संवैधानिक विधि/constitutional law

भारतीय संविधान में नागरिकता सम्बन्धी उपबन्ध | Citizenship provisions in the constitution of India

भारतीय संविधान में उल्लिखित नागरिकता

भारतीय संविधान में उल्लिखित नागरिकता

भारतीय संविधान में उल्लिखित नागरिकता सम्बन्धी उपबन्धों का वर्णन कीजिये। Discuss the provision relating to citizenship defined in Indian Constitution.

भारतीय संविधान में उन उपबंधों का प्रावधान किया गया है जिसके तहत भारतीय नागरिकान का निर्धारण किया जा सकता है। भारतीय संविधान के अनुसार, नागरिकता से सम्बन्धित उपबन्ध निम्न प्रकार हैं जिनके अनुसार, संविधान के प्रारम्भ पर निम्नलिखित व्यक्ति भारत के नागरिक होंगे-

(1) अधिवास द्वारा नागरिकता-

संविधान के अनुच्छेद 5 के अनुसार संविधान के प्रारम्भ पर प्रत्येक व्यक्ति जिसका भारत में अधिवास है, भारत का नागरिक होगा यदि-

(i) वह भारत राज्य क्षेत्र में जन्मा हो।
(ii) जिसके माता या पिता में से कोई भारत के राज्य क्षेत्र में जन्मा हो।
(iii) जो संविधान के प्रारम्भ से पूर्व कम-से-कम पाँच वर्ष से भारत राज्य क्षेत्र में मामूली तौर पर निवास करता रहा हो।

उपर्युक्त अनुच्छेद में प्रयुक्त शब्द अधिवास को भी संविधान के अन्तर्गत इसके निर्माताओं ने परिभाषित नहीं किया है। इसको विभिन्न न्यायिक निर्णयों द्वारा अर्थान्वित किया गया है।

प्रदीप जैन बनाम यूनियन ऑफ इण्डिया (1984) के मामले में शब्द अधिवास को परिभाषित करते हुए उच्चतम न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया है कि अधिवास से तात्पर्य ऐसे स्थायी घर या स्थान से है जहाँ व्यक्ति का स्थायी रूप से तथा अनिश्चित काल तक निवास करने का आशय है चाहे ऐसा निवास एक राज्य के सम्बन्ध में हो अथवा कई राज्यों के सम्बन्ध में हो। इस प्रकार इस परिभाषा में अधिवास के दो आवश्यक तत्व स्पष्ट होते हैं-

  1. स्थायी रूप से एवं अनिश्चित काल तक निवास, तथा
  2. ऐसे निवास का आशय।

(2) पाकिस्तान से प्रव्रजन करके आये व्यक्तियों की नागरिकता-

भाग्नीय संविधान के अनुच्छेद 6 में व्यक्तियों की नागरिकता के प्रयोजन के लिए दो श्रेणियाँ बनाई गई है.

(i) वे लोग जो 19 जुलाई, 1948 से पहले भारत आये। इसके लिए निम्न दा शर्ने पूरी होने पर वे भारत के नागरिक समझे जायेंगे-

  1. वह या उनके माता-पिता में से कोई या पितामह में से कोई भारत सरकार अधिनियम, 1935 द्वारा परिभाषित भारत में जन्मा था तथा
  2. यदि वह जुलाई 1948 से पूर्व भारत में प्रव्रजन करके आया हो और तब से भारत में आमतौर से रह रहा

(ii) वे लोग जो 19 जुलाई, 1948 के बाद भारत आये। इस श्रेणी के अन्तर्गत वे लोग भारत के नागरिक समझे जायेंगे यदि वे निम्नलिखित में से कोई शर्त पूरी करते हो-

  1. वह या उनके माता-पिता में से कोई या पितामह में से कोई भारत सरकार अधिनियम, 1955 द्वारा परिभाषित भारत में जन्मा हो।
  2. उन्हें नागरिकता प्राप्ति के लिए आवेदन-पत्र देना अनिवार्य है।
  3. उन्हें यह सिद्ध करना चाहिए कि आवेदन की तिथि के 6 महीने पूर्व से ही वे भारत
  4. उनका नाम भारत सरकार द्वारा नियुक्त पदाधिकारी द्वारा नागरिक के रूप में पंजीकृत कर लिया गया है।

(iii) 19 जुलाई, 1948 वह तारीख है जबकि पाकिस्तान से भारत आने वालों और भारत से पाकिस्तान जाने वाले लोगों के लिए अनुजा पद्धति लागू की गयी थी।

(3) पाकिस्तान को प्रव्रजन करने वाले लोगों की नागरिकता-

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 7 में पाकिस्तान को प्रव्रजन करने वाले लोगों की नागरिकता के सम्बन्ध में प्रावधान किया गया। इस अनुच्छेद के अनुसार कोई व्यक्ति जिसने 1 मार्च, 1947 के पश्चात् भारत के राज्य क्षेत्र से ऐसे राज्य क्षेत्र को जो इस समय पाकिस्तान के राज्य क्षेत्र के अन्दर है प्रव्रजन किया है भारत का नागरिक नहीं समझा जायेगा।

परन्तु इस अनुच्छेद की कोई बात ऐसे व्यक्ति पर लागू नहीं होगी जो ऐसे राज्य क्षेत्र को जो इस समय पाकिस्तान के अन्तर्गत है, प्रव्रजन करने के पश्चात् भारत के राज्य क्षेत्र में ऐसी अनुज्ञा के अधीन लौट आया है जो पुनर्वास के लिए या स्थायी रूप से लौटने के लिए किसी विधिक प्राधिकार द्वारा या उसके अधीन दी गयी है और प्रत्येक ऐसे व्यक्ति के बारे में अनुच्छेद 6 के खण्ड के प्रयोजनों के लिए यह समझा जायेगा कि उसने भारत के राज्य क्षेत्र से 19 जुलाई, 1948 के प्रव्रजन किया है।

(4) भारत के बाहर भारतीय उत्पत्तियों वालों की नागरिकता-

अनुच्छेद 8 के अनुसार, कोई भी व्यक्ति या उसके माता-पिता में से कोई अथवा पितामहों में से कोई जो भारत सरकार अधिनियम, 1935 में परिभाषित भारत के बाहर किसी देश में रह रहा है यदि वह निम्नलिखित शर्ते पूरी कर ले तो भारत का नागरिक समझा जायेगा-

  1. यदि वह भारत का नागरिक पंजीकृत कर लिया गया हो।
  2. वह पंजीकरण भारत के राजनयिक या कौंसलर प्रतिनिधि द्वारा जहाँ वह निवास कर रहा हो, द्वारा किया गया हो।
  3. इस आशय का आवेदन-पत्र उपर्युक्त राजनयिक अथवा कौंसलर प्रतिनिधि के समक्ष किया गया हो।
  4. यह आवेदन-पत्र संविधान के लागू होने के पहले या बाद में किया गया हो।
  5. यह आवेदन-पत्र भारत डोमीनियन सरकार द्वारा या भारत सरकार द्वारा विहित प्रपत्र पर और विहित रीति से किया गया हो।

अनुच्छेद 8 केवल संविधान लागू होने के समय पर प्राप्त होने वाली नागरिकता के बारे में ही नहीं वरन् उसके पश्चात् विदेशों में रहने वाले लोगों की नागरिकता के अधिकार के सम्बन्ध की भी व्याख्या करता है।

(5) रजिस्ट्रीकरण द्वारा नागरिकता-

ऐसा व्यक्ति जो भारतीय संविधान या भारतीय नागरिकता अधिनियम के उपबन्धों के अनुसार नागरिक नहीं है। रजिस्ट्रीकरण द्वारा भारत की नागरिकता प्राप्त करने के लिए सक्षम अधिकारी के पास आवेदन-पत्र देकर भारतीय नागरिकता प्राप्त कर सकते हैं। यदि ऐसा प्राधिकारी उन्हें भारत के नागरिक के रूप में पंजीकृत करता है। रजिस्ट्रीकरण द्वारा निम्नलिखित व्यक्ति भारतीय नागरिकता प्राप्त कर सकते हैं-

  1. भारत में उत्पन्न व्यक्ति जो रजिस्ट्रेशन के लिए आवेदन-पत्र देने के पाँच वर्ष पहले से भारत में मामूली तौर से निवास करते रहे हों।
  2. भारत में उत्पन्न व्यक्ति जो भारत के बाहर किसी अन्य देश में आमतौर से निवास करते रहे हों।
  3. भारतीय नागरिकों की पत्नियाँ, नाबालिग बच्चे, तथा
  4. प्रथम अनुसूची में वर्णित देशों के नागरिक।

(6) अर्जित भू-भाग के समामेलन द्वारा-

यदि कोई नया धू-भाग भारतीय क्षेत्र में सम्मिलित कर लिया जाता है तो भारत सरकार विज्ञप्ति द्वारा उन व्यक्तियों का उल्लेख करेगी जो उस भूमि के सम्मिलित किये जाने पर भारत के नागरिक हों।

(7) देशीयकरण द्वारा नागरिकता-

कोई भी विदेशी वयस्क व्यक्ति जो प्रथम अनुसूची में वर्णित देशों का नागरिक नहीं है, भारत सरकार से निर्धारित प्रपत्र पर देशीयकरण के लिए आवेदन कर सकता है। देशीयकरण द्वारा भारतीय नागरिकता प्राप्त करने के लिए निम्नलिखित शर्तों को पूरा करना आवश्यक है-

  1. वह किसी ऐसे देश का नागरिक न हो जहाँ कि संविधान द्वारा या किसी अन्य विधि के द्वारा भारतीय नागरिक देशीयकरण द्वारा बनने से रोक दिये जाते हों।
  2. उसने अपने देश की नागरिकता को त्याग दिया हो और केन्द्र सरकार को इसकी सूचना दे दी हो।
  3. वह देशीयकरण करने के लिए आवेदन करने की तिथि से पहले 12 वर्ष तक या तो भारत में रहा हो या भारत सरकार की सेवा में रहा हो। परन्तु यदि केन्द्र सरकार उचित समझे तो इस अवधि को घटा सकती है, अथवा
  4. उक्त 12 वर्ष के पहले के कुल 7 वर्षों में से कम से कम 4 वर्ष तक उसने भारत में निवास किया हो या भारत की नौकरी में रहा हो।
  5. उसका चरित्र अच्छा हो।
  6. वह राज्य निष्ठा की शपथ ग्रहण करे।
  7. उसे भारतीय संविधान द्वारा मान्य भाषा का सम्यक ज्ञान हो।
  8. देशीयकरण के प्रमाण-पत्र की प्राप्ति के उपरान्त भारत में निवास करने.या भारत सरकार की नौकरी में रहने का विचार हो।

अपवाद- उपर्युक्त सभी शर्ते उन व्यक्तियों पर लागू नहीं होंगी जिन्होंने कला, विज्ञान, दर्शन, साहित्य, विश्व शान्ति अथवा मानवीय विकास हेतु कोई विशिष्ट कार्य किया हो।

नागरिकता की समाप्ति या परित्याग- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 9 में नागरिकता की समाप्ति या अवसान के सन्दर्भ में प्रावधान किया गया है। इसमे कहा गया है कि एक व्यक्ति एक समय में केवल एक ही देश का नागरिक हो सकता है, एक ही समय दो या अधिक राज्यों की नागरिकता प्राप्त नहीं की जा सकती, जब तक कि इसके विपरीत कोई अन्य तथ्य उपबन्धित न हो।

भारतीय नागरिकता अधिनियम 1955 के अन्तर्गत वे व्यक्ति जिन्होंने संविधान अथवा संसद द्वारा पारित इस अधिनियम के अधीन नागरिकता प्राप्त की हो, वे निम्नलिखित माध्यमों से भारतीय नागरिकता का परित्याग कर सकते हैं-

(1) नागरिकता का परित्याग- कोई भी वयस्क भारतीय नागरिक अपनी नागरिकता का परित्याग एक घोषणा करके कर सकता है किन्तु यदि ऐसी घोषणा किसी युद्ध काल या किसी अन्त विपत्ति के दौरान की जाती है तो भारत सरकार जब तक उचित समझे ऐसी घोषणा के रजिस्ट्रीकरण को रोक सकती है। जब कोई पुरुष नागरिक भारतीय नागरिकता का परित्याग करता है तब उसके अवयस्क बच्चे भी भारतीय नागरिकता से वंचित हो जाते हैं। ऐसा कोई अवयस्क बच्चा भारतीय नागरिकता पुनः प्राप्त कर सकता है यदि वह वयस्क होने के एक वर्ष की अवधि के भीतर भारतीय नागरिकता की घोषणा कर दे।

(2) दूसरे देश की नागरिकता स्वीकार करने पर कोई भी भारतीय नागरिक जिसने स्वेच्छा से किसी अन्य देश की नागरिकता को स्वीकार कर लिया है वह भारतीय नागरिकता से वंचित हो जाता है। इस प्रश्न का निर्धारण कि किसी व्यक्ति ने कब और कैसे किसी अन्य देश की नागरिकता को स्वीकार कर लिया है, तत्समय प्रदत्त साक्ष्यों द्वारा किया जाता है।

(3) नागरिकता से वंचित किया जाना- भारतीय नागरिकता अधिनियम 1955 के तहत केन्द्र सरकार को यह अधिकार दिया गया है कि वह देशीयकरण, रजिस्ट्रीकरण, अधिवास अथवा निवास के आधार पर बने हुए किसी भी नागरिक को भारतीय नागरिकता से वंचित कर सकती है। सामान्यतः केन्द्र सरकार इस प्रकार का आदेश तभी जारी करती है जब कि उसे यह समाधान हो जाता है कि-

  1. रजिस्ट्रीकरण या देशीकरण कपट से मिथ्या निरूपण या किसी सर्वमान्य तथ्य का छिपाकर प्राप्त किया गया था।
  2. किसी व्यक्ति ने व्यवहार अथवा भाषण द्वारा स्वयं को भारतीय संविधान के प्रति निष्ठाहीन दिखाया था।
  3. किसी ऐसे युद्ध में जिससे भारत सम्बद्ध हो उसने अवैध रूप से दुश्मन से व्यापार या संचार किया हो।
  4. वह अपने रजिस्ट्रीकरण या देशीयकरण के पाँच वर्ष की अवधि के अन्दर कम से कम 2 वर्ष के लिए दण्डित किया गया हो।

(5) यदि वह भारत से बाहर लगातार 7 वर्षों तक सामान्यतः निवास करता रहा हो। संसद द्वारा नागरिकता के अधिकार के विनियमन-संविधान के अनुच्छेद 10 के द्वारा यह उपबन्धित किया गया है कि प्रत्येक व्यक्ति जो भारत का नागरिक है या समझा जाता है वह पूर्व उपबन्धित उपबन्धों के अनुसार भारत का नागरिक बना रहेगा किन्तु इसका यह अधिकार संसद द्वारा बनायी गयी विधि के अधीन माना जायेगा। संविधान का अनुच्छेद 11 संसद को नागरिकता की प्राप्ति और समाप्ति तथा उससे सम्बन्धित अन्य विषयों के सम्बन्ध में विधि बनाने की शक्ति प्रदान करता है।

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