फ्रायड का समाजीकरण का सिद्धांत (Freud’s theory of Socialization)
फ्रायड का समाजीकरण का सिद्धांत-फ्रायड ने समस्त व्यवहारों को कुछ मानसिक शक्तियों के अधीन माना है। फ्रायड का विचार है कि मनुष्य के व्यवहार मूल रूप से दो परस्पर विरोधी शक्तियों से प्रभावित होते हैं। यह शक्तियाँ हैं प्रेम एवं घृणा। प्रेम एक जीवन शक्ति है जबकि घृणा संहारक प्रेरणाओं को जन्म देती है। संहारक शक्ति के क्रियाशील हो जाने पर व्यक्ति में पाशविक प्रवृत्तियाँ जोर मारती हैं जिसके कारण व्यक्ति तरह-तरह के समाज विरोधी कार्य करता है तथा कल्पना से परे व्यवहारों में लग जाता है। साधारणतया घृणा पर प्रेम का आधिपत्य रहता है किन्तु जब कभी भी प्रेम का प्रभाव कम हो जाता है और घृणा प्रभावपूर्ण बन जाती है तभी व्यक्ति में असुरक्षा, भय, तनाव और चिन्ता के तत्व प्रबल हो जाते हैं। इसका अभिप्राय है कि व्यक्तित्व के उचित विकास के लिए व्यक्ति में उपर्युक्त दोनों शक्तियों के बीच सामंजस्य बना रहना आवश्यक है।
फ्रायड के अनुसार प्रेम और घृणा का विकास सदैव ही एक रूप में देखने को नहीं मिलता है बल्कि इनका सम्बन्ध मन के अनेक भागों से होने के कारण इनकी अभिव्यक्ति के तरीके भी भिन्न रूप में देखने को मिलते हैं। फ्रायड ने मानव मन के तीन पक्षों को स्पष्ट किया है-(1) अचेतन मन, (2) चेतन मन, (3) अवचेतन मन। अचेतन मन में व्यक्ति की उन इच्छाओं का निवास होता है जिन्हें वह समाज के नियमों के कारण पूरा नहीं कर पाता या व्यक्ति जिन्हें दबा देता है। चेतन मन व्यक्ति के मन का वह भाग है जो तात्कालिक परिस्थितियों से सम्बद्ध होता है। यह किसी भी व्यवहार को करते समय व्यक्ति को जाग्रत अवस्था में रखता है तथा उसे तर्क बुद्धि प्रदान करता है। जाग्रत अवस्था में व्यक्ति जो भी कार्य करता है उसकी एक स्पष्ट छवि व्यक्ति के मन में बनी रहती है। जब व्यक्ति भिन्न प्रकार के व्यवहारों में लग जाता है तब यह प्रतिमा उसके मन के अचेतन भाग में चली जाती है। अवचेतन मन पूर्णतया सुप्तावस्था में नहीं होता क्योंकि व्यक्ति फिर कभी भी अवचेतन मन में स्थित प्रतिमाओं को सरलता से स्मृति पर ला सकता है।
समालोचना- फ्रायड के उपर्युक्त सिद्धान्त से यह स्पष्ट होता है कि कूले और मीड ने सामाजिक अन्तक्रिया से निर्मित हुए “आत्म” को समाजीकरण का आधार माना है, वहीं फ्रायड ने पूर्णतया मानसिक दशाओं को ही मानव व्यवहार का कारण मान लिया है। फ्रायड ने मस्तिष्क के जिन तीन भागों की बात की है उन्हें जीवशास्त्रियों ने मस्तिष्क की बनावट में किसी भी प्रकार विद्यमान नहीं पाया है। यही कारण है कि फ्रायड की व्याख्या को दार्शनिकता के नजदीक समझा जाता है इसके पश्चात् भी वैयक्तिक क्रिया की विभिन्नता को देखते हुए मस्तिष्क को तीन भागों में विभाजित करना और उनके आधार पर मानवीय व्यवहारों की व्याख्या करना बहुत ठीक प्रतीत होता है। व्यवहारिक जीवन में भी वास्तव में फ्रायड का विवेचन बहुत ही सार्थक प्रतीत होता है।
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