लोकसभा की शक्तियों एवं कार्यों का वर्णन कीजिए। Explain the powers and functions of Lok Sabha.
लोकसभा की शक्तियाँ एवं कर्तव्य- जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित लोकप्रिय सदन या लोकसभा की शक्तियों एवं कार्यों का अध्ययन निम्नलिखित शीर्षकों के तहत किया जा सकता है-
(1) संविधान में संशोधन सम्बन्धी शक्तियाँ-
संविधान में संशोधन करने का अधिकार दोनों सदनों को समान दिया गया है। संविधान के अनुच्छेद 368 के अनुसार, संविधान के अधिकांश भाग में संशोधन का कार्य केवल संसद द्वारा ही किया जा सकता है। इस सम्बन्ध में प्रक्रिया यह है कि संशोधन का प्रस्ताव संसद के किसी भी सदन में प्रस्तावित किया जा सकता है किन्तु प्रस्ताव पारित होने के लिए यह आवश्यक है कि उसे संसद के दोनो सदनों द्वारा अलग-अलग अपने कुल बहुमत तथा उपस्थित एवं मतदान में भाग लेने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से परित किया जाए। असहमति होने पर प्रस्ताव अस्वीकार समझा जाता है। लेकिन गत कुछ वर्षों से भारतीय संसद की संविधान में संशोधन करने सम्बन्धी शक्ति अधिक वाद-विवाद का विषय रही है। सर्वोच्च न्यायालय ने संसद की इस शक्ति पर बहुत बड़ा प्रतिबन्ध लगा दिया था लेकिन संविधान के 24वें एवं 25वें संशोधन के पश्चात् संसद को उसकी यह संशोधन सम्बन्धी शक्ति पुनः मिल गई है। अब यह निश्चित हो गया है कि संसद मौलिक अधिकार सहित संविधान के किसी भी भाग में संशोधन कर सकती है लेकिन संविधान के मूल स्वरूप को परिवर्तित नहीं कर सकती है। संविधान के मूल स्वरूप में कौन-सी बातें आती हैं, इसे स्पष्ट नहीं किया गया है।
(2) विधि निर्माण सम्बन्धी शक्तियाँ-
भारतीय संविधान के अनुसार संसद संघ सूची कुछ समवर्ती एवं अवशिष्ट विषयों पर तो कानून का निर्माण करती ही है परन्तु विशेष परिस्थितियों में राज्य सूची के विषयों पर भी कानून का निर्माण कर सकती है। कोई भी विधेयक लोकसभा की स्वीकृति के बिना कानून का रूप धारण नहीं कर सकता यद्यपि संविधान द्वारा साधारण विधेयक, गैर वित्तीय विधेयक और संविधान संशोधन सम्बन्धी विधेयक के सम्बन्ध समान शक्ति प्रदान की गई है। दोनों सदनों द्वारा पारित होने पर ही राष्ट्रपति के पास हस्ताक्षर के लिए भेजे जाएँगे किन्तु यदि दोनों सदनों में किसी विधेयक को लेकर मतभेद उत्पन्न हो जाता है तो राष्ट्रपति द्वारा दोनों सदनों का संयुक्त अधिवेशन बुलाया जाता है और बहुमत के आधार पर निर्णय किया जाता है। लोकसभा की सदस्य संख्या राज्यसभा से अधिक होने के कारण सामान्यतः लोकसभा के पक्ष में ही निर्णय सम्भव होता है। इस प्रकार विधि निर्माण के क्षेत्र में अन्तिम शक्ति लोकसभा में ही निहित है। जब संसद के अधिवेशन न चल रहे हों तो सर्वप्रथम राष्ट्रपति अध्यादेश जारी कर सकता है लेकिन जैसे ही संसद के अधिवेशन प्रारम्भ होते हैं तो सर्वप्रथम राष्ट्रपति द्वारा जारी किए अध्यादेश तीस दिन के अन्दर लोकसभा में प्रस्तुत किए जाते हैं। यदि लोकसभा इन अध्यादेशों को स्वीकार कर लेती है तो वे कानून का रूप धारण कर लेते हैं अन्यथा अस्वीकार होने की स्थिति में वे निरस्त हो जाते हैं। इस प्रकार विधि निर्माण के क्षेत्र में लोकसभा को बहुत अधिक शक्तियाँ प्रदान की गई है।
(3) न्यायिक शक्तियाँ-
राष्ट्रपति पर महाभियोग का प्रस्ताव संसद के दोनों सदनों में से किसी एक सदन में प्रस्तावित किया जा सकता है। दूसरा सदन उसकी जाँच करता है। उपराष्ट्रपति को पदच्युत करने सम्बन्धी प्रस्ताव राज्यसभा द्वारा पारित होने पर लोकसभा द्वारा उसका अनुमोदन आवश्यक है। इसके अतिरिक्त सर्वोच्च और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों को पदच्युत करने सम्बन्धी प्रस्ताव लोकसभा एवं राज्यसभा द्वारा पृथक्-पृथक् रूप से तथा स्पष्ट बहुमत एवं उपस्थित सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से पारित करके प्रतिवेदन करने पर राष्ट्रपति न्यायाधीशों को पदच्युत कर सकता है।
(4) कार्यपालिका सम्बन्धी शक्तियाँ-
भारतीय संविधान के प्रावधानों के तहत जिस संसदीय व्यवस्था को स्वीकार किया गया है, उसके अनुसार, कार्यपालिका अर्थात् मन्त्रिपरिषद का गठन लोकसभा में से(संसद) किया जाता है। इसलिए मन्त्रिपरिषद संसद(लोकसभा) के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी होती है एवं लोकसभा के विश्वासपर्यन्त तक ही पदारूढ़ रह सकती है। संसद(लोकसभा) का प्रमुख कार्य कार्यपालिका पर नियन्त्रण रखना होता है। इसलिए संसद अनेक प्रकार से मन्त्रिपरिषद पर नियन्त्रण रख सकती है, जैसे-संसद सदस्य मन्त्रियों से सरकारी नीति व सरकार के कार्यों के सम्बन्ध में प्रश्न तथा पूरक प्रश्न पूछ सकते हैं, उनकी आलोचना कर सकते हैं, उनके विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव, कामरोको प्रस्ताव आदि के द्वारा नियन्त्रण रख सकती है, यही नहीं संसद सरकारी विधेयक तथा बजट को अस्वीकार करके मन्त्रियों के वेतन में कटौती का प्रस्ताव स्वीकार करके अपना विरोध प्रदर्शित कर सकती है। इस प्रकार लोकसभा कार्यपालिका पर नियन्त्रण की शक्ति के अन्तर्गत संघीय लोकसेवा आयोग भारत के नियन्त्रक और महालेखा परीक्षक, वित्त आयोग, अनुसूचित जाति और जनजाति आयोग की रिपोर्ट पर विचार करती है। इस प्रकार लोकसभा जनता के कष्टों का निवारण करने वाले सदन के रूप में महत्वपूर्ण दायित्वों को सम्पादित करती है।
(5) वित्तीय शक्तियाँ-
भारतीय संविधान में वित्त के सन्दर्भ में सर्वोच्चता लोकसभा को प्रदान किया गया है। संविधान के अनुच्छेद 109 के अनुसार वित्त विधेयक लोकसभा में ही प्रस्तावित किए जा सकते हैं, राज्यसभा में नहीं। लोकसभा में पारित होने के बाद वित्त विधेयक (प्राप्ति की तिथि) राज्यसभा में भेजा जाता है। राज्यसभा वित्त विधेयक प्राप्ति की तिथि से 14 दिन के अन्दर-अन्दर लोकसभा को लौटा देना होगा। राज्य सभा की वित्त विधेयक में संशोधन के लिए अपने सुझाव दे सकती है लेकिन उन्हें स्वीकार या अस्वीकार करना लोकसभा की इच्छा पर निर्भर करता है। संविधान में यह भी व्यवस्था है कि यदि राज्यसभा 14 दिन को अन्दर वित्त विधेयक को पारित नहीं करती है और न लोकसभा को वापस लौटाती है तो वित्त विधेयक निश्चित तिथि के बाद दोनों सदनों द्वारा पारित मान लिया जाता है। अत: राज्य सभा को वित्त विधेयक के सम्बन्ध में केवल 14 दिन की विलम्बकारी शक्ति प्राप्त है। इसके अतिरिक्त वार्षिक बजट और अनुदान सम्बन्धी माँगें भी लोकसभा के समक्ष रखी जाती है। उन पर स्वीकृति देने का एकाधिकार लोकसभा को प्राप्त है। अत: वित्तीय क्षेत्र में लोकसभा एक शक्तिशाली सदन प्रतीत होता है। अन्य शक्तियाँ-
1. विभिन्न संकटकालीन घोषणाओं को जारी रखने के लिए संसद की स्वीकृति आवश्यक है।
2. यदि राष्ट्रपति सर्वक्षमा देना चाहे तो उसकी स्वीकृति संसद से लेना आवश्यक है।
3.लोकसभा निर्वाचक मण्डल के रूप में भी कार्य करती है। संसद के दोनों सदनों के सदस्य तथा राज्य विधान सभाओं के सदस्य मिलकर राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति को निर्वाचित करते हैं।
4. लोकसभा को अपने अध्यक्ष और उपाध्यक्ष निर्वाचित एवं पदच्युत करने का अधिकार प्राप्त है।
5. लोकसभा अपने सदस्यों तथा किसी अन्य बाहरी व्यक्ति को सदन के विशेषाधिकार के हनन के लिए दण्ड दे सकती है।
निष्कर्ष- इस प्रकार भारतीय संसद का सबसे महत्वपूर्ण अंग लोक सभा है जो जनता का प्रतिनिधि एवं संरक्षक है। राज्यसभा की तुलना में लोकसभा अधिक शक्तिशाली है। देश के वित्त पर लोकसभा का एकाधिकार है। मन्त्रिपरिषद लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होती है। यह सम्पूर्ण शासन तन्त्र की केन्द्रीय धुरी है। व्यवहार में लोकसभा ही भारतीय संसद है। प्रधानमंत्री लोकसभा में बहुमत दल का नेता होता है। इस प्रकार लोकसभा जनता का प्रतिनिधि सदन होने के कारण संसद का महत्वपूर्ण शक्तिशाली एवं प्रभावशाली अंग है।
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