मानवीय मूल्यों की शिक्षा की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
Historical Background of Education of Human Values
मानवीय मूल्यों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि- 1929 में हींग समिति ने इस बात की आवश्यकता अनुभव की कि भारतीय विद्यालयों में धार्मिक निर्देशों की शिक्षा दी जानी चाहिये। 1937 में महात्मा गाँधी ने वर्धा में प्रथम भारतीय शिक्षा सम्मेलन बुलाया। इस सम्मेलन ने शिक्षा में मानवीय मूल्यों की शिक्षा को स्वीकार किया। डॉ. जाकिर हुसैन समिति ने भी इस बात की आवश्यकता अनुभव की कि शिक्षा का पाठ्यक्रम ऐसा बनाया जाय जो छात्रों में आदर्श नागरिकता, शारीरिक श्रम के प्रति सम्मान तथा सामुदायिक कार्यों में सहभागिता आदि गुणों को विकसित कर सके।
विभिन्न आयोगों के अनुसार (According to various commissions)- 1948 में डॉ. राधाकृष्णन् की अध्यक्षता में नियुक्त किये जाने वाले विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग ने धार्मिक और मानवीय मूल्य शिक्षा की विषयवस्तु के बारे में अधोलिखित सुझाव दिये-
1. विद्यालय स्तर- विद्यालय स्तर पर विशेष रूप से माध्यमिक स्तर के लिये आयोग के सुझाव निम्नलिखित हैं-
- छात्रों को श्रेष्ठ, नैतिक और धार्मिक सिद्धान्तों को व्यक्त करने वाली कहानियाँ पढ़ाया जायें।
- छात्रों को महापुरुषों की जीवनियाँ पढ़ायी जायें।
- जीवनियों में महापुरुषों के अन्य विचारों और श्रेष्ठ भावनाओं का समावेश किया जाय।
2. विश्वविद्यालय स्तर- विश्वविद्यालय स्तर के लिये आयोग के सुझाव इस प्रकार हैं-
- डिग्री (विश्वविद्यालय पाठ्यक्रम) कोर्स के प्रथम वर्ष में बुद्ध, कन्फ्यूशियस, जोरोस्टर, सुकरात, ईसा, शंकर, रामानुज, माधव, मोहम्मद, कबीर, नानक तथा गाँधी आदि महान् धार्मिक महापुरुषों की जीवनियाँ पढ़ायी जायें।
- द्वितीय वर्ग में संसार के धार्मिक ग्रन्थों में से सार्वभौमिक महत्त्व के चुने हुए भागों को पढ़ाया जाय।
- तृतीय वर्ष में धर्म दर्शन की मुख्य समस्याओं को अध्ययन कराया जाय।
भारत सरकार ने अगस्त 1959 में श्री प्रकाश की अध्यक्षता में धार्मिक एवं नैतिक शिक्षा समिति (Committee on religious and moral instruction) की नियुक्ति की। इस समिति ने जनवरी 1960 में अपनी रिपोर्ट सरकार के समक्ष प्रस्तुत की और उसमें धार्मिक एवं नैतिक शिक्षा की विषय सामग्री के सम्बन्ध में विचार व्यक्त किये – प्राथमिक से लेकर विश्वविद्यालय स्तर तक के लिये समिति के सुझाव अग्र प्रकार हैं-
1. प्राथमिक स्तर- प्राथमिक स्तर के लिये समिति के सुझाव इस प्रकार हैं-
- छात्रों में सेवा की भावना का विकास किया जाय।
- छात्रों को प्रति सप्ताह दो घण्टे नैतिक शिक्षा की शिक्षा प्रदान की जाय।
- छात्रों को सन्तों और वर्ण प्रवर्तकों के जीवन और उपदेशों से सम्बन्धित सरल और रोचक कहानियाँ पढ़ायी जायें।
- छात्रों के समक्ष मुख्य धर्मों से सम्बन्धित कला और स्थापत्य कला की वस्तुओं को श्रव्य-दृश्य सामग्री के रूप में प्रस्तुत किया जाये।
2. माध्यमिक स्तर- माध्यमिक स्तर के लिये समिति के सुझाव निम्नलिखित हैं-
- छात्रों को संसार के महान् धर्मों के महत्त्वपूर्ण सिद्धान्तों की शिक्षा दी जाये।
- छुट्टियों और विद्यालय की पढ़ायी के बाद अतिरिक्त पाठ्यक्रम क्रियाओं के रूप में समाज सेवा दलों द्वारा छात्रों में समाज सेवा की भावना का विकास किया जाये।
3. विश्वविद्यालय स्तर- विश्वविद्यालय स्तर के लिये समिति के सुझाव इस प्रकार हैं-
- डिग्री कोर्स में सामान्य शिक्षा के पाठ्यक्रम में विभिन्न धर्मों के सामान्य अध्ययन को अनिवार्य बनाया जाय।
- डिग्री कोर्स के प्रथम और द्वितीय वर्ष में धर्म और पवित्र ग्रन्थों को पढ़ाया जाय।
- स्नातकोत्तर कोर्स में धर्मों का तुलनात्मक अध्ययन कराया जाये।
1964 में प्रोफेसर डी.एस. कोठारी की अध्यक्षता में नियुक्त किये जाने वाले शिक्षा आयोग ने मानवीय मूल्य और नैतिक शिक्षा की विषय सामग्री के सम्बन्ध में अधोलिखित विचार व्यक्त किये-
1. विद्यालय स्तर- विद्यालय स्तर के लिये आयोग के सुझाव इस प्रकार हैं-
- छात्रों को आधारभूत नैतिक, सामाजिक और आध्यात्मिक मूल्यों की शिक्षा दी जाय, यथा-सत्यता, ईमानदारी, सामाजिक उत्तरदायित्व, पशुओं पर दया, वयोवृद्ध व्यक्तियों के प्रति सम्मान, दुःखी और दरिद्रों के प्रति सहानुभूति आदि।
- उक्त सभी मानवीय मूल्यों को विद्यालय के कार्यक्रम का अभिन्न अंग बनाया जाय।
- उक्त मूल्यों की शिक्षा देने के लिये समय तालिका में प्रति सप्ताह कुछ घण्टे निर्धारित किये जायें।
- विद्यालयों के पाठ्यक्रमों में संसार के सभी धर्मों को उचित स्थान दिया जाय।
- सम्पूर्ण देश के लिये समान पाठ्यक्रम की समान पुस्तक को राष्ट्रीय स्तर पर धर्म के विद्वानों द्वारा तैयार करवाया जाय।
- प्राथमिक स्तर पर भारत और संसार के महान् धर्मों से चुनी गयी रोचक कहानियों द्वारा आधारभूत मूल्यों और जीवन से सम्बन्धित समस्याओं की शिक्षा दी जाय।
- माध्यमिक स्तर पर मूल्यों और समस्याओं पर शिक्षक और छात्रों द्वारा विचार विमर्श किया जाय।
- माध्यमिक स्तर की उच्च कक्षाओं में महान् धार्मिक और आध्यात्मिक नेताओं तथा महापुरुषों की कहानियाँ पढ़ायी जायें।
- माध्यमिक विद्यालयों में अन्तिम दो वर्षों में छात्रों द्वारा विश्व के महान् धर्मों के प्रमुख सिद्धान्तों का अध्ययन कराया जाय।
2. विश्वविद्यालय स्तर- विश्वविद्यालय स्तर के लिये आयोग के सुझाव इस प्रकार हैं-
- छात्रों को व्यक्ति के सम्मान, समानता, सामाजिक न्याय तथा कल्याणकारी राज्य आदि की शिक्षा दी जाये।
- छात्रों में नैतिक, सामाजिक और आध्यात्मिक मूल्यों का विकास करने के लिये भारत के अन्य देशों की संस्कृतियों से सामग्री का संकलन किया जाय।
- प्रथम डिग्री कोर्स के पाठ्यक्रम में संसार के विभिन्न धर्मों के सामान्य अध्ययन को स्थान दिया जाय।
- डिग्री कोर्स के प्रथम वर्ष में महान् धार्मिक नेताओं की जीवनियाँ पढ़ायी जायें।
- उक्त कोर्स के द्वितीय वर्ष में संसार के धार्मिक ग्रन्थों में से सार्वभौमिक महत्त्व के चुने हुए भागों को पढ़ाया जाय।
- उक्त कोर्स के तृतीय वर्ष में धर्म दर्शन की मुख्य समस्याओं का अध्ययन कराया जाय।
- विश्वविद्यालय के तुलनात्मक धर्म विभागों द्वारा उपयुक्त धार्मिक और नैतिक साहित्य तैयार किया जाय।
वर्ष 1970 में राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसन्धान एवं प्रशिक्षण परिषद् (N.C.E.R.T.) ने एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें मूल्यों की आवश्यकता अनुभव की गयी। इस गोष्ठी में निम्नलिखित मानवीय मूल्यों के विकास पर बल दिया गया-
- श्रम का महत्त्व
- सामाजिक जागरूकता तथा उत्तरदायित्व की भावना का विकास
- दूसरे धर्मों के प्रति आदर भावना
- निर्भयता
- सत्यवादिता
- पवित्रता
- सेवा एवं
- अहिंसा।
राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसन्धान एवं प्रशिक्षण परिषद् ने एक छोटी-सी पुस्तिका ‘Social] moral and spiritual values’ प्रकाशित की। इसमें शासकीय स्तर पर ‘वेल्यू’ शब्द का प्रयोग किया गया। परन्तु इसमें सामाजिक, नैतिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों का चर्चा न होकर नैतिक शिक्षा की चर्चा है। इसमें तिरागी मूल्यों की एक सूची भी दी गयी है।
विभिन्न शिक्षा समितियों एवं आयोगों के प्रतिवेदनों में मूल्यपरक शिक्षा शब्द प्रयुक्त नहीं किया गया। यह तथ्य इस बात का द्योतक है कि मूल्यपरक शिक्षा की अवधारणा अपेक्षाकृत नवीन है। इन प्रतिवेदनों में नैतिक शिक्षा, धार्मिक शिक्षा शब्दों का प्रयोग हुआ जो अंग्रेजी के Moral education एवं Religious education शब्दों का सरल एवं सीधा अनुवाद है। वर्ष 1982 में शिमला में नैतिक शिक्षा पर उच्चस्तरीय परिचर्चा हुई। इसमें मूल्यपरक शिक्षा के बारे में निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण सिफारिशें प्रस्तुत की गयीं-
- मूल्यपरक शिक्षा का प्रावधान पूरे देश में किया जाना चाहिये।
- मूल्यपरक शिक्षा हमारी शिक्षण प्रक्रिया का केन्द्र बिन्दु होनी चाहिये।
- मूल्यपरक शिक्षा केवल विद्यालय लाने वाले छात्र एवं छात्राओं के लिये ही नहीं होनी चाहिये वरन् अनौपचारिक शिक्षा केन्द्रों (Non formal education centres) के माध्यम से शाला के बाहर के क्षेत्रों के लिये भी होनी चाहिये।
- मूल्यपरक शिक्षा से अभिभावकों को सम्बद्ध किया जाना चाहिये।
- मूल्यपरक शिक्षा के कार्यक्रमों में समूचे समाज को जोड़ा जाना चाहिये।
- पाठ्यक्रम तथा शिक्षण प्रविधियों आदि को इस प्रकार आयोजित किया जाय जिससे विद्यार्थियों में वांछित मूल्यों का विकास सहज ढंग से हो सके।
- मूल्यपरक शिक्षा का दायित्व सभी शिक्षकों पर डाला जाना चाहिये।
- मूल्यपरक शिक्षा से सम्बन्धित मुद्रित सामग्री के अतिरिक्त वांछित मूल्यों से सम्बन्धित फिल्में तैयार करायी जानी चाहिये।
Important Links
- भूमण्डलीकरण या वैश्वीकरण का अर्थ तथा परिभाषा | Meaning & Definition of Globlisation
- वैश्वीकरण के लाभ | Merits of Globlisation
- वैश्वीकरण की आवश्यकता क्यों हुई?
- जनसंचार माध्यमों की बढ़ती भूमिका एवं समाज पर प्रभाव | Role of Communication Means
- सामाजिक अभिरुचि को परिवर्तित करने के उपाय | Measures to Changing of Social Concern
- जनसंचार के माध्यम | Media of Mass Communication
- पारस्परिक सौहार्द्र एवं समरसता की आवश्यकता एवं महत्त्व |Communal Rapport and Equanimity
- पारस्परिक सौहार्द्र एवं समरसता में बाधाएँ | Obstacles in Communal Rapport and Equanimity
- प्रधानाचार्य के आवश्यक प्रबन्ध कौशल | Essential Management Skills of Headmaster
- विद्यालय पुस्तकालय के प्रकार एवं आवश्यकता | Types & importance of school library- in Hindi
- पुस्तकालय की अवधारणा, महत्व एवं कार्य | Concept, Importance & functions of library- in Hindi
- छात्रालयाध्यक्ष के कर्तव्य (Duties of Hostel warden)- in Hindi
- विद्यालय छात्रालयाध्यक्ष (School warden) – अर्थ एवं उसके गुण in Hindi
- विद्यालय छात्रावास का अर्थ एवं छात्रावास भवन का विकास- in Hindi
- विद्यालय के मूलभूत उपकरण, प्रकार एवं रखरखाव |basic school equipment, types & maintenance
- विद्यालय भवन का अर्थ तथा इसकी विशेषताएँ |Meaning & characteristics of School-Building
- समय-सारणी का अर्थ, लाभ, सावधानियाँ, कठिनाइयाँ, प्रकार तथा उद्देश्य -in Hindi
- समय – सारणी का महत्व एवं सिद्धांत | Importance & principles of time table in Hindi
- विद्यालय वातावरण का अर्थ:-
- विद्यालय के विकास में एक अच्छे प्रबन्धतन्त्र की भूमिका बताइए- in Hindi
- शैक्षिक संगठन के प्रमुख सिद्धान्त | शैक्षिक प्रबन्धन एवं शैक्षिक संगठन में अन्तर- in Hindi
- वातावरण का स्कूल प्रदर्शन पर प्रभाव | Effects of Environment on school performance – in Hindi
- विद्यालय वातावरण को प्रभावित करने वाले कारक | Factors Affecting School Environment – in Hindi
- प्रबन्धतन्त्र का अर्थ, कार्य तथा इसके उत्तरदायित्व | Meaning, work & responsibility of management