राष्ट्रपति कब अध्यादेश जारी कर सकता है ?
अध्यादेश का निर्गत करना राष्ट्रपति की एक प्रमुख विधायी शक्ति है। अनुच्छेद 123 में यह उपबन्धित है कि जब संसद के दोनों सदन सत्र में न हों और राष्ट्रपति को इस बात का समाधान हो जाये कि ऐसी परिस्थितियाँ वर्तमान हैं जिनमें तुरन्त कार्यवाही करना आवश्यक हो गया है तो वह एसे अध्यादेश प्रख्यापित कर सकेगा जो उसे उक्त परिस्थितियों में अपेक्षित प्रतीत हों।
राष्ट्रपति द्वारा जारी किये गये अध्यादेश का वही बल और प्रभाव होगा जो संसद द्वारा पारित अधिनियम का होता है। प्रत्येक ऐसा अध्यादेश संसद के दोनों सदनों के समक्ष रखा जायेगा और संसद के पुनः समवेत (reasonable) होने की तारीख से छः सप्ताह की समाप्ति पर समाप्त हो जायेगा, जब तक कि छः सप्ताह के पूर्व दोनों सदन उसके अनुमोदन के संकल्प को पारित न कर दें। राष्ट्रपति किसी समय अपने द्वारा जारी किये गये अध्यादेशों को वापस ले सकता है। राष्ट्रपति की अध्यादेश जारी करने की शक्ति संसद की विधायिनी शक्ति की सह-विस्तारी (Co-extensive) है, अर्थात् यह उन्हीं विषयों से सम्बन्धित है जिन पर संसद को विधि बनाने की शक्ति प्राप्त है। यदि कोई अध्यादेश ऐसा उपबन्ध करता है जिसे अधिनियमित करने का संसद का अधिकार नहीं है तो वह शून्य होगा। इस प्रकार, किसी अध्यादेश द्वारा नागरिकों के मूल अधिकारों का अतिक्रमण नहीं किया जा सकता है। क्योंकि अनुच्छेद 13 (क) के अधीन विधि’ शब्द के अन्तर्गत ‘आध्यादेश भी शामिल है। इस प्रकार अध्यादेश जारी करने के लिए निम्न शर्ते हैं-
(1) अध्यादेश तभी जारी किये जा सकते हैं जब संसद के दोनों सदन सत्र में न हों और राष्ट्रपति को यह समाधान हो जाता है कि ऐसी परिस्थितियाँ विद्यमान हैं जिनके कारण तुरन्त कार्रवाई करना आवश्यक हो गया है। एक सदन का सत्र में होना अध्यादेश जारी करने में बाधक नहीं होगा, क्योंकि विधि बनाने के लिए एक सदन सक्षम नहीं है (अनुच्छेद 79,111)।
(2) राष्ट्रपति द्वारा प्रख्यापित अध्यादेश का वही बल और प्रभाव होगा जो संसद के अधिनियम का होता है।
(3) प्रत्येक अध्यादेश संसद के दोनों सदनों के समक्ष अनुमोदन के लिए रखा जायेगा और सदन के पुनः समवेत होने की तारीख से छः सप्ताह के बीतने पर समाप्त हो जायेगा।
(4) राष्ट्रपति द्वारा अध्यादेश को किसी भी समय वापस लिया जा सकता है।
(5) अध्यादेश उन्हीं परिसीमाओं के अधीन है जिन परिसीमाओं के अधीन संसद द्वारा पारित विधि है। अध्यादेश मूल अधिकारों का अतिक्रमण नहीं कर सकते हैं।
(6) अध्यादेश जारी करने की शक्ति राष्ट्रपति के वैयक्तिकं समाधान पर आधारित है,अर्थात राष्ट्रपति अध्यादेश घोषित करने के कारणों या उसकी न्यायोचितता को न्यायालय में प्रमाणित करने के लिए बाध्य नहीं है।
न्यायालय अध्यादेश जारी किये जाने के कारणों की जाँच नहीं कर अर्थात् राष्ट्रपति अध्यादेश घोषित करने के कारणों या उसकी न्यायोचितता को न्यायालय में प्रमाणित सकते हैं। अध्यादेश जारी करने के लिए परिस्थितियाँ मौजूद हैं या नहीं, इसका अन्तिम निर्णय राष्ट्रपति पर है। अध्यादेश की वैधता को इस आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती है कि उसका प्रयोग असद्भावनापूर्वक (mala fide) किया गया है। इस प्रकार, यदि अध्यादेश जारी करने के उद्देश्य के लिए ही संसद के सत्र का स्थगन कर दिया जाता है तो वह अवैध नहीं होगा।
अध्यादेश कार्यपालिका को आकस्मिक परिस्थितियों से निपटने की शक्ति प्रदान करता है। इसमें न्यायालय द्वारा किसी विधि विमान्य घोषित किये जाने से उत्पन्न परिस्थिति भी शामिल है, जिसके निपटारे के लिए अध्यादेश जारी किया जा सकता है। अध्यादेश द्वारा कर-विधियों में संशोधन या परिवर्तन भी किया जा सकता है, क्योंकि अध्यादेश जारी करने की राष्ट्रपति की शक्ति संसद की सह-विस्तारी है। स्पेशल बियरर बाण्ड के मामले में केन्द्रीय सरकार ने एक अध्यादेश जारी करके काले धन को बैंक में जमा करने वालों को कुछ विमुक्तियाँ प्रदान की थीं, किन्तु कर देने वालों को नहीं प्रदान की गयी थीं। अध्यादेश को इस आधार पर चुनौती दिया गया कि वह यद्यपि अवैध नहीं है किन्तु अनैतिक है। निर्णय दिया गया कि अनुच्छेद 123 के अधीन राष्ट्रपति को आकस्मित स्थितियों से निपटने के लिए अध्यादेश जारी करने की शक्ति प्राप्त है। अध्यादेश की विधिमान्यता को नैतिकता के आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती है। अध्यादेश को अस्पष्टता, मनमाना प्रयोग, युक्तियुक्त और जनहित के आधार पर चुनौती दी जा सकती है। अध्यादेश जारी करके वैयक्तिक स्वाधीनता के अधिकार से किसी को वंचित किया जा सकता है क्योंकि अनुच्छेद 21 के अधीन अध्यादेश ‘विधि’ शब्द के अर्थान्तर्गत सम्मिलित है। ए. के. राय बनाम भारत संघ और ए. वी. नचाने बनाम भारत संघ के मामले में उच्चतम न्यायालय ने स्पेशल बियरर बाण्ड के मामले में दिये गये निर्णय को अभिपुष्ट (affirm) किया है।
इस प्रकार विश्व के किसी भी लोकतांत्रिक शासन में कार्यपालिका को अध्यादेश निर्गत करने जैसी शक्ति प्राप्त नहीं है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 123 के अन्तर्गत अभिव्यक्त रूप से राष्ट्रपति द्वारा अध्यादेश जारी करने के बारे में काफी वाद-विवाद हुआ था और यह कहा गया था कि कार्यपालिका को ऐसी शक्ति देना अलोकतान्त्रिक है और वह उसका दुरुपयोग कर सकती है। कार्यपालिका को इस शक्ति के दिये जाने को इस आधार पर न्यायोचित बतलाया गया कि गम्भीर परिस्थितियों में शीघ्रातिशीघ्र कार्यवाही करने के लिए राष्ट्रपति में ऐसी शक्ति का होना आवश्यक है। ऐसी परिस्थितियों की कल्पना करना असम्भव नहीं है जबकि कार्यवाही के विलम्ब होने पर देश को काफी क्षति हो सकती है। किन्तु यह ध्यान देने योग्य है कि राष्ट्रपति अध्यादेश जारी करने की अपनी शक्ति का प्रयोग मन्त्रिपरिषद् की सलाह पर करता है। राष्ट्रपति का व्यक्तिगत समाधान मन्त्रिपरिषद् का समाधान होता है। इसके बावजूद भी अध्यादेश जारी करने की शक्ति का दुरुपयोग किया जाना सम्भव है। इसको प्रबुद्ध जनमत द्वारा ही रोका जा सकता है।
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