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पारस्परिक सौहार्द्र एवं समरसता में बाधाएँ | Obstacles in Communal Rapport and Equanimity

पारस्परिक सौहार्द्र एवं समरसता में बाधाएँ
पारस्परिक सौहार्द्र एवं समरसता में बाधाएँ

पारस्परिक सौहार्द्र एवं समरसता में बाधाएँ

वर्तमान समय में प्रत्येक राष्ट्र पारस्परिक सौहार्द्र एवं समरसता को स्थापित करने का प्रयास कर रहा है परन्तु अनेक ऐसी बाधाएँ जो कि सौहार्द्र स्थापना के मार्ग में सुरसा की मुँह फैलाये खड़ी रहती हैं अर्थात् बुद्धिजीवियों एवं समाजशास्त्रियों के सौहार्द्र स्थापना के सम्पूर्ण प्रयासों को असफल कर देती हैं । सामाजिक एवं साम्प्रदायिक सौहार्द्र के मार्ग की प्रमुख बाधाएँ निम्नलिखित हैं-

(1) समाज में अलगाववाद की प्रवृत्ति होने के कारण सौहार्ट स्थापना के प्रयल विफल हो जाते हैं ।

(2) धर्म के सिद्धान्तों की त्रुटिपूर्ण व्याख्या एवं धर्मोन्माद उत्पन्न करना सौहार्द्र स्थापना के मार्ग में बाधा उपस्थित करते हैं ।

(3) भाषावाद भी सामाजिक सौहार्द्र स्थापना के मार्ग की प्रमुख बाधा है क्योंकि हमारे देश में अनेक भाषाएँ बोली जाती हैं ।

(4) क्षेत्रवादिता के कारण व्यक्ति अपने क्षेत्र को महत्त्व देता है तथा दूसरे के क्षेत्र को कम महत्त्व देता है। परिणामस्वरूप सामाजिक एवं साम्प्रदायिक सौहार्द्र स्थापना में बाधा उपस्थित होती है ।

(5) विभिन्न विचारधाराओं का समाज में प्रचलन होता है, जिससे समाज को सौहार्द्र के सूत्र में बाँधना कठिन कार्य होता है ।

(6) मानव अपने व्यक्तिगत स्वार्थों को महत्त्व देता है तथा सार्वजनिक हित को त्याग देता है, जिससे सामाजिक सौहार्द्र स्थापना में कठिनाई उत्पन्न होती है ।

(7) सामाजिक कुरीतियों एवं अन्ध विश्वासों के कारण भी सामाजिक एवं साम्प्रदायिक सौहार्द्र स्थापना के मार्ग में बाधा उत्पन्न होती है ।

(8) धार्मिक कट्टरता भी समाज में विवाद एवं अशान्ति को जन्म देती है। इससे सामाजिक सौहार्द
स्थापित नहीं हो सकता ।

(9) अनेक बार राष्ट्र एवं समाज में अन्तर्राष्ट्रीय हस्तक्षेप के कारण विवाद उत्पन्न हो जाते हैं जो सौहार्द्र स्थापना के मार्ग में बाधा उपस्थित करते हैं।

(10) भौतिक सुखों की प्रतिस्पर्धा एवं नैतिक मूल्यों का ह्रास होने से सौहार्द्र स्थापना में कठिनाई होती है।

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