वृत्तिक सम्मेलन का अर्थ स्पष्ट करते हुए उसकी क्रिया विधि का वर्णन कीजिए।
अथवा कैरियर निर्देशन सम्मेलन का क्या उद्देश्य है? इसे किस प्रकार व्यवस्थित ढंग से प्रयोग में लाया जा सकता है? इसकी कार्य प्रक्रिया पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
वृत्तिक सम्मेलन का अर्थ
छात्रों को उनकी शैक्षिक एवं अन्य योग्यताओं के अनुसार वृत्तिक अथवा जीविका सम्बन्धी सूचनाएं एवं सेवायें प्रदान करने के लिए आयोजित किये जाने वाले सम्मेलनों को वृत्तिक सम्मेलन कहते हैं। इनका आयोजन विद्यालयों, महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों तथा कुछ स्वयंसेवी सामाजिक संस्थानों आदि द्वारा किया जाता है। इसमें छात्रों की शैक्षिक योग्यताओं के आधार पर उनको जीविका सम्बन्धी परामर्श प्रदान किया जाता है।
वृत्तिक सम्मेलन आयोजित करने की क्रिया-विधि (प्रक्रिया)
वृत्तिक सम्मेलनों के आयोजन की प्रक्रिया निम्न चरणों में पूरी की जाती हैं-
1. सम्मेलन समिति का गठन-सर्वप्रथम सम्मेलन के लिए एक आयोजन समिति का गठन किया जाता है, जिसमें अध्यक्ष, मन्त्री, संयोजक, संचालक, अनुशासक मण्डल स्वागताध्यक्ष, अल्पाहार-भोजन व्यवस्थापक तथा अन्य कार्यकर्ताओं का चयन किया जाता है। सभी को कुछ विशेष उत्तरदायित्व प्रदान कर दिये जाते हैं तथा सभी एक साथ मिलकर सहयोग के साथ अपना-अपना कार्य करते हैं।
2. सम्मेलन की योजना बनाना-ऊपर वर्णित सम्मेलन समिति के सभी सदस्य बैठकें करके निम्नलिखित बिन्दुओं पर योजना बनाते हैं-
(क) सम्मेलन की तिथि का निर्धारण करना।
(ख) सम्मेलन की अवधि सुनिश्चित करना।
(ग) सम्मेलन की आवश्यकता और उद्देश्यों को क्रमबद्ध करना।
(घ) विशेषज्ञों तथा अन्य वक्ताओं को चयनित एवं आमन्त्रित करने का प्रबन्ध करना।
(ङ) सम्मेलन के सम्पूर्ण कार्यक्रम की रूपरेखा बनाना।
(च) छात्रों, अभिभावकों तथा अन्य महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों को सूचित व आमन्त्रित करना।
(छ) नाश्ता, भोजन, पानी, आवास आदि की व्यवस्था करना।
3. निमन्त्रण पत्र-अथवा साधारण पत्रों की तैयारियां करना।
4. विशेषज्ञों एवं वक्ताओं के स्वागत की तैयारियां करना।
5. नियत समय पर सम्मेलन करना-यह वृत्तिक सम्मेलन का वास्तविक क्रियात्मक चरण है। ऊपर बनायी गयी योजना के अनुसार सम्मेलन का अयोजन किया जाता है। सबसे पहले संचालक बनायी गयी योजना के अनुसार सम्मेलन का आयोजन किया जाता है। सबसे पहले संचालक द्वारा सम्मेलन के अध्यक्ष, मुख्य अतिथि तथा सम्मानित वक्ताओं का परिचय दिया जाता है और फूलों व मालाओं से उनका सत्कार किया जाता है। उसके बाद संचालक या प्रधानाचार्य सम्मेलन की मुख्य विषय-वस्तु का विवरण प्रस्तुत करते हुए विषय-प्रवर्तन करते हैं। योजनानुसार पूर्व निश्चित व्यक्ति द्वारा वृत्तिक, सूचनाओं, सेवाओं के सम्बन्ध में पिछली उपलब्धियो पर प्रकाश डालते हुए नवीन उद्देश्यों और जानकारियों को प्रस्तुत किया जाता है।
क्रमानुसार समस्त वक्ताओं के भाषण होते हैं। वक्ताओं की सुविधा के लिए माइक ओवर हैड प्रोजेक्टर, श्यामपट (आजकल आधुनिक श्वेतपट होते हैं) तथा कम्प्यूटर आदि के समुचित व्यवस्था भी की जाती है। इसी दौरान स्वयं सेवक गण समस्त आगन्तुकों के बैठने तथा पीने के पानी का प्रबन्ध करते रहते हैं। इसके बाद शिक्षकों, छात्रों तथा अभिभावकों को भी मंत्र पर आकर बोलने का अवसर प्रदान किया जाता है। निश्चित समय आने पर सभी को उचित जलपान तथा दोपहर के भोजन के लिए आमन्त्रित किया जाता है।
भोजन तथा अल्प अवकाश के बाद सम्मेलन की कार्यवाही पुनः योजनानुसार संचालित की जाती है। इसमें प्रायः किसी विशेष क्क्ता का विस्तृत व्याख्यान होता है अथवा उपस्थित व्यक्तियों छात्रों, शिक्षकों आदि के लेखों, शोध पत्रों तथा उनके कृतित्त्व का सारांश पढ़ा जाता है। प्रत्येक वक्ता को एक निश्चित समय बोलने के लिए दिया जाता है तथा कुछ मिनट (लगभग 5-10/मिनट) श्रोताओं के प्रश्नों के उत्तर के लिए रखे जाते हैं।
अन्त में उपाध्यक्ष जी का उद्बोधन होता है, प्रधानाचार्य अथवा प्रबन्धक द्वारा सभी उपस्थितजनों का आभार प्रदर्शन किया जाता है तथा धन्यवाद के बाद सम्मेलन समाप्ति की घोषणा की जाती है।
उपसंहार-सम्मेलन आयोजित हो जाने के उपरान्त सम्मेलन समिति की एक बैठक होती है, जिसमें प्रतिवेदक द्वारा तैयार किया गया प्रतिवेदन पढ़कर सुनाया जाता है। इसके बाद सम्मेलन की सफलता, असफलता की समीक्षा की जाती है और अगले सम्मेलन की भूमिका का निर्माण किया जाता है।
वृत्तिक सम्मेलन के उद्देश्य
वृत्तिक सम्मेलन के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
1. विद्यार्थियों को विभिन्न वृत्तिक सम्बन्धी सूचनाओं की जानकारी प्रदान करना।
2. विद्यार्थियों को भविष्य में वृत्तिक चयन के लिए निर्देशन देना।
3. विद्यार्थियों की रुचि, योग्यताओं, क्षमता व अभिरुचि के अनुसार वृत्तिक चयन करने के योग्य बनाना।
4. विद्यार्थियों को वृत्तिक सम्बन्धी जानकारी पूर्ण व पश्चात् में सम्बन्धित जानकारी प्रदान करना।
5. विभिन्न, वृत्तिक विशेषज्ञों को आमन्त्रित करके उनके अनुभवों व विचारों से छात्रों को लाभान्वित करना।
6. विभिन्न वृत्तियों के साहित्य को उपलब्ध करवाना एवं लाभ उठाने हेतु प्रेरित करना।
7. छात्र की रुचि के अनुसार संस्था में छात्र का नाम पंजीकृत कराने में सहायता देना।
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