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वैदिककालीन शिक्षा के गुण व दोष | Vaidik Kaleen Shiksha Ke Gun Aur Dosh

वैदिककालीन शिक्षा के गुण व दोष
वैदिककालीन शिक्षा के गुण व दोष

वैदिककालीन शिक्षा के गुण व दोष बताइए।

वैदिक शिक्षा के गुण

वैदिक शिक्षा प्रणाली के प्रमुख गुण निम्नलिखित थे-

1. वैदिककालीन शिक्षा निःशुल्क थी। गुरुकुलों में शिष्यों से किसी भी प्रकार का शुल्क नहीं लिया जाता था। उनके आवास, वस्त्र तथा भोजन की व्यवस्था भी निःशुल्क होती थी। वैदिक काल की शिक्षा पर होने वाले व्यय की पूर्ति राज, धनाढ्य लोगों तथा भिक्षाटन एवं गुरु दक्षिणा से की जाती थी।

2. वैदिककालीन शिक्षा के उद्देश्य एवं अर्थ व्यापक थे। वैदिककालीन शिक्षा द्वारा मनुष्यों का शारीरिक, बौद्धिक, नैतिक, सांस्कृतिक, व्यावसायिक तथा आध्यात्मिक विकास किया जाता था।

3. वैदिककालीन शिक्षा की पाठ्यचर्या व्यापक थी। वैदिक काल में मनुष्य के प्राकृतिक, सामाजिक और आध्यात्मिक तीनों पक्षों के विकास पर बल दिया जाता था और इसके लिए शिक्षा की पाठ्यचर्या में भौतिक तथा आध्यात्मिक दोनों प्रकार के विषयों को सम्मिलित किया गया था।

4. वैदिककालीन शिक्षा में उत्तम शिक्षण विधियों का प्रयोग किया जाता था। अनुकरण, व्याख्यान, वाद-विवाद, प्रश्नोत्तर, तर्क, विचार-विमर्श, चिन्तन, मनन, सिद्धिध्यासन, प्रयोग एवं अभ्यास, नाटक एवं कहानी इत्यादि वैज्ञानिक एवं मनोवैज्ञानिक विधियों का विकास किया जा चुका था।

5. वैदिक काल में गुरु तथा शिष्यों का जीवन अत्यन्त संयमित एवं अनुशासित होता था। उनकी जीवन शैली सादा जीवन, उच्च विचार पर आधारित थी।

6. वैदिककालीन शिक्षा में गुरु तथा शिष्यों के मध्य मधुर सम्बन्ध थे। दोनों के मध्य स्नेह तथा श्रद्धा का सम्बन्ध था। दोनों एक-दूसरे के प्रति त्याग की भावना रखते थे। गुरु तथा शिष्यों के बीच मानस पिता-पुत्र के सम्बन्ध थे।

7. वैदिककालीन शिक्षा में गुरुकुलों का पर्यावरण अति उत्तम था। गुरुकुल प्रकृति की स्वच्छ वातावरण से युक्त स्थलों में होते थे जहाँ जन कोलाहल नहीं था तथा जल तथा वायु शुद्ध प्राप्त होती थी।

8. वैदिककालीन जीवन पद्धति संस्कार प्रधान थी। वैदिककालीन शिक्षा उपनयन संस्कार से प्रारम्भ होती थी तथा अनुशासित, मर्यादित जीवन पद्धति से शिक्षा प्राप्त करते हुए समावर्तन संस्कार से पूरी होती थी।

वैदिक काल में प्रचलित शिक्षा के मुख्य दोष क्या थे ?

वैदिक शिक्षा के प्रमुख दोष

वैदिककालीन शिक्षा में यद्यपि अनेक गुण विद्यमान थे, इसके बावजूद इस शिक्षा प्रणाली में निम्नलिखित दोष भी पाए जाते थे-

1. वैदिककालीन शिक्षा में राज्य का नियन्त्रण या उत्तरदायित्व नहीं था। तत्कालीन शिक्षा व्यवस्था पूर्णत: व्यक्तिगत नियन्त्रण में थी जो पूर्णत: गुरुकुलों तक सीमित थी अतः इससे जन शिक्षा की अवहेलना होती थी|

2. वैदिककालीन शिक्षा में आय की सुनिश्चित एवं विधिवत् व्यवस्था नहीं थी। यद्यपि वैदिककालीन शिक्षा का व्यय राजा, धनी लोग, भिक्षाटन तथा गुरु दक्षिणा से पूरा किया जाता था किन्तु इस सबका को निश्चित समय, मात्रा के न होने से असमंजस की स्थिति रहती थी।

3. वैदिककालीन शिक्षा की संरचना अमनोवैज्ञानिक थी। प्राथमिक तथ्य उच्च स्तर की शिक्षा में विभाजित शिक्षा व्यवस्था का वर्गीकरण मनोवैज्ञानिक ढंग से नहीं किया गया था।

4. वैदिककालीन शिक्षा को पाठ्यचर्या अव्यवस्थित तथा अलग-अलग थी। यद्यपि शिक्षा की पाठ्यचर्या अत्यन्त व्यापक थी किन्तु भिन्न-भिन्न गुरुकुलों की पाठ्यचर्या भी भिन्न-भिन्न थी।

5. वैदिककालीन शिक्षा में रटने पर विशेष बल दिया जाता था। यद्यपि उस समय उत्तम शिक्षण विधियों का विकास हो चुका था किन्तु लिखने की समुचित व्यवस्था का अभाव होने के कारण रटने प विशेष बल दिया जाता था।

6. वैदिककालीन शिक्षा की अनुशासन व्यवस्था अत्यन्त कठोर थी। उस समय अनुशासन से तात्पर्य शारीरिक, मानसिक और आत्मिक तीनों प्रकार के संयम से लिया जाता था। आहार-विहार तथा आचार-विचार की शुद्धता तथा ब्रह्मचर्य व्रत के पालन पर विशेष जोर दिया जाता था

7. वैदिककालीन शिक्षा में स्त्री शिक्षा की समुचित शिक्षा का अभाव था। यूँ तो वैदिककाल में स्त्रियों की शिक्षा पर रोक नहीं थी तथा कुछ विदुषी महिलाएँ भी थीं किन्तु उनकी संख्या अत्यन्त न्यून थी।

8. वैदिककालीन शिक्षा में धार्मिक शिक्षा पर विशेष बल दिया जाता था। वैदिककालीन शिक्षा धर्म प्रधान एवं कर्मकाण्ड पर आधारित थी जिसे एक वर्ग विशेष के लोगों का एकाधिकार माना जाता था।

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