मानवीय मूल्यों के विकास में विद्यालय की भूमिका
Role of School in Development of Human Values
विद्यालय शिक्षा का औपचारिक सक्रिय अभिकरण है, यहाँ सुव्यवस्थित तथा योग्य सदस्यता के लिये बालकों को तैयार किया जाता है। विद्यालय के वातावरण का प्रभाव छात्रों के जीवन पर पड़ता है। यह बालकों में उच्च आदर्शों तथा मूल्यों का विकास करने में सहायक है। जैसा कि कहा जाता है-Values are Never Taught but Caught. इस दृष्टि से विद्यालय पाठ्यक्रम को इस प्रकार व्यवस्थित किया जाता है कि सभी विषयों में मूल्यों से जुड़े पाठ सम्मिलित किये जा सके। विद्यालय में प्रात:काल प्रार्थना स्थल पर ईश प्रार्थना बालकों को सद्मार्ग के लिये प्रेरित करती है तथा बालकों में स्व-मनन की आदत विकसित करती है। प्रार्थना सभा में प्रेरक प्रसंग की प्रस्तुति से बालकों में आत्मविश्वास तथा त्याग जैसे मूल्य विकसित होते हैं। राष्ट्र के महापुरुषों के जीवनी के ज्ञान से बालकों में देशप्रेम की भावना विकसित होती है। विद्यालय में पाठ्य-सहगामी क्रियाओं का समय-समय पर आयोजन करने से बालकों में कर्मशीलता, उत्तरदायित्व जैसे मूल्य विकसित होते हैं। उनमें सहयोग की भावना बढ़ती है। वे एक-दूसरे के साथ मिलजुल कर कार्य करने के लिये प्रेरित होते है। खेलकूद प्रतियोगिता से बालकों में खेल भावना का विकास होता है।
शैक्षिक भ्रमण के लिये बालकों को वृद्धाश्रम, अनाथाश्रम जैसे स्थलों पर ले जाना चाहिये जहाँ जीवन की वास्तविकता को देखकर वे इसके लिये उत्तरदायी कारणों को खोज सकें तथा भविष्य में इन आश्रमों की संख्या घटे उसके लिये प्रयास कर सके। समय-समय पर विद्यालय में ज्वलन्त समस्या पर पोस्टर प्रतियोगिता, नाट्य प्रतियोगिता, पत्र-पत्रिका, संग्रहण प्रतिस्पर्धा का आयोजन करना चाहिये, जिससे छात्रों में आदर्श नागरिकता, राष्ट्रीय एकता का विकास हो सके। मूल्यों के विकास में अध्यापक की चुनौतीपूर्ण भूमिका है। वे विद्यार्थियों में मूल्यों को आत्मसात् करने को अहम् भूमिका निभाते हैं। इसके लिये शिक्षक इतने योग्य होने चाहिये कि वे अभिवृत्तियों का विश्लेषण कर सके। साथ ही साथ वे अच्छे सन्देश वाहक भी होने चाहिये। विश्व धरोहर की सुरक्षा हेतु छात्रों में जागरूकता लाने के लिये उन्हें पर्यटन स्थलों पर ले जाना चाहिये। अध्यापक को ऐतिहासिक धरोहर की सुरक्षा हेतु उन्हें जागरूक करना चाहिये। विद्यालय में विभिन्न धर्म के पर्यों को मनाने से छात्रों में ‘सर्वधर्म समभाव’ की भावना विकसित होती है। छात्र किसी भी धर्म का हो किन्तु उसे सभी धर्म की विशेषताओं का ज्ञान हो जाता है। फलस्वरूप उनमें धार्मिक मूल्य विकसित होते हैं। निष्कर्षतः यह कहा जाता है कि मूल्य शाश्वत होते है, ये कभी भी नष्ट नहीं होते। मूल्यों की चमक कम हो जाने पर उन्हें शिक्षा रूपी रोशनी से पुनः चमकीला बनाया जा सकता है। भारतीय समाज अपने मूल्यों की पूर्ति के द्वारा ही अपने अतीत के गौरव की ओर जा सकता है। शिक्षा ही समाज के शाश्वत मूल्यों की रक्षा कर समाज को प्रगति की ओर ले जा सकती है। शिक्षा शिक्षालयों में दी जाती है। अत: मूल्यों के विकास के लिये विद्यालय वातावरण लोकतान्त्रिक उत्साहवर्द्धक, स्वच्छ एवं सौन्दर्यपूर्ण होना चाहिये।
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