विद्यालय में अनुशासन को स्थापित करने की विधि का वर्णन कीजए।
विद्यालय में अनुशासन को स्थापित करने की विधि
विद्यालय में अनुशासन स्थापना विधि- अनुशासन का व्यक्तिगत एवं सामाजिक- दोनों ही दृष्टियों से बहुत महत्व है। इससे यह प्रश्न उठता है कि वे कौन-से सिद्धान्त हैं जिनके आधार पर विद्यालय में उत्तम अनुशासन स्थापित किया जा सकता है। इस सम्बन्ध में किसी निश्चित सिद्धान्त का निर्धारण नहीं किया जा सकता है, क्योंकि एक विद्यालय की परिस्थितियां दूसरे विद्यालय से भिन्न होती हैं। सुझाव के रूप में कुछ बातों का विवेचन प्रस्तुत है,
1.अनुशासन का आधार प्रेम, विश्वास तथा सद्भावना हो, क्योंकि भय अथवा संशय पर आधारित अनुशासन क्षणिक होता है। सच्चे अनुशासन की स्थापना के लिए विद्यालय अधिकारियों- प्रधानाध्यापक, शिक्षक वर्ग आदि तथा बालकों के बीच पारस्परिक प्रेम होना चाहिए। प्रेम विश्वास को उत्पन्न करता है तथा उत्तम अनुशासन की नींव को दृढ़ बनाता है।
यदि हम अपने छात्रों को इस प्रकार का अनुशासन सिखायें कि वे अपने गुरुजनों एवं उनके द्वारा बनाये गये नियमों को आदर की दृष्टि से इसलिए न देखें कि वे उनसे डरते हैं या उन नियमों के उल्लंघन करने पर उनको दण्ड मिलेगा , बल्कि इसलिए देखें कि उनको उनसे प्रेम है तो निश्चय ही हमे पारस्परिक प्रेम को इस अनुशासन का आधार बनाना होगा।
2. उत्तम अनुशासन सहयोग पर आधारित होना चाहिए। प्रधानाध्यापक एवं अध्यापकों एवं अध्यापिकाओं, अध्यापकों एवं छात्रों , अध्यापकों एवं अभिभावकों तथा छात्रों एवं छात्राओं के बीच सहयोग होना परमावश्यक है। यदि इनके बीच सहयोग नहीं होगा तो उत्तम अनुशासन की स्थापना करना अत्यन्त कठिन होगा। इसके लिए हमें सबके बीच मधुर सम्पर्क स्थापित करना आवश्यक है।
3. अनुशासन को स्थापित करने के लिए दण्ड का प्रयोग न किया जाय। यदि अपनी दुष्प्रवृत्तियों को कोई किसी प्रकार से नहीं छोड़ता है, तभी इसके प्रयोग की आवश्यकता का अनुभव किया जाना चाहिए। यदि दण्ड का बार-बार प्रयोग किया गया तो इससे बालकों के मस्तिष्क में विभिन्न प्रकार की ग्रन्थियाँ (Complexes) बनने की सम्भावना रहेगी, जिसके परिणामस्वरूप उनका व्यक्तित्व असन्तुलित हो जायेगा। अत: जहाँ तक सम्भव हो, दण्ड का
प्रेयोग न किया जाए।
4. विद्यालय के सम्पूर्ण वातावरण को सुन्दर एवं सामंजस्यपूर्ण बनाया जाए। इसका दायित्व केवल शिक्षकों एवं अन्य अधिकारियों को ही अपने ऊपर नहीं लेना चाहिए, वरन् इस प्रकार के वातावरण के निर्माण के लिए छात्रों, अभिभावकों तथा सम्पूर्ण समाज को उत्तरदायित्व ग्रहण करना पड़ेगा।
5. विद्यालय में छात्रों एवं अध्यापकों को अपने-अपने कर्तव्यों को पूर्ण करने हेतु पर्याप्त स्वतन्त्रता एवं सुविधाएं प्रदान की जाएँ।
6. विद्यालय में विभिन्न रचनात्मक कार्यों को स्थान दिया जाए, जिससे बालकों को उनकी रुचियों के अनुसार विभिन्न कार्यों के करने से मानसिक व संवेगात्मक सन्तोष मिले। इससे अनुशासनहीनता की समस्या उत्पन्न होने की सम्भावना न रहेगी।
7. अभिभावकों को पारिवारिक जीवन को सुन्दर व सुखमय बनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, क्योंकि बालक का अधिकांश समय अपने घर पर ही व्यतीत होता है। यदि वहाँ का जीवन अनुपयुक्त एवं दूषित है तो विद्यालय के सद्प्रयासों के असफल होने की सम्भावना रहेगी। अत: विभिन्न साधनों द्वारा अभिभावकों को अपने पारिवारिक जीवन को उपयुक्त एवं सामंजस्यपूर्ण बनाने के लिए प्रेरणा दी जाय।
8. बालकों को अनुशासन के महत्व के विषय में अवगत कराया जाय। इसके लिए उपदेश देना ही उचित नहीं है वरन् विभिन्न महान् पुरुषों के उदाहरणों के इसके विषय में ज्ञान दिया जाय तथा स्वयं प्रधानाध्यापक एवं शिक्षक वर्ग उनके समक्ष अपना उदाहरण प्रस्तुत करें।
9. उत्तम अनुशासन की नींव विद्यालय के सम्पूर्ण कार्यक्रम में निहित है। यदि विद्यालय में उत्तम अनुशासन स्थापित करना है तो प्रधानाध्यापक का परम कर्तव्य है कि विद्यालय के सम्पूर्ण वातावरण को उपयुक्त एवं सामंजस्यपूर्ण बनाए।
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