विविधता या विभिन्नता किसे कहते है?
विविधता या विभिन्नता (Diversity) – भारत विविधताओं का देश है। हमारे देश में विभिन्न प्रकार के धर्म, नस्लें, संस्कृतियों और परम्पराओं को मानने वाले लोग रहते हैं। हमारे देश में विभिन्न नस्ल, धर्म, जाति, उप-जाति, समुदाय, भाषा और बोली की अधिक विविधता के बावजूद भी यहाँ के लोग एक होकर रहते हैं। भारत विश्व का एक प्रसिद्ध और बड़ा देश है जहाँ भिन्न धर्म जैसे – हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, बौद्ध, जैन और पारसी आदि एक साथ मिलकर रहते हैं। ये सभी अपने त्योहारों होली, दिवाली, ईद, लोहड़ी, क्रिसमस, गुड फ्राइडे, महावीर जयंती, बुद्ध जयंती आदि मिल-जुल कर मनाते हैं।
विश्व में भारत सबसे पुरानी सभ्यता का एक जाना-माना देश है जहाँ वर्षों से कई प्रजातीय समूह एक साथ रहते हैं। भारत विविध सभ्यताओं का देश है। यहाँ के लोग लगभग 18 भाषाएँ और 1652 बोलियों का इस्तेमाल करते हैं।
भारत एक संगठित राष्ट्र है, जिसका अपना संविधान है जिसमें सभी धर्मों, संस्कृतियों, भाषाओं और क्षेत्रीय लोगों के लिये महत्वपूर्ण स्थान सुरक्षित है।
विभिन्नता के प्रकार (Types of Diversity) –
विभिन्नता के प्रकार निम्नलिखित हैं-
(1) भाषागत विभिन्नता (Linguistic Diversity) –
भारत एक बहुभाषी राष्ट्र है, यहाँ अनेक भाषायें बोली जाती हैं। वर्तमान में भारत में 18 राष्ट्रीय भाषायें तथा 1652 के लगभग बोलियाँ हैं। वैसे भारतीय संविधान में केवल 15 भाषाओं का ही उल्लेख किया गया है तथा 1992 में अन्य तीन भाषाओं को मान्यता दी गयी है। सरकारी कार्य में 18 भाषाओं का ही प्रयोग किया जाता है। वर्तमान में 22 भाषाओं को मान्यता मिल चुकी है। भारत में इसके अलावा भी अनेक भाषायें व बोलियाँ बोली जाती है। जैसे – हिन्दी में अवधी, बघेली, भोजपुरी, ब्रज, बुन्देली, छत्तीसगढ़ी, हाड़ौती, मगही, मालवी, निमाड़ी, पहाड़ी राजस्थानी आदि। भारत में बोली जाने वाली भाषाओं को मुख्य रूप से चार भाषा परिवारों में बाँटा जा सकता है
(i) इण्डो-यूरोपीय भाषायी परिवार- भारत में सबसे अधिक संख्या में बोली जाने वाली भाषायें व बोलियाँ इण्डो आर्य-भाषा परिवार की हैं। ये भाषाएँ बोलने वाले हमारे देश में लगभग 78.4%- लोग है। इसमें पंजाबी, सिन्धी, हिन्दी, बिहारी, बंगला, असमिया, राजस्थानी, गुजराती, मराठी, उड़िया, कश्मीरी आदि भाषायें शमिल हैं।
(ii) द्रविड़ भाषायी परिवार- द्रविड़ भाषा बोलने वाले हमारे देश में लगभग 20.6% लोग हैं। इसमें तेलगू, कन्नड़, तमिल, मलयालम, कोडगू, गोंडी आदि भाषायें आती हैं।
(iii) आस्ट्रो एशियाई भाषायी परिवार- इसमें मध्य भारत की जनजातीय – पट्टी की भाषाएँ आती हैं। इसमें मुंडारी, बौन्दो, जुआंग, भूमिया, संथाली, खासी आदि भाषायें आती हैं।
(iv) साइनो-तिब्बतन परिवार- अमतौर पर उत्तर-पूर्वी भारत की जनजातियाँ
(2) क्षेत्रीय /भौगोलिक विविधता ( Regional /Geographical Diversity)
भौगोलिक दृष्टि से भारत में विविधता दर्शित होती है। भारत की इस भौगोलिक विविधता के सम्बन्ध में ‘डॉ. राजेन्द्र प्रसाद’ ने अपने भाषण में स्पष्ट कहा है कि यदि कोई विदेशी, जिसे भारतीय परिस्थितियों का ज्ञान नहीं है, सारे देश की यात्रा करे तो, वह वहाँ की भिन्नताओं को देखकर यही समझेगा कि यह एक देश नहीं, बल्कि छोटे-छोटे देशों का समूह है और ये देश एक-दूसरे से अत्यधिक भिन्न है। जितनी अधिक प्राकृतिक भिन्नताएँ यहाँ हैं, उतनी अन्यत्र कहीं पर नहीं है। देश के एक छोर पर उसे हिम मंडित हिमालय दिखायी देगा और दक्षिण की ओर बढ़ने पर गंगा, यमुना एवं ब्रह्मपुत्र की घाटियाँ, फिर विन्ध्य, अरावली सतपुड़ा तथा नीलागिरि पर्वत श्रेणियों का पठार। इस प्रकार, अगर वह पश्चिम से पूर्व की ओर जायेगा तो उसे वैसी ही विविधता और विभिन्नता मिलेगी। उसे विभिन्न प्रकार की जलवायु मिलेगी। हिमालय की अत्यधिक ठण्ड, मैदानों की ग्रीष्मकाल की अत्यधिक गर्मी मिलेगी। एक तरफ असम का समवर्षा वाला प्रदेश है, तो दूसरी ओर जैसलमेर का सूखा क्षेत्र, जहाँ बहुत कम वर्षा होती है। इस प्रकार भौगोलिक दृष्टि से भारत में सर्वत्र विविधता दिखाई पड़ती है।
(3) सांस्कृतिक विविधता (Cultural Diversity)-
भारतीय संस्कृति में हम प्रथाओं, परम्पराओं, रहन-सहन वेश-भूषा, धर्म, जातियों, नैतिक-मूल्यों, व्यवहार के ढंग, कलाओं आदि की भाषा के रूप में विभिन्नतायें देखी जा सकती हैं। उत्तर-भारत की भाषा, पहनावा, रहन-सहन अन्य प्रातों से अलग है। गाँवों की संस्कृति नगरों की संस्कृति से भिन्न है। महानगरों में पाश्चात्य सभ्यता व संस्कृति का अत्यधिक प्रभाव दिखाई देता है। गाँवों की संस्कृति सरल व सहज है, यह संस्कृति हमें वास्तविक भारत का ज्ञान कराती है। हमारे देश में अनेक धर्म व जाति के लोग रहते हैं, जिनकी अपनी-अपनी मान्यतायें, प्रथायें, रुचियाँ व इच्छायें हैं। हिन्दुओं में एक विवाह तो मुस्लिमों में बहुपत्नी-प्रथा का चलन है, देवी-देवता भी सबके अलग-अलग हैं। भारतीय मानवशास्त्रीय सर्वेक्षण के अनुसार भारत में 91 संस्कृति क्षेत्र हैं। अतः यह कहा जा सकता है कि भारत संस्कृतिक दृष्टि से अनेक विविधतायें लिये है।
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