मानवीय मूल्यों की आवश्यकता
Need of Human Values
मानवीय मूल्य सम्पूर्ण सृष्टि के लिये आवश्यक तथ्य हैं। मानवीय मूल्यों की आवश्यकता को निम्नलिखित बिन्दुओं के माध्यम से स्पष्ट किया जा सकता है-
1. उपयोगिता के ज्ञान के लिये (For the knowledge of utility)— प्रत्येक वस्तु एवं विचार की उपयोगिता उसमें निहित मूल्य के कारण होती है। यह वस्तु हमारे लिये कितनी उपयोगी है? उसके लिये उसमें निहित मूल्य को ज्ञात करना परम आवश्यक है जैसे ईमानदारी सर्वोत्तम नीति है। यह एक विचार है। इसके पालन करने से हमको जो शक्ति मिलती है तथा मन में वैचारिक शुद्धता एवं जीवनदायिनी तरंगें उत्पन्न होती हैं, यह इस विचार के मूल्य होते हैं। इन मूल्यों के कारण ही यह विचार उपयोगी एवं सार्वभौमिक माना जाता है।
2. सांस्कृतिक व्यवस्था के ज्ञान के लिये (For the knowledge of cultural system)- भारतीय संस्कृति में अनेक प्रकार के मानवीय मूल्य निहित हैं। इन मूल्यों का ज्ञान प्रत्येक भारतीय नागरिक के लिये आवश्यक होता है। सांस्कृतिक मूल्यों के आधार पर ही विभिन्न सांस्कृतिक व्यवस्थाओं को समझा जा सकता है। इसलिये यह आवश्यक है सांस्कृतिक व्यवस्था की उपयोगिता एवं अनुपयोगिता का निर्णय मूल्यों के आधार पर ही किया जाना चाहिये।
3. सामाजिक व्यवस्था के ज्ञान के लिये (For the knowledge of social system)- मूल्यों की आवश्यकता सामाजिक व्यवस्था के ज्ञान के लिये भी होती है क्योंकि प्रत्येक समाज जिन विचारों एवं परम्पराओं पर आधारित होता है, उनमें मूल्य निहित होते हैं; जैसे-भारतीय समाज आदर्शवादी विचारों पर आधारित है। इन आदर्शवादी विचारों में आध्यात्मिक एवं मानवीय मूल्यों का समावेश होता है।
4. नैतिकता के स्वरूप का ज्ञान (Knowledge of form of morality) – नैतिकता की स्थिति एवं स्वरूप को ज्ञात करने के लिये भी उस व्यवस्था के मूल्यों का ज्ञान आवश्यक है। नैतिकता परिस्थिति एवं समय के अनुसार पृथक् रूप में परिभाषित होती है। देश का एक सिपाही आतंकवादी को मारता है तो पुरस्कार दिया जाता हैइतथा वह सम्मान का पात्र होता है, जबकि वही सिपाही देश के निरीह नागरिक को मार देता है तो उस पर अभियोग चलता है तथा उसे सजा दी जाती है।
5. मानवता के ज्ञान के लिये (For the knowledge of humanity)- मानवता के स्वरूप एवं प्रकृति के ज्ञान के लिये आवश्यक है कि उसमें निहित मूल्यों का ज्ञान प्राप्त किया जाय क्योंकि मानवीय मूल्य सार्वभौमिक तथ्यों के अन्तर्गत आते हैं इसलिये इनके लिये किसी प्रकार का समझौता नहीं किया जा सकता। मानवता के दृष्टिकोण को सम्पूर्ण विश्व में प्राथमिकता प्रदान की जाती है क्योंकि इसके द्वारा ही सम्पूर्ण सृष्टि का कल्याण सम्भव है।
6. अधिकार के ज्ञान के लिये (For the knowledge of rights)- अधिकार की व्यवस्था भी मूल्य परम्परा के अनुसार होती है। उदाहरण के लिये, भारतीय स्त्रियों एवं अरब देशों की स्त्रियों के अधिकारों में अन्तर पाया जाता है। इस अन्तर के लिये दोनों देशों के सामाजिक एवं सांस्कृतिक मूल्यों को उत्तरदायी माना जाता है। इसलिये अधिकारों की स्थिति एवं स्वरूप का ज्ञान भी मानवीय मूल्यों के ज्ञान पर निर्भर करता है।
7. कर्त्तव्य के ज्ञान के लिये (For the knowledge of duties)— व्यक्ति के कर्त्तव्यों को निश्चय उसके सांस्कृतिक, राजनैतिक एवं सामाजिक मूल्यों पर निर्भर करता है। भारतीय संस्कृति में मानव के लिये कर्तव्यों की व्यवस्था अधिक की गयी है, जबकि पाश्चात्य संस्कृति में कर्तव्यों की व्यवस्था कम है; जैसे-पति-पत्नी के मध्य कर्तव्यों की व्यवस्था सारगर्भित एवं विस्तृत है। परन्तु पाश्चात्य संस्कृति पति-पत्नी के मध्य कर्तव्यों की व्यवस्था कम की गयी है।
8. आध्यात्मिक ज्ञान के लिये (For the spiritual knowledge)- आध्यात्मिक ज्ञान के दृष्टिकोण का विकास भारतीय समाज में अधिक होता है, जबकि अन्य देशों में कम होता है। इसमें अन्तर के लिये वहाँ की मूल्य परम्परा को ही उत्तरदायी माना जाता है क्योंकि भारत में आदर्शवादी मूल्यों को अधिक महत्त्व प्रदान किया जाता है, जबकि अन्य देशों में भौतिकवादी मूल्यों का प्रभुत्व होता है। इसलिये आध्यात्मिक व्यवस्था के स्वरूप के ज्ञान के लिये उस समाज के मूल्यों के महत्त्व को स्वीकार किया जाता है अर्थात् मूल्यों के ज्ञान के अभाव में आध्यात्मिक स्थिति का ज्ञान सम्भव नहीं होता है।
9. राजनैतिक स्थिति के ज्ञान के लिये (For the knowledge of political situation)- राजनैतिक व्यवस्था में विभिन्नता का पाया जाना मूल्यों के कारण ही होता है। राम राज्य की कल्पना के पीछे आदर्शवादी एवं आध्यात्मिक मूल्य ही प्रभावी थे। वर्तमान राजनीति के पतन का कारण भी मूल्य ही हैं। वर्तमान समय में वैचारिक एवं सैद्धान्तिक मूल्यों का पतन होने के कारण राजनेता अपने आपको सेवक नमानकर शासक मानता है। उसके हदय में समाज के प्रति सेवा की भावना नहीं होती क्योंकि उसके मूल्यों का स्तर गिर चुका है उसकी आत्मा, विचार एवं चिन्ता स्तर पूर्णत: निरंकुश एवं आचरणहीन हो गया है। अत: वर्तमान एवं प्राचीन राजनैतिक व्यवस्था के ज्ञान के लिये मूल्यों के ज्ञान की आवश्यकता है
10.शिक्षा व्यवस्था के ज्ञान के लिये (For the knowledge of education system) – प्राचीन कालीन शिक्षा व्यवस्था के स्वरूप एवं वर्तमान शिक्षा व्यवस्था के स्वरूप पर दृष्टिपात किया जाय तो इसमें पर्याप्त अन्तर पाया जाता है क्योंकि इसका प्रमुख मूल्यों में परिवर्तन है। प्राचीनकाल के मूल्यों में होने वाले परिवर्तन के परिणामस्वरूप शिक्षा व्यवस्था में परिवर्तन होने लगा तथा शिक्षा ने वर्तमान स्वरूप धारण कर लिया। पाश्चात्य एवं भारतीय शिक्षा में भी पर्याप्त अन्तर पाया जाता है। इसका भी कारण मूल्य ही होते हैं। इसलिये किसी देश की शिक्षा व्यवस्था के ज्ञान के लिये मूल्यों का ज्ञान प्रथमतः आवश्यक होता है।
11. पर्यावरणीय व्यवस्था के ज्ञान के लिये. (For the knowledge of environmental system)— पर्यावरण प्रदूषण की जो समस्या वर्तमान समय में उत्पन्न हुई है, उसके पीछे भी मूल्य परिवर्तन को ही कारण माना जाता है। प्राचीनकाल में पर्यावरण प्रदूषण की समस्या उत्पन्न नहीं होती थी क्योंकि व्यक्ति अपने जीवन दर्शन एवं जीवन मूल्यों में सन्तुलन स्थापित करता था। धीरे-धीरे मानव ने विकास की दौड़ में भौतिक मूल्यों को अधिक महत्त्व प्रदान किया, जिससे प्राकृतिक संसाधनों का विदोहन एवं विनाश होने लगा और पर्यावरण प्रदूषण की समस्या उत्पन्न होने लगी। अत: पर्यावरणीय व्यवस्था का स्वरूप एवं प्रकृति के ज्ञान के लिये मूल्यों का ज्ञान आवश्यक है।
12. जीवन दर्शन के ज्ञान के लिये (For the knowledge of life philosophy)- मानव जीवन में अनेक प्रकार के दर्शनों का प्रचलन देखा जाता है। व्यक्तियों को एक समूह आदर्शवादिता को स्वीकार करता है दूसरा समूह प्रकृतिवादी दर्शन को स्वीकार करता है। वर्तमान समय में प्रयोजनवादी दर्शन को स्वीकार किया जा रहा है। इसका प्रमुख कारण भी मूल्य परिवर्तन का ही माना जाता है। वर्तमान वैज्ञानिक एवं तकनीकी के युग में व्यक्ति द्वारा प्रयोजनवादी दर्शन में ही स्वीकार किया जाता है क्योंकि आदर्शवादिता से व्यक्ति का पेट नहीं भरता अर्थात् व्यक्ति आदर्शवादी मूल्यों को अनुपयोगी समझने लगा है। विभिन्न प्रकार के जीवन दर्शनों के अध्ययन एवं प्रकृति के ज्ञान के लिये मूल्यों की आवश्यकता होती है।
मानवीय मूल्यों का महत्त्व
Importance of Human Values
मूल्य शब्द ही अपने आप में महत्त्वपूर्ण शब्द है। मूल्यवान एवं मूल्यहीन होना ही प्रत्येक वस्तु की उपयोगिता एवं उपयोगहीनता को सिद्ध करता है। मानवीय मूल्यों के महत्त्व को प्रत्येक अवस्था में स्वीकार किया जाता है। मूल्य हीनता की स्थिति सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक असन्तुलन की सूचना देती है तथा मूल्य विकास की स्थिति सामाजिक आर्थिक एवं राजनैतिक विकास को सूचित करती है। अत: मूल्य का महत्त्व प्रत्येक क्षेत्र में स्वीकार किया जाता है। मूल्यों के महत्त्व को किसी भी स्तर पर अस्वीकार नहीं किया जा सकता। मूल्य ही वह महत्त्वपूर्ण तथ्य है, जोकि समाज, संस्कृति एवं राष्ट्र के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करता है। मूल्य के अभाव में कोई भी विचार एवं वस्तु समाजोपयोगी एवं राष्ट्रोपयोगी नहीं हो सकती।
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