पारस्परिक सौहार्द्र एवं समरसता की आवश्यकता एवं महत्त्व
Needs and Importance of Communal Rapport and Equanimity
वर्तमान समय में नैतिक मूल्यों का ह्रास हो रहा है तथा व्यक्ति निहित स्वार्थों के लिये सामाजिक एवं साम्प्रदायिक सद्भावनाओं को त्याग रहा है। इसीलिये सामाजिक एवं पारस्परिक सौहार्द्र की परमावश्यकता है । प्रो. एस. के. दुबे लिखते हैं कि “पारस्परिक सौहार्द्र एवं समरसता के अभाव में राष्ट्रीय एकता, अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना, विश्वबन्धुत्व एवं मानव कल्याण का मार्ग प्रशस्त नहीं हो सकता क्योंकि पारस्परिक सौहार्द एवं समरसता की व्यवस्था व्यक्तिगत हित के स्थान पर सार्वजनिक हित पर आधारित होती है।” पारस्परिक सौहार्द्र एवं समरसता की आवश्यकता एवं महत्त्व को निम्नलिखित बिन्दुओं के माध्यम से स्पष्ट किया जा सकता है
1. सामाजिक विकास के लिये (For the social development)- जिस समाज में पारस्परिक सौहार्द्र की स्थापना नहीं होगी, उस समाज में आन्तरिक कलह एवं विवाद जन्म लेते हैं। इसके परिणामस्वरूप समाज विखण्डित हो जाता है तथा समाज में विकास की सम्भावना क्षीण हो जाती है ।
2. मानवीय मूल्यों के विकास के लिये (For the development of human values)- मानवीय समाज का अस्तित्व मानव मात्र से होता है। जिस समाज में मानवीय मूल्यों का अभाव पाया जाता है वह समाज उत्थान की ओर अग्रसर नहीं होता। वर्तमान समय में साम्प्रदायिक तनाव का कारण ही मानवीय मूल्यों का अभाव है। सौहार्द्र की भावना मानवीय मूल्यों का पूर्णतः विकास करती है क्योंकि सौहार्द्र स्थापना का प्रमुख उद्देश्य मानव को सच्चे अर्थों में मानव बनाना है जो कि मानवीय गुणों के विकास से सम्भव है । है क्योंकि व्यक्ति भौतिक सुख भोग के कारण ही स्वार्थी होकर समाज में तनाव उत्पन्न करता नहीं की जा सकती।
3. आध्यात्मिक विकास के लिये (For the spiritual development)- पारस्परिक सौहार्द्र एवं समरसता स्थापना की आवश्यकता आध्यात्मिक मूल्यों के विकास हेतु परमावश्यक है । अनिधिकृत चेष्टा का प्रमुख कारण भौतिक विकास को महत्त्व देना है । सौहार्द्र का भावना मनुष्य में त्याग, परोपकार एवं दया आदि आध्यात्मिक गुणों का विकास करती है। इसलिये पारस्परिक सौहार्द्र एवं समरसता के अभाव में आध्यात्मिक विकास की कल्पना
4.राष्ट्रीय एकता के लिये (For the national integration)— जिस समाज में मानवीय मूल्यों एवं सहयोग की भावना उपस्थित होगी, वह समाज राष्ट्रीय एकता के प्रति समर्पित होगा। सामाजिक प्रेम को सौहार्द्र की स्थापना के द्वारा ही विकसित किया जाता है तथा समाज प्रेम ही राष्ट्रीय एकता एवं राष्ट्र प्रेम को जन्म देता है । अत: राष्ट्रीय एकता के विकास में पारस्परिक सौहार्द्र एवं समरसता परमावश्यक है।
5. अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना के लिये (For the International Understanding)- प्रेम एवं सहयोग की भावना राष्ट्रीय एकता को सुदृढ़ नहीं करती वरन् अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना को जन्म देती है क्योंकि जिसमें प्रेम एवं सहयोग विकसित होता है, उस समाज के व्यक्तियों की सोच विस्तृत होती है । यह कार्य पारस्परिक सौहार्द्र एवं समरसता स्थापना के द्वारा ही सम्भव होता है।
6. सामाजिक गुणों का विकास (Development of social merits)- पारस्परिक सौहार्द्र एवं समरसता के द्वारा सहयोग, समानता एवं कर्त्तव्यनिष्ठा आदि सामाजिक गुणों का विकास होता है । इन गुणों के अभाव में उन्नतिशील एवं सफल समाज की कल्पना नहीं की जा सकती है। अतः मानव में सामाजिक गुणों के विकास के लिये सौहार्द्र स्थापना का महत्त्वपूर्ण स्थान है।
7.शान्ति के विकास के लिये (For the development of peace)– शान्ति के लिये समाज एवं सम्प्रदाय में विवाद की स्थिति नहीं होनी चाहिये । सौहार्द्र स्थापना के उपरान्त समाज में किसी प्रकार का कोई विवाद नहीं रहता, जिससे राष्ट्र एवं समाज में पूर्णत: शान्ति का वातावरण फैल जाता है।
8. नैतिक मूल्यों के विकास के लिये (For the development of moral values)- सौहार्द्र स्थापना से समाज एवं सम्प्रदाय में त्याग, आदर्शवादिता, दया, करुणा एवं मैत्री आदि नैतिक गुणों का विकास होता है जो कि मानव कल्याण का आधार होते हैं । नैतिक मूल्य ही विश्वबन्धुत्व एवं वैश्विक विकास की अवधारणा को पुष्ट करते हैं ।
9.संस्कृति एवं सभ्यता के संरक्षण के लिये (For the protection of culture and civilization)– संस्कृति एवं सभ्यता के संरक्षण के लिये पारस्परिक सौहार्द्र एवं समरसता आवश्यक होती है क्योंकि इस व्यवस्था में हम प्रत्येक सभ्यता एवं संस्कृति का सम्मान करते हैं तथा संरक्षण प्रदान करते हैं । इससे हम वैश्विक संस्कृति का प्रतिबिम्ब एक मंच पर देख सकते हैं।
10. मानव के सर्वांगीण विकास के लिये (For the all round development of human being)- मानव समाज के सर्वांगीण विकास के लिये समाज में शान्ति, सहयोग, समानता एवं स्वतन्त्रता आदि गुण होने चाहिये । इनके अभाव में सर्वांगीण विकास की प्रक्रिया पूर्ण नहीं हो सकती । उपरोक्त गुणों का विकास पारस्परिक सौहार्द्र एवं समरसता द्वारा ही सम्पन्न होता है । अत: मानव के सर्वांगीण विकास के लिये पारस्परिक सौहार्द्र एवं समरसता परमावश्यक है ।
Important Links
- प्रधानाचार्य के आवश्यक प्रबन्ध कौशल | Essential Management Skills of Headmaster
- विद्यालय पुस्तकालय के प्रकार एवं आवश्यकता | Types & importance of school library- in Hindi
- पुस्तकालय की अवधारणा, महत्व एवं कार्य | Concept, Importance & functions of library- in Hindi
- छात्रालयाध्यक्ष के कर्तव्य (Duties of Hostel warden)- in Hindi
- विद्यालय छात्रालयाध्यक्ष (School warden) – अर्थ एवं उसके गुण in Hindi
- विद्यालय छात्रावास का अर्थ एवं छात्रावास भवन का विकास- in Hindi
- विद्यालय के मूलभूत उपकरण, प्रकार एवं रखरखाव |basic school equipment, types & maintenance
- विद्यालय भवन का अर्थ तथा इसकी विशेषताएँ |Meaning & characteristics of School-Building
- समय-सारणी का अर्थ, लाभ, सावधानियाँ, कठिनाइयाँ, प्रकार तथा उद्देश्य -in Hindi
- समय – सारणी का महत्व एवं सिद्धांत | Importance & principles of time table in Hindi
- विद्यालय वातावरण का अर्थ:-
- विद्यालय के विकास में एक अच्छे प्रबन्धतन्त्र की भूमिका बताइए- in Hindi
- शैक्षिक संगठन के प्रमुख सिद्धान्त | शैक्षिक प्रबन्धन एवं शैक्षिक संगठन में अन्तर- in Hindi
- वातावरण का स्कूल प्रदर्शन पर प्रभाव | Effects of Environment on school performance – in Hindi
- विद्यालय वातावरण को प्रभावित करने वाले कारक | Factors Affecting School Environment – in Hindi
- प्रबन्धतन्त्र का अर्थ, कार्य तथा इसके उत्तरदायित्व | Meaning, work & responsibility of management
- मापन के स्तर अथवा मापनियाँ | Levels or Scales of Measurement – in Hindi
- निकष संदर्भित एवं मानक संदर्भित मापन की तुलना- in Hindi
- शैक्षिक मापन की विशेषताएँ तथा इसके आवश्यक तत्व |Essential Elements of Measurement – in Hindi
- मापन क्या है?| शिक्षा के क्षेत्र में मापन एवं मूल्यांकन की आवश्यकता- in Hindi
- प्राकृतिक और मानव निर्मित वस्तुएँ | Natural & Human made things – in Hindi
- विद्यालय प्रबन्धन का अर्थ तथा इसके महत्व |Meaning & Importance of School Management in Hindi