भारतीय संविधान के स्रोतों की विवेचना कीजिए। Examine the sources of Indian Constitution.
भारतीय संविधान के स्रोत – भारतीय संविधान एक मौलिक संविधान न होकर विभिन्न देशों के संविधान के उन विशेषताओं का संकलन है जिसे संविधान निर्माता भारत के लिए उपयुक्त समझते थे। इस प्रकार भारतीय संविधान निर्माताओं ने मौलिक संविधान की रचना न करके संसार के विभिन्न संविधानों के अच्छे गुणों को ग्रहण करके एक व्यावहारिक संविधान की रचना की है। इस वजह से कुछ आलोचकों ने भारतीय संविधान को ‘उधार का थैला’, ‘भानुमती के कुनबे की तरह गड़बड़, कैंची और गोंद की खिलवाड़’ आदि अनेक नामों की संज्ञा दी है। भारतीय संविधान के स्रोतों को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है-
(अ) भारतीय संविधान के देशी अथवा भारतीय स्रोत-
(1) नेहरू रिपोर्ट, 1928- भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों की जो व्यवस्थाकी गई है, उस समस्त व्यवस्था पर नेहरू रिपोर्ट का प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है।
(2) 1935 ई० का अधिनियम- भारतीय संविधान के अधिकांश प्रावधान (लगभग 200) भारत सरकार अधिनियम 1935 सें लिये गये हैं। इसलिए डॉ जेनिंग्स ने कहा है, “भारतीय संविधान पर 1935 के अधिनियम का इतना प्रभाव है कि उसकी अधिकांश धाराओंको ज्यों-का-त्यों ही संविधान में रख लिया गया है।” वर्तमान संविधान में राज्यों की कार्यपालिका-शक्ति का संगठन, राष्ट्रपति के संकटकालीन अधिकार तथा शक्तियाँ, केन्द्र सूची, राज्य सूची तथा समवर्ती सूची में शक्तियों का विभाजन आदि सभी तथ्य 1935 ई० के अधिनियम से ही लिए गए हैं। इसी आधार पर डॉ. पंजाबराव देशमुख का मत है, “वर्तमान संविधान निश्चयात्मक रूप से 1935 ई. का भारतीय शासन अधिनियम ही है, जिसमें केवल मताधिकार को और जोड़ दिया गया है।” किन्तु इन सब पहलुओं का यह अर्थ कदापि नहीं है कि भारत का वर्तमान संविधान पूर्ण रूप से 1935 ई० के अधिनियम की नकल मात्र है। इस संविधान में अनेक तत्व ऐसे हैं जो 1935 ई० के अधिनियम से भिन्न है यथा-
- 1935 ई० का अधिनियम भारतीयों को प्रभुसत्ता से वंचित करता था, किन्तु वर्तमानसंविधान के अनुसार प्रभुसत्ता जनता में ही निहित कर दी गई है।
- 1935 ई० के अधिनियम का संशोधन ब्रिटिश संसद ही कर सकती थी, किन्तु वर्तमान संविधान का संशोधन भारत की संसद तथा राज्यों के विधानमण्डल करते हैं।
- 1935 ई के अधिनियम में नागरिकों को मौलिक अधिकारों से वंचित किया गया था, परन्तु वर्तमान संविधान में नागरिकों को मौलिक अधिकार भी प्रदान किए गए हैं।
- 1935 ई के अधिनियम में लोक-कल्याणकारी राज्य का उल्लेख नहीं था, किन्तु वर्तमान संविधान में लोक-हितकारी राज्य का विशेष रूप से वर्णन है।
(3) रूढ़ियाँ अथवा परम्पराएँ- भारत में कुछ परम्पराएँ भी संविधान के विकास में सहयोगी रही हैं। इसमें कुछ महत्वपूर्ण परम्पराएँ है-संविधान के अनुसार कार्यपालिका शक्तियाँ राष्ट्रपति में निहित है, परन्तु परम्परा यह है कि यह मन्त्रिमण्डल के परामर्श से ही कार्य करता है। इस परम्परा को 42तें संविधान संशोधन,1976 के द्वारा संविधान का अंग बनाकर राष्ट्रपति को मन्त्रिमण्डल की सलाह मानने से बाध्य कर दिया गया है। दूसरा राष्ट्रपति लोकसभा को भंग कर सकता है, किन्तु ऐसा वह प्रधानमंत्री की सलाह से ही करेगा, तीसरा, राष्ट्रपति द्वारा लोकसभा में बहुमत प्राप्त दल के नेता को प्रधानमंत्री नियुक्त किया जाता है इत्यादि।
(4) न्यायिक पुनर्विलोकन- भारत में संविधान का एक प्रमुख स्रोत वे न्यायिक निर्णय है जो सर्वोच्च न्यायालय ने समय-समय पर दिए हैं। न्यायाधीश संवैधानिक कानून की व्याख्या करते हैं और उनके निर्णय पर 1935ईके भारत शासन अधिनियम का प्रभाव भारतीय संविधान पर सर्वाधिक दिखाई पड़ता है।
(ब) विदेशी स्रोत-
देशी स्रोतों के साथ-साथ भारतीय संविधान के निर्माण में विदेशी स्रोतों को भी महत्व दिया गया है, जिनका विवरण इस प्रकार है-
(1) ग्रेट ब्रिटेन का संविधान- भारत में संसदीय शासन-प्रणाली एवं समान विधि (कानून) के शासन को बिटिश संविधान से लिया गया है।
(2) अमेरिका का संविधान- संविधान की प्रस्तावना, नागरिकों के मूलाधिकार, सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना एवं एक स्वतन्त्र न्यायपालिका की व्यवस्था आदि के लिए भारत का संविधान अमेरिका के संविधान का विशेष रूप से ऋणी है। न्यायिक पुनरावलोकन की अवधारणा को भी भारतीय संविधान में अमेरिकी संविधान से ही ग्रहण किया है।
(3) आयरलैण्ड का संविधान- भारत के संविधान में दिए गए राज्य के नीति-निर्देशक तत्व, राष्ट्रपति का निर्वाचक मण्डल द्वारा निर्वाचन, राज्यसभा में विशिष्ट योग्यता वाले व्यक्तियों को राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत करना आदि आयरलैण्ड के संविधान की देन है।
(4) कनाडा का संविधान- कनाडा के संविधान में संघात्मक शासन व्यवस्था को अपनाया गया है त । अवशिष्ट शक्तियाँ इकाइयों के स्थान पर केन्द्र में निहित हैं। इसी प्रकार की व्यवस्था भारत क संविधान में भी है, इसके अतिरिक्त कनाडा संघ के लिए यूनियन’ (Union) शब्द का प्रयोग किया गया है। इसी प्रकार भारतीय संघ के लिए भी यूनियन’ शब्द का प्रयोग किया गया है।
(5) ऑस्ट्रेलिया का संविधान- भारतीय संविधान की प्रस्तावना की भाषा, समवर्ती सूची तथा केन्द्र व राज्यों के मध्य उत्पन्न होने वाले पारस्परिक विवादों का समाधान करने की प्रणाली ऑस्ट्रेलिया के संविधान से मिलती-जुलती है।
(6) दक्षिण अफ्रीका का संविधान- भारतीय संविधान की संशोधन प्रणाली दक्षिण अफ्रीका के संविधान की संशोधन प्रणाली पर आधारित है।
(7) जर्मनी का संविधान- भारतीय संविधान में राष्ट्रपति को प्रदत्त वे आपातकालीन शक्तियाँ, जिनके आधार पर वह मूल अधिकारों को निलम्बित कर सकता है, 1919 ई के जर्मनी के वाइमर संविधान से ग्रहण की गई हैं।
(8) जापान का संविधान- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 में वर्णित ‘विधि (कानून) द्वारा स्थापित प्रक्रिया’ शब्द को जापान के संविधान से लिया गया है।
(9) पूर्व सोवियत संघ का संविधान- संविधान में 42 वें संविधान संशोधन के द्वारा सम्मिलित किए गए 10 मूल कर्त्तव्यों को तत्कालीन सोवियत संघ के संविधान से लिया गया है।
उपर्युक्त विवरण के आधार पर इस बात की पुष्टि हो जाती है कि भारतीय संविधान अनेक देशों के संविधान से ग्रहण किया गया है, लेकिन भारतीय संविधान को पूर्णरूपेण अन्य संविधानों की नकल भी नहीं कहा जा सकता क्योंकि हमारा संविधान दूसरे देशों के संविधानों का अन्धानुकरण नहीं है, बल्कि उनकी अच्छी-अच्छी बातों को ग्रहण करके उन्हें भारतीय परिस्थितियों के अनुकूल ढाला गया है।
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