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दुर्थीम का समाजीकरण का सिद्धांत | Durkheim’s theory of Socialization in Hindi

दुर्थीम का समाजीकरण का सिद्धांत
दुर्थीम का समाजीकरण का सिद्धांत

दुर्थीम का समाजीकरण का सिद्धांत (Durkheim’s theory of Socialization)

दुर्थीम का समाजीकरण का सिद्धान्त-सामूहिक प्रतिनिधित्व के सिद्धान्त द्वारा दुर्थीम ने समाजीकरण की प्रक्रिया को स्पष्ट किया है। अपनी महत्वपूर्ण रचना “Sociology and Philosophy” में दुर्थीम ने सर्वप्रथम इस सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। इसमें उसने आदर्श अवधारणा के साथ सामूहिक प्रतिनिधित्व तथा सामूहिक चेतना को अधिक महत्व दिया है।

प्रतिनिधित्व को दुर्थीम ने दो भागों में विभाजित किया है-प्रथम सामूहिक प्रतिनिधित्व तथा दूसरा वैयक्तिक प्रतिनिधित्व। सामूहिक प्रतिनिधित्व का तात्पर्य उन विचारों से है जो समाज के पर्यावरण से सम्बन्धित है। अर्थात् बाह्य जगत के वे तत्व जिन्हें मनुष्य के सामाजिक सम्बन्धों के विशेषता के रूप में ग्रहण किया जा सकता है। इसके विपरीत वैयक्तिक प्रतिनिधित्व बाह्य जगत की उन घटनाओं से निर्मित होता है जो कि सामाजिक सम्बन्धों के अस्तित्व से स्वतन्त्र है।

दुर्थीम के अनुसार सामूहिक प्रतिनिधित्व समाज के लिए अत्यन्त उपयोगी है। इस सामूहिक प्रतिनिधित्व के सिद्धान्त के साथ दुर्थीम सामूहिक मूल्य के विचार को प्रस्तुत करता है। उनके अनुसार सामाजिक मूल्य सामूहिक क्रियाओं के परिणामस्वरूप उत्पन्न होते हैं, इनकी प्रकृति आदेशात्मक होती है। व्यक्ति सदा ही अपनी भावनाओं को इनके अनुकूल प्रकट करते हैं। इसके अतिरिक्त दुखीम का कथन है कि सामाजिक मूल्य वस्तुनिष्ठ होते हैं क्योंकि ये व्यक्तिगत क्रियाओं के दबाव सामूहिक क्रियाओं के परिणाम हैं। अत: सामूहिक मूल्य वैषयिक होते हैं।

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