साम्प्रदायिकता एवं इसके दुष्परिणाम
Religious Bigotry and Its Bad Effect
साम्प्रदायिकता एवं इसके दुष्परिणाम- साम्प्रदायिकता की प्रवृत्ति लोकतन्त्र के आधारभूत सिद्धान्तों के विपरीत है। यह प्रवृत्ति समाज में घृणा, तनाव एवं संघर्ष को जन्म देती है। लोकतन्त्र तो धार्मिक सद्भाव अथवा धर्म निरपेक्षता पर आधारित होता है। धार्मिक सम्प्रदायवाद समाज में विघटन उत्पन्न करके समाज को विभिन्न वर्गों में विभाजित कर देता है। यह विकृत स्थिति भारत में सदियों से व्याप्त है तथा यह लोकतन्त्र के लिये एक गम्भीर चुनौती है।
साम्प्रदायिकता के दोष (Demerits of communalism)
साम्प्रदायिकता आज भारतीय समाज के लिये एक कलंक है तथा राष्ट्रीय एकता एवं अखण्डता के सामने सबसे बड़ी चुनौती है। इसके प्रमुख दोष निम्नलिखित हैं-
(1) साम्प्रदायिकता का सबसे बड़ा दोष यह है कि यह राष्ट्रीय एकीकरण में सबसे बड़ी रुकावट है। साम्प्रदायिकता के कारण व्यक्ति सम्प्रदाय के हितों के सामने राष्ट्रीय हितों को कुछ भी नहीं समझते तथा इन्हें किसी भी प्रकार का नुकसान पहुँचाने से नहीं चूकते। इससे राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया भी प्रभावित होती है और राष्ट्र के प्रति निष्ठा एवं वफादारी विकसित नहीं हो पाती है।
(2) साम्प्रदायिकता राष्ट्रीय सुरक्षा को भी खतरे में डाल देती है क्योंकि इसमें अन्य अनेक समस्याओं; जैसे-क्षेत्रीयता, भाषावाद आदि को भी प्रोत्साहन मिलने लगता है। यदि कोई विदेशी शक्ति किसी सम्प्रदाय विशेष को सहायता देने लगती है तो यह समस्या और अधिक गम्भीर हो सकती है।
(3) साम्प्रदायिकता से विघटनकारी शक्तियों को प्रोत्साहन मिलता है जो राष्ट्रीय विघटन की स्थिति पैदा कर देती है। साम्प्रदायिकता के आधार पर राष्ट्रों में विभाजन तथा युद्ध तक हो जाते हैं।
(4) साम्प्रदायिकता का अन्य स्वाभाविक दोष सामाजिक विघटन है क्योंकि साम्प्रदायिकता से अन्य अनेक समस्याओं; जैसे-अपराध, डकैती, दंगे, आपसी झगड़े, आगजनी, लूटमार आदि को प्रोत्साहन मिलता है और सामान्य सामान्य सामाजिक व्यवस्था ठप हो जाती है।
(5) साम्प्रदायिकता के कारण राजनीतिक विघटन की स्थिति भी पैदा हो जाती है क्योंकि इसके परिणामस्वरूप राजनीतिक अस्थिरता बढ़ती है और प्रशासनिक व्यवस्था एक प्रकार से ठप सी हो जाती है। यदि साम्प्रदायिकता के आधार पर वोट डाले जायें और इसी आधार पर शासन की नीतियाँ बनायी जायें तो राजनीतिक अस्थिरता का आना स्वाभाविक ही है।
(6) साम्प्रदायिकता से राष्ट्रीय सम्पत्ति, व्यक्तिगत सम्पत्ति एवं जान-माल की ही हानि नहीं होती अपितु जमाखोर एवं राष्ट्र विरोधी तत्त्व भी पूरा-पूरा लाभ उठाते हैं और देश को आर्थिक विघटन के कगार पर खड़ा कर देते हैं।
(7) राष्ट्रीय विघटन, सामाजिक विघटन, राजनीतिक एवं आर्थिक विघटन का अन्तिम परिणाम पारिवारिक विघटन है। निर्दोष व्यक्तियों की मृत्यु तथा सम्पत्ति नष्ट हो जाने से अनेक परिवार विघटित हो जाते हैं, बच्चे अनाथ हो जाते हैं तथा स्त्रियाँ विधवा हो जाती हैं यहाँ तक कि पूरा परिवार आर्थिक संकट से ग्रस्त हो जाता है।
(8) साम्प्रदायिकता का अन्य परिणाम प्रकृतिगत विघटन है क्योंकि इससे इतनी जान-माल की हानि तथा आपसी झगड़े होते हैं कि व्यक्ति अपने आपको आदर्शविहीनता की स्थिति में ले जाता है।
साम्प्रदायिकता को दूर करने के उपाय
(Measures to remove communalism)
साम्प्रदायिकता को दूर करने के निम्नलिखित उपाय हैं-
(1) साम्प्रदायिक सद्भाव विकसित करके विभिन्न धार्मिक सम्प्रदायों के व्यक्तियों को एक साथ रहने के लिये प्रेरित किया जाना चाहिये तथा इसके लिये कोई राष्ट्रीय नीति बनायी जानी चाहिये।
(2) गिरते हुए नैतिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों की पुनर्स्थापना का प्रयास किया जाना चाहिये। शिक्षा के क्षेत्र में इस प्रकार से परिवर्तन किया जाना चाहिये कि नैतिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों को प्रोत्साहन मिले।
(3) सभी त्यौहारों को राष्ट्रीय स्तर पर मनाने के प्रयास किये जाने चाहिये ताकि विभिन्न सम्प्रदाय एक साथ मिलकर इनमें सम्मिलित हो सकें।
(4) धर्मनिरपेक्षता (लौकिकता) को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
(5) भाषा के सम्बन्ध में एक स्पष्ट एवं सर्वमान्य राष्ट्रीय नीति बनायी जानी चाहिये।
(6) शिक्षा के माध्यम से धार्मिक असहिष्णुता के दोषों को दूर करके लौकिक दृष्टिकोण को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
(7) सार्वजनिक शान्ति समितियों एवं प्रार्थना सभाओं को गठन एवं आयोजन किया जाना चाहिये तथा इनमें सभी धर्मों के व्यक्तियों को सम्मिलित किया जाना चाहिये।
(8) धर्माधारित राजनीतिक दलों पर अंकुश रखना चाहिये।
(9) साम्प्रदायिक तत्त्वों पर कड़ी नजर रखी जानी चाहिये।
(10) गुप्तचर एजेन्सियों को और अधिक चुस्त बनाया जाना चाहिये ताकि वे कूटरचित साम्प्रदायिक गुप्त मन्त्रणाओं की सूचना सही दे सक।
(11) समाज विरोधी तत्त्वों तथा साम्प्रदायिक तत्त्वों के विरुद्ध कठोर कार्यवाही की जानी चाहिये।
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