परामर्श के विविध स्तरों का उल्लेख कीजिए।
प्रवेश पूर्व का स्तर-
प्रवेश लेने से पूर्व छात्र दुविधा में होता है और स्पष्ट रूप से नहीं समझ पाता कि क्या करना उचित है और उसके लिये क्या भविष्य के लिये फायदेमन्द साबित, होगा। इस स्तर पर छात्र सूचना, सलाह, परामर्श सभी कुछ चाहता है। वह प्रवेश लेने की प्रक्रिया फार्म प्राप्त करने, फीस, शिक्षण प्रक्रिया सभी के बारे में जानकारी चाहता है। विशेष रूप से निम्न प्रकार की जानकारियाँ इस स्तर पर विद्यार्थी चाहता है।
संस्थान में कौन-कौन से कार्यक्रम चल रहे हैं ?
मेरे लिये किस पाठ्यक्रम को चुनना अच्छा होगा?
अनुदेशन प्रक्रिया, फीस, अवधि, कार्यक्रम एवं संस्था की मान्यता आदि के बारे में जानकारी लेना चाहता है।
क्या फीस देने के बाद प्रवेश न ले तो वापिस हो जायेगी? अथवा क्या देर से फीस देने का प्रावधान है?
इसके लिये आवश्यक है कि परामर्श वही दे जो पूरी तरह से सारी बातों को जानता हो। इस परामर्श के पश्चात् विद्यार्थी को कार्य करने को सीधा रास्ता समझ में आ जाता है।
प्रवेश के समय-
इस स्तर पर विद्यार्थी चयनित पाठ्यक्रम के विभिन्न प्रश्नपत्रों, अधिन्यास सम्बन्धी जानकारी, अध्ययन केन्द्र सम्बन्धी जानकारी के लिये परामर्शदाता से सम्पर्क करता है। प्रयोगात्मक परीक्षाओं, प्रोजेक्ट कार्य जैसी विविध जानकारियों की दूरस्थ विद्यार्थी को आवश्यकता होती है। इस समय Brochures, Guides, Hand books बहुत उपयोगी सिद्ध होती है। संस्था द्वारा विकसित इस प्रकार की पुस्तिकायें छात्र के लिये बहुत लाभदायक सिद्ध होती हैं।
कार्यक्रम के दौरान परामर्श-कार्यक्रम के दौरान परामर्श सत्र नितान्त रूप से शैक्षणिक होते हैं। स्व अध्ययन सामगी, अधिन्यास से सम्बन्धित समस्याओं का निवारण इन सत्रों में होता है। मैं इस पूरी सामग्री को अध्ययन इतने कम समय में कैसे कर पाऊँगा या मुझे अभी अध्ययन सामग्री मिली नहीं है जैसी समस्याओं का निदान भी परामर्शदाता को करना होता है। छात्र को अध्ययन के लिये प्रेरित करना परामर्शदाता का कर्तव्य है।
परामर्शदाता को सदैव याद रखना चाहिये कि इसमें से बहुत से विद्यार्थी लम्बे समय के अन्तराल के बाद अध्ययन के लिये आते हैं। इसलिये उन्हें पर्याप्त सहायता की आवश्यकता होती है। कभी-कभी कुछ गैर शैक्षणिक कार्य के बारे में भी छात्र पूछता है जैसे तिथि निकल गई, अधिन्यास कैसे जमा होगा, अधिन्यास में कैसे लिखें कि अंक अच्छे मिलें। अधिन्यास क्या वापस मिलेगा, उस पर टिप्पणी नहीं दी गई आदि। सार रूप में निम्न प्रकार की सहायता की छात्र को आवश्यकता होती है।
लाइब्रेरी की सुविधा।
कम्प्यूटर के पाठ्यक्रमों के लिये प्रयोगशाला
अधिन्यास के लेखन एवं मूल्यांकन के सम्बन्ध में।
पुराने प्रश्न पत्रों सम्बन्धी जानकारी।
मार्कशीट, Pass प्रतिशत, प्रमाण पत्र परीक्षा पास करने के न्यूनतम अंक जैसी विविध जानकारियाँ।
इस दौरान अक्सर विद्यार्थी थक जाता है बोर हो जाता है सोचता है मैंने बेकार ही यह कोर्स प्रारम्भ कर दिया। ऐसे समय में छात्र को विशेष परामर्श की आवश्यकता होती है।
परीक्षा के समय- परीक्षा के समय तिथि और समय के अतिरिक्त तैयारी कैसे करें, महत्वपूर्ण पाठ,महत्वपूर्ण बिन्दु जैसे विषय पर भी छात्र परामर्शदाता से जानना और समझना चाहते है। विशेष रूप से जो विद्यार्थी काफी अन्तराल के पश्चात् पढ़ाई करते हैं उनका लिखने का अभ्यास छूट चुका होता है। वे कैसे तैयारी करें जैसी अनेक समस्याओं हेतु छात्र शिक्षक रूपी परामर्शदाता से विचार विमर्श करना चाहता है। मार्कशीट प्रमाणपत्र कब मिलेगा जैसी जानकारी भी वह चाहता है। मूल रूप से इस स्तर पर दूरस्थविद्यार्थी को निम्न क्षेत्रों में सलाह की जरूरत होती है-
1. परीक्षा तिथियाँ
2. परीक्षा की तैयारी
3. परिणाम की घोषणा
परीक्षा पाठ्यक्रम समाप्त होने के उपरान्त- इस स्तर पर दूरस्थ विद्यार्थी परीक्षा दे चुका होता है जिसके लिये वह नामांकित होता हैं अब उसकी जरूरत व्यवसाय से सम्बन्धित होती है। परामर्शदाता की भूमिका परीक्षा के बाद समाप्त नहीं हो जाती वरन् निम्न क्षेत्रों में उसकी सलाह की आवश्यकता विद्यार्थी को रहती है।
-मार्कशीट, प्रमाणपत्र, दीक्षान्त समारोह सम्बन्धित
समबन्धित व्यवसाय सम्बन्धी जानकारी
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