखने के लिए अच्छे विद्यालय, निरन्तर विद्यालय के लक्ष्य, कार्यक्रमों तथा प्रगति के सम्बन्ध में अभिभावकों को सूचित करते रहते हैं। कुछ विद्यालय त्रैमासिक या घटमासिक विद्यालय समाचार बुलेटिन अभिभावकों को भेजते हैं।
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